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सर्जिकल ऑपरेशन होते रहेंगे, पहले सुरक्षा के इंतजाम तो कीजिए

    • आईचौक
    • Updated: 19 सितम्बर, 2016 10:47 PM
  • 19 सितम्बर, 2016 10:47 PM
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हमारी चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था में आखिर कौन सा पैबंद लगा है कि हर बार कुछ किराये के टट्टू गोला बारूद लादे टपक पड़ते हैं - और आंखों में धूल झोंक कर अपना काम कर जाते हैं.

चाहे जितनी बड़ी बड़ी बातें हों, होती रहेंगी. एक छोटी सी बात समझ में नहीं आ रही. हमारी सुरक्षा व्यवस्था में आखिर क्या खामी है कि महज चार हमलावरों से हम अपने जवानों की हिफाजत नहीं कर पाये?

हर हमले के बाद सुनते हैं - हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे. अरे, पत्थर से जवाब देने से रोका किसने है - पर ये कोई बताएगा कि ईंट से बचने के अब तक क्या उपाय किये गये हैं. पत्थर की बात तो बाद में आएगी - पहले कोई ये तो बताये कि ईंट को काउंटर करने के लायक क्यों नहीं हैं?

जिम्मेदार कौन?

ऐसी शहादत भी देनी पड़ेगी, उरी में तैनात जवानों ने कभी सोचा भी न होगा.घर बार छोड़ कर हजारों किलोमीटर दूर वे तो हर पल सीने पर गोली खाने को तैयार थे. चौकस निगाहों से अलर्ट ड्यूटी की थकान मिटाने के लिए वे तो पल भर की झपकी लेने गये थे - और उठने से पहले ही उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया.

ऐसा क्यों लगता है कि हमने अपने जवानों को मौत के मुहं में धकेल दिया. हमारी चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था में आखिर कौन सा पैबंद लगा है कि हर बार कुछ किराये के टट्टू गोला बारूद लादे टपक पड़ते हैं - और आंखों में धूल झोंक कर अपना काम कर जाते हैं.

इसे भी पढ़ें: फिर हमारे जवान शहीद हो गए...लेकिन आखिर कब तक?

खबरों से पता चला है कि हमले में कश्मीर में लगे कर्फ्यू का भी रोल है. ढाई महीने से लगे कर्फ्यू कर्फ्यू ने जम्मू कश्मीर के लोगों को ही नहीं खुफिया विभाग को भी डिस्कनेक्ट कर दिया है. कर्फ्यू के चलते न तो इंफॉर्मर खुफिया अफसरों तक पहुंच पा रहे हैं और न ही खुफिया विभाग के लोग अपने सोर्स तक.

कानून से लेकर सिस्टम तक सब तो अंग्रेजों के जमाने का चल ही रहा है - ये खुफिया सूचनाएं क्या अब भी हम बाबा आदम के जमाने वाले तरीके से करते हैं. ये कौन...

चाहे जितनी बड़ी बड़ी बातें हों, होती रहेंगी. एक छोटी सी बात समझ में नहीं आ रही. हमारी सुरक्षा व्यवस्था में आखिर क्या खामी है कि महज चार हमलावरों से हम अपने जवानों की हिफाजत नहीं कर पाये?

हर हमले के बाद सुनते हैं - हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे. अरे, पत्थर से जवाब देने से रोका किसने है - पर ये कोई बताएगा कि ईंट से बचने के अब तक क्या उपाय किये गये हैं. पत्थर की बात तो बाद में आएगी - पहले कोई ये तो बताये कि ईंट को काउंटर करने के लायक क्यों नहीं हैं?

जिम्मेदार कौन?

ऐसी शहादत भी देनी पड़ेगी, उरी में तैनात जवानों ने कभी सोचा भी न होगा.घर बार छोड़ कर हजारों किलोमीटर दूर वे तो हर पल सीने पर गोली खाने को तैयार थे. चौकस निगाहों से अलर्ट ड्यूटी की थकान मिटाने के लिए वे तो पल भर की झपकी लेने गये थे - और उठने से पहले ही उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया.

ऐसा क्यों लगता है कि हमने अपने जवानों को मौत के मुहं में धकेल दिया. हमारी चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था में आखिर कौन सा पैबंद लगा है कि हर बार कुछ किराये के टट्टू गोला बारूद लादे टपक पड़ते हैं - और आंखों में धूल झोंक कर अपना काम कर जाते हैं.

इसे भी पढ़ें: फिर हमारे जवान शहीद हो गए...लेकिन आखिर कब तक?

खबरों से पता चला है कि हमले में कश्मीर में लगे कर्फ्यू का भी रोल है. ढाई महीने से लगे कर्फ्यू कर्फ्यू ने जम्मू कश्मीर के लोगों को ही नहीं खुफिया विभाग को भी डिस्कनेक्ट कर दिया है. कर्फ्यू के चलते न तो इंफॉर्मर खुफिया अफसरों तक पहुंच पा रहे हैं और न ही खुफिया विभाग के लोग अपने सोर्स तक.

