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दो साल में 61 फीसदी बढ़ी RSS की शाखाएं !!!

    • आईचौक
    • Updated: 10 अक्टूबर, 2016 05:20 PM
  • 10 अक्टूबर, 2016 05:20 PM
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90 साल पुरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) 2012 में ऑनलाइन हो गया. सदस्यता का रजिस्ट्रेशन बढ़ता गया और शाखाओं की संख्‍या भी. अब सबसे बड़ा बदलाव इस दशहरे से दिखाई देगा, जब स्वयंसेवक फुलपैंट में दिखाई देंगे.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के पिछले 91 वर्षों के सफर का सबसे बड़ा बदलाव 11 अक्टूबर से सारे देश में नजर आने लगेगा. पिछले साल के आखिर में जब खबर आई RSS की पहचान खाकी रंग हाफ पैंट की जगह अब भूरे रंग की पतलून लेगी तो खूब चर्चा हुई. खासकर, सोशल मीडिया पर.

एक से बढ़कर एक लतीफे चले तो कई लोगों ने RSS की इस पहल को अच्छा बताया. खबरें ये भी आईं कि RSS के भीतर ही कई लोग इससे सहमत नहीं थे. लेकिन इन सबके बावजूद इसी साल में मार्च में बदलाव पर मुहर लग गई.

ये पहली बार नहीं है जब RSS के ड्रेस कोड में कोई बदलाव हुआ हो. पिछले 9 दशकों में ये चौथा बदलाव होगा. लेकिन खाकी निकर से पतलून तक आने का फैसला वाकई साहसिक है. ये इसलिए क्योंकि पिछले एक दशक से RSS के भीतर इस पर चर्चा हो रही थी, सहमति अब बन सकी. इस बदलाव का एक मकसद युवाओं को आकर्षित करना है.

देखना होगा, ड्रेस कोड में बदलाव के बाद युवा इसे कैसे लेते हैं. लेकिन एक बात तो है, पिछले पांच-छह वर्षों में RSS ने युवाओं पर ज्यादा फोकस किया है और इसके परिणाम भी देखने को मिले हैं.

लाठी से लैपटॉप तक!

सूचना तंत्र के इस दौर में इंटरनेट से नाता तोड़ना अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है. RSS को इसका आभास 2012 में हो गया था. ये वो साल था जब संघ ऑनलाइन हुआ और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया भी यहां शुरू हो गई. इससे पहले संघ में रजिस्ट्रेशन जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं था. कोई व्यक्ति तभी संघ का हिस्सा माना जाता था जब वो अपने नजदीक की RSS शाखाओं के कार्यक्रम में नियमित तौर पर हिस्सा लेने लगता था. इसके बाद ही उसे सदस्य बनाने की प्रक्रिया शुरू होती थी.

लेकिन 2012 के बाद से ये तरीका बदला है. RSS ने वेबसाइट और डिजिटल माध्यम से लोगों तक पहुंचने का काम शुरू किया. इसका फायदा भी दिखा. 'मेल टुडे' की एक रिपोर्ट के मुताबिक RSS को 2012 में जहां हर महीने औसतन 1000 आवेदन हासिल होते थे, वहीं ऑनलाइन होने के बाद 2013 में ये आंकड़ा 2,500 तक जा पहुंचा.

यह भी...

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के पिछले 91 वर्षों के सफर का सबसे बड़ा बदलाव 11 अक्टूबर से सारे देश में नजर आने लगेगा. पिछले साल के आखिर में जब खबर आई RSS की पहचान खाकी रंग हाफ पैंट की जगह अब भूरे रंग की पतलून लेगी तो खूब चर्चा हुई. खासकर, सोशल मीडिया पर.

एक से बढ़कर एक लतीफे चले तो कई लोगों ने RSS की इस पहल को अच्छा बताया. खबरें ये भी आईं कि RSS के भीतर ही कई लोग इससे सहमत नहीं थे. लेकिन इन सबके बावजूद इसी साल में मार्च में बदलाव पर मुहर लग गई.

ये पहली बार नहीं है जब RSS के ड्रेस कोड में कोई बदलाव हुआ हो. पिछले 9 दशकों में ये चौथा बदलाव होगा. लेकिन खाकी निकर से पतलून तक आने का फैसला वाकई साहसिक है. ये इसलिए क्योंकि पिछले एक दशक से RSS के भीतर इस पर चर्चा हो रही थी, सहमति अब बन सकी. इस बदलाव का एक मकसद युवाओं को आकर्षित करना है.

