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गुलाम नबी आज़ाद ने हामिद अंसारी जैसों को आईना दिखा दिया!

    • आर.के.सिन्हा
    • Updated: 12 फरवरी, 2021 04:03 PM
  • 12 फरवरी, 2021 04:03 PM
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गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में अपने विदाई भाषण में तमाम ऐसी बातें कहीं हैं जिनके बाद क्या पक्ष क्या विपक्ष दोनों ही उनके मुरीद हो गए हैं. साफ़ है कि अपनी बातों से आजाद ने पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी जैसे नेताओं को आईना दिखाया है. अब सवाल ये है कि क्या आजाद की बातें हामिद अंसारी और उनकी विचारधारा के लोग पचा पाएंगे?

गुलाम नबी आजाद के राज्यसभा से रिटायर होने के अवसर पर दिए गए भावुक भाषण के बाद देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी शायद अपराधबोध के बोझ से दब गये हों. यह भी हो सकता है कि अंसारी को लग रहा हो कि उन्होंने भारत के मुसलमानों की स्थिति पर जो हाल के दौर में वक्तव्य दिए थे वे शायद सही नहीं थे. राज्यसभा में अपने विदाई भाषण में गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘मुझे इस बात का फक्र है कि मैं हिंदुस्तानी मुसलमान हूं. मैं उन खुशकिस्मत लोगों में हूं जो पाकिस्तान कभी नहीं गए. जब मैं देखता हूं कि पाकिस्तान में किस तरह के हालात हैं तो मुझे हिंदुस्तानी होने पर फक्र होता है कि हम हिंदुस्तानी मुसलमान हैं.’ जबकि हामिद अंसारी बार-बार यह रोना रोते रहते हैं कि भारत में मुसलमानों के साथ न्याय नहीं हो रहा है. वे डर के साए भी जी रहे हैं. अगर उनका जमीर जिंदा है तो वे साबित करें कि जो गुलाम नबी आजाद ने कहा वह गलत है. आजाद साहब ने कहा कि आज विश्व में अगर किसी मुसलमान को गर्व होना चाहिए तो वह हिंदुस्तान के मुसलमान को गर्व होना चाहिए. गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन में अपने लिए की गई टिप्पणियों पर कहा, प्रधानमंत्री ने जिस तरह भावुक होकर मेरे बारे में कुछ शब्द कहे ‘मैं सोच में पड़ गया कि मैं कहूं तो क्या कहूं.’

हामिद अंसारी को गुलाम नबी आजाद से कई मायनों में प्रेरणा लेनी चाहिए

तब क्यों चुप थे अंसारी साहब?

भारतीय विदेश सेवा की मालदार और मौज-मस्ती वाली नौकरी के बाद देश के दो बार उपराष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी जब तक कुर्सी पर रहे, तो सरकार के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोले और जब उन्हें तीसरी बार उपराष्ट्रपति नहीं बनाया गया तो रातों रात मुस्लिम नेता बन गए. उनका आचरण सच में निंदनीय ही रहा. अगर वे...

गुलाम नबी आजाद के राज्यसभा से रिटायर होने के अवसर पर दिए गए भावुक भाषण के बाद देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी शायद अपराधबोध के बोझ से दब गये हों. यह भी हो सकता है कि अंसारी को लग रहा हो कि उन्होंने भारत के मुसलमानों की स्थिति पर जो हाल के दौर में वक्तव्य दिए थे वे शायद सही नहीं थे. राज्यसभा में अपने विदाई भाषण में गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘मुझे इस बात का फक्र है कि मैं हिंदुस्तानी मुसलमान हूं. मैं उन खुशकिस्मत लोगों में हूं जो पाकिस्तान कभी नहीं गए. जब मैं देखता हूं कि पाकिस्तान में किस तरह के हालात हैं तो मुझे हिंदुस्तानी होने पर फक्र होता है कि हम हिंदुस्तानी मुसलमान हैं.’ जबकि हामिद अंसारी बार-बार यह रोना रोते रहते हैं कि भारत में मुसलमानों के साथ न्याय नहीं हो रहा है. वे डर के साए भी जी रहे हैं. अगर उनका जमीर जिंदा है तो वे साबित करें कि जो गुलाम नबी आजाद ने कहा वह गलत है. आजाद साहब ने कहा कि आज विश्व में अगर किसी मुसलमान को गर्व होना चाहिए तो वह हिंदुस्तान के मुसलमान को गर्व होना चाहिए. गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन में अपने लिए की गई टिप्पणियों पर कहा, प्रधानमंत्री ने जिस तरह भावुक होकर मेरे बारे में कुछ शब्द कहे ‘मैं सोच में पड़ गया कि मैं कहूं तो क्या कहूं.’

हामिद अंसारी को गुलाम नबी आजाद से कई मायनों में प्रेरणा लेनी चाहिए

तब क्यों चुप थे अंसारी साहब?

भारतीय विदेश सेवा की मालदार और मौज-मस्ती वाली नौकरी के बाद देश के दो बार उपराष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी जब तक कुर्सी पर रहे, तो सरकार के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोले और जब उन्हें तीसरी बार उपराष्ट्रपति नहीं बनाया गया तो रातों रात मुस्लिम नेता बन गए. उनका आचरण सच में निंदनीय ही रहा. अगर वे मौजूदा सरकार की नीतियों से इतने ही दुखी हैं तो फिर वे लुटियन दिल्ली में मिले भव्य सरकारी बंगले को छोड़ क्यों नहीं देते? वे यह तो कभी नहीं करेंगे.

