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निर्मला सीतारमन ने डिफेंस बजट वित्‍त मंत्री नहीं, रक्षा मंत्री की तरह पेश किया है

    • आर.के.सिन्हा
    • Updated: 09 जुलाई, 2019 08:29 PM
  • 09 जुलाई, 2019 08:29 PM
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एक तो पाकिस्तान का अपना अलग से रक्षा बजट है और दूसरे चीन के रक्षा बजट में भी उसकी हिस्सेदारी रहती है. इन सब तथ्यों को नजर अंदाज करते हुए हमारे कुछ सेक्यूलरवादी बुद्धिजीवी कहते हैं कि भारत को अपने रक्षा बजट में कटौती करनी चाहिए.

जब देश के इर्द-गिर्द दो बड़े शत्रु राष्ट्रों की सरहदें मिलती हों तब भारत से यह अपेक्षा करना उचित ही नहीं होगा कि वह अपने रक्षा बजट में कटौती करने की सोचे भी. भारत की पाकिस्तान से 1947, 1955, 1971 और फिर करगिल में जंग हुई. चीन से भी हमारी भीषण जंग 1962 में हुई. पिछले वर्ष डोकलाम में भी लड़ाई की ही नौबत आ चुकी थी. लेकिन, मोदी जी की कुशल कूटनीति और सुषमा जी और तत्कालीन विदेश सचिव जयशंकर जी की सफल कार्य शैली से युद्ध टल गया. जिन सीमा के सवालों पर जंग हुईं थीं वे सवाल अब भी तो अनसुलझे ही हैं. इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने समझदारी पूर्वक रक्षा बजट के लिए 3.18 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए. आपको याद ही होगा अंतरिम बजट में भी इतनी ही राशि का आवंटन हुआ था.

अब जरा भारत के रक्षा बजट की तुलना चीन के रक्षा बजट से भी कर लेते हैं. चीन ने सेना में आधुनिकीकरण अभियान को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हुए अपने रक्षा खर्च में 8.1 फीसद की वृद्धि करके 175 अरब डॉलर कर दिया है. जाहिर है कि चीन का रक्षा बजट हमारे देश से बहुत अधिक है. नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के अनुसार चीन का 2018 का रक्षा बजट 1110 अरब युआन (175अरब डॉलर) है. चीन, इस प्रकार अमेरिका के बाद रक्षा क्षेत्र पर खर्च करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. हालत यह है कि चीन ने रक्षा खर्च को बढ़ाकर 175 अरब डॉलर किए जाने भी पर कहा था कि यह पिछले दो साल की तुलना में थोड़ा ही अधिक है.

पाकिस्तान और चीन की वजह से भारत को अपने रक्षा बजट को निरंतर मजबूत करना होगा

बहरहाल चीन के रक्षा बजट में पाकिस्तान का भी हिस्सा रहता है, यह सबको पता ही है. मतलब यह कि एक तो पाकिस्तान का अपना अलग से रक्षा बजट है और दूसरे चीन के रक्षा बजट में भी उसकी हिस्सेदारी रहती है. इन सब तथ्यों को नजर अंदाज करते...

जब देश के इर्द-गिर्द दो बड़े शत्रु राष्ट्रों की सरहदें मिलती हों तब भारत से यह अपेक्षा करना उचित ही नहीं होगा कि वह अपने रक्षा बजट में कटौती करने की सोचे भी. भारत की पाकिस्तान से 1947, 1955, 1971 और फिर करगिल में जंग हुई. चीन से भी हमारी भीषण जंग 1962 में हुई. पिछले वर्ष डोकलाम में भी लड़ाई की ही नौबत आ चुकी थी. लेकिन, मोदी जी की कुशल कूटनीति और सुषमा जी और तत्कालीन विदेश सचिव जयशंकर जी की सफल कार्य शैली से युद्ध टल गया. जिन सीमा के सवालों पर जंग हुईं थीं वे सवाल अब भी तो अनसुलझे ही हैं. इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने समझदारी पूर्वक रक्षा बजट के लिए 3.18 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए. आपको याद ही होगा अंतरिम बजट में भी इतनी ही राशि का आवंटन हुआ था.

अब जरा भारत के रक्षा बजट की तुलना चीन के रक्षा बजट से भी कर लेते हैं. चीन ने सेना में आधुनिकीकरण अभियान को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हुए अपने रक्षा खर्च में 8.1 फीसद की वृद्धि करके 175 अरब डॉलर कर दिया है. जाहिर है कि चीन का रक्षा बजट हमारे देश से बहुत अधिक है. नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के अनुसार चीन का 2018 का रक्षा बजट 1110 अरब युआन (175अरब डॉलर) है. चीन, इस प्रकार अमेरिका के बाद रक्षा क्षेत्र पर खर्च करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. हालत यह है कि चीन ने रक्षा खर्च को बढ़ाकर 175 अरब डॉलर किए जाने भी पर कहा था कि यह पिछले दो साल की तुलना में थोड़ा ही अधिक है.

पाकिस्तान और चीन की वजह से भारत को अपने रक्षा बजट को निरंतर मजबूत करना होगा

बहरहाल चीन के रक्षा बजट में पाकिस्तान का भी हिस्सा रहता है, यह सबको पता ही है. मतलब यह कि एक तो पाकिस्तान का अपना अलग से रक्षा बजट है और दूसरे चीन के रक्षा बजट में भी उसकी हिस्सेदारी रहती है. इन सब तथ्यों को नजर अंदाज करते हुए हमारे कुछ सेक्यूलरवादी बुद्धिजीवी कहते हैं कि भारत को अपने रक्षा बजट में कटौती करनी चाहिए. उन्हें यह कौन बताए-समझाए कि शांति की बात और पहल शक्तिशाली ही कर सकता है. कमजोर को तो दुनिया जीने का भी अधिकार देने के लिए राजी नहीं है. कहा गया है कि “क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो. उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो.''

