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क्या मोदी के ही भरोसे है किरण का किस्मत कनेक्शन?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 21 सितम्बर, 2015 07:43 PM
  • 21 सितम्बर, 2015 07:43 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी बात समझाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. बातों-बातों में कहानियां गढ़ते हैं. लोगों को खुद से कनेक्ट होने के लिए नजदीकियां निकालते हैं – और विरोधियों से डिस्कनेक्ट होने के तर्क देते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी बात समझाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. बातों-बातों में कहानियां गढ़ते हैं. लोगों को खुद से कनेक्ट होने के लिए नजदीकियां निकालते हैं – और विरोधियों से डिस्कनेक्ट होने के तर्क देते हैं. दिल्ली चुनाव में भी बीजेपी अब वही ट्रिक अपनाती नजर आ रही है जो उसने लोकसभा चुनाव में अपनाया था – खासकर, अंदरूनी कलह से तंग आकर रणनीति बदलने के बाद. थोड़ा गौर करने पर तस्वीर ज्यादा साफ होती है.

क्या है किस्मत कनेक्शन?

लोगों से जुड़ने का मोदी का ये ताजा नुस्खा है. शायद उन लोगों से जो किस्मत में ज्यादा यकीन रखते हैं. नसीब को ही सब कुछ मानते हैं. आइए चलते हैं, दिल्ली में मोदी की एक सभा में.

मोदी लोगों से पूछते हैं, 'आपको नसीब वाला चाहिए या कम नसीब वाला?' फिर विस्तार से समझाते हैं, “पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए हैं और जनता की जेब में कुछ पैसे बचने लगे हैं. हमारे विरोधी कहते हैं कि यह मोदी नसीब वाला है, इसलिए हुआ है. अब मुझे बताइए कि आपको नसीब वाला चाहिए या कम नसीब वाला चाहिए। चलिए मान लिया कि मोदी नसीब वाला है, लेकिन रुपया तो आपका बचा है. अगर मोदी का नसीब देश के काम आता है तो इससे बढ़िया नसीब की बात क्या हो सकती है.”लेकिन, कहीं दांव उल्टा न पड़ जाए, इसलिए सतर्क भी हो जाते हैं. तस्वीर का दूसरा पहलू देखिए. मोदी कहते हैं, “मैं आपको अपने नसीब पर छोड़ने वाला नहीं हूं. अब कोई म्यूनिसिपैलिटी का आदमी धौंस नहीं दिखाएगा. पुलिसवाला आपको डंडा नहीं दिखाएगा. इलाके में जाम की जो समस्या है उसे किरण जी आसानी से समाधान करा देंगी - इसमें उनकी मास्टरी है.”

अब ये तो अपनी अपनी किस्मत है, जिसको जो सौगात मिले.

“मैं तो द्वारका से हूं”

दिल्ली के द्वारका में मोदी लोगों से मुखातिब हैं. मोदी कहते हैं, “मैं असली...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी बात समझाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. बातों-बातों में कहानियां गढ़ते हैं. लोगों को खुद से कनेक्ट होने के लिए नजदीकियां निकालते हैं – और विरोधियों से डिस्कनेक्ट होने के तर्क देते हैं. दिल्ली चुनाव में भी बीजेपी अब वही ट्रिक अपनाती नजर आ रही है जो उसने लोकसभा चुनाव में अपनाया था – खासकर, अंदरूनी कलह से तंग आकर रणनीति बदलने के बाद. थोड़ा गौर करने पर तस्वीर ज्यादा साफ होती है.

क्या है किस्मत कनेक्शन?

लोगों से जुड़ने का मोदी का ये ताजा नुस्खा है. शायद उन लोगों से जो किस्मत में ज्यादा यकीन रखते हैं. नसीब को ही सब कुछ मानते हैं. आइए चलते हैं, दिल्ली में मोदी की एक सभा में.

मोदी लोगों से पूछते हैं, 'आपको नसीब वाला चाहिए या कम नसीब वाला?' फिर विस्तार से समझाते हैं, “पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए हैं और जनता की जेब में कुछ पैसे बचने लगे हैं. हमारे विरोधी कहते हैं कि यह मोदी नसीब वाला है, इसलिए हुआ है. अब मुझे बताइए कि आपको नसीब वाला चाहिए या कम नसीब वाला चाहिए। चलिए मान लिया कि मोदी नसीब वाला है, लेकिन रुपया तो आपका बचा है. अगर मोदी का नसीब देश के काम आता है तो इससे बढ़िया नसीब की बात क्या हो सकती है.”लेकिन, कहीं दांव उल्टा न पड़ जाए, इसलिए सतर्क भी हो जाते हैं. तस्वीर का दूसरा पहलू देखिए. मोदी कहते हैं, “मैं आपको अपने नसीब पर छोड़ने वाला नहीं हूं. अब कोई म्यूनिसिपैलिटी का आदमी धौंस नहीं दिखाएगा. पुलिसवाला आपको डंडा नहीं दिखाएगा. इलाके में जाम की जो समस्या है उसे किरण जी आसानी से समाधान करा देंगी - इसमें उनकी मास्टरी है.”

