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कमलनाथ को कमान और सिंधिया को लॉलीपॉप दिलाकर फिर दौरे पर दिग्विजय

    • आईचौक
    • Updated: 26 अप्रिल, 2018 09:07 PM
  • 26 अप्रिल, 2018 09:07 PM
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राजस्थान में सचिन पायलट को कमान मिलने के बाद लगा कि मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया अध्यक्ष बनेंगे, पर हुआ उल्टा. कमलनाथ को भोपाल भेजे जाने के बाद अब सिंधिया के दिल्ली में ही बने रहने के आसार हैं.

बाजार की तरह सियासत में भी शर्तें लागू हुआ करती हैं - और उसमें फेरबदल के राइट्स रिजर्व होते हैं. बात बीजेपी की हो या फिर कांग्रेस की - हाल हर तरफ एक जैसा ही है.

एक तरफ तो बीजेपी 75 साल के नेताओं को मार्गदर्शक मंडल भेज देती है या वे फिर मोदी कैबिनेट से हटा दिये जाते हैं और दूसरी तरफ बीएस येदियुरप्पा जैसे नेता भी हैं जिन्हें बाकायदा मुख्यमंत्री कैंडिडेट घोषित किया जाता है.

ठीक वैसे ही कांग्रेस युवा हाथों में नेतृत्व सौंपने की बात करती है. जब मौका आता है तो 70 पार के कमलनाथ को कमान सौंप दी जाती है और उनसे 24 साल छोटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक छोटा सा लॉलीपॉप थमा दिया जाता है. ध्यान रहे, शर्तें लागू हैं.

कैसे कामयाब हुए कमलनाथ

दिग्विजय सिंह 15 मई से एक और यात्रा पर जा रहे हैं. अपने नये सफर को दिग्विजय ने राजनीतिक जामा पहले से ही पहना दिया है. यात्रा के दौरान दिग्विजय हर विधानसभा क्षेत्र में जाएंगे - और, जैसे समझा रहे हैं, स्थानीय नेताओें और कार्यकर्ताओं को एकजुट करेंगे. इससे पहले 13 सितंबर, 2017 को दिग्विजय नर्मदा परिक्रमा पर निकले थे और 10 अप्रैल को लौटे हैं. नर्मदा परिक्रमा को दिग्विजय ने आध्यात्मिक यात्रा बताया था.

दिग्विजय ने रास्ता साफ किया

दिग्विजय ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा और राजनीतिक सफर के बीच में बड़ा खेल किया है. माना जा रहा था कि दिग्विजय हाशिये के बाहर जा चुके हैं. खासकर गोवा में बीजेपी के सरकार बना लेने के बाद दिग्विजय की बड़ी फजीहत हुई थी. आध्यात्मिक सफर से दिग्विजय मजबूत होकर लौटे और अपने पसंदीदा नेता कमलनाथ के लिए बड़े मददगार बन गये.

कमलनाथ को मध्य प्रदेश की कमान सौंपे जाने में दिग्विजय के उस बयान का भी अहम रोल रहा जिसमें उन्हें कहा था, "मैं सीएम की रेस...

बाजार की तरह सियासत में भी शर्तें लागू हुआ करती हैं - और उसमें फेरबदल के राइट्स रिजर्व होते हैं. बात बीजेपी की हो या फिर कांग्रेस की - हाल हर तरफ एक जैसा ही है.

एक तरफ तो बीजेपी 75 साल के नेताओं को मार्गदर्शक मंडल भेज देती है या वे फिर मोदी कैबिनेट से हटा दिये जाते हैं और दूसरी तरफ बीएस येदियुरप्पा जैसे नेता भी हैं जिन्हें बाकायदा मुख्यमंत्री कैंडिडेट घोषित किया जाता है.

ठीक वैसे ही कांग्रेस युवा हाथों में नेतृत्व सौंपने की बात करती है. जब मौका आता है तो 70 पार के कमलनाथ को कमान सौंप दी जाती है और उनसे 24 साल छोटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक छोटा सा लॉलीपॉप थमा दिया जाता है. ध्यान रहे, शर्तें लागू हैं.

कैसे कामयाब हुए कमलनाथ

दिग्विजय सिंह 15 मई से एक और यात्रा पर जा रहे हैं. अपने नये सफर को दिग्विजय ने राजनीतिक जामा पहले से ही पहना दिया है. यात्रा के दौरान दिग्विजय हर विधानसभा क्षेत्र में जाएंगे - और, जैसे समझा रहे हैं, स्थानीय नेताओें और कार्यकर्ताओं को एकजुट करेंगे. इससे पहले 13 सितंबर, 2017 को दिग्विजय नर्मदा परिक्रमा पर निकले थे और 10 अप्रैल को लौटे हैं. नर्मदा परिक्रमा को दिग्विजय ने आध्यात्मिक यात्रा बताया था.

दिग्विजय ने रास्ता साफ किया

दिग्विजय ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा और राजनीतिक सफर के बीच में बड़ा खेल किया है. माना जा रहा था कि दिग्विजय हाशिये के बाहर जा चुके हैं. खासकर गोवा में बीजेपी के सरकार बना लेने के बाद दिग्विजय की बड़ी फजीहत हुई थी. आध्यात्मिक सफर से दिग्विजय मजबूत होकर लौटे और अपने पसंदीदा नेता कमलनाथ के लिए बड़े मददगार बन गये.

