ठेट गंवई नजर आने वाली महिलाओं को पिंचिस, पेचकस और पाने (लोहे के बोल्ट खोलने का उपकरण) से हैंडपंप को सुधारते देखकर कुछ अजीब लगता है, क्योंकि बुंदेलखंड में इस तरह के नजारे आम नहीं हैं. घरेलू महिलाओं के इस बदले अंदाज ने उन्हें नई पहचान दिला दी है और वे अब 'हैंडपंप वाली बाई' के नाम से पुकारी जाने लगी हैं.
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में फैले बुंदेलखंड की पहचान कम वर्षा और सूखाग्रस्त इलाके की शक्ल में होती है, यहां खुशहाल जिंदगी में सबसे बड़ी बाधा पानी की कमी है. सरकारी स्तर पर इस इलाके को पानीदार बनाने की कई योजनाएं बनी, सरकारों ने दावे भी खूब किए और साढ़े सात हजार करोड़ का विशेष पैकेज भी आया मगर हालात जस के तस ही रहे. यहां के लोगों को भले ही इस पैकेज से कुछ न मिला हो, मगर कई लोगों के वारे-न्यारे जरूर हो गए हैं. यही कारण है कि कई लोग सरकारों की तरफ ताकने की बजाय अपने स्तर पर पानी बचाने के लिए तरह-तरह के जतन करने में पीछे नहीं रहते.
मध्य प्रदेश का एक जिला है छतरपुर, बुंदेलखंड इलाके के इस जिले की पानी की समस्या ठीक वैसी ही है, जैसी अन्य जिलों की है. वर्ष 1994 के गजेटियर के अनुसार, इस जिले के उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 1971 से 1983 के बीच औसत वार्षिक वर्षा 982 मिलीमीटर थी, अब तो यह आंकड़ा उससे भी नीचे जा चुका है. छतरपुर जिले का छोटा-सा गांव है झिरिया झोर, इस गांव में पिछड़े, अनुसूचित जनजातीय और अनुसूचित जाति के परिवार बहुतायत में हैं. गांव तक जाने की पक्की सड़क है, मगर विपरीत हालात से लड़ने का महिलाओं में गजब का जज्बा है. यही कारण है कि कभी घर से बाहर निकलने से हिचकने वाली महिलाएं हैंडपंप मैकेनिक बन गई हैं. इस गांव में तीन हैंडपंप हैं, वे जब बिगड़ते हैं तो यहां की महिलाएं सरकारी अमले का इंतजार नहीं करतीं, बल्कि खुद उसे सुधारने में जुट जाती हैं. यही कारण है कि भरी गर्मी में कोई हैंडपंप खराब नहीं है और सभी पानी उगल रहे हैं. इस गांव में पानी संरक्षित करने और बचाने की जिम्मेदारी महिलाएं संभाले हुए हैं. पानी पंचायत में महिलाओं का बोलबाला है.
ठेट गंवई नजर आने वाली महिलाओं को पिंचिस, पेचकस और पाने (लोहे के बोल्ट खोलने का उपकरण) से हैंडपंप को सुधारते देखकर कुछ अजीब लगता है, क्योंकि बुंदेलखंड में इस तरह के नजारे आम नहीं हैं. घरेलू महिलाओं के इस बदले अंदाज ने उन्हें नई पहचान दिला दी है और वे अब 'हैंडपंप वाली बाई' के नाम से पुकारी जाने लगी हैं.
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में फैले बुंदेलखंड की पहचान कम वर्षा और सूखाग्रस्त इलाके की शक्ल में होती है, यहां खुशहाल जिंदगी में सबसे बड़ी बाधा पानी की कमी है. सरकारी स्तर पर इस इलाके को पानीदार बनाने की कई योजनाएं बनी, सरकारों ने दावे भी खूब किए और साढ़े सात हजार करोड़ का विशेष पैकेज भी आया मगर हालात जस के तस ही रहे. यहां के लोगों को भले ही इस पैकेज से कुछ न मिला हो, मगर कई लोगों के वारे-न्यारे जरूर हो गए हैं. यही कारण है कि कई लोग सरकारों की तरफ ताकने की बजाय अपने स्तर पर पानी बचाने के लिए तरह-तरह के जतन करने में पीछे नहीं रहते.
