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कश्मीरी हिंदुओं की हत्या पर आतंकियों को 24 घंटे में मौत देना ही इलाज नहीं है

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 31 मई, 2022 10:46 PM
  • 31 मई, 2022 09:02 PM
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कश्मीरी पंडितों की टारगेट किलिंग (Kashmiri Pandits target killings) को अंजाम दे रहे आतंकियों पर हमले करने से पहले ही कार्रवाई करने से भारतीय सेना को कौन रोक रहा है? क्या सुरक्षा बलों के पास इंटेलीजेंस इनपुट की कमी है? क्या सुरक्षा बलों के पास संसाधनों की कमी है? आखिर ऐसी कौन सी वजह है, जो कश्मीर से आतंकियों के जड़ से खात्मे की राह में बाधा है.

किसी जमाने में यहूदियों को भी उनकी नस्ल की वजह से टारगेट किलिंग का शिकार बनाया जाता था. लेकिन, कई बार पलायन और नरसंहार का दर्द झेलने वाले यहूदियों को उनका देश इजरायल मिल चुका है. और, अब इजरायल पर हमले के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है. क्योंकि, चारों ओर से दुश्मनों से घिरा होने के बावजूद इजराइल अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने से नहीं चूकता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इजरायल ने अपने पड़ोसी देशों के बीच ऐसा माहौल बनाया है कि दुश्मन देश उसकी तरफ गलती से आंख उठाकर भी नहीं देखते हैं. क्योंकि, अत्याधुनिक हथियारों और मिसाइलों से लैस इजरायल अपने देश पर हमला होते ही पड़ोसी मुल्कों को मलबे के ढेर में बदलने लगता है. लेकिन, भारत के कश्मीर में आज भी कश्मीरी पंडितों को उनके हिंदू नस्ल का होने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है.

जम्मू-कश्मीर में आतंकियों द्वारा की जा रही कश्मीरी पंडितों की टारगेट किलिंग लगातार बढ़ती जा रही है. 31 मई की सुबह खबर आई कि सुरक्षा बलों ने कश्मीर के अवंतीपुरा इलाके में दो आतंकियों को ढेर कर दिया है. लेकिन, इसे आतंकियों का दुस्साहस ही कहा जाएगा कि थोड़ी ही देर बाद ही कुलगाम जिले के गोपालपुरा इलाके में कश्मीरी पंडित महिला टीचर को स्कूल में घुस कर मार दिया गया. रजनी बाला नाम की इस स्कूल टीचर के परिवार में पति और बेटी है. जिन्हें अब जीवन भर ये दुख झेलना होगा. हालांकि, हर घटना को अंजाम देने के 24 घंटे के अंदर ही भारतीय सेना द्वारा संलिप्त आतंकियों को खत्म किया जा रहा है. लेकिन, जो मरने के लिए ही आतंकी बना हो उसकी. और, एक सामान्य कश्मीरी पंडित की जान में क्या कोई अंतर नही है.

एक ओर इजरायल है, जो एक भी यहूदी नागरिक पर खतरे को देखकर जड़ से उस वजह को ही खत्म कर देता है. वहीं, दूसरी ओर भारत है, जो 90 के दशक में कश्मीर में नरसंहार और पलायन का दर्द झेलने वाले कश्मीरी पंडितों...

किसी जमाने में यहूदियों को भी उनकी नस्ल की वजह से टारगेट किलिंग का शिकार बनाया जाता था. लेकिन, कई बार पलायन और नरसंहार का दर्द झेलने वाले यहूदियों को उनका देश इजरायल मिल चुका है. और, अब इजरायल पर हमले के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है. क्योंकि, चारों ओर से दुश्मनों से घिरा होने के बावजूद इजराइल अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने से नहीं चूकता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इजरायल ने अपने पड़ोसी देशों के बीच ऐसा माहौल बनाया है कि दुश्मन देश उसकी तरफ गलती से आंख उठाकर भी नहीं देखते हैं. क्योंकि, अत्याधुनिक हथियारों और मिसाइलों से लैस इजरायल अपने देश पर हमला होते ही पड़ोसी मुल्कों को मलबे के ढेर में बदलने लगता है. लेकिन, भारत के कश्मीर में आज भी कश्मीरी पंडितों को उनके हिंदू नस्ल का होने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है.

जम्मू-कश्मीर में आतंकियों द्वारा की जा रही कश्मीरी पंडितों की टारगेट किलिंग लगातार बढ़ती जा रही है. 31 मई की सुबह खबर आई कि सुरक्षा बलों ने कश्मीर के अवंतीपुरा इलाके में दो आतंकियों को ढेर कर दिया है. लेकिन, इसे आतंकियों का दुस्साहस ही कहा जाएगा कि थोड़ी ही देर बाद ही कुलगाम जिले के गोपालपुरा इलाके में कश्मीरी पंडित महिला टीचर को स्कूल में घुस कर मार दिया गया. रजनी बाला नाम की इस स्कूल टीचर के परिवार में पति और बेटी है. जिन्हें अब जीवन भर ये दुख झेलना होगा. हालांकि, हर घटना को अंजाम देने के 24 घंटे के अंदर ही भारतीय सेना द्वारा संलिप्त आतंकियों को खत्म किया जा रहा है. लेकिन, जो मरने के लिए ही आतंकी बना हो उसकी. और, एक सामान्य कश्मीरी पंडित की जान में क्या कोई अंतर नही है.

