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क्या आम आदमी पार्टी से लड़ने का यही तरीका बचा है?

    • कुमार कुणाल
    • Updated: 24 जुलाई, 2016 01:54 PM
  • 24 जुलाई, 2016 01:54 PM
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अब तो हफ्ते दो हफ्ते में ये सुनना आम हो गया है कि दिल्ली में इस विधायक की गिरफ़्तारी हुई. कभी यहां तो कभी वहां. फलां विधायक ने किसी महिला के साथ बदतमीज़ी की, किसी ने बुजुर्गों के साथ मार पीट कर ली और नतीजा वही कि पुलिस आई और MLA को उठा ले गई.

एक और आम आदमी पार्टी का विधायक गिरफ्तार है. इस दफा बारी ओखला से विधायक अमानतुल्ला खान की है. अब तो हफ्ते दो हफ्ते में ये सुनना आम हो गया है कि दिल्ली में इस विधायक की गिरफ़्तारी हुई. कभी यहां तो कभी वहां. फलां विधायक ने किसी महिला के साथ बदतमीज़ी की, किसी ने बुजुर्गों के साथ मार पीट कर ली और नतीजा वही कि पुलिस आई और MLA को उठा ले गई.

मामले संगीन हो सकते हैं, ये भी हो सकता है कि आम आदमी पार्टी के चुने हुए नुमाइंदे चूंकि अनुभवहीन हैं, इसलिए पब्लिक डीलिंग का तरीका बिलकुल भी नहीं जानते हों. इसलिए जिस राजधानी में मसलों की कमी नहीं है वहां लोगों का दवाब नहीं झेल पा रहे हों.

मार-पीट की घटनाएं तो वैसे भी दिल्ली में आम हैं, यहां 5 रुपए के लिए मर्डर हो जाता है. सड़क पर हुई मामूली कहा सुनी भी पता नहीं कब बतंगड़ में बदल जाए, कह नहीं सकते. ऐसे में जिन उम्मीदों के साथ दिल्ली वालों ने आम आदमी पार्टी का साथ दिया और 67 सीटें दीं, उन उम्मीदों पर खड़ा उतरना वाकई आम आदमी पार्टी के विधायकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. ठीक वैसे ही कि प्रेमिका से आसमान से तारे लाने का वायदा तो कर दिया, लेकिन शादी के बाद ज़मीनी हक़ीक़त से दो चार होना पड़ता है तो दिन में तारे दिखने लगे.

लेकिन क्या विधायकों के खिलाफ आरोपों की झड़ी बनावटी है!

कम से कम आम आदमी पार्टी तो यही कहती है. मोदी सरकार पर सीधा आरोप लगाते हुए केजरीवाल की पार्टी का कहना यही है कि उसके ज़्यादातर विधायकों को किसी न किसी आरोप में फंसाने का षडयंत्र चल रहा है. इसमें बीजेपी और दिल्ली की पुलिस मिली हुई है. कहीं न कहीं आरोप में दम भी लगता है क्योंकि शायद ही कभी इतिहास में ऐसे और इतने विधायकों की गिरफ़्तारी हुई हो.

यह भी पढ़ें- महिलाओं के साथ विवाद में क्‍यों फंस जाते हैं आप के...

एक और आम आदमी पार्टी का विधायक गिरफ्तार है. इस दफा बारी ओखला से विधायक अमानतुल्ला खान की है. अब तो हफ्ते दो हफ्ते में ये सुनना आम हो गया है कि दिल्ली में इस विधायक की गिरफ़्तारी हुई. कभी यहां तो कभी वहां. फलां विधायक ने किसी महिला के साथ बदतमीज़ी की, किसी ने बुजुर्गों के साथ मार पीट कर ली और नतीजा वही कि पुलिस आई और MLA को उठा ले गई.

मामले संगीन हो सकते हैं, ये भी हो सकता है कि आम आदमी पार्टी के चुने हुए नुमाइंदे चूंकि अनुभवहीन हैं, इसलिए पब्लिक डीलिंग का तरीका बिलकुल भी नहीं जानते हों. इसलिए जिस राजधानी में मसलों की कमी नहीं है वहां लोगों का दवाब नहीं झेल पा रहे हों.

मार-पीट की घटनाएं तो वैसे भी दिल्ली में आम हैं, यहां 5 रुपए के लिए मर्डर हो जाता है. सड़क पर हुई मामूली कहा सुनी भी पता नहीं कब बतंगड़ में बदल जाए, कह नहीं सकते. ऐसे में जिन उम्मीदों के साथ दिल्ली वालों ने आम आदमी पार्टी का साथ दिया और 67 सीटें दीं, उन उम्मीदों पर खड़ा उतरना वाकई आम आदमी पार्टी के विधायकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. ठीक वैसे ही कि प्रेमिका से आसमान से तारे लाने का वायदा तो कर दिया, लेकिन शादी के बाद ज़मीनी हक़ीक़त से दो चार होना पड़ता है तो दिन में तारे दिखने लगे.

