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तैयार हो जाइए दुनिया के सबसे बड़े खूनखराबे के लिए

    • संतोष चौबे
    • Updated: 17 अक्टूबर, 2016 09:55 PM
  • 17 अक्टूबर, 2016 09:55 PM
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ISIS के कब्ज़े से आज़ाद करवाये गए रमादी, फालूजाह, तिकरित अब भुतहा शहरों में तब्दील हो चुके हैं और अब मोसुल के साथ भी यही होने जा रहा है.

जून 2014 में ISIS ने मोसुल पर कब्ज़ा करने के बाद सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट के गठन की घोषणा कर दी थी और अबू-बकर-अल-बग़दादी को पूरे दुनिया के मुसलमानों का खलीफा घोषित कर दिया था.

मोसुल ISIS के लिए कितनी बड़ी जीत थी इसका पता इसी से चलता है के वो बग़दादी जिसका अमेरिका की कैद से रिहा होने के बाद कहीं कोई फोटो या रिकॉर्ड नहीं था उसने मोसुल को चुना दुनिया के सामने आने के लिए. जुलाई 2014 में उसने मोसुल की ऐतिहासिक अल-नूरी मस्ज़िद से

ऐलान किया कि मुसलमानों का खलीफा है और उन्हें उसके आदेशों का पालन करना चाहिए.

मोसुल का ISIS के लिए वही महत्व है जो तालिबान के लिए काबुल का था.

इसे भी पढ़ें: आतंकवाद को लेकर क्या अमेरिका फिर से करेगा अपनी रणनीतियों पर विचार?

काबुल पर प्रभुत्व ख़तम और तालिबान टुकड़ों में बट कर रह गया. मोसुल ISIS के प्रोपेगंडा युद्ध का वो तुरुप का पत्ता था जिसने उसे लगभग गुमनाम क्षेत्रीय आतंकवादी संगठन से रातों-रात दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन बना दिया. सरकारें चिंता जताने लगीं. दुनिया भर के आतंकवादी संगठन बग़दादी और आईसिस के बैनर तले आने लगे.

मोसुल का गिरना ISIS को फिर से सीरिया में सीमित कर देगा जहाँ वो पहले से ही चौतरफा युद्ध में घिरा हुआ है - असद की सेनाओं से, रूस के हवाई हमलों से, सीरियन विद्रोहियों से और अमेरिकी नेतृत्व वाले कोएलिशन से.

और मोसुल का गिरना निश्चित है. लेकिन ISIS मोसुल में जो तबाही का मंजर छोड़ जायेगा उसको सोचकर ही रूह कांप जाती है.

जून 2014 में ISIS ने मोसुल पर कब्ज़ा करने के बाद सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट के गठन की घोषणा कर दी थी और अबू-बकर-अल-बग़दादी को पूरे दुनिया के मुसलमानों का खलीफा घोषित कर दिया था.

मोसुल ISIS के लिए कितनी बड़ी जीत थी इसका पता इसी से चलता है के वो बग़दादी जिसका अमेरिका की कैद से रिहा होने के बाद कहीं कोई फोटो या रिकॉर्ड नहीं था उसने मोसुल को चुना दुनिया के सामने आने के लिए. जुलाई 2014 में उसने मोसुल की ऐतिहासिक अल-नूरी मस्ज़िद से

ऐलान किया कि मुसलमानों का खलीफा है और उन्हें उसके आदेशों का पालन करना चाहिए.

मोसुल का ISIS के लिए वही महत्व है जो तालिबान के लिए काबुल का था.

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काबुल पर प्रभुत्व ख़तम और तालिबान टुकड़ों में बट कर रह गया. मोसुल ISIS के प्रोपेगंडा युद्ध का वो तुरुप का पत्ता था जिसने उसे लगभग गुमनाम क्षेत्रीय आतंकवादी संगठन से रातों-रात दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन बना दिया. सरकारें चिंता जताने लगीं. दुनिया भर के आतंकवादी संगठन बग़दादी और आईसिस के बैनर तले आने लगे.

मोसुल का गिरना ISIS को फिर से सीरिया में सीमित कर देगा जहाँ वो पहले से ही चौतरफा युद्ध में घिरा हुआ है - असद की सेनाओं से, रूस के हवाई हमलों से, सीरियन विद्रोहियों से और अमेरिकी नेतृत्व वाले कोएलिशन से.

और मोसुल का गिरना निश्चित है. लेकिन ISIS मोसुल में जो तबाही का मंजर छोड़ जायेगा उसको सोचकर ही रूह कांप जाती है.

