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संस्कृति

पटाखे का इतिहास जानकर तो कोई देशभक्ति इसे नहीं जलाएगा!

    • मेघनाद साहा
    • Updated: 13 अक्टूबर, 2017 01:27 PM
  • 13 अक्टूबर, 2017 01:27 PM
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पर्यावरण की बात बाद में करेंगे. पहले दिवाली और पटाखों का संबंध जान लीजिए. यह भी जान लीजिए कि इसका अविष्‍कार चीन ने किया था, और भारत में इसे अब सबसे ज्‍यादा बेचने वाला भी वही है.

90 के दशक में बच्चों की दिवाली धूम-धड़ाके वाली ही होती थी. आज भी आपको वो दिन याद आते होंगे जब मम्मी-पापा तो घर की सफाई और पूजा के सामान की चिंता में घुले जाते थे. लेकिन आपको दिन रात बस दिवाली में अपने पटाखों की चिंता रहती है. शाम को बाजार जाना और आलू बम, चरखी, अनार, लड़ी बम, एटम बम, रॉकेट जैसे जाने कितने पटाखे खरीद लाते.

दिवाली की रात का इंतजार कौन करे. बच्चों की दिवाली तो दो-तीन दिन पहले से ही शुरू हो जाती. वो एटम बम को टूटे-फूटे टीन के डब्बों के नीचे रखकर जलाना. बम फूटने पर उस डब्बे को हवा में उड़ते देखना. हाथ में रखकर अनार जलाना और दोस्तों के सामने हेकड़ी झाड़ना. 100 बमों की लड़ी को मटके में रखकर जलाना और फिर उसकी आवाज का पूरे मुहल्ले तक में गूंजना. रॉकेट जलाना, जो पड़ोसी के घर में घुस जाया करती थी.

याद ही होगा न ये सब आप लोगों को? इन पंक्तियों को पढ़कर आपके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान भी आ गई होगी. क्योंकि कमोबेश 90 के दशक के हर बच्चे का यही बचपन रहा होगा. सबने ऐसे ही दिवाली मनाई होगी. थोड़ी कम या थोड़ी ज्यादा.

पटाखे जलाना हिंदू धर्म की प्रथा नहीं है

9 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी. इसके पहले पिछली बार भी कोर्ट ने दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए ऐसी ही पाबंदी लगा दी थी. दिल्ली की हवा वैसे भी जहरीली हो चुकी है लेकिन हर साल दिवाली के बाद दिल्ली की हवा की हालात बद से बदतर हो जाती है. पिछले साल तो खुद सरकार ने माना था कि पूरा दिल्ली शहर एक गैस चैंबर में बदल चुका है.

लेकिन फिर भी क्या प्रदूषण कम करने नाम पर पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाना क्या उचित है? मैं इस बात से असहमत हूं. लेकिन आज के समय में देश के धार्मिक विचारों संस्कारों पर बोलना खतरे से खाली नहीं....

90 के दशक में बच्चों की दिवाली धूम-धड़ाके वाली ही होती थी. आज भी आपको वो दिन याद आते होंगे जब मम्मी-पापा तो घर की सफाई और पूजा के सामान की चिंता में घुले जाते थे. लेकिन आपको दिन रात बस दिवाली में अपने पटाखों की चिंता रहती है. शाम को बाजार जाना और आलू बम, चरखी, अनार, लड़ी बम, एटम बम, रॉकेट जैसे जाने कितने पटाखे खरीद लाते.

दिवाली की रात का इंतजार कौन करे. बच्चों की दिवाली तो दो-तीन दिन पहले से ही शुरू हो जाती. वो एटम बम को टूटे-फूटे टीन के डब्बों के नीचे रखकर जलाना. बम फूटने पर उस डब्बे को हवा में उड़ते देखना. हाथ में रखकर अनार जलाना और दोस्तों के सामने हेकड़ी झाड़ना. 100 बमों की लड़ी को मटके में रखकर जलाना और फिर उसकी आवाज का पूरे मुहल्ले तक में गूंजना. रॉकेट जलाना, जो पड़ोसी के घर में घुस जाया करती थी.

याद ही होगा न ये सब आप लोगों को? इन पंक्तियों को पढ़कर आपके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान भी आ गई होगी. क्योंकि कमोबेश 90 के दशक के हर बच्चे का यही बचपन रहा होगा. सबने ऐसे ही दिवाली मनाई होगी. थोड़ी कम या थोड़ी ज्यादा.

