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कैराना उपचुनाव में देवबंद ने वो कर दिया जो बीजेपी अभी सोच ही रही थी

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 25 मई, 2018 09:42 PM
  • 25 मई, 2018 09:42 PM
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कैराना और नूरपुर चुनावों के मद्देनजर जिस तरह भाजपा के खिलाफ दारूल उलूम मुसलमान को संगठित कर रहा है, कहना गलत न होगा कि इस ध्रुवीकरण का भी फायदा भाजपा को ही मिलेगा.

अब इसे 2019 के लोक सभा चुनावों की तैयारी कहें या मुसलमानों में छाई निराशा और डर. उपचुनावों के मद्देनजर मुसलमानों के एक बड़े धार्मिक संगठन ने वो कर दिया है जिसपर शायद अभी भाजपा विचार ही कर रही थी. कैराना चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में मुसलमानों के बड़े संगठन दारूल उलूम देवबंद ने ध्रुवीकरण वाली बात कर दी है. दारूल उलूम देवबंद ने क्षेत्र के मुसलमानों से आग्रह किया है कि यदि उन्हें भाजपा को हराना है, तो इसके लिए सारे मुसलमान एकजुट हो जाएं और बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ वोट दें.

भाजपा सांसद हुकुम सिंह की मौत के बाद खाली हुई कैराना लोकसभा सीट पर 28 मई को चुनाव होने हैं. फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव की तर्ज पर यहां भी सभी विपक्षी दल मिलकर एक प्रत्याक्षी को लड़ा रहे हैं. माना जा रहा है कि यदि ये योजना कारगर साबित हुई तो कुछ इसी तर्ज पर 2019 का आम चुनाव लड़ा जाएगा. साथ ही ऐसे सियासी समीकरण बिछाए जाएंगे जिससे भाजपा को सत्ता के गलियारों में चारों खाने चित किया जा सके.

कैराना उप चुनावों में मुसलमानों का भाजपा विरोध बता देता है कि चुनाव दिलचस्प होने वाला है

खबर न्यूज18 इंडिया के हवाले से है. खबर के अनुसार, दारूल उलूम देवबंद ने इन उपचुनावों को देखते हुए क्षेत्र के आम मुसलमानों से अपील की है कि वो भाजपा के प्रत्याक्षी को हराने के लिए अपने मताधिकार का इस्तेमाल करें. दारूल उलूम ने मुसलमानों से ये भी कहा है कि रमजान के पवित्र महीने में रोजा रखने के बावजूद वो बड़ी संख्या में अपने घरों से निकलें और अपने मताधिकार का प्रयोग कर एक नया इतिहास बनते हुए देखें. दारुल उलूम का मानना है कि यदि देश को आगे ले जाना है तो उसके लिए वर्तमान परिदृश्य में भाजपा को हराना बहुत जरूरी है.

जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के कोषाध्यक्ष मौलाना हशीब सिद्दीकी ने भी कैराना चुनावों को 2019...

अब इसे 2019 के लोक सभा चुनावों की तैयारी कहें या मुसलमानों में छाई निराशा और डर. उपचुनावों के मद्देनजर मुसलमानों के एक बड़े धार्मिक संगठन ने वो कर दिया है जिसपर शायद अभी भाजपा विचार ही कर रही थी. कैराना चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में मुसलमानों के बड़े संगठन दारूल उलूम देवबंद ने ध्रुवीकरण वाली बात कर दी है. दारूल उलूम देवबंद ने क्षेत्र के मुसलमानों से आग्रह किया है कि यदि उन्हें भाजपा को हराना है, तो इसके लिए सारे मुसलमान एकजुट हो जाएं और बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ वोट दें.

