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जमानत का जश्न न मनाइए, कोर्ट की भी सुनिए कॉमरेड!

    • शिवानन्द द्विवेदी
    • Updated: 03 मार्च, 2016 12:16 PM
  • 03 मार्च, 2016 12:16 PM
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कन्हैया की जमानत को 'विक्ट्री' बताने वाले लोग अथवा तथाकथित बुद्धिजीवी या तो खुद नासमझी का शिकार हैं या बेहद शातिर ढंग से वे जनता को गुमराह करने की अफवाह रच रहे हैं.

देशद्रोह के आरोपी जेएनएसयू के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को सशर्त अंतरिम जमानत मिल गयी. चूंकि जमानत अदालती प्रक्रिया का न सिर्फ हिस्सा है बल्कि किसी भी मामले में आरोपी द्वारा अपील  किया जाने वाला अधिकार भी है. लेकिन कन्हैया मामले में जमानत को सोशल मीडिया से लेकर जहाँ-तहां वामपंथियों द्वारा 'विक्ट्री-डे' के तौर पर जश्न रूप में सेलिब्रेट करके देश को गुमराह करने वाली एक और बड़ी गलती की जा रही है. इन लोगों को यह समझना चाहिए कि जमानत मिलने का अर्थ यह भी नहीं होता कि अदालत ने अभियुक्त को सभी आरोपों से 'बरी' कर दिया है.

यहाँ महत्वपूर्ण बात ये नहीं है कि जमानत मिली है, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि जमानत के साथ माननीय न्यायलय ने कहा क्या है? कोर्ट की टिप्पणी को बताये बिना इस जमानत की कोई भी व्याख्या सही व्याख्या नहीं मानी जा सकती है. २३ पन्नों में दिया गया कोर्ट का आर्डर पढ़ें तो अदालत ने कन्हैया को अंतरिम जमानत देते हुए बड़े ही सख्त एवं निर्देशात्मक लहजे में न सिर्फ कन्हैया बल्कि जेएनयू प्रशासन, शिक्षकों सहित छात्रों पर टिप्पणी की है. माननीय कोर्ट ने अंतरिम जमानत देते हुए जो निर्देश दिए हैं उनको पढ़े बिना किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना सिवाय अफवाह को हवा देने अथवा अफवाह का शिकार होने के कुछ भी नहीं है. इस पूरे प्रकरण में पुलिस ने मजबूत पक्ष रखा है और कोर्ट ने उसे स्वीकार भी किया है, इसका ताजा सुबूत कोर्ट का ऑर्डर है. इस आर्डर को पढने के बाद पता चलता है कि कोर्ट ने पुलिस की दलील को कितनी अहमियत दी है और कन्हैया के लिए क्या निर्देश दिया है.    

ऐसे में कन्हैया की जमानत को 'विक्ट्री' बताने वाले लोग अथवा तथाकथित बुद्धिजीवी या तो खुद नासमझी का शिकार हैं या बेहद शातिर ढंग से वे जनता को गुमराह करने की अफवाह रच रहे हैं. जमानत वो भी सशर्त अंतरिम जमानत मिलना भला कन्हैया को निर्दोष साबित करता है क्या ? इस आर्डर में ध्यान देने वाली बात ये है कि अदालत ने पुलिस द्वारा दायर किसी आरोप को खारिज नहीं किया है. बल्कि २३ पन्ने के इस पत्र में कोर्ट ने...

देशद्रोह के आरोपी जेएनएसयू के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को सशर्त अंतरिम जमानत मिल गयी. चूंकि जमानत अदालती प्रक्रिया का न सिर्फ हिस्सा है बल्कि किसी भी मामले में आरोपी द्वारा अपील  किया जाने वाला अधिकार भी है. लेकिन कन्हैया मामले में जमानत को सोशल मीडिया से लेकर जहाँ-तहां वामपंथियों द्वारा 'विक्ट्री-डे' के तौर पर जश्न रूप में सेलिब्रेट करके देश को गुमराह करने वाली एक और बड़ी गलती की जा रही है. इन लोगों को यह समझना चाहिए कि जमानत मिलने का अर्थ यह भी नहीं होता कि अदालत ने अभियुक्त को सभी आरोपों से 'बरी' कर दिया है.

