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सबसे चमकदार पार्टी चार साल में सबसे फीकी पड़ गई

    • संतोष चौबे
    • Updated: 13 सितम्बर, 2016 10:30 PM
  • 13 सितम्बर, 2016 10:30 PM
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नवम्बर 2016 में आम आदमी पार्टी अपने चार साल पूरे करने जा रही है. इन चार सालों में पार्टी के नेताओं पर जिस तरह के आरोप लगे हैं वो बताते हैं पार्टी किस तरह अपने संस्थापक सिद्धांतों और उद्देश्यों से भटकती जा रही है.

आम आदमी पार्टी हमेशा ही विवादों में रही है चाहे वो इसके शुरूआती साल रहे हों या अब जब की पार्टी पंजाब और गोवा जैसे दूसरे राज्यों में मुख्य विकल्प बनने के सपने देख रही है. और ये विवाद स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सब कुछ सही नहीं है. 

आम आदमी पार्टी 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन से निकली पार्टी है जिसने राजनीतिक बदलाव के उच्च मानदंडों को स्थापित करने के उद्देश्य के साथ 4 साल पहले नवम्बर 2012 में सक्रीय राजनीति में कदम रखा था. दिल्ली उस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का गढ़ था और पार्टी को इसका फायदा भी मिला. अपने गठन के एक साल बाद ही पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने में सफल रही. यद्यपि अरविन्द केजरीवाल ने 49 दिनों में ही इस्तीफा दे दिया था, दिल्ली की जनता ने एक बार फिर आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताते हुए उसे प्रचंड बहुमत दिया और दिल्ली में फिर से आम आदमी पार्टी की सरकार फरवरी 2015 में बन गई.

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 4 साल पहले नवम्बर 2012 में आम आदमी पार्टी ने सक्रीय राजनीति में कदम रखा था

हम ये कह सकते हैं कि नवम्बर 2012 से फरवरी 2015 तक लोगों का आम आदमी पार्टी में भरोसा और बढ़ा.

आम आदमी पार्टी के शुरूआती विवाद वैचारिक मतभेदों पर केंद्रित थे. इंडिया अगेंस्ट करप्शन, संस्था जिसका गठन 2011 के आंदोलन को संचालित करने के लिए हुआ था, के कई...

आम आदमी पार्टी हमेशा ही विवादों में रही है चाहे वो इसके शुरूआती साल रहे हों या अब जब की पार्टी पंजाब और गोवा जैसे दूसरे राज्यों में मुख्य विकल्प बनने के सपने देख रही है. और ये विवाद स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सब कुछ सही नहीं है. 

आम आदमी पार्टी 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन से निकली पार्टी है जिसने राजनीतिक बदलाव के उच्च मानदंडों को स्थापित करने के उद्देश्य के साथ 4 साल पहले नवम्बर 2012 में सक्रीय राजनीति में कदम रखा था. दिल्ली उस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का गढ़ था और पार्टी को इसका फायदा भी मिला. अपने गठन के एक साल बाद ही पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने में सफल रही. यद्यपि अरविन्द केजरीवाल ने 49 दिनों में ही इस्तीफा दे दिया था, दिल्ली की जनता ने एक बार फिर आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताते हुए उसे प्रचंड बहुमत दिया और दिल्ली में फिर से आम आदमी पार्टी की सरकार फरवरी 2015 में बन गई.

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 4 साल पहले नवम्बर 2012 में आम आदमी पार्टी ने सक्रीय राजनीति में कदम रखा था

हम ये कह सकते हैं कि नवम्बर 2012 से फरवरी 2015 तक लोगों का आम आदमी पार्टी में भरोसा और बढ़ा.

आम आदमी पार्टी के शुरूआती विवाद वैचारिक मतभेदों पर केंद्रित थे. इंडिया अगेंस्ट करप्शन, संस्था जिसका गठन 2011 के आंदोलन को संचालित करने के लिए हुआ था, के कई कार्यकर्ता राजनीतिक दल बनाने के विरोध में थे. जो समर्थन में थे उन्होंने पार्टी बनाई बाकी अलग हो गए. नवम्बर 2012 से फरवरी 2015 तक कई लोगों ने पार्टी ज्वाइन की या पार्टी से इस्तीफा दिया. कैप्टेन गोपीनाथ, एसपी उदयकुमार, शाज़िया इल्मी जैसे लोगों ने अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के तौर तरीकों पर सवाल खड़े करते हुए पार्टी से इस्तीफा दिया.

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किरण बेदी ने तो आम आदमी पार्टी में शामिल होने से ही इंकार कर दिया था. लेकिन ये सभी विवाद मुख्यतः वैचारिक थे जिनका जनता के भरोसे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. हालांकि विपक्षी पार्टियों ने बहुत कोशिश की कि आम आदमी पार्टी को भ्रष्टाचार के आरोपों के लपेटे में लिया जा सके लेकिन ये आरोप कभी भी वित्तीय अनियमितताओं से ज्यादा कुछ सिद्ध नहीं कर पाए. आम आदमी पार्टी अभी भी एक पार्टी थी जिसके नेता भ्रष्टाचार के व्यक्तिगत आरोपों से परे थे. 

लेकिन फरवरी 2015 से सब बदल चुका है. 

