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महिला बिल न सही, मगर तीन तलाक 2019 में बड़ा मुद्दा जरूर बनेगा

    • आईचौक
    • Updated: 26 अगस्त, 2018 08:01 PM
  • 26 अगस्त, 2018 08:01 PM
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तीन तलाक के मामला में बीजेपी आगे बढ़ कर कांग्रेस को घेर रही है. मुस्लिम पार्टी का ठप्पा लगने के बाद तीन तलाक पर कांग्रेस को बहुत ही तोल मोल कर बोलना पड़ रहा है - राहुल गांधी की सफाई भी यही बता रही है.

महिला बिल का हाल आगे भी यथास्थिति में रहने के पूरे आसार हैं, लेकिन 2019 के आम चुनाव में तीन तलाक का मुद्दा जरूर उछलने वाला है. संसद सत्रों से पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखे जाने के बावजूद कोई ठोस संकेत नहीं मिला. जवाबी पत्र में मोदी सरकार के मंत्री ने एक डील के तहत तीन तलाक पास कराने की बात कही. महिला बिल पर कांग्रेस ने पूरे समर्थन का वादा किया था, लेकिन सत्ताधारी बीजेपी की ओर से पूरी तरह नजरअंदाज किया गया. ऊपर से तीन तलाक पर कांग्रेस को कदम कदम पर खलनायक साबित करने की कोशिश की गयी.

आखिरकार राहुल गांधी को लंदन में तीन तलाक पर सफाई देनी पड़ी. कांग्रेस जानती है कि तीन तलाक का मसला उसकी नीतियों के हिसाब से काफी नाजुक है, इसीलिए राहुल गांधी ने सिर्फ इतना कहा है कि वो इस बिल के खिलाफ नहीं, बल्कि ड्राफ्ट में आपराधिक पहलू को लेकर ऐतराज जता रहे हैं.

राज्य सभा की मंजूरी का इंतजार

मॉनसून सेशन के आखिरी दिन हंगामे के कारण स्थगित हुई राज्यसभा की कार्यवाही जब दोपहर 2.30 बजे शुरू हुई तो सभापति एम वेंकैया नायडू ने साफ कर दिया कि तीन तलाक बिल को सदन में नहीं रखा जा सकता. कहां बीजेपी तीन तलाक बिल बजट सत्र में ही पास कराना चाहती थी और कहां मॉनसून सत्र भी बीत गया.

मुस्लिम महिलाओं को हक दिलाने का वादा...

15 अगस्त के बाद, एक बार फिर 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने का भरोसा दिलाया है. तीन तलाक विधेयक लोकसभा में 29 दिसंबर 2017 को पास हो चुका है और अब इसे राज्यसभा की मंजूरी का इंतजार है.

प्रधानमंत्री मोदी तीन तलाक विधेयक को लेकर कांग्रेस पर बाधा पहुंचाने का आरोप लगाते रहे हैं. मॉनसून सत्र में सबसे ज्यादा कामकाज होने के बावजूद...

महिला बिल का हाल आगे भी यथास्थिति में रहने के पूरे आसार हैं, लेकिन 2019 के आम चुनाव में तीन तलाक का मुद्दा जरूर उछलने वाला है. संसद सत्रों से पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखे जाने के बावजूद कोई ठोस संकेत नहीं मिला. जवाबी पत्र में मोदी सरकार के मंत्री ने एक डील के तहत तीन तलाक पास कराने की बात कही. महिला बिल पर कांग्रेस ने पूरे समर्थन का वादा किया था, लेकिन सत्ताधारी बीजेपी की ओर से पूरी तरह नजरअंदाज किया गया. ऊपर से तीन तलाक पर कांग्रेस को कदम कदम पर खलनायक साबित करने की कोशिश की गयी.

आखिरकार राहुल गांधी को लंदन में तीन तलाक पर सफाई देनी पड़ी. कांग्रेस जानती है कि तीन तलाक का मसला उसकी नीतियों के हिसाब से काफी नाजुक है, इसीलिए राहुल गांधी ने सिर्फ इतना कहा है कि वो इस बिल के खिलाफ नहीं, बल्कि ड्राफ्ट में आपराधिक पहलू को लेकर ऐतराज जता रहे हैं.

राज्य सभा की मंजूरी का इंतजार

मॉनसून सेशन के आखिरी दिन हंगामे के कारण स्थगित हुई राज्यसभा की कार्यवाही जब दोपहर 2.30 बजे शुरू हुई तो सभापति एम वेंकैया नायडू ने साफ कर दिया कि तीन तलाक बिल को सदन में नहीं रखा जा सकता. कहां बीजेपी तीन तलाक बिल बजट सत्र में ही पास कराना चाहती थी और कहां मॉनसून सत्र भी बीत गया.

मुस्लिम महिलाओं को हक दिलाने का वादा...

