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Javed Akhtar को गुस्सा क्यों आता है? 4 बातें तो साफ हैं...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 17 जनवरी, 2020 10:27 PM
  • 17 जनवरी, 2020 10:26 PM
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CAA protest के बाद जैसा देश का मौजूदा माहौल बना है Javed Akhtar का शुमार उन लोगों में हो गया है जो मुखर होकर सरकार की आलोचना करते हैं और तमाम मौके ऐसे आए हैं जब वो बात बे बात अपने गुस्से का प्रदर्शन देश की जनता के सामने कर चुके हैं.

17 जनवरी! वैसे तो ये एक आम सी तारीख है. मगर इसे हमें इसलिए भी याद रखना चाहिए क्योंकि इस जिन जावेद अख्तर का जन्म (Javed Akhtar Birthday) हुआ था. सबसे पहले तो हमारी तरफ से जावेद अख्तर को ढेरों शुभकामनाएं. सिने प्रेमियों और उर्दू अदब के जानकारों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसका मानना है कि इनके बड़े एहसान है इंडस्ट्री और उर्दू अदब पर. रोमांस की जो परिभाषा जावेद अख्तर ने अपनी शायरी (Javed Akhtar Poetry) के जरिये गढ़ी है वाकई उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है. इसी तरफ बात अगर फिल्मों में इनके योगदान की हो तो जो डायलॉग इन्होंने लिखे हैं वो भी कमाल हैं. जावेद अख्तर यूं तो अपने आप में एक बेहतरीन शख्सियत हैं. मगर बात जब सवाल-जवाब, आरोप-प्रत्यारोप, तर्क- कुतर्क, धर्म या बहस की आती है तो हम पूर्व में कई ऐसे मौकों के गवाह बन चुके हैं जहां हमने जावेद अख्तर की पर्सनाल्टी के एक दूसरे पहलू. या ये कहें कि उन्हें आहत होते और गुस्सा होते देखा. खुद कल्पना करिए हंसते मुस्कुराते चेहरे वाले जावेद अख्तर की और सोचिये कि उन्हें गुस्सा (Why Javed Akhtar is always angry) क्यों आता है?

जैसा अभी का राजनीतिक माहौल है जावेद अख्तर का शुमार उन लोगों में है जो मुखर होकर सरकार की आलोचना करते हैं

तो आइये उन बिन्दुओं पर गौर करें और देखें की पूर्व में ऐसे कौन कौन से मौके आए? जब जावेद अख्तर ने आपा खोया और गुस्से से लाल होकर तमाम सवालों को जन्म दे दिया.

ओवैसी के स्टैंड पर जब जावेद को गुस्सा आया...

हैदराबाद से सांसद असदउद्दीन ओवैसी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. अगर उनकी राजनीति पर नजर डालें तो जिस तरह की राजनीति ओवैसी करते हैं, एक बड़ा वर्ग है जो ये कहता है कि ओवैसी हार्डलाइनर हैं और अपनी बातों से, अपने लहजे से कट्टरपंथ को प्रमोट करते हैं. दिलचस्प...

17 जनवरी! वैसे तो ये एक आम सी तारीख है. मगर इसे हमें इसलिए भी याद रखना चाहिए क्योंकि इस जिन जावेद अख्तर का जन्म (Javed Akhtar Birthday) हुआ था. सबसे पहले तो हमारी तरफ से जावेद अख्तर को ढेरों शुभकामनाएं. सिने प्रेमियों और उर्दू अदब के जानकारों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसका मानना है कि इनके बड़े एहसान है इंडस्ट्री और उर्दू अदब पर. रोमांस की जो परिभाषा जावेद अख्तर ने अपनी शायरी (Javed Akhtar Poetry) के जरिये गढ़ी है वाकई उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है. इसी तरफ बात अगर फिल्मों में इनके योगदान की हो तो जो डायलॉग इन्होंने लिखे हैं वो भी कमाल हैं. जावेद अख्तर यूं तो अपने आप में एक बेहतरीन शख्सियत हैं. मगर बात जब सवाल-जवाब, आरोप-प्रत्यारोप, तर्क- कुतर्क, धर्म या बहस की आती है तो हम पूर्व में कई ऐसे मौकों के गवाह बन चुके हैं जहां हमने जावेद अख्तर की पर्सनाल्टी के एक दूसरे पहलू. या ये कहें कि उन्हें आहत होते और गुस्सा होते देखा. खुद कल्पना करिए हंसते मुस्कुराते चेहरे वाले जावेद अख्तर की और सोचिये कि उन्हें गुस्सा (Why Javed Akhtar is always angry) क्यों आता है?