अब यह भी जान लेते हैं कि भारत से चार गुना छोटे शातिर पाकिस्तान का रक्षा बजट कितना है. पाकिस्तान ने 2018-19 के लिए 5,661 अरब रुपये का बजट रखा. इससे पहले के वित्त वर्ष के दौरान पाकिस्तान का रक्षा बजट 999 अरब रुपये का था. इस पैसे का इस्तेमाल पाक अपनी सेना को मजबूत बनाने के लिए कर रहा है. इन दोनों देशों के रक्षा बजट में इजाफा करने के बाद भारत को अपने हितों को तो देखना ही होगा. यह दोनों दुश्मन देश भारत से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खुंदक खाते रहते हैं. हमने डोकलाम सीमा विवाद के समय चीन के बेहद निंदनीय रुख को देखा था. वह भारत को युद्ध की बंदरभभकी दे रहा था. पाकिस्तान के कुछ धूर्त नेता अभी भी भारत को देख लेने की बातें करते रहते हैं. पहले नवाज शरीफ और अब इमरान खान की सरकारों का भारत विरोधी रवैया साफ दिखाई देता है. हो सकता है कि हमारी युवा पीढ़ी को ज्ञात न हो कि 1962 की जंग के बाद चीन ने हमारे अक्सईचिन पर कांग्रेस के राज में जबरदस्ती अपना कब्जा जमा लिया था. यह क्षेत्र 37,244 वर्ग किलोमीटर है जिसमें गलैशियर भरे पड़े हैं. यह पूरे कश्मीर घाटी जितना बड़ा है. भारत को उस चीन द्वारा जबरदस्ती ढंग से कब्जाए क्षेत्र को वापस तो लेना ही है. चीन हमारे अरुणाचल प्रदेश पर भी गिद्ध दृष्टि रखता है. तो भारत को अपने रक्षा बजट को निरंतर बढ़ाने के साथ सेना के सभी अंगों को और मजबूत तो करना ही होगा.

अगर बात पाकिस्तान की करें तो उसने विंग कमांडर अभिनंदन को जिस भावना से वापस किया था, उससे संकेत साफ है कि उसे भारत की शक्ति का अंदाजा तो हो ही गया है. भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान के पायलट की तुरंत स्वदेश वापसी कोई सामान्य घटना नहीं थी. यह नए भारत का एक सख्त और मजबूत चेहरा है कि पाकिस्तान घुटनों के बल पर आकर अभिनंदन को भारत भेज देता है. तब सबने देखा था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान किस तरह से अपनी संसद में अभिनंदन की रिहाई की घोषणा कर रहे थे. पुलवामा हमले के बाद भारतीय कूटनीति के आगे पूरी तरह पस्त हो गया था पाकिस्तान.

एक बात और समझनी होगी कि चीन और पाकिस्तान को भारत की प्रगति कतई रास नहीं आती. भारत में प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) लगातार बढ़ता जा रहा है. भारत से अधिक एफडीआई अन्य किसी देश को नहीं मिल रहा है. भारत में अमेरिका तथा चीन से भी अधिक एफडीआई आ रही है. दुनियाभर के बड़े निवेशक भारत में अपनी पूंजी को लगाने का मन बना चुके हैं. यदि यह न होता तो भारत किसी भी हाल में अमेरिका या चीन से एफडीआई खींचने में इक्कीस न रहता. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका, जापान से लेकर साउथ कोरिया, जर्मनी, सिंगापुर वगैरह जाकर वहां के बड़े निवेशकों भारत में निवेश करने का आग्रह करते हैं. भारत अब सारे विश्व के निवेशकों को पसंद आने लगा है. भारत को तो एफडीआई ज्यादा से ज़्यादा आकर्षित करनी ही होगी. बिना एफडीआई के देश में विकास की गति लंबी छलांग नहीं लगा सकेगी.

दरअसल अब भारत की तरफ से संदेश पूरे विश्व को साफ जाना चाहिए कि हम रक्षा क्षेत्र को मजबूत करते हुए अपने अन्य क्षेत्रों की भी अनदेखी नहीं करेंगे. यह भी हो रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था निरंतर ठोस ही हो रही है. पर हमारे सामने बेरोजगारी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. हमें अपनी बढ़ती हुई आबादी पर भी तुरंत सख्ती से लगाम भी लगानी होगी. इन दोनों मोर्चों पर अभी देश को बहुत लंबी ल़ड़ाई लड़नी है. ये दोनों मसले एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़े हुए हैं. बढ़ती आबादी के कारण ही बेरोजगारी का मसला गंभीर हो रहा है. हम पाकिस्तान तो बन नहीं सकते. पाकिस्तान ने अपने को रक्षा क्षेत्र में मजबूत करने के चक्कर में गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, सेहत जैसे सवालों को तरजीह नहीं दी. इसका ही नतीजा है कि पाकिस्तान बर्बादी की कगार पर खड़ा है. वह आज भीख का कटोरा लेकर दुनियाभर से आर्थिक मदद मांग रहा है. वहां पर महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच गई है. आम इंसान तो तिल-तिल कर मर रहा है. भारत को अपने को चौतरफा तरीके से मजबूत करते रहना होगा. पर यह भी जरूरी है कि इस क्रम में भारत विश्व बंधुत्व का संदेश भी देता रहे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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