कमलनाथ को मध्य प्रदेश की कमान सौंपे जाने में दिग्विजय के उस बयान का भी अहम रोल रहा जिसमें उन्हें कहा था, "मैं सीएम की रेस में नहीं हूं..." माना जा रहा है कि इसके बाद ही कमलनाथ का रास्ता साफ हुआ.

जब दिग्विजय को कमलनाथ से जुड़ा एक बयान याद दिलाया गया तो तो उनका जवाब रहा, ‘‘2008 में मैंने छिंदवाड़ा में एक सभा में कहा था कि वो नेतृत्व कर सकते हैं. मैं जो कहता हूं, उससे हटता नहीं...’’

मध्य प्रदेश कांग्रेस में फेरबदल

दिग्विजय सिंह को अब नयी जिम्मेदारी कांग्रेस के रूठे नेताओं को मनाने की दी गयी है - और अगले महीने वो इसी मिशन पर फिर से निकल रहे हैं. तो क्या कमलनाथ को सिर्फ दिग्विजय सिंह के बयान भर से मध्य प्रदेश की जिम्मेदारी मिल गयी - वो भी उस पद के प्रबल दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह? सिंधिया, राहुल गांधी के बेहद करीबी लोगों में शामिल हैं और संसद से लेकर सड़क तक पूरे मन से जुटे रहते हैं.

पिछले साल अप्रैल में एक अफवाह उड़ी. ये अफवाह भी काफी कुछ वैसी ही थी जैसी कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले उड़ी थी. फर्क ये था कि अमरिंदर के अपनी पार्टी बनाने की अफवाह थी और कमलनाथ के बीजेपी ज्वाइन करने की. वैसे भी कमलनाथ जैसे कद्दावर नेता कांग्रेस में हैं ही कितने. 2014 की मोदी लहर में भी छिंदवाड़ा में कमलनाथ की सेहत पर कोई असर न हुआ. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से नौंवी बार लोक सभा पहुंचे कमलनाथ 34 साल की उम्र में 1980 में पहली बार सांसद बने थे.

अफवाहों के बीच 1 मई, 2017 को कमलनाथ तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले और समझाया कि क्या किया जाये और क्या नहीं तो मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव जीता जा सकता है. बताते हैं कि कमलनाथ ने उसी के साथ एक छोटी सी शर्त भी रख दी - अगर उन्हें सूबे की कमान सौंपी गयी तो सत्ता भी दिला देंगे. 2003 से सत्ता से बाहर कांग्रेस को ये आइडिया भला कैसे न सपना दिखाता.

सचिन पायलट से संकेत तो सिंधिया के ही थे, लेकिन

तीन हफ्ते बाद, 21 मई को कमलनाथ ने एक विस्तृत प्रजेंटेशन के साथ सोनिया गांधी से मुलाकात की. कमलनाथ के प्लान में सब कुछ था - रणनीति क्या होगी, किस इलाके से कौन उम्मीदवार होगा और बाकी जरूरी चीजें क्या क्या होंगी.

बस यही वो प्वाइंट रहा जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया चूक गये और कमलनाथ बाजी मार ले गये.

सिंधिया को भी झुनझुना तो मिला ही है

हाल के मुंगावली और कोलारस उपचुनावों में जीत के बाद कमलनाथ ने दबी जबान में ही सही संकेत दिया था कि सिंधिया को कमान सौंपी जाती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन ये मन की बात तो बिलकुल नहीं थी.

मध्य प्रदेश में भी राजस्थान की ही तरह इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. मध्य प्रदेश से पहले राजस्थान में भी ऐसा ही फेरबदल देखने को मिला. दोनों राज्यों की तुलना करें तो मध्य प्रदेश मे जो बदलाव हुआ वो राजस्थान का उल्टा है. कांग्रेस ने राजस्थान में जहां युवा नेतृत्व पर भरोसा जताया है वहीं मध्य प्रदेश में बुजुर्ग और अनुभवी नेतृत्व पर.

राजस्थान और मध्य प्रदेश में कॉमन बात बस इतनी है कि गुटबाजी खत्म करने की पूरी कोशिश की गयी है. राजस्थान में सचिन पायलट को अध्यक्ष बना कर अशोक गहलोत को केंद्रीय राजनीति में महासचिव बना दिया गया. मध्य प्रदेश में कमलनाथ को अध्यक्ष बनाने के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति की जिम्मेदारी सौंपी गयी है, लेकिन सुना जा रहा है कि सिंधिया को केंद्र में ही उलझाया जा सकता है.

कमलनाथ को कमान जरूर सौंपी गयी है, लेकिन जरूरी नहीं कि मुख्यमंत्री भी वही बनेंगे. 2012 में उत्तराखंड में हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया लेकिन कुर्सी पर बैठे विजय बहुगुणा. ये बात अलग है कि वो ज्यादा चल नहीं पाये और आखिरकार रावत ने कुर्सी पर कब्जा जमा लिया. राजनीति कब कहां कौन करवट ले कौन जानता है, कमलनाथ पर भी यही बात लागू होती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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