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Karnataka Election Results 2023: भाजपा कब तक रहेगी मोदी ब्रांड पर निर्भर?

    • रमेश ठाकुर
    • Updated: 16 मई, 2023 06:14 PM
  • 16 मई, 2023 06:14 PM
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चुनावी पंड़ित कर्नाटक रिजल्ट के बाद समीक्षात्मक बयान देने लगे हैं कि क्या अब मोदी-शाह का दौर अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया है या फिर भाजपा कब तक मोदी ब्रांड पर निर्भर रहेगी. वहीं, कांग्रेस की जीत के बाद यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या अगले आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की राहें और मुश्किल होंगी?

जनता ज्यादा वक्त तक किसी सियासी दल या हुकूमत को अपने सिर नहीं बिठाती? मन भरते ही जोर से पटक देते है और फिर जल्द उठने नहीं देती. शायद, नेताओं को गलतफहमी हो जाती है कि वह जनता में सदैव टिके रहेंगे, जनप्रतिनिधि बनकर मौज काटते रहेंगे और जनता-समाज को अपनी उंगलियों पर नचाते रहेंगे? कुछ ऐसा ही घमंड भारतीय जनता पार्टी हो गया था. उनके नेता कहते थे कि अगले पचास वर्षों तक भाजपा ही देश में राज करेगी. पर, कर्नाटक की आवाम ने उनका घमंड पल भर में चकनाचूर कर दिया. भाजपा बेखर थी कि जैसे बीते आठ-नौ वर्षों से उनका सियासी नाटक पूरे देश में चल रहा था, कोई भी राज्य जीत सकते हैं, किसी भी चलती सरकार को गिरा सकते हैं. कर्नाटक में भी उनका शिकंजा चलेगा, लेकिन वैसा हुआ नहीं? वहां की जनता ने होश ठिकाने लगा दिए. भाजपा कर्नाटक में प्रचंड़ बहुमत से सरकार बनाने का दावा कर रही थी. लेकिन बुरी तरह लताड़ी गई. जातिगत और धार्मिक ध्रुवीकरण जैसे सभी मुद्दों को हथियार बनाकर जोरदार प्रहार किया. महंगाई-बेरोजगारी जैसे असल मुद्दों से लोगों का ध्यान खूब भटकाया. उनकी जगह अपने स्वनिर्मित मुद्दों को हवा में उठाए. लेकिन कोई भी कारगर साबित नहीं हुए. कुलमिलाकर मोदी-शाह के सभी सियासी हथकंड़े धरे के धरे रह गए.

कर्नाटक के नतीजों ने बता दिया कि लोगों ने अब पीएम मोदी को गंभीरता से लेना कम कर दिया है

ऐन वक्त पर चलाया उनका स्पेशल चुनावी मुद्दा बजरंग दल को बजरंगबली से जोड़ने वाला फार्मुला फुस्स हो गया. इसके अलावा भाजपा समर्पित फिल्म ‘दा केरल स्टोरी’ भी ज्यादा असर नहीं दिखा पाई. भाजपा कर्नाटक चुनाव को आगामी लोकसभा का सेमीफाइनल मानकर चल रही थी. लेकिन हार गई. कर्नाटक रिजल्ट के बाद दिल्ली में उनके नेता शांत हैं. 13 मई को सुबह-सुबह परिणाम आने से पहले दिल्ली में केंद्रीय...

जनता ज्यादा वक्त तक किसी सियासी दल या हुकूमत को अपने सिर नहीं बिठाती? मन भरते ही जोर से पटक देते है और फिर जल्द उठने नहीं देती. शायद, नेताओं को गलतफहमी हो जाती है कि वह जनता में सदैव टिके रहेंगे, जनप्रतिनिधि बनकर मौज काटते रहेंगे और जनता-समाज को अपनी उंगलियों पर नचाते रहेंगे? कुछ ऐसा ही घमंड भारतीय जनता पार्टी हो गया था. उनके नेता कहते थे कि अगले पचास वर्षों तक भाजपा ही देश में राज करेगी. पर, कर्नाटक की आवाम ने उनका घमंड पल भर में चकनाचूर कर दिया. भाजपा बेखर थी कि जैसे बीते आठ-नौ वर्षों से उनका सियासी नाटक पूरे देश में चल रहा था, कोई भी राज्य जीत सकते हैं, किसी भी चलती सरकार को गिरा सकते हैं. कर्नाटक में भी उनका शिकंजा चलेगा, लेकिन वैसा हुआ नहीं? वहां की जनता ने होश ठिकाने लगा दिए. भाजपा कर्नाटक में प्रचंड़ बहुमत से सरकार बनाने का दावा कर रही थी. लेकिन बुरी तरह लताड़ी गई. जातिगत और धार्मिक ध्रुवीकरण जैसे सभी मुद्दों को हथियार बनाकर जोरदार प्रहार किया. महंगाई-बेरोजगारी जैसे असल मुद्दों से लोगों का ध्यान खूब भटकाया. उनकी जगह अपने स्वनिर्मित मुद्दों को हवा में उठाए. लेकिन कोई भी कारगर साबित नहीं हुए. कुलमिलाकर मोदी-शाह के सभी सियासी हथकंड़े धरे के धरे रह गए.