कानून से लेकर सिस्टम तक सब तो अंग्रेजों के जमाने का चल ही रहा है - ये खुफिया सूचनाएं क्या अब भी हम बाबा आदम के जमाने वाले तरीके से करते हैं. ये कौन सा डिजिटल इंडिया है कि इंटेलिजेंस के कामों में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की बजाए इंफॉर्मर के पैदल आने का इंतजार करते हैं. माना कि फोन बंद हैं, इंटरनेट बंद है - तो क्या खुफियाकर्मी छुट्टी मना रहे हैं?

आखिर कब तक?

आखिर जवानों की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई? क्या किसी हाई लेवल मीटिंग में इन बातों पर भी चर्चा होती है या बस यही तय होता है कि उठ कर जाने के बाद कौन क्या ट्वीट करेगा और टीवी पर क्या बाइट देगा?

क्या आतंकी वाकई इतने स्मार्ट हैं कि किसी को भनक तक नहीं लग रही या हमने भेदिये पाल रखे हैं.

कौन बख्शा नहीं जाएगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा? रूस और अमेरिका की यात्रा रद्द करने के साथ ही राजनाथ सिंह कह रहे हैं कि पाकिस्तान को अलग थलग करना पड़ेगा.

अब तो ये बयान दिलासा भर से ज्यादा नहीं लगते. जो दोषी-मोहरे थे वे मार गिराए गये या एक ने खुद को ही उड़ा लिया. जो सरहद पार बैठे उनके आका हैं वे कभी हाथ नहीं आने वाले. हमे साफ तौर पर समझ लेना चाहिये कि हर बार कोई कसाब हाथ लग पाएगा, कतई जरूरी नहीं.

मुंबई हमले को लेकर पाकिस्तान को इतने सबूत सौंपे गये होंगे जिन्हें अब गिनना भी मुश्किल हो रहा है. पठानकोट अटैक को लेकर भी रस्म अदायगी पूरी हो चुकी है. फिर कौन से दोषी बख्शे नहीं जाएंगे?

इसे भी पढ़ें: पाकिस्तान क्यों हमेशा परमाणु हमले की धमकी देता है?

क्या वो मसूद अजहर जो खुलेआम राजनाथ सिंह को चुनौती देता है? या पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जो खुलेआम आग उगल रहे हैं - 'कश्मीरी नौजवानों ने लड़ाई में जान डाल दी.' या पाक रक्षा मंत्री जो परमाणु बम के इस्तेमाल की धमकी दे रहे हैं या आर्मी चीफ राहिल शरीफ जो कहते फिर रहे हैं हमने चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं.

आखिर हम कौन से सर्जिकल ऑपरेशन की बात करते हैं? क्या वैसा सर्जिकल ऑपरेशन जैसा ऐबटाबाद में अमेरिका ने किया था? क्या वैसा सर्जिकल ऑपरेशन जैसा म्यांमार में कथिक आतंकी ठिकानों पर हुआ था? हम किस बूते हम सर्जिकल ऑपरेशन की बात सोचें - जब हम अपने जवानों को कुछ देर चैन की नींद सोने भी नहीं दे सकते. म्यांमार वाली बात तो याद ही होगी. पहले ढोल पीट पीट कर बताया और जब उधर से खंडन आ गया तो लीपापोती होने लगी.

अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर बस यात्रा की तो नरेंद्र मोदी ने बगैर कार्यक्रम बनाये नवाज को पहुंच कर बधाई धी. वाजपेयी को कारगिल का तोहफा मिला तो मोदी को पठानकोट का. बुधवार के चलते ही सही, हरी साड़ी पहनकर सुषमा भी पाकिस्तान गयी थीं - और ज्यादा दिन नहीं राजनाथ सिंह भी बगैर लंच किये लौट आये. बताया भी - बेइज्जती को बताने में संकोच हो रहा है.

बीजेपी के एक नेता दांत के बदले जबड़ा निकालने की बात कर रहे हैं. आखिर आपके दांत इतने खट्टे क्यों पड़ गये. आखिर कौन सा सेंसोडाइन लगाते हैं साहब? अगर पतंजलि वाले का असर न हो रहा हो तो इम्पोर्ट ही कर लीजिए लेकिन बगैर दांत के गिदड़भभकी से कब तक काम चलाएंगे.

न तो कारगिल के लिए पीठ में छुरा भोंकने की बात करने से कुछ होगा - और न पठानकोट को लेकर छाती पीटने से. सर्जिकल ऑपरेशन से भी पहले जरूरी है कि हम सुरक्षा इंतजामों को पुख्ता करें - ताकि हकीकत में कोई परिंदा भी पर न मार पाये.

आपने तो सुना ही होगा, PMO के मंत्री जितेंद्र सिंह कह रहे हैं बयान भी कार्रवाई का हिस्सा होता है? फिर फिक्र किस बात की? ऐसी कार्रवाई करने में हमारा कौन सानी होगा?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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