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चीन के पोलित ब्यूरो में घुस गया भारत !

    • अनंत कृष्णन
    • Updated: 30 अक्टूबर, 2017 07:39 PM
  • 30 अक्टूबर, 2017 07:39 PM
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चीन के पोलित ब्यूरो में शी जिनपिंग ने जिन छह सदस्यों को शामिल किया है, उनमें से पांच पर भारत का प्रभाव पहले से ही है. धीरे-धीरे ही सही भारत चीन में अपनी पहुंच की रणनीति में सफल होता दिख रहा है.

25 अक्टूबर को चीन के पोलितब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी (पीबीएससी) ने चुने गए सदस्य जब विश्व प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए आए तो भारत के साऊथ ब्लॉक में लोगों के चेहरे पर मुस्कान छा गई. विश्व के अधिकतर लोगों के लिए पीबीएससी में चुने पांच नए सदस्य अनसुने, अनजाने चेहरे होंगे. लेकिन भारत के लिए वो पांच चेहरे नए नहीं हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब पीबीएससी सातों सदस्यों का भारत से थोड़ा परिचय है.

पांच नए चुने गए पीबीएससी सदस्यों में से चार को विदेश मंत्रालय ने चीनी नेताओं के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने के तहत् भारत आने का न्योता दिया था. विदेश मंत्रालय ने के इस दांव के पीछे सोची-समझी रणनीति थी. विदेश मंत्रालय ने इन नेताओं को चीन के भविष्य के तौर पर देखा और उनका ये निशाना सटीक लगा.

ली झांशु चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी हैं और पीबीएससी में तीसरे नंबर के नेता हैं. वो अब चीन की संसद का नेतृत्व करेंगे. जब 2008-2010 में वो उत्तर-पूर्व के हिलॉन्गजियांग प्रोविंस में एक नेता थे तभी भारत ने उन्हें आमंत्रित किया था.

चौथी रैंक के वांग यांग ने गुंगडॉन्ग प्रोविंस के पार्टी प्रमुख रहते हुए भारत की यात्रा की थी. भारत के साथ सबसे ज्यादा व्यापार चीन के इसी इलाके से होता है. गुंगडॉन्ग प्रोविंस में वांग 2007 से 2010 तो नियुक्त थे और उन्हें एक आर्थिक सुधारक के रूप में जाना जाता है.

छठी रैंक के झाओ लेजी, शी जिनपिंग के करीबी हैं और अब वो चीन के शक्तिशाली सेंट्रल कमिटी फॉर डिसिप्लिन इंसपेक्शन (सीसीडीआई) का नतृत्व करेंगे. झाओ लेजी ने 2005 में भारत का दौरा किया था. इस समय वो उत्तर-पश्चिमी प्रांत क्वींघाई के पार्टी प्रमुख थे और चीन के बाहर उन्हें बहुत की कम जाना जाता था.

भारत की पहुंच चीन की राजनीति तक...

लेकिन भारत के साथ सबसे तगड़ा...

25 अक्टूबर को चीन के पोलितब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी (पीबीएससी) ने चुने गए सदस्य जब विश्व प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए आए तो भारत के साऊथ ब्लॉक में लोगों के चेहरे पर मुस्कान छा गई. विश्व के अधिकतर लोगों के लिए पीबीएससी में चुने पांच नए सदस्य अनसुने, अनजाने चेहरे होंगे. लेकिन भारत के लिए वो पांच चेहरे नए नहीं हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब पीबीएससी सातों सदस्यों का भारत से थोड़ा परिचय है.

पांच नए चुने गए पीबीएससी सदस्यों में से चार को विदेश मंत्रालय ने चीनी नेताओं के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने के तहत् भारत आने का न्योता दिया था. विदेश मंत्रालय ने के इस दांव के पीछे सोची-समझी रणनीति थी. विदेश मंत्रालय ने इन नेताओं को चीन के भविष्य के तौर पर देखा और उनका ये निशाना सटीक लगा.

