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JNU protest में 'फीस' तो जुमला है, निशाने पर वाइस चांसलर हैं!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 11 नवम्बर, 2019 11:38 PM
  • 11 नवम्बर, 2019 11:38 PM
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JNU protest: जेएनयू प्रशासन द्वारा फीस बढ़ाए जाने के बाद छात्र सड़क पर आ गए हैं और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. छात्रों के इस प्रदर्शन पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि समस्या फीस नहीं बल्कि यूनिवर्सिटी के वीसी और उनका अनुशासन है.

आए दिन किसी न किसी जायज या नाजायज गतिविधि के कारण सुर्ख़ियों में रहने वाला जेएनयू (JN Student Protest) चर्चा में है. यूनिवर्सिटी के छात्र अपनी कुछ मांगों को, जिन्हें वो जायज और वाइस चांसलर (JN VC) जिनके फरमान को वो नाजायज बता रहे हैं, के कारण प्रदर्शन कर रहे हैं. छात्रों ने मुद्दा फीस (Fee Hike In JN) को बनाया है. फीस के ही विरोध में छात्र सड़कों पर हैं. मामले को लेकर प्रदर्शनकारी छात्रों और पुलिस के बीच तीखी झड़प हुई है. यूनिवर्सिटी द्वारा फीस वृद्धि को लेकर छात्रों का रुख कैसा है? इसे हम उनके उस उग्र रूप से भी समझ सकते हैं जब जेएनयू के तीसरे दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और मानव संसाधन एवं विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक आए. मामले से नाराज छात्रों ने अपन पक्ष रखने के लिए पुलिस बैरिकेड तोड़ने की कोशिश की. स्थिति गंभीर थी इसलिए भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया. जेएनयू के वाइस चांसलर प्रो एम जगदीश कुमार ने मुद्दे को लेकर छात्रों से कोई बात नहीं की इसलिए छात्रों ने हटने से मना कर दिया. यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा अपने साथ हो रही नाइंसाफी से आहत छात्र प्रतिनिधियों ने मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से बात की. जिन्होंने छात्रों को भरोसा दिलाया है कि वो अवश्य ही इस पूरे मसले को जरूर देखेंगे.

जेएनयू के छात्र फीस के लिए नहीं बल्कि वीसी के सख्त अनुशासन के खिलाफ सड़कों पर हैं

आपको बताते चलें कि जेएनयू में मचे बवाल का आधार फीस को बताया जा रहा है. मामले पर प्रदर्शन कर रहे छात्रों का तर्क है कि कुलपति प्रो एम जगदीश कुमार ने जेएनयू का निजीकरण करने की ठान ली है और अपनी इसी मंशा के तहत उन्होंने हॉस्टल की फीस 3000 पर्सेंट तक बढ़ा दी है. ध्यान रहे कि पूर्व में सिंगल सीटर हॉस्टल का रूम रेंट 20 रुपये था...

आए दिन किसी न किसी जायज या नाजायज गतिविधि के कारण सुर्ख़ियों में रहने वाला जेएनयू (JN Student Protest) चर्चा में है. यूनिवर्सिटी के छात्र अपनी कुछ मांगों को, जिन्हें वो जायज और वाइस चांसलर (JN VC) जिनके फरमान को वो नाजायज बता रहे हैं, के कारण प्रदर्शन कर रहे हैं. छात्रों ने मुद्दा फीस (Fee Hike In JN) को बनाया है. फीस के ही विरोध में छात्र सड़कों पर हैं. मामले को लेकर प्रदर्शनकारी छात्रों और पुलिस के बीच तीखी झड़प हुई है. यूनिवर्सिटी द्वारा फीस वृद्धि को लेकर छात्रों का रुख कैसा है? इसे हम उनके उस उग्र रूप से भी समझ सकते हैं जब जेएनयू के तीसरे दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और मानव संसाधन एवं विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक आए. मामले से नाराज छात्रों ने अपन पक्ष रखने के लिए पुलिस बैरिकेड तोड़ने की कोशिश की. स्थिति गंभीर थी इसलिए भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया. जेएनयू के वाइस चांसलर प्रो एम जगदीश कुमार ने मुद्दे को लेकर छात्रों से कोई बात नहीं की इसलिए छात्रों ने हटने से मना कर दिया. यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा अपने साथ हो रही नाइंसाफी से आहत छात्र प्रतिनिधियों ने मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से बात की. जिन्होंने छात्रों को भरोसा दिलाया है कि वो अवश्य ही इस पूरे मसले को जरूर देखेंगे.

