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क्या किरन बेदी भी नजीब जंग बनने की तैयारी में हैं?

    • कुमार कुणाल
    • Updated: 10 अगस्त, 2016 05:01 PM
  • 10 अगस्त, 2016 05:01 PM
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चुप बैठना किरण बेदी की आदतों में कभी शुमार नहीं रहा है, इसलिए पांडिचेरी या पुडुचेरी के उपराज्यपाल के संवैधानिक पद पर वो कब तक चुनी हुई सरकार से तालमेल बना कर चल पाएंगी, ये संदेह जताया जाने लगा.

क्या दिल्ली की तर्ज पर पांडिचेरी में भी सरकार और उपराज्यपाल आपसी जंग की तरफ बढ़ रहे हैं? पांडिचेरी या पुडुचेरी की व्यवस्था दिल्ली की तरह ही है. एक तो दोनों पूरे राज्य नहीं हैं तो दूसरी तरफ दोनों के पास बाकी केंद्रशासित राज्यों से इतर अपनी अपनी विधानसभाएं हैं. दिल्ली में जहां 70 विधायक चुने जाते हैं तो वहीं पुडुचेरी में 40. दोनों प्रदेशों में मुख्यमंत्री तो होते हैं, लेकिन राज्यपाल की जगह उपराज्यपाल यानि लेफ्टिनेंट गवर्नर होते हैं.

पिछले दिनों जब पांच प्रदेशों में चुनाव हुए तो सिर्फ पुडुचेरी जैसे छोटे प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन पाई वो भी मुश्किल से. मनमोहन सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री रहे नारायणसामी को मुख्यमंत्री बनाया जाता उससे पहले ही केंद्र सरकार ने ये फैसला ले लिया कि दिल्ली में बीजेपी की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार रह चुकीं पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी पुडुचेरी की उपराज्यपाल बनेंगी. जो लोग किरण बेदी के तेवर को पहचानते हैं उन्हें इस बात की भविष्यवाणी करने में देर नहीं लगी कि केंद्र के फैसले के बाद चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल सचिवालय में संबंध कैसे रहेंगे.

इसे भी पढ़ें: दिल्ली सरकार Vs केंद्र: तू डाल डाल, मैं पात पात...

चुप बैठना किरण बेदी की आदतों में कभी शुमार नहीं रहा है, इसलिए उपराज्यपाल के संवैधानिक पद पर वो कब तक चुनी हुई सरकार से तालमेल बना कर चल पाएंगी, ये संदेह जताया जाने लगा. किरण बेदी ने पुडुचेरी के कामकाज में सीधे दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी है और ये वहां की चुनी हुई सरकार पचा नहीं पा रही. किरण बेदी ने फाइलों को अपने दफ्तर में सीधे मंगाना शुरु कर दिया, तो ये भी कहा जा रहा है कि वह अपना एक अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर अधिकारियों को सीधे निर्देश भी देती हैं. कई अहम घोषणाएं...

क्या दिल्ली की तर्ज पर पांडिचेरी में भी सरकार और उपराज्यपाल आपसी जंग की तरफ बढ़ रहे हैं? पांडिचेरी या पुडुचेरी की व्यवस्था दिल्ली की तरह ही है. एक तो दोनों पूरे राज्य नहीं हैं तो दूसरी तरफ दोनों के पास बाकी केंद्रशासित राज्यों से इतर अपनी अपनी विधानसभाएं हैं. दिल्ली में जहां 70 विधायक चुने जाते हैं तो वहीं पुडुचेरी में 40. दोनों प्रदेशों में मुख्यमंत्री तो होते हैं, लेकिन राज्यपाल की जगह उपराज्यपाल यानि लेफ्टिनेंट गवर्नर होते हैं.

पिछले दिनों जब पांच प्रदेशों में चुनाव हुए तो सिर्फ पुडुचेरी जैसे छोटे प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन पाई वो भी मुश्किल से. मनमोहन सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री रहे नारायणसामी को मुख्यमंत्री बनाया जाता उससे पहले ही केंद्र सरकार ने ये फैसला ले लिया कि दिल्ली में बीजेपी की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार रह चुकीं पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी पुडुचेरी की उपराज्यपाल बनेंगी. जो लोग किरण बेदी के तेवर को पहचानते हैं उन्हें इस बात की भविष्यवाणी करने में देर नहीं लगी कि केंद्र के फैसले के बाद चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल सचिवालय में संबंध कैसे रहेंगे.

