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आतंकवाद को लेकर क्या अमेरिका फिर से करेगा अपनी रणनीतियों पर विचार?

    • आईचौक
    • Updated: 06 दिसम्बर, 2015 07:06 PM
  • 06 दिसम्बर, 2015 07:06 PM
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आतंकवाद को लेकर अमेरिका की नई नीति क्या होगी. यह सवाल वहां के नेताओं के लिए वाकई चुनौती भरा है क्योंकि अगले साल वहां राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं. ऐसे में चुनाव से पहले वहां आतंकवाद पर सबसे ज्यादा बहस देखने को मिल सकती है.

पेरिस अटैक के बाद जब पूरी दुनिया एक बार फिर आतंकवाद को लेकर अलर्ट हुई तो अमेरिका में भी इसका डर दिखा. ऐसे में बराक ओबामा सामने आए. अपने देश के लोगों को आश्वस्त किया कि उन्हें किसी प्रकार की चिंता नहीं करनी चाहिए. ओबामा ने एक प्रकार से गारंटी दी कि अमेरिका हर तरह से सुरक्षित है और लोग बेफिक्र होकर क्रिसमस और न्यू ईयर की छुट्टियों की योजना बनाएं. लेकिन ओबामा की बात के ठीक सात दिन बाद कैलिफोर्निया में जो हादसा हुआ, उसने अमेरिका को मजबूर कर दिया है कि वह आतंकवाद को लेकर अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करे. खासकर, ISIS और उन्हें लेकर जो किसी आतंकी गुट का हिस्सा न होते हुए भी चरमपंथी विचार की जद में आ रहे हैं.

कैलिफोर्निया हमले में ISIS की भूमिका!

कैलिफोर्निया हमले की जांच अब भी जारी है. यह बात अभी साबित नहीं हो सकी है कि ये एक आतंकी हमला था. पहले तो इसे अमेरिका में होने वाले 'मास शूटिंग' से जोड़ कर देखा जा रहा था. लेकिन अब यह बात लगभग पक्की हो चुकी है कि दोनों हमलावर रिजवान फारूक और उसकी पत्नी ताशफीन मलिक ISIS से प्रभावित थे. यह बात भी सामने आ चुकी है कि हमले के दौरान ही ताशफीन मलिक के फेसबुक पेज पर ISIS के प्रमुख अबु बक्र अल-बगदादी के समर्थन में एक पोस्ट भी किया गया. फेसबुक ने इसे अगले दिन हटा दिया.

जांच के बाद जो बातें सामने आ रही हैं वो हैरान करने वाली हैं. इस हमले ने दिखा दिया है कि अगर कोई आतंकी संगठन सीधे तौर पर शामिल नहीं भी है तो भी शहर सुरक्षित नहीं. सुरक्षा अधिकारियों के लिए यह पहले से भी ज्यादा बड़ी चुनौती है जहां कोई आम शहरी अचानक किसी भावना या उग्र विचार से प्रेरित होकर हमला कर देगा. ISIS इसी को बढ़ावा देने की कोशिश में जुटा है. यूरोप, अमेरिका सहित भारत भी ISIS के टार्गेट पर है.

आतंकवाद को लेकर क्या होगी अमेरिका की नई नीति

यह सवाल अमेरिका के लिए वाकई चुनौती भरा है. अगले साल वहां राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं. ऐसे में निश्चित रूप से चुनाव से पहले...

पेरिस अटैक के बाद जब पूरी दुनिया एक बार फिर आतंकवाद को लेकर अलर्ट हुई तो अमेरिका में भी इसका डर दिखा. ऐसे में बराक ओबामा सामने आए. अपने देश के लोगों को आश्वस्त किया कि उन्हें किसी प्रकार की चिंता नहीं करनी चाहिए. ओबामा ने एक प्रकार से गारंटी दी कि अमेरिका हर तरह से सुरक्षित है और लोग बेफिक्र होकर क्रिसमस और न्यू ईयर की छुट्टियों की योजना बनाएं. लेकिन ओबामा की बात के ठीक सात दिन बाद कैलिफोर्निया में जो हादसा हुआ, उसने अमेरिका को मजबूर कर दिया है कि वह आतंकवाद को लेकर अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करे. खासकर, ISIS और उन्हें लेकर जो किसी आतंकी गुट का हिस्सा न होते हुए भी चरमपंथी विचार की जद में आ रहे हैं.

