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सियासत

यूपी की राजनीति में नए 'पप्पू' के निर्माण का युग शुरू

    • योगेश मिश्रा
    • Updated: 08 अक्टूबर, 2020 02:47 PM
  • 08 अक्टूबर, 2020 02:47 PM
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हाथरस (Hathras) में दलित लड़की के साथ हुए कथित गैंगरेप के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया है. इसी बीच यूपी की सियासत से जुड़े नेताओं की जो तस्वीर निकल कर सामने आई है, उसे देखकर कहा जा सकता है कि संवेदनाओं की कसौटी पर ये नेता अभी कच्चे ही हैं.

हाथरस मामले (Hathras Gangrape Case) ने नेताओं और पत्रकारिता की छवि नए सिरे से गढ़ी है. एक ड्रग एडिक्ट अभिनेता की आत्महत्या को राष्ट्रीय मुद्दा बना रही कथित पत्रकारिता ने लोगों को बहुत मौके दिए. इस चक्कर में कई औने पौने लोग भी पत्रकारों पर कीचड़ उछालने लगे. हाथरस मामले में रिपोर्टरों ने कई मायनों में उस कीचड़ को धुलने का काम किया है. ध्यान रहे कि इस रिपोर्टिंग में एक बड़ा हिस्सा वो भी है, जब पत्रकारों ने रात में गांव पहुंच कर पुलिस के उस चेहरे को उजागर किया, जो लगभग हर घटना के बाद सामने आ ही जाता है. कुछ फर्जी लोगों के चलते पुलिस इस पेशे को सिर्फ चालान छुड़ाने और कमीशन खोरी के रूप में जानने लगी थी. पिछले दिनों जब फील्ड पर जूते घिसने वाले पत्रकारों से सामना हुआ तो पुलिस (Police) से लेकर प्रशासन सब अनुत्तरित रह गए. एक पत्रकार के सामने पुलिस सिर्फ एक विभाग है जो हर संबंधित घटना के लिए जवाबदेह है, बस. नेताओं की छवि भी बदली है. राजनीति के 'कपूर खानदान' के 'रणबीर कपूर' (Ranbir Kapoor) ने आखिर अपनी 'रॉकस्टार' वाली परफॉर्मेंस दे दी. देश जिस की खिल्ली उड़ाता था, जिस पर चुटकुले बनाए जाते थे, खुले मंच से जिसके पिता और दादी की मौत का मज़ाक बनाया गया, जिसकी मां को 'बार बाला' बताया गया, जिसने हार देखी वो भी लगातार और उसे स्वीकार किया, किसी भी इंसान के कॉन्फिडेंस की धज्जियां उड़ाने के लिए इतना काफी होता है, डिप्रेशन जैसे चर्चित शब्द इन्हीं हालातों से निकलते हैं, ऐसे में वो शख़्स अपनी बहन प्रियंका (Priyanka Gandhi) के साथ हाथरस पहुंचा, पुलिस से संघर्ष किया और पीड़ित परिवार से मुलाकात की.

हाथरस में जो हुआ उसके बाद हमें यूपी की राजनीति और इस राजनीति को करने वाले नेताओं की झलक मिल गई है

इस घटना में राहुल गांधी को तारीफ इसलिए मिली क्योंकि...

हाथरस मामले (Hathras Gangrape Case) ने नेताओं और पत्रकारिता की छवि नए सिरे से गढ़ी है. एक ड्रग एडिक्ट अभिनेता की आत्महत्या को राष्ट्रीय मुद्दा बना रही कथित पत्रकारिता ने लोगों को बहुत मौके दिए. इस चक्कर में कई औने पौने लोग भी पत्रकारों पर कीचड़ उछालने लगे. हाथरस मामले में रिपोर्टरों ने कई मायनों में उस कीचड़ को धुलने का काम किया है. ध्यान रहे कि इस रिपोर्टिंग में एक बड़ा हिस्सा वो भी है, जब पत्रकारों ने रात में गांव पहुंच कर पुलिस के उस चेहरे को उजागर किया, जो लगभग हर घटना के बाद सामने आ ही जाता है. कुछ फर्जी लोगों के चलते पुलिस इस पेशे को सिर्फ चालान छुड़ाने और कमीशन खोरी के रूप में जानने लगी थी. पिछले दिनों जब फील्ड पर जूते घिसने वाले पत्रकारों से सामना हुआ तो पुलिस (Police) से लेकर प्रशासन सब अनुत्तरित रह गए. एक पत्रकार के सामने पुलिस सिर्फ एक विभाग है जो हर संबंधित घटना के लिए जवाबदेह है, बस. नेताओं की छवि भी बदली है. राजनीति के 'कपूर खानदान' के 'रणबीर कपूर' (Ranbir Kapoor) ने आखिर अपनी 'रॉकस्टार' वाली परफॉर्मेंस दे दी. देश जिस की खिल्ली उड़ाता था, जिस पर चुटकुले बनाए जाते थे, खुले मंच से जिसके पिता और दादी की मौत का मज़ाक बनाया गया, जिसकी मां को 'बार बाला' बताया गया, जिसने हार देखी वो भी लगातार और उसे स्वीकार किया, किसी भी इंसान के कॉन्फिडेंस की धज्जियां उड़ाने के लिए इतना काफी होता है, डिप्रेशन जैसे चर्चित शब्द इन्हीं हालातों से निकलते हैं, ऐसे में वो शख़्स अपनी बहन प्रियंका (Priyanka Gandhi) के साथ हाथरस पहुंचा, पुलिस से संघर्ष किया और पीड़ित परिवार से मुलाकात की.

