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बजरंग दल के मुद्दे से भाजपा या कांग्रेस को नहीं जेडीएस को हुआ बड़ा सियासी नुकसान

    • आयुष कुमार अग्रवाल
    • Updated: 14 मई, 2023 05:44 PM
  • 14 मई, 2023 05:44 PM
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कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव को मुख्य रूप से स्थानीय और राजकीय अराजकता के मुद्दे पर लड़ा. चाहे वो 40 फीसदी कमीशन का मुद्दा हो या कठपुतली मुख्यमंत्री का. कांग्रेस के स्थानीय छत्रप प्रदेश अध्यक्ष डी के शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया द्वारा कैम्पेन की कमान मजबूती से सम्भाली गई.

कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस द्वारा अपने घोषणा पत्र मे बजरंग दल और पीएफआई को बैन करने की घोषणा की गई थी. इसे भाजपा ने चुनावी मुद्दा बना दिया. कांग्रेस ने जिस दिन घोषणा पत्र जारी किया उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कर्नाटक में चुनावी सभा मे इस मुद्दे को मुख्य रूप से उठाया और पूरे चुनाव को बजरंग दल के आस पास फ्रेम किया. जिससे सियासी पंडितो में यह बात आम चर्चा का विषय बन चुकी थी कि भाजपा को कर्नाटक में कांग्रेस द्वारा शेल्फ गोल कर एक बड़ा मुद्दा दे दिया गया है और भाजपा जिसे कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपनी पिच तैयार करने के लिए मुद्दे की तलाश थी उसे वो मिल गया. भाजपा द्वारा इस मुद्दे को अपने चुनाव प्रचार का केंद्र बना दिया गया. 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण के खात्मे के मुद्दे ने इसे बल दिया. इसके साथ ही राज्य के सबसे मुख्य समुदाय लिंगायत मतदाताओं पर अपनी पकड़ एवं प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा भाजपा के लिए चुनाव का मुख्य आधार रहे.

दूसरी तरफ कांग्रेस जिसने कर्नाटक चुनाव को मुख्य रूप से स्थानीय और राजकीय अराजकता के मुद्दे पर लड़ा. चाहे वो 40 फीसदी कमीशन का मुद्दा हो या कठपुतली मुख्यमंत्री का. कांग्रेस के स्थानीय छत्रप प्रदेश अध्यक्ष डी के शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया द्वारा कैम्पेन की कमान मजबूती से सम्भाली गई. इन दोनों की जोड़ी का जातीय समीकरण ने भी कांग्रेस को संजीवनी देने का काम किया एक तरफ जहाँ डी के शिवकुमार के द्वारा वोकलिंगा वोटर जो मुख्यतः जे डी (एस) के प्रभाव में था उनमें बड़ी सेंधमारी की तो दूसरी तरफ सिद्धरमैया द्वारा क़ुरबा जाति को कांग्रेस के लिए एकमुश्त किया. इससे कांग्रेस का एक मजबूत वोटबैंक का निर्माण हुआ. अब कांग्रेस को इस चुनाव को एक तरफा करने के लिए राज्य के अल्पसंख्यक मुस्लिम वोटरों के एकमुश्त वोट की जरूरत थी जो प्रायः जे डी (एस) और कांग्रेस में विभाजित हो जाया करता था.

कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस द्वारा अपने घोषणा पत्र मे बजरंग दल और पीएफआई को बैन करने की घोषणा की गई थी. इसे भाजपा ने चुनावी मुद्दा बना दिया. कांग्रेस ने जिस दिन घोषणा पत्र जारी किया उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कर्नाटक में चुनावी सभा मे इस मुद्दे को मुख्य रूप से उठाया और पूरे चुनाव को बजरंग दल के आस पास फ्रेम किया. जिससे सियासी पंडितो में यह बात आम चर्चा का विषय बन चुकी थी कि भाजपा को कर्नाटक में कांग्रेस द्वारा शेल्फ गोल कर एक बड़ा मुद्दा दे दिया गया है और भाजपा जिसे कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपनी पिच तैयार करने के लिए मुद्दे की तलाश थी उसे वो मिल गया. भाजपा द्वारा इस मुद्दे को अपने चुनाव प्रचार का केंद्र बना दिया गया. 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण के खात्मे के मुद्दे ने इसे बल दिया. इसके साथ ही राज्य के सबसे मुख्य समुदाय लिंगायत मतदाताओं पर अपनी पकड़ एवं प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा भाजपा के लिए चुनाव का मुख्य आधार रहे.