पटाखे जलाना हिंदू धर्म की प्रथा नहीं है

9 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी. इसके पहले पिछली बार भी कोर्ट ने दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए ऐसी ही पाबंदी लगा दी थी. दिल्ली की हवा वैसे भी जहरीली हो चुकी है लेकिन हर साल दिवाली के बाद दिल्ली की हवा की हालात बद से बदतर हो जाती है. पिछले साल तो खुद सरकार ने माना था कि पूरा दिल्ली शहर एक गैस चैंबर में बदल चुका है.

लेकिन फिर भी क्या प्रदूषण कम करने नाम पर पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाना क्या उचित है? मैं इस बात से असहमत हूं. लेकिन आज के समय में देश के धार्मिक विचारों संस्कारों पर बोलना खतरे से खाली नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने एक तरफ इधर पाबंदी की घोषणा की तो दूसरी तरफ लोगों के अंदर का हिंदू जाग उठा और इसे धार्मिक रंग देने लगे.

लोग कहने लगे कि दिवाली में पटाखे फोड़ने से रोकना हिंदू संस्कृति पर हमला है. कुछ सवाल जो हम कई बार कई लोगों के मुंह से सुन चुके हैं- आखिर तुम हमें हमारा ही त्योहार मनाने से कैसे रोक सकते हो? पहले तुमने होली के समय हमसे ये कहकर पानी छीन लिया कि इस त्योहार में पानी की बहुत बर्बादी होती है. अब दिवाली पर पटाखे भी!? बकरीद के बारे में कोई कुछ नहीं कहता, जब लाखों मासूम जानवरों को मौत के घाट उतार दिया जाता है. क्रिसमस के बारे में क्या कहेंगे जब हजारों पेड़ काट दिए जाते हैं?

आपके ये सारे सवाल सही हैं और जायज भी हैं. लेकिन वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य की चिंता को एक धार्मिक रंग दे देना अपने आप में अजीब है. तो इसलिए अब मैं इस बहस के बीच में कुछ लॉजिकल बातें आपको बताना चाहूंगा.

2014 तक भारत में चीन के बने पटाखे भारी मात्रा में आयात किए जाते थे. ये पटाखे सस्ते होते थे और इनमें पोटाशियम क्लोरेट भारी मात्रा का प्रयोग किया जाता था. पोटाशियम क्लोरेट एक ज्वलनशील पदार्थ है जो तुरंत आग पकड़ लेता है. इसी कारण से सितम्बर 2014 में वाणिज्य मंत्रालय ने चीन में बने पटाखों पर बैन लगा दिया. लेकिन इसके बाद भी भारत में बड़ी मात्रा में इन चीनी पटाखों की तस्करी हो रही है और फर्जी लेबलिंग और नाम के साथ धड़ल्ले से बिक भी रहे हैं.

तमिलनाडु के शिवकाशी में देश के 80 प्रतिशत पटाखे बनाए जाते हैं. नोटबंदी और जीएसटी की वजह से इस क्षेत्र में पटाखों के उत्पादन में 30 प्रतिशत की कमी आ गई. केंद्र सरकार ने पटाखों पर जीएसटी 28 प्रतिशत लगा दी है. जबकि पहले इन पर 14.5 प्रतिशत ही टैक्स लगता था. इसलिए जाहिर है कि अब यहां के पटाखे महंगे मिलेंगे.

चलिए अब आपको एक और सच्चाई से भी रू-ब-रू कर दें-

पटाखे जलाना भारत की परंपरा नहीं है! पटाखों का आविष्कार सातवीं शताब्दी में चीन में हुआ था. इसके बाद तक 1200 ईस्वी से 1700 ईस्वी तक ये पूरे विश्व में लोगों की पसंद बन गए. यही नहीं गन पाउडर की खोज पर इस दौरान कई किताबें भी लिखी गई हैं. दिवाली में पटाखे जलाने की परंपरा तो बहुत बाद में शुरू हुई है.

चलिए अब मैं आपको ये बताता हूं कि आखिर मनाई क्यों जाती है? दीपावली का मतलब होता है दीपों की लड़ी जो घी या तेल से जलाई जाती है. इसका मतलब बारुद भरे पटाखे बिल्कुल नहीं होता. ये रौशनी का पर्व है. रौशनी, शोर, धमाके और धुंए का पर्व नहीं है.

दीवाली रौशनी का त्योहार है. शोर और धुंए का नहीं

उत्तर भारत में माना जाता है कि रावण का वध करने के बाद जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे तो नगरवासियों ने पूरे मार्ग को दिए जलाकर रौशन कर दिया था. ये दिए अधर्म पर धर्म के विजय के प्रतीक के रूप में जलाए गए थे. अंधेर पर उजाले की जीत के रूप में जलाए गए थे.

