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राम मंदिर का चेन रिएक्शन शुरू... काशी के बाद मथुरा, उसके बाद कोई और!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 10 अप्रिल, 2021 03:50 PM
  • 10 अप्रिल, 2021 03:50 PM
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राम मंदिर आंदोलन के दौरान नारे लगाए जाते थे कि ये तो केवल झांकी है, मथुरा-काशी बाकी है. इन नारों में बात केवल काशी मथुरा की गई थी. लेकिन, उस दौर की नरसिम्हा राव सरकार ने दूरंदेशी दिखाई और प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 बनाया.

उत्तर प्रदेश के वाराणसी की एक अदालत ने काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) के पुरातात्विक सर्वेक्षण के आदेश दे दिए हैं. एएसआई (ASI) अब इस परिसर का सर्वेक्षण कर अदालत को रिपोर्ट सौंपेगा. जिसके बाद आगे की कार्यवाही होगी. अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम फैसला आने के बाद संभावना जताई जा रही थी कि काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में शाही ईदगाह (Shahi Eidgah) का मामला जोर पकड़ेगा. राम मंदिर पर फैसला आने के बाद भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी (Subramanian Swamy) ने कहा था कि श्रीराम मंदिर का फैसला आने के बाद लोग पूछ रहे हैं, काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि का क्या करेंगे. वैसे तो देश में बहुत मंदिर तोड़े गए, लेकिन काशी, मथुरा बन जाए, तो बाकी भूलने को तैयार हैं. सुब्रमण्यम स्वामी का ये बयान एक बानगी भर है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी आदित्यनाथ भी ताजमहल को मंदिर बताते थे. हालांकि, 2018 में योगी सरकार ने कोर्ट में कहा था कि ताजमहल मंदिर नहीं मकबरा है. इन तमाम बातों को कहने का संदर्भ केवल इतना है कि राम मंदिर का मामला खत्म होने के बाद भी हिंदुवादी संगठनों के लिए मंदिर कम नहीं पड़ेंगे, काशी के बाद मथुरा और उसके बाद किसी अन्य मंदिर की खोज कर ली जाएगी.

राम मंदिर आंदोलन के दौरान नारे लगाए जाते थे कि ये तो केवल झांकी है, मथुरा-काशी बाकी है. इन नारों में बात केवल काशी मथुरा की गई थी. लेकिन, उस दौर की नरसिम्हा राव सरकार ने दूरंदेशी दिखाई और प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 बनाया. नरसिम्हा राव सरकार को यकीन था कि अगर इसे रोका नहीं गया, तो यह देश के सैकड़ों धार्मिक स्थलों के लिए खतरा हो सकता है. 90 के दशक में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने राम मंदिर, काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि के मामले को तेजी से उठाना शुरू कर दिया था.

उत्तर प्रदेश के वाराणसी की एक अदालत ने काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) के पुरातात्विक सर्वेक्षण के आदेश दे दिए हैं. एएसआई (ASI) अब इस परिसर का सर्वेक्षण कर अदालत को रिपोर्ट सौंपेगा. जिसके बाद आगे की कार्यवाही होगी. अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम फैसला आने के बाद संभावना जताई जा रही थी कि काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में शाही ईदगाह (Shahi Eidgah) का मामला जोर पकड़ेगा. राम मंदिर पर फैसला आने के बाद भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी (Subramanian Swamy) ने कहा था कि श्रीराम मंदिर का फैसला आने के बाद लोग पूछ रहे हैं, काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि का क्या करेंगे. वैसे तो देश में बहुत मंदिर तोड़े गए, लेकिन काशी, मथुरा बन जाए, तो बाकी भूलने को तैयार हैं. सुब्रमण्यम स्वामी का ये बयान एक बानगी भर है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी आदित्यनाथ भी ताजमहल को मंदिर बताते थे. हालांकि, 2018 में योगी सरकार ने कोर्ट में कहा था कि ताजमहल मंदिर नहीं मकबरा है. इन तमाम बातों को कहने का संदर्भ केवल इतना है कि राम मंदिर का मामला खत्म होने के बाद भी हिंदुवादी संगठनों के लिए मंदिर कम नहीं पड़ेंगे, काशी के बाद मथुरा और उसके बाद किसी अन्य मंदिर की खोज कर ली जाएगी.