दूसरी तरफ कांग्रेस जिसने कर्नाटक चुनाव को मुख्य रूप से स्थानीय और राजकीय अराजकता के मुद्दे पर लड़ा. चाहे वो 40 फीसदी कमीशन का मुद्दा हो या कठपुतली मुख्यमंत्री का. कांग्रेस के स्थानीय छत्रप प्रदेश अध्यक्ष डी के शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया द्वारा कैम्पेन की कमान मजबूती से सम्भाली गई. इन दोनों की जोड़ी का जातीय समीकरण ने भी कांग्रेस को संजीवनी देने का काम किया एक तरफ जहाँ डी के शिवकुमार के द्वारा वोकलिंगा वोटर जो मुख्यतः जे डी (एस) के प्रभाव में था उनमें बड़ी सेंधमारी की तो दूसरी तरफ सिद्धरमैया द्वारा क़ुरबा जाति को कांग्रेस के लिए एकमुश्त किया. इससे कांग्रेस का एक मजबूत वोटबैंक का निर्माण हुआ. अब कांग्रेस को इस चुनाव को एक तरफा करने के लिए राज्य के अल्पसंख्यक मुस्लिम वोटरों के एकमुश्त वोट की जरूरत थी जो प्रायः जे डी (एस) और कांग्रेस में विभाजित हो जाया करता था.

इसके कारण राज्य के जो 2 महत्वपूर्ण रीजन है कित्तूर कर्नाटक (मुम्बई कर्नाटक) और पुराना मैसूर जहां क्रमशः 50 एवं 64 सीट कुल 114 सीट आती है वहां कांग्रेस कित्तूर कर्नाटक में तो भाजपा और पुराना मैसूर में जे डी (एस) से पिछड़ जाती थी क्योंकि इन 2 रीजन में मुस्लिम वोट का प्रभाव है और जातीय गणित में इनका एकमुश्त वोट किसी भी पार्टी को अव्वल बना सकता है और ऐसे ही हुआ विभिन्न राजनीतिक पंडितो द्वारा इस बार 90% तक मुस्लिम वोट कांग्रेस को एकमुश्त पड़ने का दावा किया है जिसके कारण कांग्रेस भाजपा के गढ़ कित्तूर कर्नाटक में 50 में से  33 और जे डी (एस) के गढ़ पुराना मैसूर में 64 में से 44 सीट प्राप्त कर बम्पर जीत हासिल की है. 

इसके अलावा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्य्क्ष मल्लिकार्जुन खड़के का जादू भी उनके गृह रीजन हैदराबाद कर्नाटक में चला उनके द्वारा प्रधानमंत्री के गुजरात सम्बंधित भूमिपुत्र वाले बयान पर स्वयं को कर्नाटक का भूमिपुत्र बता जनता को भावनात्मक रूप से जोड़ा गया और हैदराबाद कर्नाटक में कांग्रेस 40 में से 26 सीट प्राप्त करने में सफल रही और मध्य कर्नाटक में कांग्रेस ने अपने 5 वादो व भाजपा सरकार की विफलता के कारण 23 में से 14 सीट प्राप्त की तथा भाजपा के गढ़ कोस्टल कर्नाटक में भी प्रदर्शन को बेहतर किया व 19 में से 6 सीट जीतने में सफल रही लेकिन बैंगलोर रीजन में भाजपा से कांग्रेस पिछड़ गयी तथा भाजपा के 15 सीट की तुलना में 13 सीट ही प्राप्त कर सकी. इसके बावजूद कांग्रेस द्वारा कर्नाटक में सत्ताधारी भाजपा को सत्ता से मजबूती से बेदखल किया गया. कांग्रेस ने 224 सीटो में से 136 सीट एवं लगभग 43 फीसदी वोट प्राप्त किया तथा भाजपा ने 36 फीसदी एवं 65 सीट तथा जे डी (एस) ने 13.3 फीसदी वोट एवं सिर्फ 19 सीट प्राप्त की.

इन आकड़ों में एक विशेष बात निकल कर आयी. 2018 के विधानसभा चुनाव की तुलना में जहाँ कांग्रेस का वोट 5 फीसदी बढ़ा तो वही जे डी (एस) का 5 फीसदी घटा और यही 5 फीसदी वोट का परिवर्तन कांग्रेस को बम्पर जीत की ओर ले गया तथा भाजपा के वोट बैंक में ज्यादा फर्क नहीं आया. लगभग 4 फीसदी ही कम हुआ लेकिन 2018 में यह वोट सीमित विधानसभाओं में प्राप्त हुआ था अबकी बार यह अधिक विधानसभाओं में विघटित है. इसके कारण कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा के मैच जिसे 2024 की विपक्ष एकता का आधार माना जा रहा था, शानदार स्ट्राइक रेट से अपने नाम किया. दक्षिण भारत के द्वार कर्नाटक को भाजपा से जीत लिया.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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