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Ghulam Nabi Azad ने केवल सेकुलरिज्म की सीख नही दी, उसे जीवन में उतारा भी...

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 11 फरवरी, 2021 03:18 PM
  • 11 फरवरी, 2021 03:10 PM
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गुलाम नबी आजाद की छवि एक समावेशी नेता के तौर पर लोगों के बीच बनी रही. उन्होंने हमेशा ही कट्टरपंथ से दूरी बनाए रखी. इसी वजह से वह बहुसंख्यक वर्ग में भी काफी लोकप्रिय रहे. राजनीति का जो स्तर हम और आप आज देखते हैं, गुलान नबी आजाद ने कभी उस ओर रुख ही नहीं किया. यह बात उन्हें सबसे अलग बनाती है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा में कार्यकाल पूरा होने को हैं. इस दौरान राज्यसभा में सांसदों ने उनकी जमकर तारीफ की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी प्रशंसा करते वक्त रो भी पड़े. गुलाम नबी आजाद ने अपने विदाई भाषण में कई बड़ी बातें कहीं. आजाद ने कहा कि मुस्लिम देश आपस में लड़कर खत्म हो रहे हैं. वहां तो हिंदू नहीं हैं. गुलाम नबी आजाद की ये छोटी सी बात देश को आइना दिखाने के लिए काफी है. ऐसे समय में जब हमारे देश के हालात इस कदर खराब हो रहे हैं कि आए दिन कहीं न कहीं से मुस्लिमों के प्रति हिंसा की खबरें आ रही हों. गुलाम नबी आजाद के भाषण की ये लाइन देश के बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वर्ग के लिए एक बड़ी सीख है.

गुलाम नबी आजाद की छवि एक समावेशी नेता के तौर पर लोगों के बीच बनी रही. उन्होंने हमेशा ही कट्टरपंथ से दूरी बनाए रखी. आजाद ने केवल सेकुलरिज्म की सीख नहीं दी, बल्कि उसे अपने जीवन में उतारा भी. अपनी बहुलतवादी संस्कृति को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा. इसी वजह से वह बहुसंख्यक वर्ग में भी काफी लोकप्रिय रहे. राजनीति का जो स्तर हम और आप आज देखते हैं, गुलान नबी आजाद ने कभी उस ओर रुख ही नहीं किया. यह बात उन्हें सबसे अलग बनाती है.

गुलाम नबी आजाद ने केवल सेकुलरिज्म की सीख नहीं दी, बल्कि उसे अपने जीवन में उतारा भी.

गुलाम नबी आजाद ने अपने विदाई भाषण में जो कुछ भी कहा, उसके मायने बहुत व्यापक हैं. धर्म, जाति, विचारधारा से ऊपर उठकर एक इंसान के तौर पर इसे देखने से हमें काफी कुछ सीखने को मिल सकता है. बीते कुछ सालों में देश का माहौल काफी बदल गया है. इसके लिए निश्चित तौर पर राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं. मुस्लिम वर्ग के अंदर पैदा हुआ भय उन्हें आगे बढ़ने से रोक रहा है. राजनीति के लगातार गिरते हुए स्तर ने इसे और बदतर बना दिया है....

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा में कार्यकाल पूरा होने को हैं. इस दौरान राज्यसभा में सांसदों ने उनकी जमकर तारीफ की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी प्रशंसा करते वक्त रो भी पड़े. गुलाम नबी आजाद ने अपने विदाई भाषण में कई बड़ी बातें कहीं. आजाद ने कहा कि मुस्लिम देश आपस में लड़कर खत्म हो रहे हैं. वहां तो हिंदू नहीं हैं. गुलाम नबी आजाद की ये छोटी सी बात देश को आइना दिखाने के लिए काफी है. ऐसे समय में जब हमारे देश के हालात इस कदर खराब हो रहे हैं कि आए दिन कहीं न कहीं से मुस्लिमों के प्रति हिंसा की खबरें आ रही हों. गुलाम नबी आजाद के भाषण की ये लाइन देश के बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वर्ग के लिए एक बड़ी सीख है.

गुलाम नबी आजाद की छवि एक समावेशी नेता के तौर पर लोगों के बीच बनी रही. उन्होंने हमेशा ही कट्टरपंथ से दूरी बनाए रखी. आजाद ने केवल सेकुलरिज्म की सीख नहीं दी, बल्कि उसे अपने जीवन में उतारा भी. अपनी बहुलतवादी संस्कृति को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा. इसी वजह से वह बहुसंख्यक वर्ग में भी काफी लोकप्रिय रहे. राजनीति का जो स्तर हम और आप आज देखते हैं, गुलान नबी आजाद ने कभी उस ओर रुख ही नहीं किया. यह बात उन्हें सबसे अलग बनाती है.

