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मोदी-राज की 'इमरजेंसी' के लिए तैयार है संघ का फैमिली प्‍लानिंग कार्यक्रम!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 22 अगस्त, 2016 08:11 PM
  • 22 अगस्त, 2016 08:11 PM
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आगरा में मोहन भागवत ने संघ के प्रबोधन सिद्धांत के तहत जो परिवार प्रयोजन सिखाया वो वाकई आंखे खोल देने वाला है.

फर्ज कीजिए लालकृष्ण आडवाणी की आशंका सच साबित हुई और देश पर एक बार फिर इमरजेंसी थोप दी गई. फिर देश के हिंदू फेमिली सिस्टम का क्या होगा? अंदाजा लगाना भी मुश्किल लग रहा है.

मान लेते हैं, अगर ऐसा कभी हुआ तो एक बात पक्की है - 'परिवार प्रयोजन' सख्ती से लागू किया जाएगा.

आगरा में मोहन भागवत ने संघ के प्रबोधन सिद्धांत के तहत जो परिवार प्रयोजन सिखाया वो वाकई आंखे खोल देने वाला है.

परिवार प्रयोजन?

परिवार प्रयोजन बोले तो? ये भी फेमिली प्लानिंग का लेटेस्ट एडवांस्ड और एनहैंस्ड फॉर्म है, लेकिन परिवार नियोजन का बिलकुल उल्टा. तो इसका मतलब ये कि संघ प्रमुख अभी तक साध्वी निरंजन ज्योति, साध्वी प्राची, साक्षी महाराज और प्रवीण तोगड़िया के जरिये फीडबैक लेते रहे. अब तक ये सभी अपने अपने अनुभव और अध्ययन के आधार पर हिंदू परिवारों को कितने बच्चे पैदा करने चाहिए बताते रहे - और अब फ्रंट पर खुद संघ प्रमुख आए हैं.

इसे भी पढ़ें: भागवत का भूल सुधार तो नहीं है संघ का दलित लंच?

इस तरह संघ का परिवार प्रयोजन इंदिरा गांधी के परिवार नियोजन की परिभाषा के प्रतिकूल एक व्यापक कार्यक्रम है.

लेकिन कितने बच्चे?

साध्वी प्राची की बात तो याद ही होगी, जब उन्होंने समझाया था - पहले हम कहते थे कि हम दो, हमारे दो’, पर, अब हमने कहना शुरू कर दिया है कि 'शेर का बच्चा एक ही अच्छा.’

फिर उन्होंने बताया - ये भी गलत है. क्यों? 'अगर एक ही बच्चा होगा, तो आप उसे कहां कहां भेजेंगे?'

इसलिए नया आइडिया सुझाया, "हमें चार बच्चों की जरूरत है - एक सीमा की रक्षा करने जा सके, एक समाज की सेवा कर सके, एक को साधुओं को दो और एक को देश तथा संस्कृति की रक्षा के लिए विश्व हिंदू परिषद को दो."

फर्ज कीजिए लालकृष्ण आडवाणी की आशंका सच साबित हुई और देश पर एक बार फिर इमरजेंसी थोप दी गई. फिर देश के हिंदू फेमिली सिस्टम का क्या होगा? अंदाजा लगाना भी मुश्किल लग रहा है.

मान लेते हैं, अगर ऐसा कभी हुआ तो एक बात पक्की है - 'परिवार प्रयोजन' सख्ती से लागू किया जाएगा.

आगरा में मोहन भागवत ने संघ के प्रबोधन सिद्धांत के तहत जो परिवार प्रयोजन सिखाया वो वाकई आंखे खोल देने वाला है.

परिवार प्रयोजन?

परिवार प्रयोजन बोले तो? ये भी फेमिली प्लानिंग का लेटेस्ट एडवांस्ड और एनहैंस्ड फॉर्म है, लेकिन परिवार नियोजन का बिलकुल उल्टा. तो इसका मतलब ये कि संघ प्रमुख अभी तक साध्वी निरंजन ज्योति, साध्वी प्राची, साक्षी महाराज और प्रवीण तोगड़िया के जरिये फीडबैक लेते रहे. अब तक ये सभी अपने अपने अनुभव और अध्ययन के आधार पर हिंदू परिवारों को कितने बच्चे पैदा करने चाहिए बताते रहे - और अब फ्रंट पर खुद संघ प्रमुख आए हैं.

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इस तरह संघ का परिवार प्रयोजन इंदिरा गांधी के परिवार नियोजन की परिभाषा के प्रतिकूल एक व्यापक कार्यक्रम है.

लेकिन कितने बच्चे?

साध्वी प्राची की बात तो याद ही होगी, जब उन्होंने समझाया था - पहले हम कहते थे कि हम दो, हमारे दो’, पर, अब हमने कहना शुरू कर दिया है कि 'शेर का बच्चा एक ही अच्छा.’

फिर उन्होंने बताया - ये भी गलत है. क्यों? 'अगर एक ही बच्चा होगा, तो आप उसे कहां कहां भेजेंगे?'

इसलिए नया आइडिया सुझाया, "हमें चार बच्चों की जरूरत है - एक सीमा की रक्षा करने जा सके, एक समाज की सेवा कर सके, एक को साधुओं को दो और एक को देश तथा संस्कृति की रक्षा के लिए विश्व हिंदू परिषद को दो."

अब परिवार नियोजन नहीं चलेगा,,, परिवार प्रयोजन करो...

बाद में जब उन्हें बयान को स्पष्ट करने को कहा गया तो बोलीं - 'हमने चार बच्चे पैदा करने के लिए बोला था, 40 पिल्ले नहीं.' साक्षी महाराज ने अपनी थ्योरी दी थी - 'हिंदू महिलाओं को कम से कम चार बच्चों को जन्म देना चाहिए.'

