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गुजरात चुनाव में अहमद पटेल की साख और भविष्य दोनों दांव पर हैं

    • आईचौक
    • Updated: 09 दिसम्बर, 2017 06:27 PM
  • 09 दिसम्बर, 2017 06:27 PM
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गुजरात चुनाव में भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी आमने सामने नजर आ रहे हों, हकीकत तो ये है कि पर्दे के पीछे ये लड़ाई अमित शाह और अहमद पटेल के बीच चल रही है - और अहमद पटेल का काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है.

राहुल गांधी बीजेपी शासन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 10 सवाल पूछ चुके हैं, लेकिन एक सवाल का जवाब देना अब भी बाकी है - कांग्रेस की सरकार बनी तो कौन बनेगा मुख्यमंत्री?

इस मामले में राहुल गांधी का रवैया भी वही है जो कई विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी का रहता है. मोदी की ही तरह गुजरात में राहुल गांधी ही कांग्रेस का चेहरा हैं. राहुल गांधी भले ही कांग्रेस का चेहरा हों, लेकिन कांग्रेस के सरकार बनाने की हालत में वो मुख्यमंत्री तो बनेंगे नहीं. वैसे तो गुजरात कांग्रेस में नेताओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन एक नाम किसी न किसी बहाने चर्चा में आ ही जाता है - अहमद पटेल. अहमद पटेल का नाम इस मामले में उछलना अनायास भी नहीं है.

मुख्यमंत्री वाला पोस्टर क्या कहता है?

भरुच में 9 दिसंबर को अपना वोट डालने के बाद अहमद पटेल मीडिया से मुखातिब हुए और बोले, "कांग्रेस 110 सीटों से भी ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करेगी." अहमद पटेल का ये दावा भले ही राजनीतिक बयान हो लेकर लेकिन चुनाव नतीजों के असर से अछूते वो भी नहीं रहने वाले हैं. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अहमद पटेल का भविष्य भी काफी कुछ गुजरात चुनाव के नतीजों से जुड़ा हुआ है.

पोस्टर के पीछे क्या है?

हाल ही में जब अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाये जाने वाले पोस्टर गुजरात में लगे तो सफाई देने के लिए उन्हें खुद ही आगे आना पड़ा. अहमद पटेल ने न सिर्फ इसे खारिज किया बल्कि इसके पीछे बीजेपी की साजिश भी बता डाली.

अहमद पटेल ने इसे बीजेपी का दुष्‍प्रचार बताया और कहा कि वे कालाबाजी कर रहे हैं कि कहीं पर कुछ धुव्रीकरण हो जाये. अपने बारे में उनका कहना रहा, 'ना तो मैं कहीं सीएम का कैंडिडेट था, ना हूं और ना रहूंगा.'

इससे भी दिलचस्प रहा, पोस्टर का वो पक्ष...

राहुल गांधी बीजेपी शासन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 10 सवाल पूछ चुके हैं, लेकिन एक सवाल का जवाब देना अब भी बाकी है - कांग्रेस की सरकार बनी तो कौन बनेगा मुख्यमंत्री?

इस मामले में राहुल गांधी का रवैया भी वही है जो कई विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी का रहता है. मोदी की ही तरह गुजरात में राहुल गांधी ही कांग्रेस का चेहरा हैं. राहुल गांधी भले ही कांग्रेस का चेहरा हों, लेकिन कांग्रेस के सरकार बनाने की हालत में वो मुख्यमंत्री तो बनेंगे नहीं. वैसे तो गुजरात कांग्रेस में नेताओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन एक नाम किसी न किसी बहाने चर्चा में आ ही जाता है - अहमद पटेल. अहमद पटेल का नाम इस मामले में उछलना अनायास भी नहीं है.

मुख्यमंत्री वाला पोस्टर क्या कहता है?

भरुच में 9 दिसंबर को अपना वोट डालने के बाद अहमद पटेल मीडिया से मुखातिब हुए और बोले, "कांग्रेस 110 सीटों से भी ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करेगी." अहमद पटेल का ये दावा भले ही राजनीतिक बयान हो लेकर लेकिन चुनाव नतीजों के असर से अछूते वो भी नहीं रहने वाले हैं. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अहमद पटेल का भविष्य भी काफी कुछ गुजरात चुनाव के नतीजों से जुड़ा हुआ है.

पोस्टर के पीछे क्या है?

हाल ही में जब अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाये जाने वाले पोस्टर गुजरात में लगे तो सफाई देने के लिए उन्हें खुद ही आगे आना पड़ा. अहमद पटेल ने न सिर्फ इसे खारिज किया बल्कि इसके पीछे बीजेपी की साजिश भी बता डाली.

अहमद पटेल ने इसे बीजेपी का दुष्‍प्रचार बताया और कहा कि वे कालाबाजी कर रहे हैं कि कहीं पर कुछ धुव्रीकरण हो जाये. अपने बारे में उनका कहना रहा, 'ना तो मैं कहीं सीएम का कैंडिडेट था, ना हूं और ना रहूंगा.'