मध्य प्रदेश का एक जिला है छतरपुर, बुंदेलखंड इलाके के इस जिले की पानी की समस्या ठीक वैसी ही है, जैसी अन्य जिलों की है. वर्ष 1994 के गजेटियर के अनुसार, इस जिले के उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 1971 से 1983 के बीच औसत वार्षिक वर्षा 982 मिलीमीटर थी, अब तो यह आंकड़ा उससे भी नीचे जा चुका है. छतरपुर जिले का छोटा-सा गांव है झिरिया झोर, इस गांव में पिछड़े, अनुसूचित जनजातीय और अनुसूचित जाति के परिवार बहुतायत में हैं. गांव तक जाने की पक्की सड़क है, मगर विपरीत हालात से लड़ने का महिलाओं में गजब का जज्बा है. यही कारण है कि कभी घर से बाहर निकलने से हिचकने वाली महिलाएं हैंडपंप मैकेनिक बन गई हैं. इस गांव में तीन हैंडपंप हैं, वे जब बिगड़ते हैं तो यहां की महिलाएं सरकारी अमले का इंतजार नहीं करतीं, बल्कि खुद उसे सुधारने में जुट जाती हैं. यही कारण है कि भरी गर्मी में कोई हैंडपंप खराब नहीं है और सभी पानी उगल रहे हैं. इस गांव में पानी संरक्षित करने और बचाने की जिम्मेदारी महिलाएं संभाले हुए हैं. पानी पंचायत में महिलाओं का बोलबाला है.
एक गांव में हैंडपंप की मरम्मत करती महिलाएं. |
पानी पंचायत की अध्यक्ष पुनिया बाई आदिवासी कहती हैं कि बीते चार वर्षो की कोशिशों से पानी का जलस्तर बढ़ा है. इसके लिए महिलाओं ने पहले मेड़ बंधान किया, चेकडैम बनाया, पानी रुका तो खेती हुई और अब जलस्रोतों का जलस्तर बढ़ गया है. पुनिया बाई आगे कहती हैं कि गांव में लगे हैंडपंप बिगड़ जाते थे तो वे परेशान हो जाती थीं, क्योंकि सरकारी अमला सुनता नहीं था, जब उसकी कृपा हो गई तो हैंडपंप सुधर जाते थे. इस स्थिति में महिलाओं को परमार्थ समाज सेवा समिति ने हैंडपंप सुधारने का प्रशिक्षण दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि गांव की महिलाएं आज दक्ष मैकेनिक बन गई हैं. पानी पंचायत की सचिव सीमा विश्वकर्मा गांव के बदलते हालात और सोच की चर्चा करते हुए कहती हैं कि गांव की महिलाएं पहले घर से बाहर नहीं निकल पाती थीं, मगर अब ऐसा नहीं है. महिलाएं पानी के लिए एकजुट हो गई हैं और तस्वीर बदल गई है. एक तरफ पानी को संरक्षित किया जाता है, तो बर्बादी को रोका गया. इतना ही नहीं, महिलाएं हैंडपंप सुधार रही हैं, वे यह काम सिर्फ गांव में ही नहीं आसपास के गांव में भी जाकर करने लगी हैं. कल्लो बाई कहती हैं कि गांव की महिलाएं बदल गई हैं, उनमें अपने हक के प्रति लड़ने में हिचक नहीं रही, अब महिलाएं अपना काम कराने के लिए विकास खंड मुख्यालय तक जाने से नहीं हिचकती. वहां के अफसरों के पीछे पड़ जाती हैं और आखिर में अफसरों को उनकी बात सुननी पड़ती है. पहले तो पति भी रोका-टोकी करते थे मगर अब ऐसा नहीं करते हैं, कई महिलाओं को घर से समर्थन तक मिलने लगा है.
बुंदेलखंड की महिलाओं में आ रहे बदलाव को राज्य की अपर मुख्य सचिव (एडीशनल चीफ सेक्रेट्री) अरुणा शर्मा सुखद मानती हैं. उनका कहना है कि तकनीक सीखने के लिए पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं है. वे महिलाएं पढ़ी-लिखी भले न हों, मगर प्रशिक्षण ने उन्हें हैंडपंप सुधारने में दक्ष कर दिया है. सरकार की कोशिश है कि महिलाओं को तकनीकी प्रशिक्षण देकर सक्षम और दक्ष बनाया जाए. इतिहास इस बात का गवाह है कि बुंदेलखंड की महिलाओं ने कभी हालात से हार नहीं मानी है, चाहे आजादी की लड़ाई रही हो या समाज में कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष का दौर, हर समय महिलाओं ने लोहा मनवाया है. अब पानी के संकट से जूझते इस इलाके की महिलाओं ने पानी को बचाने और सभी को पानी उपलब्ध कराने की मुहिम छेड़ी है, जो कारगर होती भी नजर आने लगी है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.