साक्षी बोले, "चार बीवियों और 40 बच्चों का चलन भारत में चलने वाला नहीं है," और कॉल दी, "अब समय आ गया है कि हिंदू धर्म को बचाने के लिए हर हिंदू महिला कम से कम चार बच्चे पैदा करे."

इसे भी पढ़ें: पतंजलि नूडल्स की तरह अब संघ बेचेगा अपना एजेंडा

फिर मैदान में एक डॉक्टर साहब हाथ में दवा लहराते प्रकट हुए, "वैसे तो यह दवा 600 रुपये की है, लेकिन आप सभी को 500 में मिल जाएगी. इसे लेकर घर जाइए और पत्नी से खाने में मिलाकर लाने को कहिए. इसके लगातार सेवन से आपका पौरुष बचा रहेगा और आप लगातार बच्चे पैदा करेंगे." प्रवीण तोगड़िया पेशे से डॉक्टर हैं इसलिए परिवार प्रयोजन को वो मेडिकल एंगल से देखते हैं और मानते हैं कि हिंदू समुदाय की घटती आबादी के लिए नपुंसकता जिम्मेदार है. इसलिए तोगड़िया सलाह देते हैं, 'घर जाओ और अपनी मर्दानगी की पूजा करो.'

लोगों ने कभी इन्हें गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि ये तो अक्सर ही कुछ न कुछ ऐसे ही बोलते रहते हैं. लोग आधिकारिक बयान के इंतजार में थे. इंतजार भी खत्म हुआ.

भागवत पुराण

आगरा में अपने पांच दिवसीय दौरे पर पहुंचे संघ प्रमुख मोहन भागवत के एजेंडे में दलित लंच पहले से तय रहा लेकिन के स्पेशल सेशन में उनसे सवाल पूछ ही लिया गया. परिवार नियोजन को लेकर सारे लोग कंफ्यूज थे - मार्गदर्शन के लिए भागवत की ओर मुखातिब हुए.

जिस तरह तोगड़िया ने मेडिकल दृष्टि को अपनी थ्योरी का आधार बनाया उसी तरह भागवत ने कानूनी पहलू पर गौर फरमाया. भागवत ने भी बाकी नेताओं की राय से सहमति जताई - हिंदुओं को ज्यादा बच्चे पैदा करने चाहिए.

भागवत बोले, "जब दूसरे धर्म वाले इतने बच्चे पैदा कर रहे हैं तो हिंदुओं को किसने रोका है. ऐसा कोई कानून नहीं जो हिंदुओं की आबादी बढ़ने से रोके."

मायावती भी आगरा में ही थीं, सो पूछ बैठीं, "ज्यादा बच्चे खाना कहां खाएंगे? भागवत, पीएम मोदी और केंद्र सरकार से पूछ लें कि क्या वह इन बच्चों के खाने का इंतजाम कर देंगे?"

बलूचिस्तान

प्रबोधन कार्यक्रम के तहत भागवत ने हिंदू जोड़ों को आर्ट ऑफ फेमिली लिविंग के कई टिप्स भी दिये.

मसलन, सिनेमा क्रिकेट और राजनीति की चर्चा न करें. कायदे से तो समाज को आठ घंटे देना चाहिए, फिर भी संभव न हो तो 'निरपेक्ष बुद्धि' से कम से कम तीन घंटे तो जरूर दें - और हां, शाखा में जाना न भूलें. सेवा का भाव लाएं - लेकिन, सेवा को भुनाना नहीं है, 'टिकट नहीं मांगना है.'

भागवत ने बताया कि अगर लोग अगले संडे से ये सब शुरू कर दें तो 30 साल में देश से उग्रवाद पूरी तरह मिट जाएगा. गजब!

संघ के कार्यक्रम में 'प्रश्नोत्तरी' भी काफी मजेदार रही जिसमें एक सवाल सुन कर तो लोगों का माथा ही घूम गया, सवाल था - 'अपने ससुर के मामा की इकलौती बहन के पोते के पिता आपके कौन होंगे?'

लेकिन सबसे खास सवाल रहा - '52 शक्तिपीठ में शुमार हिंगलाज का मंदिर कहां है?'

निश्चित रूप से ये प्रश्नोत्तरी 15 अगस्त से पहले तैयार की गई लगती है क्योंकि उत्तर है - बलूचिस्तान

कानून भी आएगा क्या?

हिंदू एजेंडे की बात है तो संघ और शिवसेना में काफी बातें मिलती जुलती हैं. लेकिन शिवसेना ने इस बार अलग स्टैंड लिया है. उसने परिवार प्रयोजन पर बिलकुल अलग स्टैंड लिया है. कह सकते हैं, अब तक सबसे अलग.

'सामना' के संपादकीय में कहा गया है, 'सरसंघचालक का यह बयान सुसंस्कृत और प्रगतिशील हिंदू समाज को हजम नहीं होगा...'

संपादकीय कहता है, "मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या चिंताजनक है, लेकिन हिंदुओं को भी बच्चे नहीं बढ़ाने चाहिए, यही विचार देशहित में है... 'हिन्दू'

अगर अधिक बच्चों को जन्म देंगे तो पहले ही खस्ताहाल में जीने वाले लोग बेरोजगारी, भूख, महंगाई की समस्या से और परेशान होंगे..." और आखिर में एक सवाल भी है, बड़ा सवाल.

सामना के जरिये शिवसेना ने पूछा है, "मुसलमानों में बच्चों के साथ बीवियां भी अधिक हैं. फिर हिंदू भी क्या एक से अधिक विवाह करे. ऐसा फतवा जारी कर सरकार को यह कानून बनाने पर बाध्य करने वाले हो क्या?"

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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