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सियासत

राजनीतिक पेचीदगी में क्यों फंसी सारस-आरिफ की मित्रता?

    • रमेश ठाकुर
    • Updated: 01 अप्रिल, 2023 03:56 PM
  • 01 अप्रिल, 2023 03:56 PM
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यूपी में आरिफ और सारस की दोस्ती ने सारस को बचाने के प्रयास में शांत हो चुके शासन-प्रशासन स्तर की कोशिशों में भी चेतना ला दी है. यूं कहें कि एक इंसान और एक पक्षी की दोस्ती की ललकार ऐसे फैली कि सबको गहरी नींद से जगा दिया. फिलहाल इस प्रकरण ने ‘सारस संरक्षण अभियान’ को फिर से हवा देने के साथ-साथ सियासत भी तेज हो गई है.

भावुक कर देनी वाली ‘पंक्षीप्रेमी मोहम्मद आरिफ और सारस’ की अद्भुत मित्रता के किस्से इस वक्त सुर्खियों में है. दोनों के चर्चे ना सिर्फ सोशल मीडिया पर हैं, बल्कि प्रत्येक इंसान की जुंबा पर भी हैं. वेद-पुराणों में ये बात कही भी गई है कि मनुष्य ने प्रेम करना बेजुबान पशु पक्षियों से ही सीखा था. पौराणिक तथ्य एक ये भी है कि मनुष्यी जीवन व पर्यावरण में पाए जाने वाले तमाम सहजीव सदैव से एक दूसरे के पूरक भी रहे हैं. उस धूमिल परंपरा को आरिफ-सारस की दोस्त ने एक बेजोड़ उदाहरण बनकर नए सिरे से प्रस्तुत करके सबका ध्यान आकर्षित करवाया है. दोनों की मित्रता ने समाज को दो संदेश बहुत बेहरीन दिए हैं. अव्वल, जनमानस का ध्यान सारस के प्रति तेजी से उमड़ा. लोगों में सारस के संबंध में जानने की प्रवृति और जिज्ञासा को एकाएक बढ़ाया. आरिफ-सारस की दोस्ती जबसे चर्चाओं में आई है. लोग गूगल करके सर्च कर रहे हैं. सारस की विभिन्न प्रजातियों के संबंध में जानकारियां जुटा रहे हैं. आरिफ की तरफ असंख्यक लोगों में भी सारस को पालने और उससे दोस्ती करने की ललक पैदा हुई है. पक्षी प्रेमता की ओर लोगों का ध्यान बहुत तेजी से आकर्षित हुआ है.

अपने दोस्त सारस के साथ अमेठी का युवक आरिफ

वहीं, दूसरा संदेश ये प्रशारित हुआ है, वर्षों कृत्यित पड़े ‘सारस संरक्षण अभियान’ को भी बैठे बिठाए संबल मिल गया. सारस को बचाने के प्रयास में शांत हो चुके शासन-प्रशासन स्तर की कोशिशों में भी चेतना जगी है. यूं कहें कि एक इंसान और एक पक्षी की दोस्ती की ललकार ऐसे फैली कि सबको गहरी नींद से जगा दिया. फिलहाल इस प्रकरण ने ‘सारस संरक्षण अभियान’ को फिर से हवा देने के साथ-साथ सियासत भी तेज हो गई है. ये तब हुआ जब प्रशासन ने सारस को आरिफ से अलग किया.

अलग करने पर प्रशासन ने...

भावुक कर देनी वाली ‘पंक्षीप्रेमी मोहम्मद आरिफ और सारस’ की अद्भुत मित्रता के किस्से इस वक्त सुर्खियों में है. दोनों के चर्चे ना सिर्फ सोशल मीडिया पर हैं, बल्कि प्रत्येक इंसान की जुंबा पर भी हैं. वेद-पुराणों में ये बात कही भी गई है कि मनुष्य ने प्रेम करना बेजुबान पशु पक्षियों से ही सीखा था. पौराणिक तथ्य एक ये भी है कि मनुष्यी जीवन व पर्यावरण में पाए जाने वाले तमाम सहजीव सदैव से एक दूसरे के पूरक भी रहे हैं. उस धूमिल परंपरा को आरिफ-सारस की दोस्त ने एक बेजोड़ उदाहरण बनकर नए सिरे से प्रस्तुत करके सबका ध्यान आकर्षित करवाया है. दोनों की मित्रता ने समाज को दो संदेश बहुत बेहरीन दिए हैं. अव्वल, जनमानस का ध्यान सारस के प्रति तेजी से उमड़ा. लोगों में सारस के संबंध में जानने की प्रवृति और जिज्ञासा को एकाएक बढ़ाया. आरिफ-सारस की दोस्ती जबसे चर्चाओं में आई है. लोग गूगल करके सर्च कर रहे हैं. सारस की विभिन्न प्रजातियों के संबंध में जानकारियां जुटा रहे हैं. आरिफ की तरफ असंख्यक लोगों में भी सारस को पालने और उससे दोस्ती करने की ललक पैदा हुई है. पक्षी प्रेमता की ओर लोगों का ध्यान बहुत तेजी से आकर्षित हुआ है.

अपने दोस्त सारस के साथ अमेठी का युवक आरिफ

वहीं, दूसरा संदेश ये प्रशारित हुआ है, वर्षों कृत्यित पड़े ‘सारस संरक्षण अभियान’ को भी बैठे बिठाए संबल मिल गया. सारस को बचाने के प्रयास में शांत हो चुके शासन-प्रशासन स्तर की कोशिशों में भी चेतना जगी है. यूं कहें कि एक इंसान और एक पक्षी की दोस्ती की ललकार ऐसे फैली कि सबको गहरी नींद से जगा दिया. फिलहाल इस प्रकरण ने ‘सारस संरक्षण अभियान’ को फिर से हवा देने के साथ-साथ सियासत भी तेज हो गई है. ये तब हुआ जब प्रशासन ने सारस को आरिफ से अलग किया.

