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कर्नाटक मॉडल' विपक्ष का विकल्प है तो 2019 में हम कुमारस्वामी-टाइप PM देख सकते हैं

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 22 मई, 2018 05:20 PM
  • 22 मई, 2018 05:20 PM
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कर्नाटक चुनाव के अंतर्गत जिस तरह कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन दिया और एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने, कह सकते हैं कि ऐसा ही कुछ 2019 में भी देखने को मिलेगा जहां बीजेपी को खारिज करने के लिए कांग्रेस द्वारा कुमारस्वामी जैसे लोग ही पीएम बनाए जाएंगे.

ये 2017 है और कर्नाटक चुनाव के परिणाम हमारे सामने हैं. मगर हम बात करेंगे 1996 की. ऐसा इसलिए क्योंकि जो आज हम देख रहे हैं इस देश की सियासत में वो पहले घट चुका है. 1996 के आम चुनावों में कांग्रेस ने अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया था और महज 140 सीटें जीती थीं. प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में वाजपेयी की अगुवाई में बीजेपी ने 187 सीटें पर कब्ज़ा किया था. संयुक्त मोर्चे ने कई नेताओं के नेतृत्व में 192 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की थीं, तब किसी दल में इतना सामर्थ्य नहीं था कि वो अकेले अपने दम पर सरकार बना ले. तय माना जा रहा था कि गठबंधन की सरकार ही होगी.

उस समय संयुक्त मोर्चा कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाना चाहता था. उद्देश्य था भाजपा को सरकार बनाने से दूर रखना. तब संयुक्त मोर्चे के दिग्गजों जैसे लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, रामविलास पासवान, एन चंद्रबाबू नायडू, हरकिशन सिंह सुरजीत ने आपसी सहमती से वी पी सिंह को अपना नेता चुनने के बारे में सोचा. ऐसा इसलिए क्योंकि वी पी सिंह इससे पहले 7 सात सालों तक गठबंधन की सरकार चला चुके थे. वीपी सिंह ने इसके लिए मना कर दिया और इन नेताओं से उन्होंने मुलाकात तक न की. फिर सभी ने एक सुर में ज्योति बसु का नाम प्रस्तावित किया. ज्योति नेतृत्व के लिए तैयार थे मगर उनके ही लोगों ने उनके साथ धोखा कर दिया और उनका नाम आते आते रह गया.

देश का 11वां प्रधानमंत्री चुना जाना था और इस बीच काफी देर हो चुकी थी. अतः 14 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति से मुलाकात की और कहा कि वो "सिंगल लार्जेस्ट पार्टी" के दम पर सरकार बनाना चाहते हैं. राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, उस दिन शाम तक संयुक्त मोर्चे और कांग्रेस के लिए रुके मगर जब देर हो गयी तो उन्होंने प्रधानमंत्री के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का नाम प्रस्तावित किया और उन्हें 14 दिनों में बहुमत साबित करने के लिए कहा.

ये 2017 है और कर्नाटक चुनाव के परिणाम हमारे सामने हैं. मगर हम बात करेंगे 1996 की. ऐसा इसलिए क्योंकि जो आज हम देख रहे हैं इस देश की सियासत में वो पहले घट चुका है. 1996 के आम चुनावों में कांग्रेस ने अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया था और महज 140 सीटें जीती थीं. प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में वाजपेयी की अगुवाई में बीजेपी ने 187 सीटें पर कब्ज़ा किया था. संयुक्त मोर्चे ने कई नेताओं के नेतृत्व में 192 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की थीं, तब किसी दल में इतना सामर्थ्य नहीं था कि वो अकेले अपने दम पर सरकार बना ले. तय माना जा रहा था कि गठबंधन की सरकार ही होगी.

उस समय संयुक्त मोर्चा कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाना चाहता था. उद्देश्य था भाजपा को सरकार बनाने से दूर रखना. तब संयुक्त मोर्चे के दिग्गजों जैसे लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, रामविलास पासवान, एन चंद्रबाबू नायडू, हरकिशन सिंह सुरजीत ने आपसी सहमती से वी पी सिंह को अपना नेता चुनने के बारे में सोचा. ऐसा इसलिए क्योंकि वी पी सिंह इससे पहले 7 सात सालों तक गठबंधन की सरकार चला चुके थे. वीपी सिंह ने इसके लिए मना कर दिया और इन नेताओं से उन्होंने मुलाकात तक न की. फिर सभी ने एक सुर में ज्योति बसु का नाम प्रस्तावित किया. ज्योति नेतृत्व के लिए तैयार थे मगर उनके ही लोगों ने उनके साथ धोखा कर दिया और उनका नाम आते आते रह गया.

