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मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने 'सॉफ्ट हिंदुत्व' के सहारे कांग्रेस की करा दी घरवापसी

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 04 मई, 2018 06:23 PM
  • 04 मई, 2018 06:23 PM
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मध्य प्रदेश में मंदिर में पूजा करते और भजन गाते कमलनाथ को देखकर साफ है कि कांग्रेस बीजेपी को उसी के घर में मात देने के लिए ऐसा कर रही है और उसकी तैयारी संतोषजनक है.

देश के कुछ राज्यों में चुनाव हो चुके हैं, कुछ राज्यों में होने वाले हैं. जिन जगहों पर चुनाव हो चुके हैं वहां के किस्से अब शायद ही किसी को आकर्षित करें. वहीं जिन जगहों पर चुनाव हैं वहां से जुड़ी छोटी छोटी बातें महत्वपूर्ण हैं. बात जब चुनाव की चल रही है तो धर्म को नकारा नहीं जा सकता. भारतीय राजनीति में जीत हार के लिए धर्म हमेशा से ही एक प्रभावी कारक रहा है. चाहे कर्नाटक का हालिया चुनाव हो या फिर मध्यप्रदेश के आने वाले इलेक्शन, नेतागण जानते हैं कि विजय का ताज तभी मिलेगा जब मंदिरों की यात्रा होगी, पूजा पाठ होगा, शीश नवाया जाएगा.

भाजपा धर्म के इस खेल की पुरानी खिलाड़ी है और उसे इस खेल में महारत हासिल है. मगर वर्तमान परिदृश्य में जिस तरह कांग्रेस, भाजपा के नक्शेकदम पर चल रही है और लगातार सॉफ्ट हिंदुत्व को आधार बना रही है, देखना दिलचस्प होगा कि देश की जनता इससे कितना खुश होती है और इनाम स्वरूप उसे कैसे वोटों से नवाज कर विजय रथ पर बैठाती है.

बीते कुछ समय से कांग्रेस के नेताओं की मंदिर यात्रा से लोग अचरज में हैं

कांग्रेस कैसे सॉफ्ट हिंदुत्व को आधार बना रही है, यदि इस बात को बेहतर ढंग से समझना है तो हमें मध्य प्रदेश का रुख करना पड़ेगा. मेन स्ट्रीम मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें वायरल हो रही हैं. तस्वीरें, मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की हैं. बात आगे बढ़ाने से पहले बताते चलें कि कमलनाथ को एक धार्मिक व्यक्ति माना जाता है. पूर्व में कई मौके ऐसे आए हैं जब वो न सिर्फ मंदिरों में दिखे बल्कि उन्हें भजन गाते हुए भी देखा गया. खैर, अब जो तस्वीरें वायरल हो रही  उनमें कमलनाथ वही कर रहे हैं जिसके दम पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लम्बे समय से सत्ता सुख भोग रहे हैं.

कमलनाथ सुबह-सुबह भोपाल के गुफा मंदिर में थे. खबर है...

देश के कुछ राज्यों में चुनाव हो चुके हैं, कुछ राज्यों में होने वाले हैं. जिन जगहों पर चुनाव हो चुके हैं वहां के किस्से अब शायद ही किसी को आकर्षित करें. वहीं जिन जगहों पर चुनाव हैं वहां से जुड़ी छोटी छोटी बातें महत्वपूर्ण हैं. बात जब चुनाव की चल रही है तो धर्म को नकारा नहीं जा सकता. भारतीय राजनीति में जीत हार के लिए धर्म हमेशा से ही एक प्रभावी कारक रहा है. चाहे कर्नाटक का हालिया चुनाव हो या फिर मध्यप्रदेश के आने वाले इलेक्शन, नेतागण जानते हैं कि विजय का ताज तभी मिलेगा जब मंदिरों की यात्रा होगी, पूजा पाठ होगा, शीश नवाया जाएगा.

भाजपा धर्म के इस खेल की पुरानी खिलाड़ी है और उसे इस खेल में महारत हासिल है. मगर वर्तमान परिदृश्य में जिस तरह कांग्रेस, भाजपा के नक्शेकदम पर चल रही है और लगातार सॉफ्ट हिंदुत्व को आधार बना रही है, देखना दिलचस्प होगा कि देश की जनता इससे कितना खुश होती है और इनाम स्वरूप उसे कैसे वोटों से नवाज कर विजय रथ पर बैठाती है.