इसके अलावा भी देश में दिवाली मनाने के कई मान्यताएं प्रचलित हैं-

1- महाभारत के अनुसार पांडवों के 12 साल के वनवास और एक साल के अज्ञातवास से लौटने का प्रतीक है दिवाली.

2- असुर और देवों के बीच समुद्र मंथन के बाद देवी लक्ष्मी के रूप में दिवाली मनाई जाती है. इसके पांच दिन बाद देवी लक्ष्मी की भगवान विष्णु से शादी का जश्न मनाया जाता है. इसके साथ ही भगवान गणेश, मां सरस्वती और कुबेर की भी पूजा की जाती है ताकि घर में सुख, समृद्धि, संकटों से मुक्ति और ज्ञान की वर्षा हो.

3- पूर्वी भारत खासकर बंगाल, ओडीसा और असम में दिवाली, काली पूजा के रुप में मनाई जाती है.

4- मथुरा में दिवाली भगवान कृष्ण को याद कर मनाई जाती है.

5- दक्षिण भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में भगवान कृष्ण द्वारा नारकासुर के वध के उपलक्ष्य में दिवाली मनाई जाती है.

इतना ही काफी नहीं है. विभिन्न धर्मों के अनुयायी जैसे सिख, जैन और बौद्ध अलग-अलग कारणों से दिवाली मनाते हैं.

1- सिख इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं. इस दिन गुरु गोविंद सिंह ने जहांगीर के चंगुल से खुद को बचा लिया था और स्वर्ण मंदिर पहुंचे थे. इस मौके पर स्वर्ण मंदिर को रौशनी से सजा दिया गया था.

2- जैन धर्म के अनुयायी महावीर को याद करके ये पर्व मनाते हैं. माना जाता है कि अमावस्या के ही दिन महावीर को देवताओं की उपस्थिति में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.

3- नेपाल के नेवार बुद्धिस्ट लोग तिहर पर्व मनाते हैं जो दिवाली के ही दिन पड़ता है. इस दिन ये गाय, कुत्ते, बैलों की बलि मां लक्ष्मी के समक्ष चढ़ाते हैं. यही नहीं यहां के लोगों का भाई-दूज मनाने की भी अपनी परंपरा है जिसे टीका कहते हैं. सिक्किम में भी दिवाली इसी तरीके से मनाई जाती है.

अब अगर आप लोगों ने ध्यान दिया होगा तो हर क्षेत्र, हर धर्म में दिवाली मनाने की कारण है. अधर्म पर धर्म की जीत. अंधेरे पर उजाले की जीत. अज्ञानता पर ज्ञान की जीत. दिवाली के दिन जश्न का मतलब होता है अपने सगे-संबंधियों के साथ मिलना-जुलना, समय बिताना.

लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पटाखे पर लगी पाबंदी से आहत एक वर्ग कह रहा है कि यह हिंदू भावनाओं का अपमान है. इस बैन के खिलाफ कई तर्क हैं :

1. तो क्रिसमस पर क्रिसमस ट्री के काटने पर प्रतिबंध क्‍यों नहीं लगाया जाता ?

2. मुसलमान बकरों को काटना क्‍यों नहीं बंद करते

3. दिल्‍ली में तो वैसे ही प्रदूषण रहता है, तो सिर्फ पटाखे पर बैन से क्‍या फर्क पड़ेगा

4. अजान के लिए मस्जिदों पर लाउडस्‍पीकर के इस्‍तेमाल पर क्‍या कहेंगे क्‍या ये ध्‍वनि प्रदूषण ठीक है

5. ये अजीब है कि सारा जोर सिर्फ एक ही समुदाय पर चल रहा है.

तो मेरा ख्‍याल है कि पटाखों पर बैन कोई बेहतर आइडिया नहीं है. इससे तो नाराज लोगों पर उलटा असर पड़ेगा. हो सकता है कि वे और ज्‍यादा पटाखे जलाएं. पटाखा कारोबारी पहले ही आशंका जता चुके हैं कि इस बैन की वजह से दिल्‍ली में और ज्‍यादा पटाखों की तस्‍करी होगी. उनकी क्‍वालिटी और नुकसान को लेकर कोई नियंत्रण नहीं होगा.

मेरी अब तक समझ में नहीं आ रहा है कि पटाखे और धुएं के कुप्रभावों को दरकिनार करते हुए दिए जा रहे कुतर्कों को कैसे तार्किक ढंग से समझाया जा सके. इसलिए, अब ये आप पर निर्भर करता है कि जानबूझकर जहर की सांस लेना चाहते हैं या फिर दिल्ली की पहले सी जहरीली हो चुकी हवा को सांस लेने की जगह देना चाहते हैं.

( DailyO से साभार )

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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