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गुजरात चुनाव से राष्ट्रीय पार्टी बनने जा रही AAP के लिए आगे की राह क्या होगी?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 06 दिसम्बर, 2022 10:04 PM
  • 06 दिसम्बर, 2022 10:04 PM
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भले ही एग्जिट पोल (Exit Poll) के अनुमानों को लेकर आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) खुशी जता रही हो. लेकिन, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के एग्जिट पोल्स अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के लिए झटका ही कहे जाएंगे. क्योंकि, दावे तो सरकार बनाने के किए गए थे. खैर, 15-20 फीसदी वोट शेयर मिलने के अनुमान पर खुशी जताना बनता भी है. क्योंकि, यही आम आदमी पार्टी का लक्ष्य भी था.

गुजरात विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल्स को लेकर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल काफी खुश हैं. गुजरात चुनाव के एग्जिट पोल्स में 20 फीसदी वोट मिलने की संभावना को अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के लिए सकारात्मक बताया है. और, दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने यहां तक दावा कर दिया है कि 'नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गढ़ गुजरात को लेकर कहा जाता था कि उस किले को कोई भेद नहीं सकता. वहां आम आदमी पार्टी का 15-20 फीसदी वोट लाना लोकतंत्र के लिए सुखद संकेत है. आज आम आदमी पार्टी 10 साल के भीतर राष्ट्रीय पार्टी बन गई है. और, ये गुजरात के चुनाव से होगा.' 

एग्जिट पोल के अनुमानों और आम आदमी पार्टी के दावों से इतर गुजरात और हिमाचल प्रदेश के इन एग्जिट पोल्स को अरविंद केजरीवाल के लिए झटका ही कहा जाएगा. क्योंकि, अरविंद केजरीवाल समेत आम आदमी पार्टी के तमाम नेताओं ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने का दावा किया था. और, अब 15-20 फीसदी वोट शेयर मिलने पर ही खुशी जता रहे हैं. वैसे, आम आदमी पार्टी का खुश होना बनता भी है. क्योंकि, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में अरविंद केजरीवाल जीत से ज्यादा आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने पर ही जोर लगा रहे थे.

लिखी सी बात है कि गुजरात विधानसभा चुनाव में मिलने वाले संभावित 15-20 फीसदी मतों के दम पर आम आदमी पार्टी खुद को राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के मुकाबले पेश करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी. क्योंकि, दिल्ली, पंजाब और गोवा में पहले से ही AAP राज्य स्तरीय पार्टी बन चुकी है. गुजरात में दो विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करते ही इस वोट प्रतिशत के साथ अरविंद केजरीवाल अन्य राज्यों में भी दिल्ली मॉडल के साथ खुद को भाजपा का विकल्प बताने लगेंगे. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि गुजरात चुनाव से राष्ट्रीय पार्टी बनने जा रही AAP के लिए आगे की राह क्या...

गुजरात विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल्स को लेकर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल काफी खुश हैं. गुजरात चुनाव के एग्जिट पोल्स में 20 फीसदी वोट मिलने की संभावना को अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के लिए सकारात्मक बताया है. और, दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने यहां तक दावा कर दिया है कि 'नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गढ़ गुजरात को लेकर कहा जाता था कि उस किले को कोई भेद नहीं सकता. वहां आम आदमी पार्टी का 15-20 फीसदी वोट लाना लोकतंत्र के लिए सुखद संकेत है. आज आम आदमी पार्टी 10 साल के भीतर राष्ट्रीय पार्टी बन गई है. और, ये गुजरात के चुनाव से होगा.' 

एग्जिट पोल के अनुमानों और आम आदमी पार्टी के दावों से इतर गुजरात और हिमाचल प्रदेश के इन एग्जिट पोल्स को अरविंद केजरीवाल के लिए झटका ही कहा जाएगा. क्योंकि, अरविंद केजरीवाल समेत आम आदमी पार्टी के तमाम नेताओं ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने का दावा किया था. और, अब 15-20 फीसदी वोट शेयर मिलने पर ही खुशी जता रहे हैं. वैसे, आम आदमी पार्टी का खुश होना बनता भी है. क्योंकि, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में अरविंद केजरीवाल जीत से ज्यादा आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने पर ही जोर लगा रहे थे.

लिखी सी बात है कि गुजरात विधानसभा चुनाव में मिलने वाले संभावित 15-20 फीसदी मतों के दम पर आम आदमी पार्टी खुद को राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के मुकाबले पेश करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी. क्योंकि, दिल्ली, पंजाब और गोवा में पहले से ही AAP राज्य स्तरीय पार्टी बन चुकी है. गुजरात में दो विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करते ही इस वोट प्रतिशत के साथ अरविंद केजरीवाल अन्य राज्यों में भी दिल्ली मॉडल के साथ खुद को भाजपा का विकल्प बताने लगेंगे. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि गुजरात चुनाव से राष्ट्रीय पार्टी बनने जा रही AAP के लिए आगे की राह क्या होगी?