 इस्लामिक स्टेट को खत्म करने के लिए शुरू हुआ निर्णायक युद्ध

रिपोर्टों के अनुसार, लगभग 8000 ISIS लडाकों ने मोसुल शहर में सुरंगों का जाल बिछा रखा है, पूरे शहर में बम लगा दिए हैं और जगह-जगह खड्डे खोदकर उनमें तेल भर दिया है. इससे ये पता चलता है कि ISIS इराकी सैन्य बलों से आसानी से हार नहीं मानने जा रहा है और अंतिम खूनी लड़ाई के लिए मोसुल में तैयार है. अंतिम परिणाम ये भी हो सकता है कि मोसुल शहर जैसा जाना था, उसका नामोनिशान ही मिट जाये.

ISIS के कब्ज़े से पहले मोसुल 20,00,000 की जनसंख्या वाला इराक का दूसरा सबसे बड़ा शहर था  और उत्तरी इराक का आर्थिक केंद्र था. शहर छोड़कर भागने से पहले इराकी सैन्य बल काफी मात्रा में हथियार और रसद छोड़ गए थे. इसने और मोसुल के केंद्रीय बैंक से 500 मिलियन डॉलर की लूट ने ISIS को लगभग पूरे उत्तरी इराक पर कब्ज़ा करने और बग़दाद के नज़दीक पहुँचाने में मुख्य भूमिका निभाई.

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मोसुल पर कब्ज़ा करने के बाद ISIS ने वहां सख्त इस्लामिक कानून लागू कर दिया और इसकी धार्मिक पुलिस ने फ़ोन, इन्टरनेट, संगीत और मनोरंजन के अन्य साधनों पर बैन लगा दिया. कंगारू कोर्ट लगाना, लोगों को गाला रेत कर, फायरिंग स्क्वाड से गोली मरवाकर और जलाकर मार देना और नस्लीय कत्लेआम रोज़ की बात हो गयी. ISIS के नरसंहार ने मोसुल से शिया, यज़ीदी और अन्य ISIS का सफाया कर दिया है. मोसुल पर कब्ज़ा करते ही ISIS ने पूरे शहर में मुनादी कर दी थी कि सभी लोग मुस्लिम धर्म और बग़दादी की सत्ता स्वीकार कर लें या आईसिस का कहर झेलने के लिए तैयार रहें. नतीजतन पिछले 28 महीने में मोसुल की अधिकांश जनसँख्या या तो पलायन कर गयी है या मार दी गयी है. लेकिन अभी भी वहां 7,00,000 लोग फंसे हुए हैं.

मोसुल फिर से जलेगा..

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार मोसुल में चलने वाला मिलिट्री ऑपरेशन, जो सोमवार से शुरू हुआ है, 15 लाख लोगों को प्रभावित करेगा. फॉरेन पालिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 4००० इराकी और कुर्द पेशमर्गा लड़ाकों ने मोसुल के आस-पास के गांवों पर हमला बोल दिया है और इस पूरे मिलिट्री आपरेशन में लगभग 30,000 सैनिकों और लड़ाकों की जरूरत होगी. एक्सपर्ट्स के अनुसार पूरा आपरेशन धीमी गति से आगे बढ़ेगा क्योंकि इसे आईसिस के गुरिल्ला हमलों से भी बचना होगा.

और कोलैटरल डैमेज से भी

ये देखा गया है कि आतंकवादी और विद्रोही अब ड्रोन हमलों और दूसरे सर्जिकल स्ट्राइक से बचने के लिए स्थानीय जनसँख्या में मिक्स हो जाते हैं जिससे प्रीसिजन हमलों में काफी दिक्कत आती है और कई बार निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं. सीरिया इसका जवलन्त उदहारण है जहाँ कभी अस्पताल तो कभी शवयात्रा ड्रोन हमलों के निशाने पर आ जाते हैं. शहरी इंफास्ट्रक्टर को तो तिहरी मार पड़ती है - हवाई हमलों की - ड्रोन हमलों की - और आतंकवादियों और विद्रोहियों की, जो अपने पीछे कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहते और जाते-जाते भी जितना हो सके तबाही मचाने की कोशिश करते हैं. इराक, सीरिया, यमन, अफ़ग़ानिस्तान, लीबिया, सोमालिया - और उन सभी देशों में शहर के शहर खँडहर हो गए हैं जिन्होंने युद्ध या संगठित आतंकवाद झेला है या झेल रहे हैं.

और ISIS तो इसके लिए कुख्यात है. ISIS के कब्ज़े से आज़ाद करवाये गए रमादी, फालूजाह, तिकरित अब भुतहा शहरों में तब्दील हो चुके हैं और अब मोसुल के साथ भी यही होने जा रहा है. और मोसुल इराक़ में आईसिस का आखिरी गढ़ हो सकता है लेकिन ISIS द्वारा होने वाली तबाही अभी चलेगी जबतककि उसका सीरिया का बेस तबाह नहीं किया जाता.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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