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जाति जनगणना सिर्फ मुद्दा, शिया जनगणना ग्राउंड पर...

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 10 मार्च, 2023 04:33 PM
  • 10 मार्च, 2023 04:33 PM
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लखनऊ में एक वीडियो संदेश के जरिए प्रदेश के ज्यादा से ज्यादा शियों को इज्तिमा मे इकट्ठा होने की भावुक अपील करते हुए मौलाना कल्बे जवाद ने कहा है कि कुछ विरोधी उलमा हमारी जनसंख्या को कम बताने की गलतफहमियां पैदा करते रहे हैं. जिससे हमारी सियासी वैल्यू माइनस ज़ीरो हो गई है. जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है.

हिंदू समाज में पिछड़ी जातियों का समाज ज़मीनी स्तर पर जातिवार जनगणना की मांग करता नज़र नहीं आ रहा है, हां जाति जनगणना को समाजवादी पार्टी अपना सबसे बड़ा सियासी मुद्दा ज़रूर बना रही है. लेकिन तादाद के मुताबिक हक़ हासिल करने से जुड़ा कुछ ऐसा ही मुद्दा मुस्लिम समाज में जमीन स्तर पर सामने आने जा रहा है. अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज में भी अल्पसंख्यक शिया समाज को अहसास होने लगा है कि उनकी कम तादाद जान कर हुकुमत, सियासत और तमाम क्षेत्रों में उन्हें बिल्कुल भी हिस्सेदारी नहीं मिल रही है. कम तादाद समझकर उन्हें नजरअंदाज किया जाता रहा है. शिया आबादी कम होने की गलतफहमियां पैदा की जाती रही हैं. ताकि इस वर्ग को उनका हक़ और हिस्सेदारी ना मिल सके. जबकि शिया समुदाय की तादाद इतनी है कि वो किसी भी पार्टी को जिताने और हराने का अहसास दिलाते रहे हैं.

कुछ ऐसे ही जज्बातों और ख्यालों के साथ शिया समुदाय के सबसे बड़े धार्मिक नेता मौलाना कल्बे जवाद शिया समाज की विशाल आबादी का शक्ति प्रदर्शन करने जा रहे हैं. एतिहासिक आसिफी इमामबाड़े (बड़े इमामबाड़े) में मौलाना जवाद 12 मार्च को इज्तिमा (महासम्मेलन) करने जा रहे हैं. हिन्दू समाज में जातिगत जनगणना का मामला भले ही ग्राउंड पर नहीं आया है पर मुस्लिम वर्गों में अपनी तादाद का शक्ति प्रदर्शन करने और सियासी हिस्सेदारी हासिल करने का सिलसिला शिया समुदाय ने शुरू कर दिया है.

लखनऊ में जो फैसला शिया धर्मगुरु कल्बे जवाद ने लिया अगर दांव सही बैठ गया तो यूपी में शिया समुदाय के अच्छे दिन आ जाएंगे

हो सकता है शियों के बाद सुन्नी समुदाय फिर पसमांदा अपनी तादाद के प्रदर्शन के लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित करें. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यूपी में समाजवादी पार्टी का जातिगत जनगणना का मुद्दा भले ही ज़मीनी स्तर पर अभी नजर...

हिंदू समाज में पिछड़ी जातियों का समाज ज़मीनी स्तर पर जातिवार जनगणना की मांग करता नज़र नहीं आ रहा है, हां जाति जनगणना को समाजवादी पार्टी अपना सबसे बड़ा सियासी मुद्दा ज़रूर बना रही है. लेकिन तादाद के मुताबिक हक़ हासिल करने से जुड़ा कुछ ऐसा ही मुद्दा मुस्लिम समाज में जमीन स्तर पर सामने आने जा रहा है. अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज में भी अल्पसंख्यक शिया समाज को अहसास होने लगा है कि उनकी कम तादाद जान कर हुकुमत, सियासत और तमाम क्षेत्रों में उन्हें बिल्कुल भी हिस्सेदारी नहीं मिल रही है. कम तादाद समझकर उन्हें नजरअंदाज किया जाता रहा है. शिया आबादी कम होने की गलतफहमियां पैदा की जाती रही हैं. ताकि इस वर्ग को उनका हक़ और हिस्सेदारी ना मिल सके. जबकि शिया समुदाय की तादाद इतनी है कि वो किसी भी पार्टी को जिताने और हराने का अहसास दिलाते रहे हैं.