देखना होगा, ड्रेस कोड में बदलाव के बाद युवा इसे कैसे लेते हैं. लेकिन एक बात तो है, पिछले पांच-छह वर्षों में RSS ने युवाओं पर ज्यादा फोकस किया है और इसके परिणाम भी देखने को मिले हैं.

लाठी से लैपटॉप तक!

सूचना तंत्र के इस दौर में इंटरनेट से नाता तोड़ना अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है. RSS को इसका आभास 2012 में हो गया था. ये वो साल था जब संघ ऑनलाइन हुआ और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया भी यहां शुरू हो गई. इससे पहले संघ में रजिस्ट्रेशन जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं था. कोई व्यक्ति तभी संघ का हिस्सा माना जाता था जब वो अपने नजदीक की RSS शाखाओं के कार्यक्रम में नियमित तौर पर हिस्सा लेने लगता था. इसके बाद ही उसे सदस्य बनाने की प्रक्रिया शुरू होती थी.

लेकिन 2012 के बाद से ये तरीका बदला है. RSS ने वेबसाइट और डिजिटल माध्यम से लोगों तक पहुंचने का काम शुरू किया. इसका फायदा भी दिखा. 'मेल टुडे' की एक रिपोर्ट के मुताबिक RSS को 2012 में जहां हर महीने औसतन 1000 आवेदन हासिल होते थे, वहीं ऑनलाइन होने के बाद 2013 में ये आंकड़ा 2,500 तक जा पहुंचा.

यह भी पढ़ें- भागवत का भूल सुधार तो नहीं है संघ का दलित लंच?

 डिजिटल रंग में रंग रहा है आरएसएस

साल 2014 में तो हर महीने 7,000 तक आवेदन RSS के पास उससे जुड़ने के लिए आने लगे. ये चुनाव का भी साल था और नरेंद्र मोदी हर जगह छाए हुए थे. जाहिर तौर पर इसका भी फायदा RSS को मिला. तभी तो मई-2014 में, जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए, तब RSS को 19,000 आवेदन हासिल हुए.

पिछले पांच वर्षों में कितना बदला RSS

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में देश भर में हर दिन करीब 51,335 शाखाएं आयोजित हुईं. रिपोर्ट बताती है कि साल 2010-11 से 2014-15 के बीच रोज आयोजित होनी वाली RSS की शाखाओं में 29 फीसदी, साप्ताहिक शाखा में 61 फीसदी और मासिक शाखाओं में 40 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. खासकर पिछले दो वर्षों में तस्वीर काफी बदली है और निश्चित तौर इसका बड़ा कारण केंद्र में बीजेपी की सरकार होना है. वैसे, RSS इससे बहुत इत्तेफाक नहीं रखती कि उसे केंद्र में मोदी सरकार की मौजूदगी का बड़ा फायदा मिल रहा है.

यह भी पढ़ें- संघ की असली चुनौती वस्त्र नहीं, विचारधारा को अपडेट करना है

RSS का दावा है कि उसने हाल के वर्षों में उन राज्यों में भी बेहतर किया है, जहां बीजेपी की सरकार नहीं है. RSS के अनुसार केरल में उसरे 4,500 से ऊपर शाखाएं हैं, जहां कभी बीजेपी की सरकार नहीं रही. ऐसे ही पश्चिम बंगाल में भी आरएसएस मजबूत हुई है. जबकि बीजेपी की हालत वहां भी बहुत अच्छी नहीं है.

 शाखाओं की लगातार बढ़ती संख्या

हाल के वर्षों में आयोजित होने वाली शाखाओं के समय को लेकर भी RSS ने खूब माथापच्ची की है. छात्रों, जॉब या काम करने वाले युवाओं और रिटायर हो चुके लोगों के लिए शाखा की टाइमिंग उनके हिसाब से हो, इसे लेकर भी पहल हुए हैं.

यह भी पढ़ें- मोदी-राज की 'इमरजेंसी' के लिए तैयार है संघ का फैमिली प्‍लानिंग कार्यक्रम!

आज फेसबुक पर RSS को लाइक करने वालों की संख्या 30 लाख से ऊपर तो ट्विटर पर उसे फॉलो करने वाले ढाई लाख से ज्यादा लोग हैं. ये सारी कवायद बताती है कि पिछले 90 वर्षों में RSS का रंग-रूप बदला है, तरीका बदला है. नहीं बदली है तो पूरी इमेज! भले ही RSS ये कहता रहे कि कट्टरता का आरोप उस पर विरोधी लगाते हैं, लेकिन फिर भी कई ऐसी बातें तो सामने आती रही हैं..और उसे खुद को उससे अलग करना चाहिए. अगर वो वाकई आज के दौर के हिसाब से खुद को तैयार करना चाहता है तब....

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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