बीते कुछ समय से कांग्रेस के नेताओं की मंदिर यात्रा से लोग अचरज में हैं

कांग्रेस कैसे सॉफ्ट हिंदुत्व को आधार बना रही है, यदि इस बात को बेहतर ढंग से समझना है तो हमें मध्य प्रदेश का रुख करना पड़ेगा. मेन स्ट्रीम मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें वायरल हो रही हैं. तस्वीरें, मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की हैं. बात आगे बढ़ाने से पहले बताते चलें कि कमलनाथ को एक धार्मिक व्यक्ति माना जाता है. पूर्व में कई मौके ऐसे आए हैं जब वो न सिर्फ मंदिरों में दिखे बल्कि उन्हें भजन गाते हुए भी देखा गया. खैर, अब जो तस्वीरें वायरल हो रही  उनमें कमलनाथ वही कर रहे हैं जिसके दम पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लम्बे समय से सत्ता सुख भोग रहे हैं.

कमलनाथ सुबह-सुबह भोपाल के गुफा मंदिर में थे. खबर है कि उन्होंने हनुमान मंदिर में पूजा अर्चना और भजन कीर्तन किया. बताया ये भी जा रहा है कि मंदिर परिसर में सुंदरकांड के पाठ का भी आयोजन किया गया था और कमलनाथ खुद हाथों में मंजीरा पकड़े भजन गा रहे थे. इस पूरे घटनाक्रम में जो बात सबसे दिलचस्प थी वो ये कि जब कमलनाथ भजन गा रहे थे तो उनके पीछे खड़े कांग्रेसी कार्यकर्ता जय श्री राम के नारे लगा रहे थे.

कांग्रेस के इस ह्रदय परिवर्तन पर राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क भी गौर करने लायक है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, कमलनाथ का इस तरह मंदिर जाना और भजन गाना हिंदू वोटरों को रिझाने की कोशिश है. साथ ही अगर ये कोशिश कामयाब हो गयी तो इससे मध्यप्रदेश जैसे राज्य में कांग्रेस को बड़ा फायदा मिल सकता है.

माना जा रहा है कि जिस रणनीति का पालन कमलनाथ कर रहे हैं उससे उन्हें फायदा अवश्य मिलेगा

आपको बताते चलें कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने जहां एक तरफ उज्जैन के महाकाल मंदिर में पूजा अर्चना की, तो वहीं वो दतिया के पितांबरा पीठ में भी दर्शन करने गए. कमलनाथ के इस मूव को एक ऐसी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है जिसमें वो भाजपा को उसी के अंदाज में जवाब देते नजर आ रहे हैं. जाहिर है जब कोई जिस चीज में अच्छा हो, और जब वही काम कोई दूसरा करे और आकर्षण का केंद्र बने तो तकलीफ होगी. कुछ ऐसा ही कमलनाथ के साथ हो रहा है.

इस मूव के बाद कमलनाथ पर हमले और आलोचना का ग्राफ बढ़ गया है. खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनपर बारीकी से नजर बनाए हुए हैं. अपनी मंदिर यात्राओं के विषय पर कमलनाथ का तर्क है कि,'मंदिरों पर सिर्फ बीजेपी का अधिकार नहीं है. मेरे पद संभालने के पहले ही कांग्रेस ने अपनी रणनीति बना ली थी. मध्य प्रदेश के लोग मुश्किल में हैं. मैंने उनलोगों के लिए भगवान से प्रार्थना की है.'

बहरहाल एक तरफ जहां राहुल गांधी की तर्ज पर कमलनाथ साथी कांग्रेसी नेताओं को लेकर मंदिर जा रहे हैं और जय श्री राम के नारे लगा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में शुमार कपिल सिब्बल अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का विरोध कर रहे हैं. राम मंदिर पर कपिल का विरोध साफ बताता है कि पार्टी की दिशा और दशा में कुछ बड़ा टेक्नीकल दोष है.

बीते कुछ समय से राहुल गांधी भी मंदिर-मंदिर दौड़ते नजर आ रहे हैं

कांग्रेस के इस बदले हुए रूप को देखकर ये कहना भी गलत नहीं है कि पार्टी न तो पूर्ण रूप से और खुल कर अपने को आम हिन्दुओं का पैरोकार बता पा रही है न ही अपने को हिन्दू विरोधी दर्शा पा रही है. कुल मिलाकर आम हिन्दुओं के मन में कांग्रेस सको लेकर पशोपेश की स्थिति बनी हुई है और वो इस बात को लेकर परेशान है कि उसका ये ह्रदय परिवर्तन क्षणिक है या फिर स्थाई.

अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात को विराम देंगे कि, राहुल गांधी ने मंदिर प्रेम से सॉफ्ट हिंदुत्व की शुरुआत तो कर दी है मगर उन्हें ध्यान रखना होगा कि वो इस खेल को उतने ही प्रोफेशनल अंदाज में खेलें जैसा बीजेपी खेल रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि यदि इस बार, इस खेल को खेलते वक्त उन्होंने चूक की तो निश्चित तौर पर यही बात उनके और उनकी पार्टी के पतन का कारण बनेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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