गुलाम नबी आजाद ने केवल सेकुलरिज्म की सीख नहीं दी, बल्कि उसे अपने जीवन में उतारा भी.

गुलाम नबी आजाद ने अपने विदाई भाषण में जो कुछ भी कहा, उसके मायने बहुत व्यापक हैं. धर्म, जाति, विचारधारा से ऊपर उठकर एक इंसान के तौर पर इसे देखने से हमें काफी कुछ सीखने को मिल सकता है. बीते कुछ सालों में देश का माहौल काफी बदल गया है. इसके लिए निश्चित तौर पर राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं. मुस्लिम वर्ग के अंदर पैदा हुआ भय उन्हें आगे बढ़ने से रोक रहा है. राजनीति के लगातार गिरते हुए स्तर ने इसे और बदतर बना दिया है. अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए तमाम पार्टियां इस डर को खत्म नहीं होने देने चाहती हैं. भारत में हमेशा से ही मुस्लिम वर्ग को एक वोटबैंक के रूप में देखा गया है. आजादी के बाद से लेकर आज तक मुस्लिम वर्ग के एक बड़े हिस्से को राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए पिछड़ेपन की ओर धकेलते आ रहे हैं. तमाम सियासी वायदों के बावजूद इनकी स्थिति में सुधार नहीं होना, देश की राजनीति पर एक बदनुमा दाग है.

गुलाम नबी आजाद ने अपने विदाई भाषण में कहा कि मैं उन खुशकिस्‍मत लोगों में से हूं जो पाकिस्‍तान कभी नहीं गया. वहां के जो हालात हैं, उसे देखकर हिंदुस्तान के हर मुसलमान को गर्व करना चाहिए. पाकिस्तान के समाज में जो बुराइयां हैं. हमारे मुसलमानों में वो बुराइयां, खुदा न करे कि कभी भी आएं. लेकिन, यहां के बहुसंख्यक वर्ग को भी दो कदम आगे बढ़ने की जरूरत है. तभी अल्पसंख्यक वर्ग 10 कदम आगे बढ़ेगा. हमने बीते कुछ सालों में देखा कि अफगानिस्‍तान से लेकर ईराक..एक-दूसरे से लड़ाई करते हुए किस तरह से मुस्लिम देश खत्‍म हो रहे हैं. वहां हिंदू तो नहीं हैं, वहां क्रिश्चियन नहीं हैं. वहां कोई दूसरा नहीं है, जो लड़ाई कर रहा, आपस में लड़ाई कर रहे हैं.

भारत के संविधान ने सभी को बराबर का हक दिया है. भारत जितना राम का है, उतना ही रहीम का भी है. अल्पसंख्यक वर्ग के कुछ चुनिंदा लोगों की वजह से इस पूरी कम्युनिटी पर तोहमत लगाने की आदत बहुसंख्यक वर्ग को छोड़नी होगी. दिस देश में ब्रिगेडियर उस्मान अंसारी से लेकर एपीजे अब्दुल कलाम की विरासत रही हो, वहां मुस्लिम वर्ग को लेकर बनाए गए पूर्वाग्रहों को छोड़ना ही होगा. राजनीतिक दलों को अपने 'बयानवीर' नेताओं पर उसी तरह रोक लगानी होगी, जैसी रोक वह ट्विटर से लगवाने की इच्छा रखते हैं. हर बात पर पाकिस्तान भेज देने की बात करने वालों को समझना होगा कि वहां के हालात यहां से भी बदतर हैं. जो लोग हमारे साथ आजादी के बाद से रह रहे हैं, हमें उन्हें सहेजने की जरूरत है. गुलाम नबी आजाद की बहुसंख्यक वर्ग को दो कदम आगे बढ़ने वाली बात पर खास तौर से गौर करना चाहिए. आप आगे बढ़ेंगे, तभी वो भी आगे बढ़ पाएंगे. अगर हम आपस में नहीं लड़ेंगे, तो काफी कुछ सीख सकते हैं. 'हम उनके समाज सुधारक नहीं हैं, गटर में रहना चाहते हैं, तो रहने दो' वाली सोच से भी दूरी बना कर चलना होगा. कुल मिलाकर मेरी बात का लब्बोलुआब यही है कि सेकुलरिज्म की केवल सीख मत दीजिए, उसे जीवन में उतारिए. साथ ही दोनों ओर के कट्टरपंथियों से दूरी बनाकर रखिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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