अलग करने पर प्रशासन ने दलीलें दी हैं कि आरिफ ने वाइल्ड लाइफ अधिनियम का उल्लंघन किया है, उन्होंने संरक्षित पक्षी को कैद करके रखा. हालांकि प्रशासन सभी दलीलों को आरिफ ने खारिज करते हुए कहा है कि वो तो एक साधारण से खेतिहर किसान हैं. सारस उन्हें घायलअवस्था में खेतों में तड़पता हुआ मिला था, उनका इलाज करवाया, ठीक होने के बाद सारस उनके साथ ही रहने लगा. आपस में दोनों इतने घुल मिल गए कि अलग नहीं हो सकते.

आरिफ ने कहा उन्होंने सारस कभी कैद करके या बांध कर नहीं रखा. उनके साथ इतनी सहजता से रहने लगा जिसकी उन्हे कभी आवश्यकता ही नहीं हुई. थोड़ा समझते हैं कि सारस जैसे संरक्षित पंक्षियों के संबंध में क्या हैं मौजूदा कानूनी प्रावधान? दरअसल, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम-1972 की धारा-48 के मुताबिक अधिकृत तकरीबन सभी संरक्षित पंक्षी प्रशासन की निगरानी में अपने प्रकृतिकवास परिक्षेत्र में होने चाहिए.

बावजूद इसके अगर कोई पंक्षीप्रेमी किसी पंक्षी का संरक्षण निजी तौर पर चाहता है या अपने पास रखता है, तो उसे स्थानीय प्रशासन से इजाजत लेनी होती है. साथ ही वन्यजीव अधिनियम के तहत राजकीय पशु चिकित्सक से भी लिखित में मंजूरी लेनी पड़ती है ताकि पंक्षी की हारी-बीमारी पर उन्हें तत्काल सूचित किया जाए. पर, दुर्भाग्य इन कानूनों की कोई परवाह करता नहीं?

देशभर में कई बड़े ऐसे औहदेदार, राजनेता, बिजनेसमैन व पंक्षीप्रेमी हैं जिनके घरों या फार्महाउस में आपको इस तरह के विभिन्न प्रकार के संरक्षित पंक्षी दिख जाएंगे, उनमें खासकर राष्टृय पंक्षी मोर जरूर होगा. जो सरासर गैरकानूनी है, पर है क्या जो चर्चाओं में आ जाता है, उस पर सभी निष्क्रिय कानून एकदम से प्रभावी हो जाते हैं. कायदे से गौर करें तो वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम ऐसा सख्त कानून है जिसके तहत कोई भी व्यक्ति किसी संरक्षित पक्षी का संरक्षण व्यक्तिगत तौर पर नहीं ले सकता.

लेकिन फिर भी लेते हैं और गैरकानूनी उन्हें कैद करके रखते हैं. तब उन्हें देखकर प्रशासनिक अधिकारी भी अपनी आंखे मूंद लेते हैं. लेकिन जब कोई घटना घट जाती है, तो आकर डंडा पीटने लगते हैं. आरिफ प्रकरण से सियासत भी शुरू हो गई है. घटना के चर्चा में आने के बाद सियासी लोग कूद पड़े हैं. सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव ने आरिफ के बहाने प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कई आरोप जड़े हैं.

बोले, जब उनकी हुकूमत थी तो उन्होंने 'सारस संरक्षण अभियान' छेड़ा था जिसे वर्तमान सरकार ने रोक दिया है. इस मसले पर पक्ष-विपक्ष में खूब 'तू-तू, मैं-मैं' हो रही हैं. जबकि, अखिलेश यादव खुद अपने गांव सैफई में अपने यहां सारस पालते हैं. आरिफ के बहाने अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री पर भी निशाना साधा है. कहते हैं कि प्रधानमंत्री भी मोर के साथ रहते हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरकारी आवास में भी इसी तरह के विभिन्न पक्षी मौजूद हैं.

गौरतलब है, आदिकाल से लेकर अभी तक मनुष्य-पक्षी के दरम्यान मोहब्बत का ये किस्सा ना आखिरी है और न पहला? दोनों के मध्य ऐसी कहानियां बहुतेरी रही हैं और आगे भी होती रहेंगी. ऑस्कर अवार्ड पाने वाली भारत की डॉक्यूमेंट्री एलिफैंट व्हिस्पर्स ‘द एलिफैंट व्हिस्पर्स’ में भी एक हाथी और मनुष्य की संवेदनशील कहानी का वर्णन है, वो कहानी भी हुकूमतों के कानूनों के सरोकारों से काफी ऊपर है.

निश्चित रूप से बेजुबान पशु-पंक्षी और इंसानों की इस तरह की कहानियां समाज को भावुक करने के साथ-साथ ह्दय के भीतर आपसी प्रेमभाव का भी संचार करती हैं. जनमानस इस किस्म की कहानियों से प्रेरणा लेता है, और वन्य-जीवों व इंसानों के बीच मोहब्बत भरे रिश्ते की संवेदनाओं को बड़ी बारीक से एहसास भी करता है. बच्चों और युवाओं के भीतर जीवों के प्रति अपनेपन की ललक बढ़ती है. वह हमारी प्राचीन से संस्कृति से रूबरू भी होते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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