यहाँ महत्वपूर्ण बात ये नहीं है कि जमानत मिली है, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि जमानत के साथ माननीय न्यायलय ने कहा क्या है? कोर्ट की टिप्पणी को बताये बिना इस जमानत की कोई भी व्याख्या सही व्याख्या नहीं मानी जा सकती है. २३ पन्नों में दिया गया कोर्ट का आर्डर पढ़ें तो अदालत ने कन्हैया को अंतरिम जमानत देते हुए बड़े ही सख्त एवं निर्देशात्मक लहजे में न सिर्फ कन्हैया बल्कि जेएनयू प्रशासन, शिक्षकों सहित छात्रों पर टिप्पणी की है. माननीय कोर्ट ने अंतरिम जमानत देते हुए जो निर्देश दिए हैं उनको पढ़े बिना किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना सिवाय अफवाह को हवा देने अथवा अफवाह का शिकार होने के कुछ भी नहीं है. इस पूरे प्रकरण में पुलिस ने मजबूत पक्ष रखा है और कोर्ट ने उसे स्वीकार भी किया है, इसका ताजा सुबूत कोर्ट का ऑर्डर है. इस आर्डर को पढने के बाद पता चलता है कि कोर्ट ने पुलिस की दलील को कितनी अहमियत दी है और कन्हैया के लिए क्या निर्देश दिया है.    

ऐसे में कन्हैया की जमानत को 'विक्ट्री' बताने वाले लोग अथवा तथाकथित बुद्धिजीवी या तो खुद नासमझी का शिकार हैं या बेहद शातिर ढंग से वे जनता को गुमराह करने की अफवाह रच रहे हैं. जमानत वो भी सशर्त अंतरिम जमानत मिलना भला कन्हैया को निर्दोष साबित करता है क्या ? इस आर्डर में ध्यान देने वाली बात ये है कि अदालत ने पुलिस द्वारा दायर किसी आरोप को खारिज नहीं किया है. बल्कि २३ पन्ने के इस पत्र में कोर्ट ने कहीं भी पुलिस पर गिरफ्तारी को लेकर कोई सवाल नहीं उठाया है. अदालत ने पुलिस की दलीलों को गंभीरता से लेते हुए यह टिप्पणी की है.  

अर्थात, पुलिस ने कुछ ऐसे साक्ष्य तो जरुर अदालत के सामने रखें हैं जिनके आधार पर अदालत ने आरोप की जांच को स्वीकार किया और कन्हैया को जांच में सहयोग देने का निर्देश दिया है. ऐसे में कन्हैया की जमानत को किसी भी ढंग की 'विक्ट्री' या पुलिस की 'डिफीट' बताना सिवाय लोगों को गुमराह करने के और कुछ भी नहीं है. अपनी टिप्पणी के माध्यम से माननीय न्यायलय ने लगभग हर उस चिंता को व्यक्त किया है जो पुलिस, सरकार और देश की चिंता है.

कोर्ट ने क्या कहा है ?

जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को अंतरिम जमानत देते हुए अदालत ने सख्त टिप्पणी की है और जेएनयू के हालात पर चिंता व्यक्त की है. देशभक्ति से ओत-प्रोत इंदवीर द्वारा लिखे एक  गीत का जिक्र करते हुए जस्टिस प्रतिभा रानी की बेंच ने कहा है  कि 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम इस देश में देश विरोधी नारे किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किये जा सकते हैं. इस देश के हर नागरिक को यह स्वतंत्रता है कि वो किसी भी विचारधारा से जुड़ सकता है और अपनी बात रख सकता है लेकिन यह सबकुछ वो संविधान के दायरे में रहकर ही करने को स्वतंत्र है. कन्हैया कुमार जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष है लिहाजा उनको इस बात का ख्याल करना चाहिए था कि ऐसे नारे वहां न लगें और ऐसे किसी भी कार्यक्रम का आयोजन कतई न हो.