इसे भी पढ़ें: दिल्ली सरकार Vs केंद्र: तू डाल डाल, मैं पात पात...

चुप बैठना किरण बेदी की आदतों में कभी शुमार नहीं रहा है, इसलिए उपराज्यपाल के संवैधानिक पद पर वो कब तक चुनी हुई सरकार से तालमेल बना कर चल पाएंगी, ये संदेह जताया जाने लगा. किरण बेदी ने पुडुचेरी के कामकाज में सीधे दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी है और ये वहां की चुनी हुई सरकार पचा नहीं पा रही. किरण बेदी ने फाइलों को अपने दफ्तर में सीधे मंगाना शुरु कर दिया, तो ये भी कहा जा रहा है कि वह अपना एक अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर अधिकारियों को सीधे निर्देश भी देती हैं. कई अहम घोषणाएं मैडम बेदी अपने सोशल मीडिया हैंडल के जरिए ही करने लगी हैं.

 उप राज्यपाल किरन बेदी और मुख्यमंत्री वी नारायणसामी

आरोप तो ये भी लग रहे हैं कि किरण बेदी ने गुपचुप तरीके से उन कांग्रेसी नेताओं से मुलाकात भी की जिनके संबंध मुख्यमंत्री नारायणसामी से अच्छे नहीं हैं. उपराज्यपाल किरण बेदी ने तो राजनिवास से निकल कर बाज़ार में भी अपनी मौजूदगी दर्ज़ करा दी है. सरकार तो सरकार अब तो विपक्षी एआईडीएमके ने भी आरोप लगाना शुरु कर दिया है कि मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच की जंग ने अब पुडुचेरी के विकास पर असर डालना शुरु कर दिया है.

इसे भी पढ़ें: क्या मोदी के ही भरोसे है किरण का किस्मत कनेक्शन?

पिछले दिनों जब पुडुचेरी के लिए स्पेशल पैकेज की मांग करने के लिए मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल दोनों दिल्ली में थे तो उन्होंने केंद्रीय नेताओं से अलग-अलग मुलाकात की. हालांकि किरण बेदी के साथ संबंधों को लेकर पुडुचेरी के मुख्यमंत्री नारायणसामी काफी सचेत हैं, वो जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल से लड़ाई का रास्ता अख्तियार कर सीधे मोदी सरकार से जंग का ऐलान कर दिया है और यह ग़लती एक मझे हुए नेता होने के नाते नारायणसामी नहीं करना चाहते.

क्या पुडुचेरी में दिल्ली जैसे हालात बन सकते हैं?

दिल्ली और पुडुचेरी में सरकार का ढांचा लगभग एक जैसा है लेकिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने की वजह से दिल्ली पर केंद्र का अधिकार जितना है, उतना पुदुचेरी पर नहीं. मसलन दिल्ली में जहां कानून व्यवस्था, सुरक्षा, ज़मीन और सेवा से जुड़े मसलों पर सीधे उपराज्यपाल के जरिए केंद्र का दखल है वैसी बात पुडुचेरी के साथ नहीं.

इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड हुई कांग्रेस मुक्त, अब निशाने पर हिमाचल और मणिपुर?

हालांकि पुडुचेरी भी तकनीकी तौर पर केंद्रशासित प्रदेश ही है, यानि केंद्रीय प्रतिनिधि के तौर पर उपराज्यपाल सीधे केंद्र सरकार के निर्देशों पर राज्य सरकार के फैसलों के अमल पर रोक लगा सकता हैं. लेकिन दूसरी बात ये है कि केंद्र सरकार दिल्ली से काम करती है इसलिए दिल्ली के मामलों में केंद्र सरकार की रुचि कहीं ज़्यादा होती है.

लेकिन पुडुचेरी की भौगोलिक दूरी भी एक ऐसा फैक्टर है जिसकी वजह से केंद्र की रुचि वहां के मामलों में अधिक नहीं होगी. लेकिन किरण बेदी का कद अपने आप में काफी बड़ा है और उनके तेवर भी तल्ख हैं. ऐसे में उनका राज्य सरकार के साथ तालमेल कब तक बन पाएगा, इसपर कई सवालिया निशान हैं. ख़ास तौर पर तब जब कांग्रेस के पास विधानसभा में बामुश्किल बहुमत है. यानि बेदी अगर एक्टिव एलजी बनी रहती हैं तो मुमकिन है दिल्ली की तरह जंग के रास्ते पर पुडुचेरी भी चल पड़ेगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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