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क्या जम्मू-कश्मीर में नाकाम रही है मोदी सरकार ?

    • शुभम गुप्ता
    • Updated: 12 जुलाई, 2017 09:13 PM
  • 12 जुलाई, 2017 09:13 PM
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बात सिर्फ अमरनाथ यात्रियों पर हमले की नहीं है, जम्मू-कश्मीर में हालत ऐसे हैं जो बीते तीन बरस में शायद पहले नहीं थे. तो मोदी सरकार पर सवाल उठना तो लाजिमी है.

हाल ही में अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला हुआ. हमले में सात लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए. इस हमले के बाद ये सवाल उठाना लाज़मी है कि मोदी सरकार यहां नाकाम रही है. बात सिर्फ अमरनाथ यात्रियों पर हमले की भी नहीं है. जम्मू-कश्मीर में हालत ऐसे हैं जो बीते तीन बरस से पहले शायद पहले कभी नहीं थे. लगातार पाकिस्तान का सीज़फायर का उल्लंघन करना. उन हमलो में लगातार हमारे जवानों का शहीद होना. ये सब बतलाता है कि कश्मीर में वाकई में हालत खराब हैं.

जम्मू कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी की गठबंधन की सरकार है. केंद्र में मोदी सरकार है. मैं बीजेपी सरकार की नहीं 'मोदी' सरकार की बात कर रहा हूं. क्योंकि ये मोदी हैं जिन्होंने कश्मीर में खुशहाली का वादा किया था. मगर वो भी भाषणों तक ही सिमित रह गया. बात सिर्फ दीवाली पर जवानों के साथ फोटो खींचने भर की नहीं है. और सोशल मीडिया पर ये कहलवाना की मनमोहन नहीं गए और मोदी जवानों के पास गए, बहुत अच्छी बात है कि मोदी गए. मगर सवाल अब वो नहीं है.

नरेंद्र मोदी ने कश्मीर में खुशहाली का वादा किया था

कश्मीर में बीते तीन बरस का कोई भी शुक्रवार उठा कर देख लीजिये. जब वहां पाकिस्तान का झंडा नहीं लहराया गया हो. सरकार के खिलाफ लगातार प्रदर्शन हो रहा है. ऐसा नहीं है कि ये प्रदर्शन पहले नहीं हो रहा था. मगर अब कश्मीर में रहने वाले लोग भी मरे जा रहे हैं, प्रदर्शनकारी भी, श्रद्धालु भी और हमारे जवान भी.

आज मीडिया में हर 5-6 दिन में किसी जवान के शहीद होने की खबर आ जाती है. 2016 की बात की जाए तो कश्मीर में 114 जवान शहीद हुए थे. बुरहान वानी के मरने के बाद तो जैसे कश्मीर में एक युद्ध शुरू हो गया. 120 दिन से ज़्यादा का कर्फ्यू, हालत ऐसे कि न तो कोई घर से बाहर जा सकता है न ही कोई आपके घर में आ सकता है. दिन रात सिर्फ दहशत का माहौल....

हाल ही में अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला हुआ. हमले में सात लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए. इस हमले के बाद ये सवाल उठाना लाज़मी है कि मोदी सरकार यहां नाकाम रही है. बात सिर्फ अमरनाथ यात्रियों पर हमले की भी नहीं है. जम्मू-कश्मीर में हालत ऐसे हैं जो बीते तीन बरस से पहले शायद पहले कभी नहीं थे. लगातार पाकिस्तान का सीज़फायर का उल्लंघन करना. उन हमलो में लगातार हमारे जवानों का शहीद होना. ये सब बतलाता है कि कश्मीर में वाकई में हालत खराब हैं.

जम्मू कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी की गठबंधन की सरकार है. केंद्र में मोदी सरकार है. मैं बीजेपी सरकार की नहीं 'मोदी' सरकार की बात कर रहा हूं. क्योंकि ये मोदी हैं जिन्होंने कश्मीर में खुशहाली का वादा किया था. मगर वो भी भाषणों तक ही सिमित रह गया. बात सिर्फ दीवाली पर जवानों के साथ फोटो खींचने भर की नहीं है. और सोशल मीडिया पर ये कहलवाना की मनमोहन नहीं गए और मोदी जवानों के पास गए, बहुत अच्छी बात है कि मोदी गए. मगर सवाल अब वो नहीं है.

नरेंद्र मोदी ने कश्मीर में खुशहाली का वादा किया था

कश्मीर में बीते तीन बरस का कोई भी शुक्रवार उठा कर देख लीजिये. जब वहां पाकिस्तान का झंडा नहीं लहराया गया हो. सरकार के खिलाफ लगातार प्रदर्शन हो रहा है. ऐसा नहीं है कि ये प्रदर्शन पहले नहीं हो रहा था. मगर अब कश्मीर में रहने वाले लोग भी मरे जा रहे हैं, प्रदर्शनकारी भी, श्रद्धालु भी और हमारे जवान भी.

आज मीडिया में हर 5-6 दिन में किसी जवान के शहीद होने की खबर आ जाती है. 2016 की बात की जाए तो कश्मीर में 114 जवान शहीद हुए थे. बुरहान वानी के मरने के बाद तो जैसे कश्मीर में एक युद्ध शुरू हो गया. 120 दिन से ज़्यादा का कर्फ्यू, हालत ऐसे कि न तो कोई घर से बाहर जा सकता है न ही कोई आपके घर में आ सकता है. दिन रात सिर्फ दहशत का माहौल. दिसम्बर 2016 की बात की जाये तो कश्मीर के 26 स्कूलों में आग लगा दी गयी. 175 से ज्यादा स्कूलों को ताला लगा दिया गया. इस तरह नहीं हो सकता कश्मीर का विकास.

कश्मीर में फहराया जाता है पाकिस्तानी झंडा

बीते 17 बरस से अमरनाथ यात्रियों पर कोई आतंकी हमला नहीं हुआ था. मगर अब हुआ. पठानकोट में आतंकी हमला हुआ मगर जांच पाकिस्तान की आईएसआई ने की. और क्लीन चिट दे दी की इस हमले में पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं.

जिस दिन मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, उस समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी शामिल थे. उसी दिन सीमा पर पाकिस्तान ने सीज़फायर का उल्लंघन किया. मगर अब जरूरत है कि कश्मीर में हालत सुधरने की. अब उन सब के बाद आप खुद तय कीजिए कि तीन बरस में मोदी सरकार कश्मीर मामले में पास हुई या फेल ?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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