लेकिन क्या विधायकों के खिलाफ आरोपों की झड़ी बनावटी है!

कम से कम आम आदमी पार्टी तो यही कहती है. मोदी सरकार पर सीधा आरोप लगाते हुए केजरीवाल की पार्टी का कहना यही है कि उसके ज़्यादातर विधायकों को किसी न किसी आरोप में फंसाने का षडयंत्र चल रहा है. इसमें बीजेपी और दिल्ली की पुलिस मिली हुई है. कहीं न कहीं आरोप में दम भी लगता है क्योंकि शायद ही कभी इतिहास में ऐसे और इतने विधायकों की गिरफ़्तारी हुई हो.

यह भी पढ़ें- महिलाओं के साथ विवाद में क्‍यों फंस जाते हैं आप के नेता?

लेकिन बीजेपी कहती है कि विधायकों में से ज़्यादातर काम कर नहीं पा रहे इसलिए लोगों के सवालों का जवाब न देकर मार पीट पर उतर आते हैं. ऐसे सियासी दावों और प्रति दावों के बीच ही निष्पक्ष पुलिस की भूमिका निकल कर सामने आती है.

 क्या आप विधायकों के खिलाफ आरोपों की झड़ी बनावटी है!

दिल्ली में ढांचा ऐसा है जिसमें पुलिस केंद्र सरकार के अंदर आती है. ऐसे में जब जब ऐसी गिरफ़्तारी की घटनाएं होती हैं तो सवाल उठना लाज़िमी है. क्या दिल्ली में भी अगर पुलिस राज्य के पास होती तो इन विधायकों की गिरफ़्तारी होती?

अमानतुल्ला के मामले में रोचक ये भी है कि गिरफ़्तारी से एक दिन पहले ही विधायक ने अपने पार्टी के नेताओं के साथ एक प्रेस कांफ्रेंस की. जिसमें उन्होंने शिकायतकर्ता समीना पर बीजेपी और पुलिस से मिलकर झूठा मामला दर्ज़ करने का मामला एक स्टिंग के जरिए किया. साथ में एक काउंटर एफआईआर भी दर्ज़ करवा दी, लेकिन इन आरोपों के महज कुछ घंटों में अमानतुल्ला की गिरफ़्तारी सवाल तो खड़े करती ही है. ख़ास तौर पर तब जब समीना की शिकायत कई दिनों पहले दर्ज़ हुई थी.

अगर गिरफ्तारियां सियासी हैं तो फ़ायदा किसे हो रहा है?

सियासत पब्लिक परसेप्शन यानी आम जन भावना से होती है. इसलिए तकनीकी तौर पर किस केस में कितना दम है, इससे वोट नहीं मिलते. बल्कि इससे मिलते हैं कि लोग किसे सही मानते हैं और किसे ग़लत. शुरुआत में जब आम आदमी पार्टी ने अपने विधायक जीतेन्द्र तोमर का फ़र्ज़ी डिग्री मामले में साथ दिया तो लोगों ने उसे ग़लत माना.

यह भी पढ़ें- 'टारगेट मोदी' केजरीवाल के चंदा मांगने का कोड-वर्ड है

आम भावना के मुताबिक तुरंत केजरीवाल को अपने मंत्री से किनारा करना पड़ा. अब शायद बीजेपी ये सोच रही है कि जितने आम आदमी पार्टी के विधायक गिरफ्तार हो रहे हैं, लोगों के बीच पार्टी की छवि उतनी ही बिगड़ रही है.

लेकिन अब आम आदमी पार्टी ये बताने में लगी है कि वो मोदी सरकार की सताई हुई है. बात बात पर बाकी राज्यों में आम आदमी पार्टी के बढ़ते प्रभाव से बीजेपी और नरेंद्र मोदी घबरा कर आम आदमी पार्टी के विधायकों पर कार्रवाई कर रहे हैं, ये केजरीवाल बता रहे हैं. अमानतुल्ला की गिरफ़्तारी के बाद उन्होंने गुजरात के पाटीदारों की गिरफ़्तारी की तुलना अपने विधायकों की गिरफ़्तारी से कर डाली है. पहले ही केजरीवाल अपने विधायकों की तुलना स्वतंत्रता सेनानियों से कर चुके हैं.

मतलब जो केजरीवाल सरकार अपने किये गए वादों को पूरा न कर पाने को लेकर बदनाम हो रही थी उसे इन गिरफ्तारियों का ऑक्सीजन बीजेपी दे रही है. वाकई इसके दूरगामी असर पर सबकी नज़र है लेकिन कोई शायद ही इंकार करे कि गिरफ्तारी की तकनीकी वज़ह चाहे जो हो सियासी परिणाम उससे कहीं बड़े होंगे.

यह भी पढ़ें- पंजाब में केजरीवाल ला रहे हैं आप का 'डेल्ही डेयरडेविल्स' फॉर्मूला!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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