कुछ ऐसे ही जज्बातों और ख्यालों के साथ शिया समुदाय के सबसे बड़े धार्मिक नेता मौलाना कल्बे जवाद शिया समाज की विशाल आबादी का शक्ति प्रदर्शन करने जा रहे हैं. एतिहासिक आसिफी इमामबाड़े (बड़े इमामबाड़े) में मौलाना जवाद 12 मार्च को इज्तिमा (महासम्मेलन) करने जा रहे हैं. हिन्दू समाज में जातिगत जनगणना का मामला भले ही ग्राउंड पर नहीं आया है पर मुस्लिम वर्गों में अपनी तादाद का शक्ति प्रदर्शन करने और सियासी हिस्सेदारी हासिल करने का सिलसिला शिया समुदाय ने शुरू कर दिया है.

लखनऊ में जो फैसला शिया धर्मगुरु कल्बे जवाद ने लिया अगर दांव सही बैठ गया तो यूपी में शिया समुदाय के अच्छे दिन आ जाएंगे

हो सकता है शियों के बाद सुन्नी समुदाय फिर पसमांदा अपनी तादाद के प्रदर्शन के लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित करें. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यूपी में समाजवादी पार्टी का जातिगत जनगणना का मुद्दा भले ही ज़मीनी स्तर पर अभी नजर नहीं आ रहा है. यदि हिन्दू समाज में पिछड़ी जातियों के लोग इस मुद्दे को लेकर ज़मीनी स्तर पर मुखर होते दिखते तो ये कहा जा सकता था कि इससे भाजपा को नुकसान हो सकता है.

जबकि शिया इज्तिमा (महासम्मेलन) और इसके बाद मुस्लिम जातियों/मसलकों और फिरकों का अलग-अलग प्रदर्शन ग्राउंड पर दिखाई देता है तो इससे मुस्लिम वोट बैंक के बिखराव के आसार पैदा हो सकते हैं. भाजपा विरोधी दलों के लिए ये खतरे की घंटी और भाजपा को लिए राहत देने के संकेत हैं.

एक वीडियो संदेश के जरिए प्रदेश के ज्यादा से ज्यादा शियों को इज्तिमा मे इकट्ठा होने की भावुक अपील करते हुए मौलाना कल्बे जवाद ने कहा है कि कुछ मुखालिफ (विरोधी) उलमा हमारी जनसंख्या को कम बताने की गलतफहमियां पैदा करते रहे हैं. जिससे हमारी सियासी वैल्यू माइनस ज़ीरो हो गई है. जबकि सच्चाई ये है कि हम इतनी बड़ी संख्या में हैं कि किसी भी राजनीतिक दल को जिता कर सत्ता दिलाने और किसी दल को हरा कर उससे सत्ता छीनने की हक़ीकत पेश करते रहे हैं.

हुकुमत में हमारी कम तादाद बताने की साज़िश लगातार की जा रही है ताकि हमें हमारा हक़ ना मिले, हमारे वैल्यू नहीं समझी जाए. हमारे समाज को हमारी हिस्सेदारी ना मिले. मौलाना ने वीडियो संदेश में इच्छा जाहिर की है कि उनके इस कार्यक्रम में पूरा बड़ा इमामबाड़ा लोगों से छलक जाए और एक इतिहास रच दिया जाए.

मौलाना ने दवा किया है कि ऐतिहासिक आसिफी इमामबाड़े में सैकड़ों सालों से सैकड़ों बड़े-बड़े पब्लिक कार्यक्रम होते रहे हैं लेकिन ये इमामबाड़ा परिसर इतना विशाल है कि किसी भी कार्यक्रम में इमामबाड़ा लोगों की भीड़ से भरा नहीं. पर वो अपनी कौम से उम्मीद करते हैं कि उलमा, बुद्धिजीवियों, मातमी अंजुमनों के अलावा यूपी के तमाम जिलों से शिया समाज के लोगों की भारी संख्या इस शिया महासम्मेलन (इज्तिमा) को ऐतिहासिक बनाकर एक रिकार्ड क़ायम करेगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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