जैसा अभी का राजनीतिक माहौल है जावेद अख्तर का शुमार उन लोगों में है जो मुखर होकर सरकार की आलोचना करते हैं

तो आइये उन बिन्दुओं पर गौर करें और देखें की पूर्व में ऐसे कौन कौन से मौके आए? जब जावेद अख्तर ने आपा खोया और गुस्से से लाल होकर तमाम सवालों को जन्म दे दिया.

ओवैसी के स्टैंड पर जब जावेद को गुस्सा आया...

हैदराबाद से सांसद असदउद्दीन ओवैसी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. अगर उनकी राजनीति पर नजर डालें तो जिस तरह की राजनीति ओवैसी करते हैं, एक बड़ा वर्ग है जो ये कहता है कि ओवैसी हार्डलाइनर हैं और अपनी बातों से, अपने लहजे से कट्टरपंथ को प्रमोट करते हैं. दिलचस्प बात ये है कि जावेद अख्तर असदउद्दीन ओवैसी पर भी गुस्सा हो चुके हैं.  बात 2016 की है. राज्य सभा मेंबर जावेद अख्तर ने 'भारत माता की जय' न बोलने पर एमआईएम सुप्रीमो असदउद्दीन ओवैसी को जमकर लथाड़ा था.

जावेद अख्तर ने ओवैसी का नाम लिए बगैर कहा था कि आंध्र प्रदेश में एक व्यक्ति हैं, जिन्हें इस बात का गुमान है कि वो नेशनल लेवल के नेता हैं. लेकिन उनकी हैसियत मुहल्ले के एक स्थानीय नेता से ज्यादा नहीं हैं. जावेद अख्तर ने कहा था कि वो कहते हैं कि 'भारत माता की जय' नहीं बोलेंगे, क्योंकि संविधान में इस बात का जिक्र नहीं है. मैं उनसे ये पूछना चाहता हूं कि वो ये बताएं कि संविधान में शेरवानी और टोपी पहनने की बात भी कहां लिखी हुई है.

बता दें कि अपनी उस स्पीच में जावेद अख्तर बहुत गुस्सा थे. इसके अलावा अपने उस भाषण में जावेद ने भाजपा के सांसदों को भी निशाने पर लिया था और उन्हें गलत बयानबाजी से बचने की नसीहत दी थी. सदन में जावेद अख्तर ने इस बात को बल दिया था कि भारत माता की जय बोलना मेरा अधिकार है.

जब धर्म और आध्यात्म को लेकर गुस्सा हुए अख्तर

जो लोग जावेद अख्तर को जानते हैं उन्हें इस बात का अंदाजा होगा कि जावेद कभी धर्म को लेकर बहुत ज्यादा गंभीर नहीं हुए. ऐसा क्यों नहीं हुआ इसकी एक बड़ी वजह खुद जावेद अख्तर का नास्तिक होना है. जावेद ईश्वर को नहीं मानते हैं और प्रायः धार्मिक प्रपंचों से दूर ही रहते हैं लेकिन धर्म भी जावेद को आहत कर चुका है और वो गुस्सा हो चुके हैं. बात 2017 की है जावेद ने धार्मिक गुरु जग्गी वासुदेव पर निशाना साधा था और इसके लिए उन्होंने अपने ट्विटर का इस्तेमाल किया था. जावेद ने लिखा था कि अज्ञान और पूर्वाग्रह की पराकाष्ठा है, सद्गुरु जग्गी कहते हैं कि शाहजहां ने भारत की दौलत बाहर नहीं भेजो क्योंकि उस ज़माने में जहाज नहीं होते थे.

बता दें कि तब विवाद ताजमहल को लेकर था. उत्तर प्रदेश सरकार ने ताजमहल को अपनी पर्यटन सूचि से गायब कर दिया था और ये बात जावेद को अच्छी नहीं लगी थी और जावेद गुस्सा हो गए थे. सावल होगा कि जावेद ने जग्गी वासुदेव को निशाने पर क्यों लिया तो इसकी वजह 2012 में हुआ वो संवाद है जिसमें जावेद और जग्गी वासुदेव ने एक साथ हिस्सा लिया था.