कोर्ट ने यह भी कहा है कि जेएनयू के प्राध्यापकों  की भी यह ज़िम्मेदारी है कि वो छात्रों को सही रास्ता दिखाएँ और गलत करने से रोकें. अभिव्यक्ति की आजादी के प्रश्न पर न्यायलय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 19(1) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देने वालों को अनुच्छेद 51१(ए) में दिए कर्तव्य भी पढना चाहिए. जेएनयू कैम्पस में चल रही गतिविधियों में पुलिस द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार अदालत ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जेएनयू के छात्रों में ऐसी बीमारी फैल रही है कि यदि उसको समय रहते न रोका गया तो वो एक महामारी का रूप ले सकती है. जेएनयू जैसे सेफ कैम्पस में यदि कुछ छात्र अफजल गुरु और मकबूल भट्ट के नाम पर नारे लगा रहे हैं तो इसी वजह से क्योंकि हमारे देश के सीमा पर मुश्किल हालातों में देश की रक्षा कर रहे हैं, और अगर नारा लगाने वालों को उन जगहों पर भेजा जाय तो ये 1 घंटे भी खड़े नहीं रह सकते हैं. ऐसे में देश विरोधी  नारे उन तमाम जवानों का भी अपमान हैं जो खुद शहीद होकर भी हम सबकी रक्षा करते हैं. ऐसा करना अपमान है उन परिवार वालो का भी जिनके अपने सीमा से कफन लपेट कर घर लौटते हैं.

कोर्ट आर्डर को देखें तो 9 फरवरी को कन्हैया नारा लगा रहे थे या नहीं, इसपर कोर्ट ने रूचि नहीं दिखाई बल्कि कोर्ट ने इसबात पर ज्यादा प्रकाश डाला है कि जांच सिर्फ ये हो कि कन्हैया वहां कार्यक्रम में शामिल थे या बीच-बचाव करने गये थे. न्यायलय ने अपने निर्देश यह जरुर कहा है कि जेएनयू प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए की संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी वाले दिन को उसके शहादत दिवस के तौर पर मनाने और होने वाले कार्यक्रमों पर रोक लगाईं जाय और ऐसा कभी भी भविष्य में न होने पाए. कोर्ट ने कन्हैया कुमार से यह भी उम्मीद की है कि जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष होने के नाते कन्हैया ये सुनिश्चित करेगा की जेएनयू में दोबारा देश विरोधी गतिविधियां नहीं होंगी.

कोर्ट के इन निर्देशों के बाद अब कम से कम जो लोग कन्हैया की अंतरिम जमानत को 'विक्ट्री' डे के तौर पर मना रहे हैं, उन्हें थोड़ी शान्ति बरतते हुए यह सोचना चाहिए कि आखिर जेएनयू को लेकर कोर्ट की चिंता का समाधान कैसे किया जाय? अफजल और मकबूल के समर्थन में लगने वाले नारों और कार्यक्रमों को कैसे रोका जाय? जम्मू-काश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताने से इनकार करने वाले छात्रसंघ के वामपंथी पदाधिकारियों को कैसे समझाकर सही रास्ते पर लाया जाय? कोर्ट का आर्डर पढने के बाद यह लगता है कि यह समय जमानत की 'विक्ट्री' सेलिब्रेट करने का नहीं बल्कि जेएनयू में सुधारों के प्रति चिन्तन करने का है. हालांकि बड़ा सवाल ये है कि कोर्ट के निर्देश के बावजूद क्या वामपंथियों से ऐसे किसी 'चिन्तन' की उम्मीद की जा सकती है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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