• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

गोरखपुर-फूलपुर भूल जाइए, कैराना बताएगा योगी और माया-अखिलेश की हैसियत !

    • आईचौक
    • Updated: 18 मार्च, 2018 03:11 PM
  • 18 मार्च, 2018 03:11 PM
offline
गोरखपुर-फूलपुर उपचुनावों के बाद अब कैराना का नंबर है. कैराना को लेकर पहला सवाल है - क्या बीएसपी के खाते में समाजवादी पार्टी का वोट ट्रांसफर हो पाएगा? दूसरा, क्या मोदी-शाह भी चुनाव प्रचार करेंगे या फिर योगी को एक और अग्नि परीक्षा देनी होगी?

गोरखपुर और फूलपुर का पोस्टमॉर्टम चल ही रहा है कि नया केस भी कतार में है - कैराना. जल्द ही कैराना संसदीय सीट पर भी चुनाव होने हैं. बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन से ये सीट खाली हो गया है.

स्थानीय हिसाब से देखें तो ये दो राजनीतिक घरानों की जंग है, लेकिन यूपी में योगी बनाम विपक्ष हो चुकी है. असर का अंदाजा लगाया जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह तक भी पहुंचने वाली है.

अभी तक ये भी माना जा रहा है कि फूलपुर और गोरखपुर की तरह ये उपचुनाव भी समाजवादी पार्टी और बीएसपी मिल कर लड़ेंगी - और आगे का रास्ता इसी सीट के नतीजे पर ही निर्भर भी करता है.

बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बीएसपी के लिए इस उपचुनाव की अहमियत बताती है कि ये भी राष्ट्रीय चुनाव जैसा चर्चित होने वाला है.

मुकाबला दिलचस्प होगा

अब तक जो संभावनाएं बन रही हैं, उनके मुताबिक मृगांका सिंह और तबस्सुम बेगम मैदान में आमने सामने हो सकती हैं. अगर ऐसा वास्तव में हुआ तो मुकाबला दिलचस्प होगा.

पिता की विरासत संभालने की चुनौती...

दरअसल, दोनों ही स्थानीय तौर पर दो राजनीतिक घरानों की प्रतिनिधि हैं. मृगांका सिंह, बीजेपी सांसद की बेटी हैं तो तबस्सुम बेगम, समाजवादी पार्टी के सांसद रहे मुनव्वर हसन की पत्नी हैं - और कैराना से समाजवादी पार्टी विधायक नाहिद हसन की मां. तबस्सुम बेगम खुद भी 2009 में बीएसपी की ओर से सांसद रह चुकी हैं. तबस्सुम के पति मुनव्वर हसन 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोक सभा पहुंचे थे.

हुकुम सिंह की पांच बेटियों में मृगांका ही राजनीति में सक्रिय रहीं, बाकी बेटियां विदेशों में परिवार के साथ हैं. हुकुम सिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहीं मृगांका कैराना विधानसभा सीट से 2017 में चुनाव भी लड़ी थीं,...

गोरखपुर और फूलपुर का पोस्टमॉर्टम चल ही रहा है कि नया केस भी कतार में है - कैराना. जल्द ही कैराना संसदीय सीट पर भी चुनाव होने हैं. बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन से ये सीट खाली हो गया है.

स्थानीय हिसाब से देखें तो ये दो राजनीतिक घरानों की जंग है, लेकिन यूपी में योगी बनाम विपक्ष हो चुकी है. असर का अंदाजा लगाया जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह तक भी पहुंचने वाली है.

अभी तक ये भी माना जा रहा है कि फूलपुर और गोरखपुर की तरह ये उपचुनाव भी समाजवादी पार्टी और बीएसपी मिल कर लड़ेंगी - और आगे का रास्ता इसी सीट के नतीजे पर ही निर्भर भी करता है.

बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बीएसपी के लिए इस उपचुनाव की अहमियत बताती है कि ये भी राष्ट्रीय चुनाव जैसा चर्चित होने वाला है.

मुकाबला दिलचस्प होगा

अब तक जो संभावनाएं बन रही हैं, उनके मुताबिक मृगांका सिंह और तबस्सुम बेगम मैदान में आमने सामने हो सकती हैं. अगर ऐसा वास्तव में हुआ तो मुकाबला दिलचस्प होगा.

पिता की विरासत संभालने की चुनौती...

दरअसल, दोनों ही स्थानीय तौर पर दो राजनीतिक घरानों की प्रतिनिधि हैं. मृगांका सिंह, बीजेपी सांसद की बेटी हैं तो तबस्सुम बेगम, समाजवादी पार्टी के सांसद रहे मुनव्वर हसन की पत्नी हैं - और कैराना से समाजवादी पार्टी विधायक नाहिद हसन की मां. तबस्सुम बेगम खुद भी 2009 में बीएसपी की ओर से सांसद रह चुकी हैं. तबस्सुम के पति मुनव्वर हसन 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोक सभा पहुंचे थे.