जेएनयू के छात्र फीस के लिए नहीं बल्कि वीसी के सख्त अनुशासन के खिलाफ सड़कों पर हैं

आपको बताते चलें कि जेएनयू में मचे बवाल का आधार फीस को बताया जा रहा है. मामले पर प्रदर्शन कर रहे छात्रों का तर्क है कि कुलपति प्रो एम जगदीश कुमार ने जेएनयू का निजीकरण करने की ठान ली है और अपनी इसी मंशा के तहत उन्होंने हॉस्टल की फीस 3000 पर्सेंट तक बढ़ा दी है. ध्यान रहे कि पूर्व में सिंगल सीटर हॉस्टल का रूम रेंट 20 रुपये था जिसे बढ़ाकर अब 600 रुपये कर दिया गया है.

वहीं बात अगर डबल सीटर हॉस्टल के रूम रेंट की हो तो  पूर्व में ये 10 रुपये था, जो अब बढ़कर 300 रुपये हुआ है. इसी तरह छात्रावास का जो पानी-बिजली फ्री हुआ करता था. उस पर भी अब शुल्क वसूलने की बात की जा रही है. कहा जा रहा है कि अब यूनिवर्सिटी छात्रों से 1700 रुपए महीने का सर्विस चार्ज भी लेगी. इसके अलावा जहां पहले मेस की सिक्योरिटी 5500 रुपये थी, उसे भी बढ़ाकर अब 12 हजार रुपये कर दिया गया है.

पहली नजर में जेएनयू में चल रहा ये आंदोलन बढ़ी हुई फीस का परिणाम माना जा सकता है मगर जब इसे हम गहराई में जाकर देखें तो मिलता है कि इसकी जड़े यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के केबिन तक जाती हैं. दूसरे शब्दों में ये भी कहा जा सकता है कि जेएनयू मामले में 'फीस' शब्द है. कहानी तो वाइस चांसलर हैं. सवाल होगा कैसे? तो वजह है यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो एम जगदीश कुमार का रवैया. प्रो एम जगदीश कुमार ने जिस दिन से यूनिवर्सिटी की बागडोर संभाली है वो अपनी तरफ से यही प्रयास कर रहे हैं कि आए दिन व्यर्थ के विवादों में आने वाली जेएनयू पर नकेल कासी जा सके ताकि यूनिवर्सिटी के छात्र बेवजह के बखेड़ों से दूर रहते हुए केवल शिक्षण और शोध तक ही सीमित रहें.

लेफ्ट की राजनीति का गढ़ जेएनयू हमेशा ही एक अलग तरह के शिक्षण के लिए जाना गया है. प्रायः यही देखा गया है कि चाहे वो प्रोफ़ेसर रहे हों या फिर पूर्व के वाइस चांसलर जेएनयू में संवाद और वाद विवाद को हमेशा ही तरजीह दी गई है. अब डिबेट चाहे संस्थान में हो या फिर सोशल मीडिया पर यूनिवर्सिटी के छात्र न सिर्फ उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं बल्कि अगर आलोचना के योग्य हुआ तो मुखर होकर उन मुद्दों की आलोचना करते हैं.

समस्या की जड़ यही है. वर्तमान वाइस चांसलर प्रो एम जगदीश कुमार छात्रों को संवाद और वाद विवाद से पहले अनुशासन सिखाना चाहते हैं. इस बात को समझना हो तो हम उनके उस फैसले का भी अवलोकन कर सकते हैं जिसमें पूर्व में न सिर्फ उन्होंने  छात्रों को रात 11 बजे के बाद परिसर से बाहर जाने में रोक लगा दी थी बल्कि हॉस्टल के टाइम को तय करते हुए हॉस्टल में ड्रेस कोड लागू करने की बात की थी. आपको बताते चलें कि जेएनयू में बीते 29 अक्टूबर को इस प्रस्ताव को हॉस्टल मैनेजमेंट कमिटी में पास करवाने के लिए लाया गया था और उसी वक़्त छात्रों ने इसका विरोध किया था.

इन बातों के अलावा छात्र वीसी के उस फैसले से भी खासे नाराज थे. जिसमें उन्होंने रात 11 के बाद परिसर में मौजूद और विमर्श का अड्डा माने जाने वाले ढाबों को भी बंद करने का फरमान जारी किया था हालांकि बाद में जब छात्रों ने विरोध किया तो यूनिवर्सिटी प्रशासन को अपने इस फैसले को वापस लेना पड़ा.

अब जबकि छात्र प्रदर्शन के लिए सड़कों पर हैं तो कहा यही जा सकता है कि इस पूरे मामले में फीस तो दूर की कौड़ी है. असल समस्या वीसी की सकती है. छात्र वीसी को नियंत्रित करना चाहते हैं. वीसी अनुशासन का डंडा दिखाकर छात्रों को सीधे रास्ते पर लाना चाहते हैं. छात्र जीतते हैं या वाइस चांसलर इन सभी सवालों के जवाब हमें वक़्त देगा. लेकिन जो वर्तमान है वो ये साफ़ बता रहा है कि जेएनयू का विवादों से गहरा नाता है जो आगे भी बदस्तूर जाई रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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