15 अगस्त के बाद, एक बार फिर 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने का भरोसा दिलाया है. तीन तलाक विधेयक लोकसभा में 29 दिसंबर 2017 को पास हो चुका है और अब इसे राज्यसभा की मंजूरी का इंतजार है.

प्रधानमंत्री मोदी तीन तलाक विधेयक को लेकर कांग्रेस पर बाधा पहुंचाने का आरोप लगाते रहे हैं. मॉनसून सत्र में सबसे ज्यादा कामकाज होने के बावजूद तीन तलाक बिल वैसे ही रह गया - और बीजेपी ने इसकी तोहमत कांग्रेस पर मढ़ दी.

सिर पर तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव और उसके बाद 2019 के आम चुनाव की तारीख ने कांग्रेस को इस मसले पर पसोपेश में डाल दिया है. थक हार कर राहुल गांधी को अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी है.

राहुल गांधी की सफाई

एक बार इंडिया टुडे कॉनक्लेव में सोनिया गांधी ने बड़े दुख के साथ कहा था कि विरोधियों ने कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी के रूप में प्रचारित कर दिया. विरोधियों से सोनिया का आशय संघ परिवार और बीजेपी से ही था.

सोनिया के इस बयान के कुछ दिन बाद ही आजमगढ़ की रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने पूछ भी लिया - क्या कांग्रेस में मुस्लिम महिलाओं के लिए भी कोई जगह है या नहीं? क्या कांग्रेस सिर्फ मुस्लिम पुरुषों की पार्टी है?

तीन तलाक पर राहुल गांधी की सफाई

तीन तलाक को लेकर अपनी सफाई में राहुल गांधी का कहना है कि कांग्रेस इसके खिलाफ नहीं बल्कि उसके मन में बिल के ड्राफ्ट में आपराधिक पहलू को लेकर सवाल हैं. कांग्रेस सहित विपक्ष की मांग है कि इस बिल को चयन समिति के पास भेजा जाना चाहिए ताकि इसके तमाम पहलुओं पर विचार विमर्श किया जा सके.

एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा - "हमारा मसला विधेयक में अपराधीकरण वाले पहलू के साथ जुड़ा हुआ है."

बिल ड्राफ्ट के अनुसार तीन तलाक देने वाले पुरुष को सजा और जुर्माना दोनों भुगतना होगा. तीन तलाक देने वाले पुरुष को तीन साल तक की सजा हो सकती है. पुलिस तलाक देने वाले पति को बिना वारंट गिरफ्तार भी कर सकती है.

बीजेपी इतनी उत्साहित क्यों?

सवाल ये है कि चुनावों के दौरान जब बीजेपी उम्मीदवारों की सूची में ढूंढने पर भी मुस्लिम नाम नजर नहीं आते, फिर तीन तलाक को लेकर लगातार इतनी तत्पर क्यों है?

मुस्लिम वोट के बगैर बीजेपी सत्ता में पहुंच तो जाती है लेकिन लंबे वक्त तक बरकरार रखने के लिए उसे सॉफ्ट-सेक्युलर होने के तिकड़म करने पड़ते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी के बाद वाले चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी की भी उदार छवि परोसने की कोशिश की गयी - और जिन्ना की मजार पर पहुंच कर उनका सेक्युलर बयान तो उनके सियासी ताबूत की आखिरी कील ही साबित हुआ.

दरअसल, मुस्लिम वोटों को लेकर माना जाता है कि वे उसी पार्टी को मिलते हैं जो बीजेपी को हराने में सक्षम नजर आती है. 2017 यूपी चुनाव में इसके अपवाद भी देखे गये, हालांकि, बीजेपी का एक भी मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में नहीं था.

बीजेपी को समझ आ गया है कि एकजुट मुस्लिम वोट उसकी हार का कारण बन सकता है. यही सोच कर बीजेपी ने मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगानी शुरू कर दी है. बीजेपी चाहती है कि मुस्लिम वोट और कुछ नहीं तो कम से कम पुरुष और महिलाओं में ही बंट जाये. अगर घर के पुरुष औ महिलाएं अलग अलग वोट डालने लगे तो सीधा फायदा उसे मिल सकता है.

यही वजह है कि 2019 से पहले हर मौके पर प्रधानमंत्री मोदी मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ और हक दिलाने का वादा कर रहे हैं. मुस्लिम वोटों को कांग्रेस बरसों तक जागीर समझती रही है. अगर ऐसा न होता तो राजीव गांधी की सरकार में शाहबानो प्रकरण का अस्तित्व नहीं होता. बीजेपी हमेशा कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है - और कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में आना पड़ता है. तीन तलाक के मुद्दे पर बीजेपी के आगे कांग्रेस घिरी हुई नजर आ रही है. पूरा खेल तो 2019 में ही ठीक से देखने को मिलेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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