अब ये तो अपनी अपनी किस्मत है, जिसको जो सौगात मिले.

“मैं तो द्वारका से हूं”

दिल्ली के द्वारका में मोदी लोगों से मुखातिब हैं. मोदी कहते हैं, “मैं असली द्वारका से आया हूं.” वह लोगों को समझाते हैं कि अब तो उनका भी दिल्ली पर हक बनता है. आगे कहते हैं, “हरियाणा में भाजपा की सरकार बनते ही द्वारका में पानी की समस्या खत्म हो गई.”

“मैं भी पूर्वांचली हूं”

उत्तर प्रदेश और बिहार से दिल्ली आए मतदाताओं के लिए मोदी के पास एक स्मार्ट कार्ड और है, जो हाल ही में इश्यू हुआ है – पूर्वांचल कार्ड. मोदी बताते हैं कि वे वाराणसी से सांसद हैं, इसलिए वह पूर्वांचली तो हो ही गए. मोदी कहते हैं कि वह दिल्ली के लोगों की सेवा कर लोकसभा की जीत के कर्ज का ब्याज चुकाना चाहते हैं.

“मुझे दिल्लीवालों ने बुलाया है”

वाराणसी में लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन करने जाते वक्त मोदी ने कहा था, “न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है. दरअसल, मुझे तो मां गंगा ने यहां बुलाया है.” अब दिल्ली के मतदाताओं से मोदी कह रहे हैं, “मैं दिल्ली आप लोगों के बुलावे पर आया हूं. मैं आपकी सेवा के लिए आया हूं. आपके कंधे से कंधा मिलाकर काम करने आया हूं.” 

और विकासवालों, ‘मैं हूं विकास...’

बाकी बातों के अलावा मोदी अपनी चुनावी सभाओं में लोगों से कहते हैं कि वो विकास के मुद्दे पर चुनाव जीत कर आए हैं – और उसी लाइन पर सरकार भी चला रहे हैं.शुक्रवार को राज्यसभा में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा था, “दिल्ली की जीत देश के लिए भी जरूरी है. दिल्ली से राज्यसभा की तीन सीटें आती हैं जो सरकार के विकास के एजेंडे में मदद करेगी.”जिन्हें विकास की भाषा समझ में आती है, मोदी उन्हें यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि दिल्ली का विकास तभी संभव है जब केंद्र की तर्ज पर यहां भी बीजेपी की सरकार बने. नायडू का बयान इस रेफरेंस में अहम हो जाता है.इसमें किरण बेदी को भी फिट करने की कोशिश है. अपनी पुलिस सेवा के दौरान किरण बेदी ‘क्रेन बेदी’ के नाम से जानी जाती रहीं. अब बीजेपी उन्हें ‘विकास बेदी’ के तौर पर पहचान दिलाने की कोशिश कर रही है. हां, रास्ता वाया मोदी लहर ही बनाने की कोशिश होगी – अब पूरी तरह साफ हो चुका है.

क्या ये पॉलिटिकल फ्लर्ट है?

“वत्स! तुम स्वयं को मुझमें देखो. तुम, तुम नहीं मैं हूं. मैं तो मैं हूं ही, तुम भी मैं ही हूं.” जैसे कोई बाबा अपने भक्त को समझाता है, कुछ लोग अपनी ‘गर्ल-फ्रेंड्स’ से भी उसी लाइन पर पेश आते हैं, “जानू, मैं सिर्फ तुम्हारा हूं.”अब तक आपने ऐसे जनरल फ्लर्ट और स्पिरिचुअल फ्लर्ट देखे होंगे. अब पॉलिटिकल फ्लर्ट का एक नमूना देखिए: “जो आप हैं वही तो मैं हूं. जहां से आप हैं, मैं भी वहीं से हूं – मैं द्वारका से हूं. मैं पूर्वांचली हूं – अरे मैं ही तो विकास...”

भविष्य बांचना तो नहीं आता, लेकिन इतना तो पता है कि हर कामयाबी के साथ किस्मत कनेक्शन का फॉर्मूला नहीं चलता. उनकी किस्मत कुछ और भी गुल खिलाएगी या सिर्फ सस्ते पेट्रोल से ही संतोष करना होगा? एक बात और. लोक सभा चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में मोदी ने मतदाताओं को ये समझाया कि वे बीजेपी को नहीं बल्कि मोदी के नाम पर वोट दें. इस मिशन में वो उम्मीद से कई गुणा ज्यादा कामयाब रहे. तो क्या दिल्ली में भी प्रचार के आखिरी दिनों में मोदी यही बोलेंगे, “भाइयों और बहनों [या मित्रों], आप किरण बेदी को नहीं मुझे वोट दीजिए?”

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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