कैलिफोर्निया हमले में ISIS की भूमिका!

कैलिफोर्निया हमले की जांच अब भी जारी है. यह बात अभी साबित नहीं हो सकी है कि ये एक आतंकी हमला था. पहले तो इसे अमेरिका में होने वाले 'मास शूटिंग' से जोड़ कर देखा जा रहा था. लेकिन अब यह बात लगभग पक्की हो चुकी है कि दोनों हमलावर रिजवान फारूक और उसकी पत्नी ताशफीन मलिक ISIS से प्रभावित थे. यह बात भी सामने आ चुकी है कि हमले के दौरान ही ताशफीन मलिक के फेसबुक पेज पर ISIS के प्रमुख अबु बक्र अल-बगदादी के समर्थन में एक पोस्ट भी किया गया. फेसबुक ने इसे अगले दिन हटा दिया.

जांच के बाद जो बातें सामने आ रही हैं वो हैरान करने वाली हैं. इस हमले ने दिखा दिया है कि अगर कोई आतंकी संगठन सीधे तौर पर शामिल नहीं भी है तो भी शहर सुरक्षित नहीं. सुरक्षा अधिकारियों के लिए यह पहले से भी ज्यादा बड़ी चुनौती है जहां कोई आम शहरी अचानक किसी भावना या उग्र विचार से प्रेरित होकर हमला कर देगा. ISIS इसी को बढ़ावा देने की कोशिश में जुटा है. यूरोप, अमेरिका सहित भारत भी ISIS के टार्गेट पर है.

आतंकवाद को लेकर क्या होगी अमेरिका की नई नीति

यह सवाल अमेरिका के लिए वाकई चुनौती भरा है. अगले साल वहां राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं. ऐसे में निश्चित रूप से चुनाव से पहले आतंकवाद से निपटने की नीतियों पर सबसे ज्यादा बहस देखने को मिल सकती है. 9/11 के बाद अमेरिका ने अपने सुरक्षा मानकों में जबर्दस्त बदलाव किए और इसे लेकर कई बार उसकी खूब आलोचना भी हुई. लेकिन सवाल है कि अब क्या. गन लॉ में बदलाव को लेकर ओबामा बहस छेड़ चुके हैं. इसके साथ-साथ वहां के सुरक्षा अधिकारियों को अमेरिकी लोगों को इस बात के लिए जागरुक करना होगा कि वे किसी भी संदिग्ध हालात या व्यक्ति की रिपोर्ट करने में कोताही नहीं बरतें. FBI और स्थानीय पुलिस अधिकारियों पर अपने नेटवर्क को बढ़ाने का भी दबाव होगा.

अमेरिका पर एक दबाव ISIS पर और आक्रामक हवाई हमले करने का भी होगा. पेरिस अटैक के बाद ओबामा ने इसे दिखाने की कोशिश भी की. साथ ही यह भी साफ कर दिया कि अमेरिकी सेना सीरिया में कदम नहीं रखेगी. ओबामा को डर होगा कि अमेरिका कहीं इराक युद्ध की तरह यहां भी फंस कर न रह जाए. वैसे भी, चुनाव से पहले वह ये जोखिम तो बिल्कुल नहीं उठाना चाहेंगे. लेकिन, इन सबके बावजूद अमेरिका को अगर आतंकवाद के खिलाफ नई सोच पर ईमानदारी से विचार करना है तो सबसे पहले मिडिल इस्ट में अपनी सेलेक्टिव रणनीति से तौबा करना होगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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