भाजपा सांसद हुकुम सिंह की मौत के बाद खाली हुई कैराना लोकसभा सीट पर 28 मई को चुनाव होने हैं. फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव की तर्ज पर यहां भी सभी विपक्षी दल मिलकर एक प्रत्याक्षी को लड़ा रहे हैं. माना जा रहा है कि यदि ये योजना कारगर साबित हुई तो कुछ इसी तर्ज पर 2019 का आम चुनाव लड़ा जाएगा. साथ ही ऐसे सियासी समीकरण बिछाए जाएंगे जिससे भाजपा को सत्ता के गलियारों में चारों खाने चित किया जा सके.

कैराना उप चुनावों में मुसलमानों का भाजपा विरोध बता देता है कि चुनाव दिलचस्प होने वाला है

खबर न्यूज18 इंडिया के हवाले से है. खबर के अनुसार, दारूल उलूम देवबंद ने इन उपचुनावों को देखते हुए क्षेत्र के आम मुसलमानों से अपील की है कि वो भाजपा के प्रत्याक्षी को हराने के लिए अपने मताधिकार का इस्तेमाल करें. दारूल उलूम ने मुसलमानों से ये भी कहा है कि रमजान के पवित्र महीने में रोजा रखने के बावजूद वो बड़ी संख्या में अपने घरों से निकलें और अपने मताधिकार का प्रयोग कर एक नया इतिहास बनते हुए देखें. दारुल उलूम का मानना है कि यदि देश को आगे ले जाना है तो उसके लिए वर्तमान परिदृश्य में भाजपा को हराना बहुत जरूरी है.

जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के कोषाध्यक्ष मौलाना हशीब सिद्दीकी ने भी कैराना चुनावों को 2019 की दृष्टि से अहम बताया है. मौलाना हसीब ने आने वाले इन चुनावों पर अपना तर्क पेश करते हुए कहा है कि मोदी सरकार से पूरा देश और सियासी जमात परेशान हैं. मौलाना हशीब ने मुस्लिम मुस्लिम मतदाताओं से अपील की है कि वो अपना वोट बीजेपी को डालकर बरबाद न करें, अपने वोट का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें.

ज्ञात हो कि 28 मई को कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर की विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं. आपको बताते चलें कि कैराना के पूर्व भाजपा सांसद हुकुम सिंह का निधन हो गया था. जहां पिता की मौत के बाद भाजपा की तरफ से इस सीट पर हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिया जा रहा है. वहीं अगर बात नूरपुर की हो तो यहां भाजपा विधायक लोकेंद्र सिंह चौहान के निधन अब इस सीट से उनकी पत्नी अवनि सिंह को टिकट दिया गया है.

कह सकते हैं इन चुनावों में मुसलमानों ने वो कर दिया जिसे भाजपा नहीं कर पाई

गौरतलब है कि ये दोनों ही सीटें जहां एक ओर भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं तो वहीं दूसरी तरह विपक्षी दलों ने भी इन दो सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए अपने सारे दाव लगा दिए हैं. बात अगर इस क्षेत्र की आबादी की हो तो यहां 40 प्रतिशत से ऊपर मुसलमान आबादी वास करती है मगर जिस तरह यहां पूर्व में अखिलेश यादव के शासनकाल में धार्मिक हिंसा हुई उसने दोनों ही समुदायों के बीच काफी मतभेद उत्पन्न कर दिए हैं. बताया जा रहा है कि ये चुनाव भाजपा बनाम अन्य दल न होकर के अब 'मोदी' बनाम 'गैर-माेदी' या योगी बनाम गैर-योगी हो गया है.

कैराना में पलायन एक बड़ा मुद्दा रहा है और पूर्व में ऐसे कई मौके आए हैं जब अलग-अलग दलों ने इसे एक बड़ा चुनावी हथियार बनाया है. फ़िलहाल दोनों ही स्थानों पर गन्ना किसानों की मांगों ने इस चुनावी रण को और अधिक दिलचस्प बना दिया था. कहना गलत न होगा कि जिस तरह दारूल उलूम ने चुनावों से ठीक पहले ध्रुवीकरण का कार्ड खेला है वो सारे मुख्य मुद्दों को भुला देगा. और काफी हद तक इसका फायदा भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मिलेगा. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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