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संघ का मेरठ समागम क्या 2019 के लोकसभा चुनाव का रोडमैप तैयार करना है!

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 28 फरवरी, 2018 07:24 PM
  • 28 फरवरी, 2018 07:23 PM
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सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर संघ का यह समागम मेरठ में ही क्यों आयोजित किया गया? क्या पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा का जनाधार कम होता जा रहा है? क्या इस इलाके में दलित-मुस्लिम गठबंधन भाजपा का नींद उड़ा रखी है?

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा स्वयं सेवक समागम 'राष्ट्रोदय समागम' मेरठ में हुआ. वैसे तो संघ अपनी स्थापना 1925 से लेकर अभी तक कई ऐतिहासिक कार्यक्रम किए हैं, लेकिन यह राष्ट्रोदय समागम को सबसे बड़े आयोजनों में माना जा रहा है. इससे पहले संघ मथुरा में भी एक महा समागम कर चुका है लेकिन वहां केवल संघ के पदाधिकारियों और भाजपा से जुड़े बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया था. अब मेरठ के समागम में करीब चार लाख आम स्वयंसेवक भी शामिल हुए.

सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर संघ का यह समागम मेरठ में ही क्यों आयोजित किया गया? क्या पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा का जनाधार कम होता जा रहा है? क्या इस इलाके में दलित-मुस्लिम गठबंधन भाजपा का नींद उड़ा रखी है?

मेरठ क्यों महत्वपूर्ण:

मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाका है और ये इलाका पहले भी काफी संवेदनशील रहा है- चाहे वो कासगंज की हिंसा हो, सहारनपुर की घटना या फिर मुजफ्फरनगर का दंगा. सहारनपुर की घटना के बाद दलित समुदाय के भीतर भाजपा के प्रति नाराज़गी बढ़ी है. ऐसे में संघ का कोशिश है हिन्दू समाज को एकजुट करना जिससे आने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा को फायदा मिले. वैसे भी 2014 के लोकसभा चुनावों में मुजफ्फरनगर के दंगों के कारण ध्रुवीकरण का फायदा इसे मिला था और इस क्षेत्र में भाजपा ने क्लीन स्वीप की थी.

ऐसा देखा गया है कि जो भी पार्टी उत्तर प्रदेश के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करती है उसका केंद्र में सरकार बनाना लगभग तय होता है. पिछले लोकसभा के चुनावों में भी यही हुआ था जब भाजपा यहां 80 में से 73 सीटें जीती थी और केंद्र में उसकी सरकार बनी थी. यही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को इस क्षेत्र से सबसे ज़्यादा यानि 77 सीटों पर जीत हासिल हुई...

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा स्वयं सेवक समागम 'राष्ट्रोदय समागम' मेरठ में हुआ. वैसे तो संघ अपनी स्थापना 1925 से लेकर अभी तक कई ऐतिहासिक कार्यक्रम किए हैं, लेकिन यह राष्ट्रोदय समागम को सबसे बड़े आयोजनों में माना जा रहा है. इससे पहले संघ मथुरा में भी एक महा समागम कर चुका है लेकिन वहां केवल संघ के पदाधिकारियों और भाजपा से जुड़े बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया था. अब मेरठ के समागम में करीब चार लाख आम स्वयंसेवक भी शामिल हुए.

सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर संघ का यह समागम मेरठ में ही क्यों आयोजित किया गया? क्या पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा का जनाधार कम होता जा रहा है? क्या इस इलाके में दलित-मुस्लिम गठबंधन भाजपा का नींद उड़ा रखी है?

मेरठ क्यों महत्वपूर्ण:

मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाका है और ये इलाका पहले भी काफी संवेदनशील रहा है- चाहे वो कासगंज की हिंसा हो, सहारनपुर की घटना या फिर मुजफ्फरनगर का दंगा. सहारनपुर की घटना के बाद दलित समुदाय के भीतर भाजपा के प्रति नाराज़गी बढ़ी है. ऐसे में संघ का कोशिश है हिन्दू समाज को एकजुट करना जिससे आने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा को फायदा मिले. वैसे भी 2014 के लोकसभा चुनावों में मुजफ्फरनगर के दंगों के कारण ध्रुवीकरण का फायदा इसे मिला था और इस क्षेत्र में भाजपा ने क्लीन स्वीप की थी.

ऐसा देखा गया है कि जो भी पार्टी उत्तर प्रदेश के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करती है उसका केंद्र में सरकार बनाना लगभग तय होता है. पिछले लोकसभा के चुनावों में भी यही हुआ था जब भाजपा यहां 80 में से 73 सीटें जीती थी और केंद्र में उसकी सरकार बनी थी. यही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को इस क्षेत्र से सबसे ज़्यादा यानि 77 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

दलितों को साधने का प्रयास:

पिछले साल मई में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में ठाकुर और दलितों के बीच जमकर बवाल और हिंसा हुई थी और भाजपा से दलितों का मोह भंग होता जा रहा था. ऐसे में संघ के समागम के जरिए जातीय भेद मिटाने की पूरी कोशिश है. इसी हिंसा के बाद दलितों पर अत्याचार की बात कहकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.

पिछले साल के आखिर में हुए नगर निगम के चुनावों में भी दलित-मुस्लिम गठजोड़ के कारण मेरठ और अलीगढ़ के मेयर की सीट भाजपा को मज़बूत उमीदवार के बावजूद गंवानी पड़ी थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित और मुस्लिम की जनसंख्या करीब 45 प्रतिशत है. इस हार के बाद से ही भाजपा में बेचैनी थी और 2019 के लोकसभा चुनावों में इससे पार पाने के लिए इससे अच्छा मंच नहीं हो सकता था.

कहा जा सकता है कि इस भव्य समागम के द्वारा संघ का मक़सद जातीय समीकरणों को जोड़ना है और मोदी सरकार के सत्ता में दोबारा वापसी के रास्ते को साफ़ करना है. हालाँकि अपने इस प्रयास में संघ कितना सफल हो पाएगा कहना थोड़ा जल्दबाजी होगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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