एक ओर इजरायल है, जो एक भी यहूदी नागरिक पर खतरे को देखकर जड़ से उस वजह को ही खत्म कर देता है. वहीं, दूसरी ओर भारत है, जो 90 के दशक में कश्मीर में नरसंहार और पलायन का दर्द झेलने वाले कश्मीरी पंडितों के लगातार हो रहे नरसंहार को तीन दशक बीतने के बाद भी नहीं रोक सका है. सुरक्षा बल आतंकियों का खात्मा कर रहे हैं. लेकिन, आतंकियों के बीच मौत का तबाह हो जाने डर नजर नहीं आता है. यह चौंकाने वाली बात ही है कि इन घटनाओं में शामिल अधिकतर आतंकी कश्मीर के ही हैं. क्या भारतीय सेना और सुरक्षा बल भी इजरायल की तरह अपने नागरिकों को जरा सी खरोंच देने वालों को भी ठिकाने नहीं लगा सकती है. जबकि, भारत के पास आतंकियों के जड़ से सफाये के सारे संसाधन मौजूद हैं.

दक्षिण कश्मीर दशकों से इस्लामिक आतंकवाद का गढ़ रहा है.

आतंकवाद का फन कुचलने के लिए किसका इंतजार है?

करीब एक हफ्ते पहले खबर आई थी कि इजरायल ने 2012 में अपने राजनयिक पर दिल्ली में हुए हमले का बदला ले लिया है. दरअसल, नई दिल्ली के अति सुरक्षा वाले इलाके में हुए इस हमले में इजरायली राजदूत की पत्नी घायल हो गई थीं. जिसके 10 साल बाद इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान में घुसकर रिवोल्‍यूशनरी गार्ड के कर्नल हसन सैयद खोदायारी को कई देशों में इजरायली राजदूतों पर हमले का मास्‍टरमाइंड मानते हुए मार गिराया था. ये इजरायल की दृढ़ इच्छाशक्ति ही है कि अपने देश पर होने वाले एक छोटे से हमले के जवाब में भी वह गाजा पट्टी के आतंकी ठिकानों को तबाह करने से पहले दो बार नहीं सोचता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इजरायल एक ऐसा देश हैं, जो अपने देश के खिलाफ सीमा पार से चलाए गए एक पत्थर के जवाब में भी घर में घुसकर बदला लेने की क्षमता रखता है. और, यही कारण है कि आज के समय में इजरायल पर हमले के बारे में पड़ोसी देश छोड़िए, कोई आतंकी संगठन भी गलती से नहीं सोचता है.

लेकिन, भारतीय सेना कश्मीरी पंडितों की हत्या का लगातार बदला ले रही है. और, इसके बावजूद वह आतंकियों में ये डर पैदा नहीं कर सकी है. क्या भारतीय सेना और सुरक्षा बल भी इजरायल की तरह कार्रवाई नहीं कर सकते हैं. जिससे न केवल स्थानीय आतंकियों में बल्कि सरहद पार बैठे आतंक के आकाओं की भी ऐसी किसी घटना को अंजाम देने से पहले अपने अंजाम की सोच कर रूह कांप जाए. दक्षिण कश्मीर दशकों से इस्लामिक आतंकवाद का गढ़ रहा है. लोकमत में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, और, इस साल मारे गए आतंकियों में से 55 से ज्यादा दक्षिण कश्मीर के ही थे. भारतीय सेना का कहना है कि आतंकियों के खिलाफ चलाए जा रहे 'तलाश करो और मार डालो' अभियान की वजह से आतंकी हमलों में तेजी आई है. क्योंकि, ऑपरेशन क्लीन जैसे अभियानों से आतंकियों की हताशा अपने चरम पर पहुंच चुकी हैं. हालांकि, भारतीय सेना की ओर से दिया ये बयान भी स्टीरियोटाइप्ड लगता है. किसी घटना को अंजाम देने से पहले ही सुरक्षा बल आतंकियों के खिलाफ इसी तरह की टारगेट किलिंग का अभियान क्यों नहीं चलाते हैं?

मेरी राय

अगर ऐसा हो रहा है, तो आतंकियों पर हमले करने से पहले ही कार्रवाई करने से उन्हें कौन रोक रहा है? क्या भारतीय सेना के पास इंटेलीजेंस इनपुट की कमी है? क्या सुरक्षा बलों के पास संसाधनों की कमी है? क्या सुरक्षा बलों को आतंकवाद से निपटने के आदेश नहीं मिले हैं? आखिर ऐसी कौन सी वजह है, जो कश्मीर से आतंकियों के जड़ से खात्मे की राह में बाधा है. अगर यह इस्लामिक कट्टरपंथ है या दो नस्लों के बीच की जंग है, तो भारत सरकार से लेकर देश के लोगों तक को इस बारे में जानने का हक है. और, अगर ऐसा नहीं है, तो भारतीय सेना और सुरक्षा बलों को बिना किसी की परवाह किए हुए आतंकियों को उनके घर में घुसकर मारना चाहिए.

भारत को इजरायल की तरह कार्रवाई करने से कौन रोक रहा है. लेकिन, ऐसा होगा नहीं. क्योंकि, इजरायल में यहूदी सेकुलर यानी धर्मनिरपेक्ष नही हैं. वहां आतंकवाद या अपने नागरिकों पर हुए एक छोटे से हमले को लेकर भी सारे यहूदी एकमत होकर सरकार के समर्थन में खड़े नजर आते हैं. लेकिन, भारत के इजरायल न हो पाने का एक बड़ा कारण यही है. ऐसी किसी भी कार्रवाई पर भारत के कथित धर्मनिरपेक्ष लोगों का एक पूरा वर्ग देश-दुनिया में मानवाधिकारों से लेकर अल्पसंख्यकों के अधिकारों की आवाज उठाने लगेगा. जबकि, कश्मीरी पंडितों की हत्या पर यही वर्ग चुप्पी साधे बैठा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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