राम मंदिर आंदोलन के दौरान नारे लगाए जाते थे कि ये तो केवल झांकी है, मथुरा-काशी बाकी है. इन नारों में बात केवल काशी मथुरा की गई थी. लेकिन, उस दौर की नरसिम्हा राव सरकार ने दूरंदेशी दिखाई और प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 बनाया. नरसिम्हा राव सरकार को यकीन था कि अगर इसे रोका नहीं गया, तो यह देश के सैकड़ों धार्मिक स्थलों के लिए खतरा हो सकता है. 90 के दशक में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने राम मंदिर, काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि के मामले को तेजी से उठाना शुरू कर दिया था.

तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट बनाया था.

वीएचपी का दावा था कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं. वीएचपी की मांग थी कि इन स्थानों को हिंदुओं को वापस सौंपा जाए. इस दौरान ही तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट बनाया था. इस कानून के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी संप्रदाय के पूजा स्थल या धार्मिक ढांचे को किसी अन्य संप्रदाय के पूजा स्थल में बदलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इस कानून में अयोध्या में राम मंदिर के मामले को एक अपवाद के तौर पर छूट दी गई थी.

इसी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका को बीते मार्च महीने में स्वीकार भी कर लिया है. नरसिम्हा राव सरकार द्वारा बनाए गए इस कानून की वैधता को परखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को नोटिस भेजकर उसका पक्ष मांगा है. यह याचिका भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की थी. इस याचिका में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को खत्म करने की मांग करते हुए कहा गया है कि अन्य धर्मों के जिन-जिन पूजा और तीर्थस्थलों का विध्वंस करके उन पर इस्लामिक ढांचे बनाए गए हैं, उन्हें वापस उन धर्मावलंबियों को सौंपा जाए. याचिका में इस कानून को भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला बताया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका को बीते मार्च महीने में स्वीकार भी कर लिया है.

याचिका के अनुसार, भारत में साल 1192 में मुस्लिम शासन स्थापित हुआ और 1947 तक विदेशी शासन रहा. धार्मिक स्थलों के चरित्र को बरकरार रखने की कट ऑफ डेट साल 1192 होनी चाहिए. इस दौरान हिंदुओं, बौद्धों और जैनों के हजारों मंदिरों व तीर्थस्थलों का विध्वंस कर मुस्लिम शासकों ने उन्हें मस्जिदों में तब्दील कर दिया. याचिका में कानून की धारा 2, 3 और 4 को चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार के पास इस तरह का कानून बनाने का अधिकार नहीं है. भारत के संविधान में तीर्थस्थल और पब्लिक ऑर्डर राज्य का विषय है और यह संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची में शामिल है. केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर ये कानून बनाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मामले में फैसला देते हुए प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर अपने आदेश में लिखा था कि यह विधायी हस्तक्षेप, पीछे की ओर न लौटना धर्मनिरपेक्षता के हमारे मूल्यों की एक अनिवार्य विशेषता है, को बरकरार रखता है. हालांकि, अब इसी एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. कहना गलत नहीं होगा कि मथुरा और काशी को लेकर दायर की गई इन याचिकाओं से एक बार फिर राम मंदिर आंदोलन जैसा माहौल बनाने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं. राम मंदिर के फैसले से एक बड़ा विवाद हल जरूर हुआ है, लेकिन इसने हिंदूवादी संगठनों को अन्य मामले उठाने का मौका दे दिया है. प्लेसेज ऑफ वर्सिप एक्ट के खिलाफ याचिका इसका आधार कही जा सकती है.

इस बात की पूरी संभावना है कि अगर ज्ञानवापी मस्जिद का मामला हाईकोर्ट में जाता है, तो इस आदेश को खारिज किया जा सकता है. लेकिन, ऐसा नहीं होता है, तो सैकड़ों की संख्या में याचिकाएं सामने आ सकती हैं. मुस्लिम संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट से इस याचिका का भरपूर विरोध किया था. कहा जा सकता है कि गेंद अभी केंद्र की मोदी सरकार के पाले में है. इस कानून का भविष्य काफी हद तक केंद्र सरकार के जवाब पर निर्भर करता है. वहीं, केंद्र सरकार के जवाब पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या होगा, ये तय करेगा कि देश फिर से अतीत के पन्नों का खंगालेगा या फिर भविष्य के सपने बुनेगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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