Pakistan का Sindh प्रांत कट्टरपंथियों की दुर्दांत सोच का शिकार सदियों से है. उनपर सेना का पहला प्रत्यक्ष रूप से सदैव रहा. जिस आजादी के हक़दार वह थे, वह नहीं मिली? उनके हिस्से में तरक्की के जगह यातनाएं और मुसीबतें ही दी गईं. लेकिन अब वह इन सभी से छुटकारा चाहते हैं. यही कारण है कि सिंध क्षेत्र के लोगों ने अब खुद को पाकिस्तान से अलग होने का फाइनल मन बना लिया है. उनकी मांग हैं, उन्हें पाकिस्तान से अलग कर दिया जाए, इसके लिए बड़ा आंदोलन छेड़ा है, हजारों-लाखों की संख्या में लोग सड़कों, बाजारों, गली-मोहल्लों में प्रदर्शन कर रहे हैं. सभी एक सुर में इमरान खान सरकार को ललकार रहे हैं. विद्रोह की लपटें देखकर ऐसा लगता है क्या पाकिस्तान फिर से दो हिस्सों में बंटेगा. जैसे कभी बंगालियों ने अलग बांग्लादेश की मांग की थी, जो भारत के सहयोग से पूरी भी हुई. ठीक वैसे ही सिंध प्रांत के वासी भी अपने लिए अलग सिंध देश की मांग कर रहे हैं.
सिंध क्षेत्र में ज्यादातर पंजाबी, ईसाई, हिंदू और बाकी मुस्लिम आबादी रहती है. ये बात सही है, वहां सरकार इन लोगों के साथ वर्षों से पक्षपात...
Pakistan का Sindh प्रांत कट्टरपंथियों की दुर्दांत सोच का शिकार सदियों से है. उनपर सेना का पहला प्रत्यक्ष रूप से सदैव रहा. जिस आजादी के हक़दार वह थे, वह नहीं मिली? उनके हिस्से में तरक्की के जगह यातनाएं और मुसीबतें ही दी गईं. लेकिन अब वह इन सभी से छुटकारा चाहते हैं. यही कारण है कि सिंध क्षेत्र के लोगों ने अब खुद को पाकिस्तान से अलग होने का फाइनल मन बना लिया है. उनकी मांग हैं, उन्हें पाकिस्तान से अलग कर दिया जाए, इसके लिए बड़ा आंदोलन छेड़ा है, हजारों-लाखों की संख्या में लोग सड़कों, बाजारों, गली-मोहल्लों में प्रदर्शन कर रहे हैं. सभी एक सुर में इमरान खान सरकार को ललकार रहे हैं. विद्रोह की लपटें देखकर ऐसा लगता है क्या पाकिस्तान फिर से दो हिस्सों में बंटेगा. जैसे कभी बंगालियों ने अलग बांग्लादेश की मांग की थी, जो भारत के सहयोग से पूरी भी हुई. ठीक वैसे ही सिंध प्रांत के वासी भी अपने लिए अलग सिंध देश की मांग कर रहे हैं.
सिंध क्षेत्र में ज्यादातर पंजाबी, ईसाई, हिंदू और बाकी मुस्लिम आबादी रहती है. ये बात सही है, वहां सरकार इन लोगों के साथ वर्षों से पक्षपात करती आई है. अभी हाल में इमरान खान सरकार ने फौज के जरिए इनपर जो जुल्म बरपाया था, उसे न सिर्फ पाकिस्तानियों ने देखा, बल्कि समूचे संसार में थू-थू हुई. सिंध प्रांत में सेना-पुलिस आमने सामने आकर एक दूसरे को मारने काटने पर उतारू हुई थी. पुलिस सिंधियों के पक्ष में थी, तो वहीं सेना उनके खिलाफ में खड़ी थी.
दरअसल, ये इंतिहा की मात्र बानगी थी, ऐसे जुल्म वहां आए दिन लोगों के साथ किए जाते हैं. इन्हीं जुल्मों से लोग मुक्ति चाहते हैं, तभी अलग मुल्क की मांग को लेकर विद्रोह करने पर उतर आए हैं. 18 जनवरी को एक साथ हजारों लोग सड़कों पर उतरे, कइयों के हाथों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तख्तियां थीं, लोग उनसे मदद की गुहार लगा रहे थे. नारेबाज़ी हो रही थी, बोल रहे थे कि जैसे कश्मीरियों को 370 से आजादी दिलाई, वैसे हमें भी आजादी दिलवानी को मोदी सहयोग करें.