अरविंद केजरीवाल अब पीएम नरेंद्र मोदी के सामने सबसे बड़े विकल्प के तौर पर पेश किए जाएंगे.

कांग्रेस के वोट काटकर भाजपा का विकल्प कैसे बनेगी AAP?

इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया (India Today-axis my india) के एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी को 20 फीसदी वोट मिलने का अनुमान लगाया गया है. लेकिन, रोचक बात ये है कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने भाजपा को कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुंचाया है. बल्कि, आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध लगाई है. इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक AAP को मिले वोटों में से 16 फीसदी वोट कांग्रेस और महज 3 फीसदी वोट भाजपा का है. और, महज एक फीसदी नए मतदाताओं ने ही केजरीवाल पर भरोसा जताया है.

आसान शब्दों में कहें, तो भाजपा का विकल्प बनने का दावा कर रही आम आदमी पार्टी दिल्ली, पंजाब, गोवा जैसे राज्यों के बाद गुजरात में भी कांग्रेस का ही विकल्प बनी है. और, इस दौरान उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में मुंह की खा भी चुकी है. लेकिन, गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक आक्रामकता के साथ अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में बेहतर विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिशों में जुट जाएगी. लेकिन, सवाल जस का तस ही रहेगा कि कांग्रेस के वोट काटकर AAP भाजपा का विकल्प कैसे बनेगी?

2024 से पहले केजरीवाल की 'अग्निपरीक्षा' में भस्म होगी कांग्रेस

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 दिसंबर को आ जाएंगे. और, नतीजे एग्जिट पोल्स के अनुमानों के आस-पास ही होने की संभावना है. जिसके बाद आम आदमी पार्टी अन्य राज्यों में भी अपने विस्तार के बारे में सोचेगी. एक सियासी दल के सर्वेसर्वा के तौर पर अरविंद केजरीवाल की इस महत्वाकांक्षा को गलत नहीं कहा जा सकता है. लेकिन, 2024 से पहले जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. वहां अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का सियासी जनाधार नजर नहीं आता है. इसके बावजूद केजरीवाल इन चुनावी राज्यों में ताल ठोंकने जरूर जाएंगे.

देखा जाए, तो 2023 के शुरुआती महीनों में त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. उसके बाद मई में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजेगा. वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले का सबसे बड़ा लिटमस टेस्ट मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव से होगा. जो 2023 के नवंबर-दिसंबर में होने हैं. इन सभी राज्यो में आम आदमी पार्टी की उपस्थिति उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसी ही है. लेकिन, कांग्रेस के वोट काटकर राष्ट्रीय पार्टी बनी AAP यहां भी कांग्रेस के लिए मुसीबत बनने में कोई कोताही नहीं बरतेगी.

आसान शब्दों में कहें, तो केवल हिंदीभाषी राज्यों में ही आम आदमी पार्टी का विस्तार संभव है. तो, नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों के साथ ही कर्नाटक, तेलंगाना में केजरीवाल का जादू चलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. लेकिन, इन हिंदीभाषी राज्यों में भी अरविंद केजरीवाल के निशाने पर कांग्रेस के ही वोट रहेंगे. क्योंकि, इन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच द्विपक्षीय मुकाबला होता रहा है. लेकिन, अरविंद केजरीवाल के आ जाने से गुजरात विधानसभा चुनाव की तरह ही त्रिकोणीय मुकाबला होने से नुकसान भाजपा से ज्यादा नुकसान कांग्रेस का होगा. जिसका फायदा आम आदमी पार्टी को न मिलकर भाजपा को मिलेगा.

मनीष सिसोदिया पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि 2024 का मुकाबला पीएम नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के बीच होगा. और, अगर विपक्षी दल इसके लिए तैयार नहीं होते हैं. तो, अरविंद केजरीवाल सबके साथ 'खेला' करने से पीछे नहीं हटेंगे. आसान शब्दों में कहें, तो AAP धीरे से ब्लैकमेल पॉलिटिक्स की ओर बढ़ रही है. लेकिन, आम आदमी पार्टी की 2024 से पहले होने वाली अग्निपरीक्षा में भस्म कांग्रेस ही होगी. और, इसकी वजह से पीएम मोदी के सामने विकल्प के तौर पर अरविंद केजरीवाल के दावे को मजबूती ही मिलेगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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