हाथरस में जो हुआ उसके बाद हमें यूपी की राजनीति और इस राजनीति को करने वाले नेताओं की झलक मिल गई है

इस घटना में राहुल गांधी को तारीफ इसलिए मिली क्योंकि किसी और दल का कोई नेता तब तक वहां नहीं गया था, चाहें उनसे बड़ा हो या छोटा और वो खुद 6 साल में पहली बार सड़कों पर नजर आए. राहुल और प्रियंका अपने कार्यकर्ताओं के साथ अकेले जूझे, बुरे वक़्त में जरूरतमंद का हाथ थामा और महफ़िल लूट ली. उनका ऐसा करना सराहनीय है पर इसका महिमामंडन नहीं होना चाहिए. वो विपक्ष हैं उनसे इसी बात की उम्मीद की जाती है और उनका ये काम है. महिमामंडन से खतरा है कहीं वो इसे 'अब बस' न समझ लें.

योगी आदित्यनाथ की उनके कार्यकाल में जो छवि बनी है उसके अनुसार, वो कानून व्यवस्था को लेकर बेहद सख्त और गंभीर मुख्यमंत्री हैं. किसी भी घटना के बाद वो कार्रवाई करने में देर नहीं लगाते. रातों रात पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अमले पर गाज गिर जाती है लेकिन उनका आवेश, उत्साह, जोश, संकल्प सब मेरे पिछले ऑफिस के संपादक की तरह, एक दम ताक्षणिक, पल भर का फिर एक दम फुस्स. एंटी रोमियो स्क्वाड से लेकर लखनऊ दंगे के दोषियों तक कुल कार्रवाई पुलिस अधिकारियों के ट्रांसफर और सस्पेंड से शुरू होती है और इसी पर खत्म.

हाथरस मामले की जांच तो अब सीबीआई के हाथों में है पर बलरामपुर, कानपुर, आजमगढ़ जैसे तमाम इलाकों की घटनाओं के लिए लोग कई विफलताओं के बाद अभी भी योगी आदित्यनाथ की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं. एक और नेता ने अपनी पुरानी छवि को ही और पक्की करने का काम किया. प्रधानमंत्री एक ओपन जीप पर वेव करते हुए अटल टनल का उद्घाटन कर रहे थे. उन्होंने 6 साल तो मज़ाक मज़ाक में काट ही दिए हैं, 4 और यही सब करते हुए निकाल देंगे. 'हर दिन एक इवेंट' वाले प्रधानमंत्री 6 सालों में शायद ही किसी दिन सीरियस हुए हों. कई मायनों में मुझे अमित शाह उनसे ज़्यादा योग्य लगते हैं.

इस घटना पर 'दलित की बेटी' मायावती की निष्क्रियता उनके राजनीतिक पतन का अंतिम चरण है. बिहार चुनाव में संभावनाएं तलाश रही बीएसपी आने वाले दिनों में मुट्ठी भर कार्यकर्ताओं को तरसेगी. मायावती को इस बात का अहसास होना चाहिए कि राजनीति में उनकी प्रासंगिकता इस हद तक खत्म हो चुकी है कि सरकार भी अब उन्हें विपक्ष नहीं मानती और न ही उन पर आरोप प्रत्यारोप लगाती है.

आखिर में सबसे महत्त्वपूर्ण नेता. समाजवाद के ठेकेदार, लाल टोपी, काले जूते और सफेद महलों वाले, विदेश में पढ़े और लॉटरी से मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव. उनके कार्यकर्ता हजरतगंज चौराहे पर बिछे हैं, एक महिला छात्र नेता के पैर में चोट है, कुछ कार्यकर्ता एक्सप्रेसवे पर पानी का गिलास लेकर जा रहे थे, ये देखने की पानी छलकता है या नहीं तो हाथरस रुक गए थोड़ी देर और नारेबाजी करने लगे, ये सब मूर्ख हैं. अपने नेता से कुछ सीखें, उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्ष होकर भी घर से नहीं निकले और दिल्ली से केंद्रीय विपक्ष को बुलाकर क्रांति करवा दी. इस पर भी उनके कार्यकर्ता 'जय समाजवाद जय अखिलेश' से नीचे बात नहीं करते.

हां, अगर सरकार ट्विटर बैन कर दे तो अभी विधानसभा के आगे 10 मिनट के लिए बैठ जाएंगे.

हाथरस मामले पर अखिलेश यादव की चुप्पी उनका कार्यकर्ताओं के साथ किया धोखा है. घर से ना निकलना, सड़कों पर कार्यकर्ताओं के साथ ना आना, हाथरस ना जाना उनका डर है, ना समझी है, कोरोना का खौफ है या धूप की चिंता, वही जानें पर वो राजनीति में अपनी एक नई पहचान ज़रूर गढ़ रहे हैं. ये युग है राजनीति में नए पप्पू के उदय का, नए पप्पू के निर्माण का, आइए इस युग का स्वागत करें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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