लोगों के हाथों में जब मोदी की तख्तियां सेना ने देखी तो सीधे इमरान खान को सूचित किया गया. इसके बाद मामला दूसरे ही दिशा में चला गया. उनको लगा इस आग के पीछे कहीं भारत का हाथ तो नहीं? विद्रोह की तपिश जब तेज हुई तो इस्लामाबाद से दिल्ली फोन आया, लेकिन भारत ने इनकार करके खुद को उनके अंदरूनी मसले से अलग किया. पाकिस्तान में हिंदुओं, ईसाईयों और पंजाबियों के मूल अधिकारों का किस तरह हनन होता है, शायद बताने की जरूरत नहीं? दशकों से लोग पाकिस्तानी हुकूमतों की जुल्म की यातनाएं झेलते आए हैं.
इन पर शुरु से इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव बनाया गया. डर के कारण कुछों ने इस्लाम धर्म को अपनाया भी. पाकिस्तान के दूसरों शहरों में इस तरह की हरकतों का होना आम बात है. कराची में बीते दिनों प्राचीन को कट्टरपंथियों ने तोड़ डाला, मामला जब तूल पकड़ा तो दिखावे के लिए सरकार ने कुछ लोगों पर कार्रवाई की. हिंदू लड़कियों से वहां जबरन शादी करके उन्हें इस्लाम धर्म अपनाया जाता है ये बात भी किसी से छिपी नहीं.
ग्लोबल स्तर पर ये बात समय-समय उठती रहती है. लेकिन थोड़े दिनों बाद सब कुछ शांत हो जाता है. पाकिस्तान के लिए सिंध क्षेत्र क्यों महत्वपूर्ण है इस थ्योरी को समझना जरूरी है. दरअसल, सिंध का समूचा इलाक़ा संपदाओं से लबरेज है, हर फसल की खेती बाड़ी, जड़ी-बूटियां, प्राकृतिक औषधियां, ड्राई फ्रूट्स आदि के लिए मशहूर है. ये क्षेत्र पाकिस्तान के दूसरे इलाकों से कहीं ज्यादा संपन्न है. क्षेत्र की आवोहवा हिंदुस्तानी सभ्यता से एकदम मेल खाती हैं.
एक जमाने में सिंध प्रांत वैदिक सभ्यताओं का हब भी रहा है. इतिहास बहुत ही स्वर्णिम था. लेकिन कट्टरपंथियों ने बर्बाद कर दिया. उसका नक्शा ही बदल दिया. मार काट और खूनखराबे में तब्दील कर दिया. लोगों का रहना दूभर हो गया. पीछे इतिहास में झांके तो पता चलता है कि इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का कभी कब्ज़ा हुआ करता था. 1947 में जब भारत आजाद हुआ और पाकिस्तान अमल में आया. तब जाते-जाते सिंध प्रांत को अंग्रेजों ने पाकिस्तान को सौंप दिया.
उनकी उसी गलती को सिंधवी आज भी भुगत रहे हैं. इस्लामाबाद में बैठी पाकिस्तान की हुक़ूमत सिंध प्रांत को हमेशा से हिकारत की नजरों से देखा. मानविकी पहलुओं, मानव संसाधन, प्रबंधन, मुकम्मल अधिकार सभी पर मानवद्रोही ताक़तें हावी रहीं. प्राकृतिक की धरोहर कहे जाने वाले उस क्षेत्र को बंदरों की तरह उजाड़ दिया. पिछले एक सप्ताह से सिंध प्रांत के सान क्षेत्र में हजारों लोग अलग मुल्क की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं.
वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अवाला संसार के दूसरे ताक़तवर नेताओं से हस्तक्षेत्र की मांग कर रहे हैं. बड़ा मूवमेंट देखकर वहां की सरकार की सांसें भी फूली हुई हैं. क्योंकि घर में लगी चिंगारी की तपिश सरहद पार भी पहुंच गई हैं. पाकिस्तान को डर इस बात का भी है, कहीं भारत खुलकर आंदोलकारियों के पक्ष में न आ जाए. अगर ऐसा होता है तो उसका परिणाम क्या होगा? ये बात इमरान खान भी भलीभांति जानते हैं.
चाहें कश्मीर का मसला हो, बलूचिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और अब सिंध देश की मांग ने उनके तोते उड़ा दिए हैं. पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों ने भी इमरान खान को घेर लिया है. आरोप है उनके लचीलेपन ने कश्मीरी को भारत के हाथों बेच दिया, अब सिर्फ सिंध और पाक अधिकृत कश्मीर ही बचा है, उसका भी कहीं सौदा न कर दें. कुल मिलाकर पाकिस्तान सरकार इस वक्त कई अंदरूनी मसलों में घिरी हुई है, यहां से इमरान खान को बाहर निकलना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा?
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