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बुंदेलखंड पर इंद्र मेहरबान, अब राजनीति का क्या होगा

    • अनूप श्रीवास्तव
    • Updated: 19 जुलाई, 2016 09:07 PM
  • 19 जुलाई, 2016 09:07 PM
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एक दशक लंबे सूखे के बाद मानसून ने मजबूती के साथ बुंदेलखंड इलाके पर दस्तक दी है. आगामी चुनावों में इस मानसून का सीधा असर देखने को मिलेगा जब क्षेत्र के सूखे का मुद्दा बेमानी हो चुका होगा.

कल तक भयानक सूखे के चपेट में रहे उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में लोग घांस कि रोटियां खाने को मजबूर थे. इस साल इंद्र देवता बुंदेलखंड पर मेहरबान हो गए और नतीजा इलाके के सभी तालाब, कुंए और गड्ढे पानी से लबालब भरे हैं और सूखी पड़ी नदियां उफान पर हैं.

एक दशक से लंबे अंतराल के बाद इलाके में हो रही जोरदार बारिश से किसानों के चेहरे पर चमक देखी जा रही है. जुलाई में ही सूखे पड़े खेत तालाब बन चुके हैं, डैम और बंधे छमता पर पहुंच गए हैं और कभी पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते लोगों को चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई दे रहा है.

इसे भी पढ़ें: जानें 10 साल में डेढ़ लाख किसानों ने क्यों की खुदकुशी

बुंदेलखंड के किसानो का कहना है कि उनके क्षेत्र में 12 साल बाद बाढ़ के आसार दिखाई दे रहे हैं. सभी नदियों में जलस्तर खतरे के निशान पर है और बांधों के टूटने का खतरा लगातार बना हुआ है.

 बुंदेलखंड में भारी बारिश

मानसून की इस मेहरबानी से सूबे की सरकार भी बेहद खुश है. साल दर साल सूखे की मार झेलने वाले बुंदेलखंड से राज्य की राजनीति गर्म हो जाती थी. चुनाव विधानसभा के लिए हों या फिर लोकसभा के लिए, राजनीतिक दलों से सवाल एक ही रहता था कि वह बुंदेलखंड को ऐसी दूर्दशा से बचाने के लिए क्या करेंगे.

गौरतलब है कि बीते साल क्षेत्र की दूर्दशा को देखते हुए सूबे की अखिलेश सरकार ने इलाके के सातों जिले में तीन सौ करोड़ की लागत से 100 तालाब खुदवा दिए थे. ये तालाब आज बारिश के पानी से लबालब भरे...

कल तक भयानक सूखे के चपेट में रहे उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में लोग घांस कि रोटियां खाने को मजबूर थे. इस साल इंद्र देवता बुंदेलखंड पर मेहरबान हो गए और नतीजा इलाके के सभी तालाब, कुंए और गड्ढे पानी से लबालब भरे हैं और सूखी पड़ी नदियां उफान पर हैं.

एक दशक से लंबे अंतराल के बाद इलाके में हो रही जोरदार बारिश से किसानों के चेहरे पर चमक देखी जा रही है. जुलाई में ही सूखे पड़े खेत तालाब बन चुके हैं, डैम और बंधे छमता पर पहुंच गए हैं और कभी पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते लोगों को चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई दे रहा है.

इसे भी पढ़ें: जानें 10 साल में डेढ़ लाख किसानों ने क्यों की खुदकुशी

बुंदेलखंड के किसानो का कहना है कि उनके क्षेत्र में 12 साल बाद बाढ़ के आसार दिखाई दे रहे हैं. सभी नदियों में जलस्तर खतरे के निशान पर है और बांधों के टूटने का खतरा लगातार बना हुआ है.

 बुंदेलखंड में भारी बारिश

मानसून की इस मेहरबानी से सूबे की सरकार भी बेहद खुश है. साल दर साल सूखे की मार झेलने वाले बुंदेलखंड से राज्य की राजनीति गर्म हो जाती थी. चुनाव विधानसभा के लिए हों या फिर लोकसभा के लिए, राजनीतिक दलों से सवाल एक ही रहता था कि वह बुंदेलखंड को ऐसी दूर्दशा से बचाने के लिए क्या करेंगे.

गौरतलब है कि बीते साल क्षेत्र की दूर्दशा को देखते हुए सूबे की अखिलेश सरकार ने इलाके के सातों जिले में तीन सौ करोड़ की लागत से 100 तालाब खुदवा दिए थे. ये तालाब आज बारिश के पानी से लबालब भरे हुए हैं और अखिलेश सरकार को अपने किए काम पर फख्र के साथ-साथ इलाके से आगामी चुनावों के लिए बड़ी उम्मीद भी बंध गई है.

बुन्देलखण्ड सूखे और तबाही के चलते इस इलाके के हर जिले से लाखों लोग रोजगार कि तलाश में महानगरों कि तरफ पलायन कर गये थे. बस्ती दर बस्ती खाली हो गयी थी. लेकिन अब अच्छी बारिश की शुरुआत के बाद से ही पलायन कर आसपास के इलाकों में गए लोगों का वापस आने का सिलसिला शुरू हो गया है. बुन्देलखण्ड इलाके कि प्रमुख नदियां यमुना, बेतवा, केन, मंदाकनी, और चंद्रावल साहित सभी बाकी नदियों का जल स्तर बढ़ा हुआ है. पुलिस प्रशासन संभावित बाढ़ से निपटने के लिये तैयार है.

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अकेले बुंदेलखंड के बांदा में जुलाई के महीने में ही 550 मिलीमीटर से ज़्यादा बारिश रिकॉर्ड की जा चुकी है. सूखे के बजाय अब चारों तरफ हरियाली है और अच्छी फसल की उम्मीद पर किसानों के चेहरे पर चमक देखने को मिल रही है. कृषि वैज्ञानिक भी अच्छे संकेत दे रहे हैं. बुंदेलखंड के सन्दर्भ में वह बीते कई सालों में इसे एक परफेक्ट बारिश मान रहे हैं. लगातार गिरते भूगर्भ जल को उपर लाने में यह बारिश वरदान साबित हो सकती है.

अब ऐसी स्थिति में इतना साफ है कि आगामी चुनावों से पहले बुंदेलखंड इलाके की राजनीति पलट चुकी है. इस बार चुनावों से पहले राजनातिक दलों को यहां गरीबी, भुखमरी, सूखा जैसे मुद्दों पर राजनीति करने का मौका नहीं मिलेगा. अलबत्ता मानसून का तेवर यूं ही जारी रहा तो बुंदेलखंड दशकों बाद बाढ़ की चपेट में आ सकता है. लिहाजा राजनीति फिर या तो बाढ़ राहत पर होगी नहीं तो विकास, शिक्षा, रोजगार जैसे मुद्दे वापस मुख्यधारा में आ जाएंगे.

 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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