हुकुम सिंह की पांच बेटियों में मृगांका ही राजनीति में सक्रिय रहीं, बाकी बेटियां विदेशों में परिवार के साथ हैं. हुकुम सिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहीं मृगांका कैराना विधानसभा सीट से 2017 में चुनाव भी लड़ी थीं, लेकिन जबरदस्त बीजेपी लहर के बावजूद वो चुनाव हार गयीं. हरानेवाले समाजवादी पार्टी के नाहिद हसन ही रहे.

क्या वोट ट्रांसफर हो पाएगा

गोरखपुर और फूलपुर के नतीजे आने के बाद अखिलेश यादव शुक्रिया अदा करने मायावती के घर गये थे और विधानसभा में विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी तो वायरल वीडियो में लगातार मायावती के सामने हाथ जोड़े नजर आये. बाद में भी अखिलेश यादव लखनऊ में भीमराव अंबेडकर और राम मनोहर लोहिया के फोटो के साथ खूब फोटो खिंचाते दिखे. संभव है ये सिलसिला आगे भी चलता रहे.

ये जंग ज्यादा मुश्किल होगी...

बड़ा सवाल यही है कि अखिलेश यादव और मायावती कब तक साथ रह पाएंगे? बात तो 2019 तक पक्की बतायी जा रही है, लेकिन उसमें बहुत बड़ा पेंच भी फंसा है.

गोरखपुर और फूलपुर सीट पर तो समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार उतारे और बीएसपी ने सपोर्ट कर दिया. अब बीएसपी के उम्मीदवार खड़ा करने और समाजवादी पार्टी के समर्थन की बारी है. गोरखपुर और फूलपुर में बीएसपी कॉडर ने घर घर जाकर लोगों से समाजवादी पार्टी को वोट देने की अपील की - और वोटिेंग के दिन बूथ मैनेजमेंट में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. नतीजा ये हुआ कि बीएसपी का पूरा वोट समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के खाते में ट्रांसफर हुआ. अब ये चुनौती समाजवादी पार्टी के सामने है.

अखिलेश-माया गठबंधन आगे तभी बना रह सकेगा जब समाजवादी पार्टी का वोट बीएसपी को ट्रांसफर हो. अगर ऐसा संभव नहीं हो पाया तो मायावती दूसरा रास्ता तलाश सकती हैं - और न तो कोई उन्हें मना सकता है, न रोक सकता है.

कांटे की टक्कर

कैराना लोक सभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें हैं. इनमें चार बीजेपी के पास और एक कैराना विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी के पास है. इलाका मुस्लिम बहुल है, इसलिए ध्रुवीकरण की राजनीतिक के लिए भी काफी उपजाऊ है. संभावना 2017 जैसे नतीजे की भी है - और जरूरी नहीं कि दोबारा भी लोगों का पुराना इरादा बरकरार रहे.

तबस्सुम बेगम सांसद रह चुकी हैं और उनसे पहले उनके पति, इसलिए इलाके में जाना पहचाना नाम है. जानने को तो इलाके के लोग मृगांका को भी जानते ही हैं, ऊपर से बीजेपी को हुकुम सिंह को लेकर सहानुभूति मिलने की भी उम्मीद है. हुकुम सिंह सात बार विधायक रहे और पहली बार 2014 में बीजेपी के टिकट पर लोक सभा पहुंचे थे.

2017 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले हुकुम सिंह ने 2013 मुजफ्फर नगर दंगों के बाद कैराना से 340 हिंदू परिवारों के पलायन का मुद्दा उठाया था, जिस पर खूब बवाल हुआ. कई रिपोर्ट भी आईं और तत्कालीन सरकार की ओर से भी ऐसे दावों को खारिज किया गया. चुनाव के ऐन पहले हुकुम सिंह अपने बयान से पलट गये. सफाई में उनका कहना रहा कि उन्होंने हिंदुओं नहीं बल्कि सिर्फ पलायन का मुद्दा उठाया था. हालांकि, ये कुर्बानी भी काम न आयी और बेटी मृगांका चुनाव हार गयीं.

अब तो ये भी साफ हो चुका है कि गोरखपुर और फूलपुर में बीजेपी की हार की वजह अलग अलग रही है. 2019 की बात तो तब देखी जाएगी, लेकिन उससे पहले तो कैराना की लड़ाई करीब आ रही है. योगी आदित्यनाथ निकाय चुनावों का क्रेडिट जरूर लिये, लेकिन उनकी कामयाबी सिर्फ शहरी इलाकों तक की सीमित रही. गांवों में समाजवादी पार्टी और बीएसपी का ही बोलबाला रहा. गोरखपुर और फूलपुर के इम्तिहान में रही सही बाकी कसर भी पूरी हो गयी. अब आगे क्या होगा? लाख टके का सवाल यही है कि क्या मोदी-शाह की जोड़ी बीजेपी के लिए वोट मांगने कैराना जाएगी या योगी को एक और अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा?

इन्हें भी पढ़ें:

एक नये गठबंधन की योजना बना रहे हैं अखिलेश

उपचुनाव को 'ड्रेस रिहर्सल' कहकर फंस गए हैं योगी जी

गोरखपुर में तो लगता है योगी ही बीजेपी को ले डूबे

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