देश का 11वां प्रधानमंत्री चुना जाना था और इस बीच काफी देर हो चुकी थी. अतः 14 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति से मुलाकात की और कहा कि वो "सिंगल लार्जेस्ट पार्टी" के दम पर सरकार बनाना चाहते हैं. राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, उस दिन शाम तक संयुक्त मोर्चे और कांग्रेस के लिए रुके मगर जब देर हो गयी तो उन्होंने प्रधानमंत्री के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का नाम प्रस्तावित किया और उन्हें 14 दिनों में बहुमत साबित करने के लिए कहा.

एचडी कुमारस्वामी का मुख्यमंत्री बनना वैसा ही है जैसा उनके पिता एचडी देवेगौड़ा का पीएम बनना

निर्धारित समय तक बहुमत सिद्ध करने में अटल नाकाम रहे और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा. इसके बाद भारत की सियासत में एक बड़ा वक़्त तब आया जब प्रधानमंत्री के लिए लालू का नाम सामने आया मगर शरद यादव और रामविलास पासवान के आगे उनकी एक न चली साथ ही मुलायम भी इसपर राजी नहीं हुए. तब मुलायम का भी नाम हरकिशन सिंह सुरजीत द्वारा खारिज कर दिया गया. ऐसे में एक नाम बचा जिसे प्रधानमंत्री बनाए जाने पर सभी की सहमती थी और वो नाम था कर्नाटक के मुख्यमंत्री और जनता दल के नेता  एचडी देवेगौड़ा का और इस तरह एचडी देवेगौड़ा देश के 11 वें प्रधानमंत्री बने और उन्होंने 324 दिनों तक सरकार चलाई.

आज जो कर्नाटक के हालात हैं और जिस तरह कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है उसने 1996 के उस दौर की यादें ताजा कर दी हैं जब उनके पिता एचडी देवेगौड़ा इस देश के प्रधानमंत्री बने. यूं तो इस बात को 22 साल गुजर चुके हैं मगर जो संभावनाएं हैं कह सकते हैं कि देश को आगे भी इसी तर्ज पर प्रधानमंत्री मिलेगा.

गौरतलब है कि कर्नाटक चुनाव से पहले राज्य में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही माना जा रहा था. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आए लोगों को एहसास हो गया कि इस सियासी घमसान में जेडीएस को नकारना एक बड़ी भूल है. रैलियों और भाषणों का दौर समाप्त हुआ और चुनाव हुए. मतदान के दिन से लेकर नतीजे आने तक लोगों को विश्वास था कि यहां भी अन्य राज्यों की तरह पीएम मोदी का जादू चलेगा और भाजपा न सिर्फ एक बड़ी पार्टी बन कर उभरेगी बल्कि सरकार बनाएगी.

एचडी कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद कर्नाटक का सियासी घमासान थम सा गया है

104 सीटें जीतना, राज्यपाल का दखल,  बीएस येदियुरप्पा का राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेना, एक दूसरे का विरोध करने वाले दो दलों कांग्रेस और जेडीएस का एक साथ आ जाना, विरोध स्वरूप दोनों ही दलों के विधायकों का विधान सौदा के सामने जमावड़ा लगाना, बस यात्रा, सदन में पेश होना, येदियुरप्पा का अपना बहुमत सिद्ध न कर पाना और एक इमोशनल स्पीच के बाद इस्तीफ़ा दे देना और अब कुमारस्वामी का मुख्यमंत्री बनना. कर्नाटक के इस सियासी नाटक को देखने पर एक बार महसूस हुआ है कि हमारे सामने एक ऐसी सस्पेंस थ्रिलर पिक्चर चल रही है जिसने टिकट से लेकर पॉपकॉर्न और कोल्ड ड्रिंक तक सभी चीजों का पूरा पैसा वसूल करा दिया है.

लगभग 4 दिनों तक चले इस ड्रामे के बाद कुमारस्वामी के रूप में राज्य को अपना नया मुख्यमंत्री मिला है. एक ऐसा मुख्यमंत्री जिसकी पार्टी राज्य में तीसरे नंबर पर थी मगर सिर्फ इसलिए कि जो पहले नम्बर पर रहा वो अपना पद छोड़ दे इसलिए दूसरे ने तीसरे को अपने से जोड़ लिया और संख्या बल का लाभ लेते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली. कर्नाटक चुनाव के अंतर्गत, जो बीत चुका वो इतिहास है. जो होगा वो भविष्य के गर्त में छुपा होगा.