उस डिबेट में ऐसे कई मौके आए थे जब जावेद अपनी बातों पर अड़ गए थे और उनका गुस्सा साफ़ झलक रहा था. उस संवाद में जावेद ने योग वगैरह को भी नकारा था और ये कहा था कि वो इन चीजों के विपरीत स्वास्थ्य के पक्षधर हैं.

मन मुताबिक सवाल न होने पर जावेद को गुस्सा आता है

ये तो बताएं हो गयीं धर्म, आध्यात्म और ओवैसी की मजेदार बात ये है कि इसके अलावा भी जावेद को बहुत गुस्सा आता है और जावेद का ये गुस्सा तब और बढ़ जाता है जब सामने मीडिया हो और उनसे मन मुताबिक सवाल न कर रही हो. यानी साफ़ शब्दों में कहें तो वो सवाल जिनका लहजा टफ हो उसपर जावेद अपना आपा खो देते हैं. बात समझने के लिए हम साहित्य आजतक के उस इवेंट को ही बतौर उदाहरण ले सकते हैं जिसमें जावेद अख्तर को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया था.

इस इंटरव्यू का अगर अवलोकन किया जाए तो साफ़ बता चलता है कि तमाम मौके ऐसे आए थे जब एंकर की बातें जावेद अख्तर को चुभी थीं और उन्होंने उस पर जमकर रियेक्ट दिया था. इसके अलावा बात अभी हाल की हो तो तब भी आजतक की ही एंकर के सवालों से जावेद का पारा चढ़ गया था.

जावेद अख्तर एक बड़ी शख्सियत हैं उन्हें इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि जब वो पक्ष ले सकते हैं तो कोई भी उनके पक्ष पर सवाल उठा सकता है और उनसे तीखे पूछ सकता है. उस स्थिति में नैतिकता का तकाजा यही है कि जावेद भी सहूलियत और आराम से जवाब दें.

CAA के पक्ष में दलील सुनकर गुस्सा आता है

इसमें कोई शक नहीं है कि जावेद अपने बेबाक विचारों के लिए जाने जाते हैं और जब बात बेबाक विचार की हुई है तो CAA पर उनकी दलीलों पर उनका जिक्र जरूर होगा.  मोदी सरकार द्वारा CAA  लाने के बाद वाकई जावेद बहुत ज्यादा गुस्सा हैं. बात बीते दिनों की है. जावेद ने नागरिकता कानून को लेकर सरकार की आलोचना की थी.

जावेद अख्तर ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि ये सरकार देश को हिंदू पाकिस्तान बनाने का प्रयास कर रही है. जावेद ने ये बातें सफदर हाशमी की पुण्यतिथि के अवसर पर कहीं. जावेदने कहा कि लोगों धर्म के आधार पर बांटा जा रहा है. गर्व से कहो हम हिंदू हैं का नारा लगवाया जा रहा है, लेकिन इससे समस्याओं का समाधान नहीं होता. जावेद के कहा कि शरणार्थी की कोई जात या धर्म नहीं होता. इसलिए देश में ऐसा कानून होना चाहिए जिसमें धार्मिक भेदभाव ना हो.

बता दें कि इसी प्रोग्राम में तमाम ऐसे मौके आए थे जब जावेद ने ऐसा बहुत कुछ कहा जो ये साफ़ बता रहा था कि CAA उन्हें अच्छा नहीं लगा और सबसे दिलचस्प बात ये भी रही कि उन्होंने हर वो कोशिश की जिससे वो सरकार के प्रति अपनी नाराजगी ज्यादा से ज्यादा दिखा सकें.

यूं तो जावेद अख्तर के गुस्से या फिर उनके गुस्सा आने के कारणों पर तमाम चीजें लिखी जा सकती हैं. मगर खुद जावेद अख्तर को इस बात को समझना होगा कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है. जैसे वो अपने गुस्से में बहुत कुछ कह जाते हैं वैसे ही तमाम लोग इस देश में ऐसे हैं जो उनसे सहमत नहीं होते और उनकी आलोचना में जुट जाते हैं.

बहरहाल बर्थडे पर ईश्वर से कामना ये भी है कि जावेद को लोग उनके मोदी और भाजपा विरोध से नहीं बल्कि उनकी शेरो-शायरी उनके डायलॉग या फिर उनके काम से जानें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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