ली झांशु चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी हैं और पीबीएससी में तीसरे नंबर के नेता हैं. वो अब चीन की संसद का नेतृत्व करेंगे. जब 2008-2010 में वो उत्तर-पूर्व के हिलॉन्गजियांग प्रोविंस में एक नेता थे तभी भारत ने उन्हें आमंत्रित किया था.

चौथी रैंक के वांग यांग ने गुंगडॉन्ग प्रोविंस के पार्टी प्रमुख रहते हुए भारत की यात्रा की थी. भारत के साथ सबसे ज्यादा व्यापार चीन के इसी इलाके से होता है. गुंगडॉन्ग प्रोविंस में वांग 2007 से 2010 तो नियुक्त थे और उन्हें एक आर्थिक सुधारक के रूप में जाना जाता है.

छठी रैंक के झाओ लेजी, शी जिनपिंग के करीबी हैं और अब वो चीन के शक्तिशाली सेंट्रल कमिटी फॉर डिसिप्लिन इंसपेक्शन (सीसीडीआई) का नतृत्व करेंगे. झाओ लेजी ने 2005 में भारत का दौरा किया था. इस समय वो उत्तर-पश्चिमी प्रांत क्वींघाई के पार्टी प्रमुख थे और चीन के बाहर उन्हें बहुत की कम जाना जाता था.

भारत की पहुंच चीन की राजनीति तक...

लेकिन भारत के साथ सबसे तगड़ा कनेक्शन रखने वाले नेता शायद पीबीएससी में सांतवे रैंक के हान झेंग हैं. शंघाई पार्टी प्रमुख हान झेंग एक्जीक्यूटिव प्रीमियर का पद संभालेंगे. ये चीन की इकोनॉमी के इंचार्ज का सर्वोच्च पद है. हान ने पिछले साल भारत के साथ व्यापार को बढ़ावा देने के लिए 25 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था और उन्होंने शंघाई का महापौर रहते हुए शंघाई में रहने वाले भारतीय व्यवसायियों के साथ नियमित संपर्क बनाए रखा.

पांचवी रैंक के वांग हूनिंग ही पूरी पीबीएससी में इकलौते ऐसे अपवाद हैं जिसने पार्टी चीफ के तौर पर कभी काम नहीं किया. सीपीसी के प्रमुख विचारक होने के साथ-साथ वांग पॉलिसी रीसर्च कार्यालय में लंबे समय से उपस्थिति रहे हैं. लेकिन पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओ और राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों के साथ उनकी यात्राओं पर उनके साथ नियमित तौर पर उपस्थित रहते थे.

हालांकि राष्ट्रपति शी और प्रीमियर ली दोनों ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान भारत का दौरा किया था. शी ने भारत का दौरा प्रोविंसियल पार्टी लीडर होने के दौरान भारत का दौरा किया था. ली ने 1986 में जब भारत का दौरा किया था तब वो 31 साल के थे. कम्युनिस्ट यूथ लीग एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत भारत की इस यात्रा को ली आज भी याद करते हैं. इस यात्रा का जिक्र जब वो चीन के प्रधानमंत्री के तौर पर भारत की पहली यात्रा पर 2013 में आए तब भी उन्होंने याद किया.

लेकिन ऐसा नहीं है कि सभी आमंत्रित सीपीसी अधिकारी पीबीएससी के शीर्ष पर पहुंच ही गए. चोंगकिंग के पूर्व प्रमुख और भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देने बो जिलाई का भारत ने गर्मजोशी से स्वागत किया था. जिलाई बेंगलुरु और डालियान के बीच घनिष्ठ संबंध स्थापित करना चाहते थे. लेकिन वो अपने प्रतिद्वंदी शी से हार गए और अब जेल में हैं. हालांकि भारत के साथ चीन के नेताओं की जान-पहचान का ये बिल्कुल मतलब नहीं की वो भारत के प्रति नर्म रूख रखेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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