राज्य के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को देखने पर अपने आप इस बात की अनुभूति हो जाती है कि कांग्रेस ने इन्हें सत्ता सुख तो दे दिया मगर इनकी शक्तियों का रिमोट किसी और के नहीं बल्कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के हाथ में है. ये कहना हमारे लिए बिल्कुल भी गलत न होगा कि वर्तमान परिदृश्य में कांग्रेसी नेता सिद्धारमैया पार्टी के ऐसे पावर प्लेयर हैं जिनकी मर्जी के बगैर कर्नाटक की सियासत का पत्ता भी नहीं हिल सकता. ध्यान रहे कि सिद्धारमैया विधायक दल के नेता हैं.

कह सकते हैं कि एचडी कुमारस्वामी की पूरी सियासत उनके पिता से प्रभावित है

वैसे तो कर्नाटक चुनाव के सभी पक्ष खासे दिलचस्प थे मगर इनमें भी सबसे दिलचस्प कुमारस्वामी को बतौर मुख्यमंत्री देखना रहा. राज्य में थर्ड आने वाली पार्टी के नेता से राज्य के मुख्यमंत्री बनने तक बहुत सी ऐसी बातें हैं जो इन्हें इनके पिता एचडी देवगौड़ा से जोड़ती हैं और ये कहना हमारे लिए बिल्कुल भी गलत नहीं है कि यदि 'कर्नाटक मॉडल' विपक्ष का विकल्प है तो 2019 में हम कुमारस्वामी-टाइप PM देख सकते हैं. बात चूंकि एचडी देवगौड़ा पर निकली है तो यहां हमारे लिए इतिहास में जाना और उसमें झांकना बेहद जरूरी है. ध्यान रहे कि तकरीबन 22 साल पहले कुमारस्वामी के पिता एचडी देवेगौड़ा भी कुछ इसी तरह देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली थी.

गौरतलब है कि राम मंदिर के मुद्दे के बाद देश की जनता से भाजपा को अपार जनसमर्थन मिला था. बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा देश के लोगों के बीच लोकप्रिय हो रही थी. 1991 से 96 तक पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री का पद संभाल चुके थे. 96 में फिर चुनाव हुए और इस दौरान न तो कांग्रेस और न ही भाजपा बहुमत के आंकड़े को पार कर सके. उस दौरान देवेगौड़ा की अगुवाई वाले जनता दल ने 47 सीटों पर विजय पाई थी. उस समय भी बड़ा सियासी घमासान देखने को मिला था. तब देवेगौड़ा के पक्ष में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि कांग्रेस के समर्थन से वो देश के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने 324 दिन सरकार चलाई. तब  देवेगौड़ा प्रधानमंत्री के अलावा संयुक्त मोर्चा की संचालन समिति के अध्यक्ष थे.

कर्नाटक चुनाव के नतीजों के बाद कुमारास्वामी को देखकर लग रहा है कि पिता जैसा भाग्य उन्होंने भी विरासत में पाया है. राज्य में पांच साल तक रहकर सत्ता सुख भोगने वाली कांग्रेस सत्ता  बनाने में नाकाम रही, बीजेपी भी निर्धारित मानकों से दूर है. ऐसे में इतिहास अपने आप को दोबारा दोहरा रहा है और जिस तरह से राज्य से भाजपा का सूपड़ा साफ करने के लिए एक दूसरे के धुर विरोधी जेडीएस और कांग्रेस एक साथ आए हैं उन्होंने इस बात का साफ संकेत दे दिया है कि भविष्य में आने वाला 2019 का लोक सभा चुनाव भी खासा दिलचस्प होने वाला है. तब यदि भाजपा कहीं से भी कमजोर पड़ती हुई दिखाई देती है तो ऐसे सियासी समीकरण बनाए जाएंगे जहां कांग्रेस, भाजपा के सारे विरोधियों को एक कर लेगी और भाजपा सत्ता से दूर रहे इसलिए एचडी कुमारस्वामी जैसे लोगों को प्रधानमंत्री का पद देकर कांग्रेस अपनी राजनीति बदस्तूर जारी रखेगी.      

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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