कर्नाटक के नतीजों ने बता दिया कि लोगों ने अब पीएम मोदी को गंभीरता से लेना कम कर दिया है

ऐन वक्त पर चलाया उनका स्पेशल चुनावी मुद्दा बजरंग दल को बजरंगबली से जोड़ने वाला फार्मुला फुस्स हो गया. इसके अलावा भाजपा समर्पित फिल्म ‘दा केरल स्टोरी’ भी ज्यादा असर नहीं दिखा पाई. भाजपा कर्नाटक चुनाव को आगामी लोकसभा का सेमीफाइनल मानकर चल रही थी. लेकिन हार गई. कर्नाटक रिजल्ट के बाद दिल्ली में उनके नेता शांत हैं. 13 मई को सुबह-सुबह परिणाम आने से पहले दिल्ली में केंद्रीय कार्यालय पर नेताओं और कार्यकर्ताओं की चारों ओर चहल-पहल थी.

पर, जैसे ही परिणाम कांग्रेस के पक्ष में रुझान जाते दिखे, सभी खिसकने लगे और कदमों से अपने-अपने रास्ते नापने लगे. कार्यकर्ताओं में बंटने वाली मिठाई से भी पर्दा नहीं उठ सका. 12 बजे के बाद तो कार्यालय में सन्नाटा ही पसर गया. गनीमत ये रही, कि उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव परिणाम अच्छे आए, जिन्होंने थोड़ा संबल दिया. वरना, भाजपाईयों को आधात और बड़ा लगता. वैसे, यूपी का चुनाव पूरी तरह से सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर लड़ा गया.

उनका इस वक्त समूचे प्रदेश में बोलबाला है, बाबा का डमरू बज रहा है. अतीक अहमद प्रकरण के बाद कानून-व्यवस्था और विकास के चर्चों से जनता खुश दिखाई पड़ती है.इससे भी मोदी-शाह की जोड़ी भयंकर परेशान. दोनों चाहते थे कि निकाय चुनाव जीत का श्रेय उन्हीं को दिया जाए. पर, इस बार बाबा ने बाजी मार ली. टीवी चैनलों ने भी जीत का सहरा योगी के ही सिर बांधा और वहीं कर्नाटक में जीत का बाजीगर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को बताया.

राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ कर्नाटक में जिन-जिन विधानसभाओं से होकर गुजरी थी, वहां अस्सी फीसदी से ज्यादा कांग्रेस ने उम्मीदवार विजय हुए हैं. जीत के बाद राहुल गांधी ने भाजपा को चिढ़ाते हुए कह भी दिया कि नफरत के माहौल में मोहब्बत की दुकानें खुलने लगी हैं. चुनावी पंड़ित कर्नाटक रिजल्ट के बाद समीक्षात्मक बयान देने लगे हैं कि क्या अब मोदी-शाह का दौर अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया है या फिर भाजपा कब तक मोदी ब्रांड पर निर्भर रहेगी.

वहीं, कांग्रेस की जीत के बाद यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या अगले आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की राहें और मुश्किल होंगी? क्या मोदी की लोकप्रियता सिमटने लगी हैं? क्या कांग्रेस अब उन्हें हराने में सक्षम हो गई है? ऐसी तरह-तरह की बातें कर्नाटक रिजल्ट के बाद से उठने लगी हैं. निश्चित रूप से लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत भाजपा के लिए किसी भी लिहाज से अच्छी नहीं हो सकती है.

साल के अंत तक पांच-छह राज्यों में और चुनाव होने हैं, उनकी तैयारियों को भी धक्का लगेगा. वहीं, नरेंद्र मोदी कभी नहीं चाहेंगे कि उनके होते हुए मीडिया किसी अन्य नेता का गुणगान करें. 2024 से पहले तक उनकी सीबीआई-ईडी के जरिए प्लानिंग यही रहेगी कि देशभर के नेताओं पर छापेमारी करके विलेन बनाया जाए, तब अगले चुनाव में भी वह हीरो के रूप अवतरित हों पाएं.

ये सच है किसी दल या नेता का जादू कुछ समय तक ही चलता है. क्योंकि जनता ज्यादा समय तक किसी को नहीं झेलती, कुछ वक्त बाद उसे बदलाव चाहिए होता है. देश की जनता को अब इस बात का एहसास है कि बकैती ज्यादा हो रही है और विकास बहुत कम? जुमलों और लच्छेदार बातों से लोगों को गुमराह किया जा रहा है. इसलिए जनता का मूड अब बदलना आरंभ हो गया है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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