सुविधाएं छोड़ना हर किसी के वश में नहीं होता. अंसारी तो सुविधाभोगी है. हालांकि बाबा साहेब अंबेडकर शायद एकमात्र ऐसे नेता रहे जिन्होंने अपने सरकारी पद छोड़ने के अगले ही दिन लुटियन दिल्ली का बंगला छोड़ दिया था. बाबा साहेब ने 1951 में नेहरु जी की कैबिनेट से त्यागपत्र देने के अगले दिन ही अपना 22 पृथ्वीराज रोड का सरकारी आवास खाली कर दिया था. उसके बाद वो सपत्नीक 26, अलीपुर रोड चले गए थे.

हामिद अंसारी जैसा इंसान कभी भी नहीं बन सकता बाबा साहेब अंबेडकर. आजाद ने अपने भाषण में कहा कि वे ऐसे कॉलेज में पढ़े, जहां ज्यादातर छात्र 14 अगस्त पाकिस्तान का स्वाधीनता दिवस ही मनाते थे. मैं जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े कॉलेज एसपी कॉलेज में पढ़ता था. वहां 14 अगस्त (पाकिस्तान की आजादी का दिन) भी मनाया जाता था और 15 अगस्त भी.

वहां ज्यादातर वे लोग थे, जो 14 अगस्त मनाते थे और जो लोग 15 अगस्त मनाते थे, उनमें मैं और मेरे कुछ दोस्त थे. हम प्रिंसिपल और स्टॉफ के साथ रहते थे। इसके बाद हम दस दिन तक स्कूल नहीं जाते थे क्योंकि जाने पर पाकिस्तान समर्थकों द्वारा पिटाई होती थी. मैं उस स्थिति से निकलकर आया हूं.

मुझे खुशी है कि कई पार्टियों के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर आगे बढ़ा. जाहिर है, कश्मीर घाटी में भी वे तिरंगा लहराते रहे. इसमें कोई शक नहीं है कि गुलाम नबी आजाद बनने के लिए दशकों की मेहनत तो लगती ही है.

यादगार 9 फरवरी 2021

बेशक 9 फरवरी 2021 भारतीय संसद के उच्च सदन के लिए यादगार दिन रहा. जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जब तनातनी और राजनीति का अखाड़ा बना हो, वहीं गुलाम नबी आजाद की विदाई के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिया उसने भारतीय राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच के रिश्तों को लेकर एक संकेत भी है और संदेश भी. जानने वाले जानते हैं कि आजाद जी किस मिट्टी के बने हैं.

वे उछल कूद की राजनीति कभी करते नहीं रहे और न करेंगे. प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा है वह गुलाम नबी आजाद की बेहतरीन संवाद क्षमता, व्यवहार, शालीनता औऱ मर्यादा की राजनीति को लेकर है. वे भारत की संसद पर एक अनूठी छाप छोड़ने वाले नेताओं में हैं और राष्ट्रीय राजनीति में उनकी अलग पहचान है. करीब पांच दशकों के अपने सार्वजनिक जीवन में आजाद जी बहुत बड़े दायित्वों से बंधे रहे.

वे किसी राजनीतिक खानदान से नहीं आते. आजाद की राजनीति जमीनी स्तर पर 1973 में जम्मू कश्मीर में एक ब्लाक से आरंभ हुई और अपनी प्रतिभा के बल पर ही वे 1975 में जम्मू कश्मीर युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बने. 1980 में सातवीं और फिर आठवीं लोक सभा के सदस्य रहने के अलावा आजाद पांच बार राज्य सभा सदस्य रहे.

केंद्र में तमाम विभागो के मंत्री रहे. नवंबर 2005 से जुलाई 2008 के दौरान जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में शानदार कामकाज करके उन्होने तमाम विरोधियों का मुंह भी बंद कराया. उनकी यही बात है जो उन्हें बाकि कांग्रेसियों से अलग करती है. हामिद अंसारी की तरह ही एक मुम्बईया अभिनेता नसीरुद्दीन शाह भी हैं.

नसीरुद्दीन शाह को भी भारत में डर लगता है. नसीरुद्दीन शाह को भारत के करोड़ों सिने प्रेमियों ने भरपूर प्रेम दिया, उन्हें पद्म सम्मान भी मिला. पर उन्हें भारत से शिकायतें हैं. उन्हें तब डर नहीं लगा था जब मुंबई में 26/11 का हमला हुआ था. कश्मीर में जब पंडितों का खुलेआम कत्लेआम हो रहा था तब अंसारी और नसीरुद्दीन शाह जैसों की जुबानें सिल गई थीं.

अंसारी और नसीरुद्दीन शाह जैसे फर्जी लोग आजाद के भाषण को सुनकर उन्हें पानी पी-पीकर कोस रहे होंगे. इन जैसों को आजाद ने कहीं का रहने नहीं दिया.फिलहाल तो इनकी जुबानें बंद ही कर दीं.

भारत को एक्टर इरफान खान और अजीम प्रेमजी जैसे राष्ट्र भक्त मुसलमानों पर गर्व है. भारत के डीएनए में ही परम्परागत धर्मनिरपेक्षता है. यह तथ्य हामिद अंसारी जैसे लोग स्वार्थवश भूल जाते हैं. उन्हें गुलाम नबी आजाद जैसे जमीनी नेताओं से थोड़ी बहुत शिक्षा लेनी चाहिए. देश को गुलाम नबी आजाद जैसे सच्चे और अच्छे नेताओं की दरकार है सदा बनी रहेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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