आम आदमी पार्टी अब अरविन्द केजरीवाल केंद्रित पार्टी के रूप में देखी जाती है जिसके नेता हर उस आरोप में फंसे हैं जो आम आदमी पार्टी के संस्थापक सिद्धांतों के खिलाफ हैं.

दिल्ली में प्रचंड बहुमत से दोबारा सरकार बनाने के बाद अरविन्द केजरीवाल ने उन लोगों को पार्टी से बाहर करना या उन्हें हाशिये पर भेजना शुरू किया जो उनकी सत्ता के लिए चुनौती साबित हो सकते थे फिर चाहे वो योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण हों, या आम आदमी पार्टी के पंजाब सांसद धर्मवीर गांधी और हरिंदर सिंह खालसा हों, या आम आदमी पार्टी के दिल्ली एमएलए पंकज पुष्कर और देवेंद्र सेहरावत हों. अब ये आम भावना है कि आम आदमी पार्टी में कोई आतंरिक लोकतंत्र नहीं है. शाज़िया इल्मी और मयंक गांधी ने यही कहते हुए ही आम आदमी पार्टी छोड़ी. 

और उससे भी ज्यादा चिंता की बात है पार्टी नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार और सेक्स स्कैंडल्स के व्यक्तिगत आरोप जो सिद्ध भी हो चुके हैं. 

दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री और आम आदमी पार्टी एमएलए जीतेन्द्र सिंह तोमर फ़र्ज़ी शिक्षा और डिग्री के केस में फंसे और जेल गये. अक्टूबर 2015 में आम आदमी पार्टी को अपने खाद्य मंत्री असीम अहमद खान को भ्रष्टाचार के आरोपों में हटाना पड़ा था. खान पर घूस लेने के आरोप लगे थे और एक ऑडियो क्लिप सामने आयी थी. जून 2016 में परिवहन मंत्री गोपाल राय को भ्रष्टाचार के आरोपों में इस्तीफा देना पड़ा था. अभी पिछले महीने ही आम आदमी पार्टी को अपने पंजाब संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर को बर्खास्त करना पड़ा था जब एक स्टिंग विडियो ने छोटेपुर को टिकट आवंटित करने के बदले पैसा लेते हुए दिखाया था.

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आम आदमी पार्टी महिलाओं से छेड़छाड़ से छेड़छाड़ के मामलों और सेक्स स्कैंडल्स से अभी अछूती नहीं रही है. 

वरिष्ठ आम आदमी पार्टी नेता कुमार विश्वास अनैतिक संबंधों का आरोप झेल रहे हैं और केस कोर्ट में है. इसी महीने की शुरुआत में आम आदमी पार्टी को दिल्ली  के महिला और बाल कल्याण मंत्री संदीप कुमार को बर्खास्त करना पड़ा था जब उनकी सेक्स सीडी मीडिया के हाथ लग गई थी. संदीप कुमार अब रेप केस का सामना कर रहे हैं. सेक्स सीडी वाली महिला ने आरोप लगाया है कि संदीप कुमार ने नशीला पदार्थ खिलाकर उसका रेप किया था.

आम आदमी पार्टी के नरेला एमएलए शरद चौहान पर पार्टी की एक महिला कार्यकर्ता ने आरोप लगाया था के उन्होंने महिला द्वारा एक आदमी पर लगाए गए यौन उत्पीड़न की शिकायत को वापस लेने के लिए दबाव डाला था. महिला ने आत्महत्या कर ली पर अपने आरोपों का विडियो छोड़ गयी और शरद चौहान को जेल जाना पड़ा.

ओखला से आम आदमी पार्टी एमएलए अमानतुल्लाह खान, जिनका इस्तीफा पार्टी अस्वीकार कर दिया है, उनपर फिरसे छेड़छाड़ का मामला दर्ज किया गया है और इस बार उनके संबंधी ने ही मामला दर्ज किया है. जुलाई 2016 में भी अमानतुल्लाह खान पर एक दूसरी महिला ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया था और उन्हें जेल जाना पड़ा था और फिलहाल वो जमानत पर रिहा हैं.

दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ आम आदमी पार्टी नेता सोमनाथ भारती को घरेलू हिंसा के मामले में तिहाड़ जाना पड़ा थ. पंजाब में अगले कुछ महीने में चुनाव हैं और आम आदमी पार्टी वहां मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में देखी जा रही है और टिकट वितरण का काम जोरों पर है. अब वहां से भी टिकट आवंटन के बदले यौन शोषण के गंभीर आरोप सामने आ रहें हैं और पार्टी को विवश होकर आतंरिक जांच शुरू करनी पड़ी है. 

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नवम्बर 2016 में आम आदमी पार्टी अपने चार साल पूरे करने जा रही है. वैचारिक मतभेद और आतंरिक लोकतंत्र से तानाशाही, भ्रष्टाचार और सेक्स स्कैंडल्स के आरोप- इन चार सालों में पार्टी के नेताओं पर जिस तरह के आरोप लगे हैं वो बताते हैं पार्टी किस तरह अपने संस्थापक सिद्धांतों और उद्देश्यों से भटकती जा रही है. जिस तरह की आशातीत सफलता और अप्रत्याशित जनसमर्थन आम आदमी पार्टी को इन चार सालों में मिला है वो बताता है की जनता की उम्मीदें पार्टी से कितनी ज्यादा हैं. इस तरह का आचरण और ये आरोप उन्हें धोखा देते प्रतीत होते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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