इससे भी दिलचस्प रहा, पोस्टर का वो पक्ष जिसकी ओर एक ट्वीट के जरिये ध्यान दिलाया जावेद अख्तर ने. जावेद अख्तर का मानना है कि पोस्टर बनाने वाला राजनीति का खेल तो समझता है लेकिन उसकी उर्दू बहुत कमजोर है. जावेद अख्तर ने ट्वीट में बताया कि मुख्यमंत्री के लिए शब्द है वज़ीर-ए-आला, न कि वज़ीर-ए-आलम, जिसका मतलब हुआ दुनिया का मंत्री.

वज़ीर-ए-आला की ही तरह प्रधानमंत्री को वज़ीर-ए-आज़म कहते हैं. असल में वज़ीर मंत्री को ही कहते हैं, लेकिन मुल्क में वज़ीर-ए-आलम जैसा कोई पद है ही नहीं.

वैसे क्या होगा अहमद पटेल का?

गुजरात चुनाव में फ्रंट पर आमने सामने भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी नजर आ रहे हों, सच तो ये है कि पर्दे के पीछे ये लड़ाई अमित शाह और अहमद पटेल के बीच है. इंटरवल से पहले ये लड़ाई राज्य सभा चुनाव में देखी जा चुकी है, मौजूदा जंग उसके बाद की है. सबने देखा किस तरह शाह और पटेल एक दूसरे के पीछे जाती दुश्मनों की तरह पड़े हुए थे. चर्चा भी यही रही कि सोहराबुद्दीन केस में फंसाये जाने के पीछे अमित शाह किसी और को नहीं बल्कि पूरी तरह अहमद पटेल को ही जिम्मेदार मानते हैं.

राज्य सभा चुनाव में अहमद पटेल को हराने के लिए अमित शाह ने राजनीतिक के वो सारे हथकंडे लगा दिये जो मुमकिन थे. बस एक ही जगह दाल नहीं गली - चुनाव आयोग में. अगर चुनाव आयोग भी अमित शाह के प्रभाव, दबाव और झांसे में आ गया होता अहमद पटेल की हार तय थी. अहमद पटेल ने भी ये लड़ाई लगभग अकेले ही लड़ी, पीछे से सोनिया गांधी का मजबूत हाथ जरूर था. राहुल गांधी और उनकी टीम की तो कम ही दिलचस्पी नजर आयी. हद तो तब हो गयी जब गुलाम नबी आजाद ने अहमद पटेल की लड़ाई को सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा से अलग करने को कहा. बाद में में जब कांग्रेस

नेताओं को लगा कि सोनिया टस से मस नहीं हो रहीं तो सारे के सारे अहमद पटेल के साथ खड़े और बाजी उनके हाथ लगी. सवाल ये है कि 18 दिसंबर के बाद अहमद पटेल का क्या होगा? 18 दिसंबर को गुजरात चुनाव के नतीजे भी आ जाएंगे और कांग्रेस की कमान भी औपचारिक रूप से सोनिया गांधी से राहुल गांधी के हाथ में हो जाएगी. नये समीकरण में अहमद पटेल कितना फिट हो पाएंगे फिलहाल इसका जवाब उनके पास भी शायद ही हो.

बीबीसी हिंदी से बातचीत में रशीद किदवई कहते हैं राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की नई वर्किंग कमेटी में अहमद पटेल को भी अनुभवी नेताओं गुलाम नबी आजाद, कमल नाथ के साथ रखकर संतुष्ट किया जा सकता है. किदवई कहते हैं, 'अहमद पटेल ने सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव की जिम्मेदारी सालों निभाई है. राजनीतिक सचिव पर संगठन और अध्यक्ष के बीच तालमेल के अलावा पार्टी और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच तालमेल की जिम्मेदारी रहती है.'

अस्तित्व की लड़ाई

जिस तरह सोनिया गांधी सबसे लंबे समय तक कांग्रेस अध्यक्ष रही हैं, उसी तरह अहमद पटेल भी ताकतवर नेता रहे हैं. अहमद पटेल के बारे में कहा जाता है कि वो तमाम सीक्रेट के राजदार भी हैं और कांग्रेस में किसी और नेता के ऊपर न उठने देने के लिए जिम्मेदार भी. अहमद पटेल बहुतों की आंखों की किरकिरी भी रहे हैं. राज्य सभा चुनाव उनके लिए करो या मरो वाला था तो गुजरात विधानसभा चुनाव अहमद पटेल के लिए अस्तिव के सवाल खड़े करने वाला है.

मीडिया में कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि अहमद पटेल को ठिकाने लगाने के लिए राहुल गांधी गुजरात भी भेज सकते हैं. ऐसा दोनों स्थितियों में संभव है - कांग्रेस की हार की हालत में भी और जीत की स्थिति में भी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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