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एक नये गठबंधन की योजना बना रहे हैं अखिलेश

    • अंशुमान शुक्ल
    • Updated: 16 मार्च, 2018 04:26 PM
  • 16 मार्च, 2018 04:26 PM
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उप चुनावों के मद्देनजर जिस तरह अखिलेश और मायावती साथ आए और गोरखपुर फूलपुर में जिस तरह सपा ने बड़ी जीत हासिल की जाहिर है भाजपा के खेमे में चिंता की लहर का संचार और उसके बाद चिंतन और मनन शुरू हो गया होगा.

फूलपुर और गोरखपुर में हुए लोकसभा उप चृनावों में मिली जीत ने उत्तर प्रदेश व देश की सियासी फिजा को बदलने की वो आस बंधाई है, जिससे विपक्ष की बांछे खिल गई हैं. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बहजुन समाज पार्टी सुप्रीमों मायावती के साथ एक ऐसा सियासी मेल तैयार करना चाहते हैं जो भारतीय जनता पार्टी के पांव तले से जमीन छीन ले. जैसा फूलपुर और गोरखपुर के उप चुनाव में इस गठबंधन ने किया. देश के राजनीतिक इतिहास की ऐसी पहली घटना है जब एक साथ किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को अपनी लोकसभा सीटें एक साथ गंवानी पड़ी हों.

करीब 23 बरस बाद बसपा और सपा ने आपस में हाथ मिलाया है. बीती चार फरवरी को गोरखपुर में बसपा के जोनल कोऑर्डिनेटर घनश्याम चंद्र खरवार ने इस गठबन्धन का एलान किया. दरअसल अखिलेश यादव भारतीय जनता पार्टी के मुकाबिल जिस राजनीतिक गठबन्धन को मूर्त रूप देने काा ताना-बाना बुनने में जुटे हैं उसमें समाजवादी पार्टी के साथ बहुजन समाज पार्टी बेहद अहम किरदार अदा करने जा रही हैं. गठबंधन की राजनीति के इस कैनवस पर राष्ट्रीय लोक दल, निषाद पार्टी, पीस पार्टी, कम्युनिस्ट दल पहले ही सपा के साथ फूलपुर और गोरखपुर का उप चुनाव लड़कर उसे जीत का स्वाद पा चुके हैं. राष्ट्रीय स्तर पर शरद यादव, लालू यादव, ममता बनर्जी, समेत प्रमुख विपक्षी दल अखिलेश में भविष्य की काट देख रहे हैं.

उपचुनाव जीत कर अखिलेश ने यूपी की सियासत को बहस के नए आयाम दे दिए हैं

फूलपुर और गोरखपुर में समाजवादी पार्टी के अघोषित गठबंधन को मिली जीत के बाद जिस तरह जतिन चौधरी, ममता बैनर्जी, राहुल गांधी, शरद यादव, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव समेत पचास से अधिक राजनेताओं ने जिस तरह अखिलेश को या तो फोन पर या व्हाट्सऐप पर बधाई दी, उससे उनके मंतव्य बहुत हद तक स्पष्ट हो रहे हैं. इस बात...

फूलपुर और गोरखपुर में हुए लोकसभा उप चृनावों में मिली जीत ने उत्तर प्रदेश व देश की सियासी फिजा को बदलने की वो आस बंधाई है, जिससे विपक्ष की बांछे खिल गई हैं. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बहजुन समाज पार्टी सुप्रीमों मायावती के साथ एक ऐसा सियासी मेल तैयार करना चाहते हैं जो भारतीय जनता पार्टी के पांव तले से जमीन छीन ले. जैसा फूलपुर और गोरखपुर के उप चुनाव में इस गठबंधन ने किया. देश के राजनीतिक इतिहास की ऐसी पहली घटना है जब एक साथ किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को अपनी लोकसभा सीटें एक साथ गंवानी पड़ी हों.

करीब 23 बरस बाद बसपा और सपा ने आपस में हाथ मिलाया है. बीती चार फरवरी को गोरखपुर में बसपा के जोनल कोऑर्डिनेटर घनश्याम चंद्र खरवार ने इस गठबन्धन का एलान किया. दरअसल अखिलेश यादव भारतीय जनता पार्टी के मुकाबिल जिस राजनीतिक गठबन्धन को मूर्त रूप देने काा ताना-बाना बुनने में जुटे हैं उसमें समाजवादी पार्टी के साथ बहुजन समाज पार्टी बेहद अहम किरदार अदा करने जा रही हैं. गठबंधन की राजनीति के इस कैनवस पर राष्ट्रीय लोक दल, निषाद पार्टी, पीस पार्टी, कम्युनिस्ट दल पहले ही सपा के साथ फूलपुर और गोरखपुर का उप चुनाव लड़कर उसे जीत का स्वाद पा चुके हैं. राष्ट्रीय स्तर पर शरद यादव, लालू यादव, ममता बनर्जी, समेत प्रमुख विपक्षी दल अखिलेश में भविष्य की काट देख रहे हैं.

उपचुनाव जीत कर अखिलेश ने यूपी की सियासत को बहस के नए आयाम दे दिए हैं

फूलपुर और गोरखपुर में समाजवादी पार्टी के अघोषित गठबंधन को मिली जीत के बाद जिस तरह जतिन चौधरी, ममता बैनर्जी, राहुल गांधी, शरद यादव, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव समेत पचास से अधिक राजनेताओं ने जिस तरह अखिलेश को या तो फोन पर या व्हाट्सऐप पर बधाई दी, उससे उनके मंतव्य बहुत हद तक स्पष्ट हो रहे हैं. इस बात को अखिलेश भी बखूबी जानते हैं. इसी लिए उन्होंने कहा भी कि दोनों उप चुनावों में मिली जीत पर प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं ने हमें मुबारकबाद दी है. उनका आभार व्यक्त करता हूं.

भाजपा के मुकाबिल गठबन्धन तैयार करने में जुटे अखिलेश यादव को बस एक बात की गहरी टीस है. साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ छेड़ी गई उनकी लड़ाई में कांग्रेस ने उनसे दामन छुड़ा लिया. निकाय चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से जो किनारा किया उसका बड़ा खामियाजा उसे भुगतना भी पड़ा. फूलपुर और गोरखपुर के उप चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी अपनी जमानत तब बचा पाने में कामयाब नहीं हो सके.

जिन राहुल गांधी को साथ लेकर एक साल पहले उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव अखिलेश न लड़ा, उन्हें बिना बताये कांग्रेस के अलग हो जाने की वजह से अखिलेश गहरे पशोपेश में हैं. इस बात का जिक्र भी उन्होंने किया. बोले, हमारी उनसे दिल की दोस्ती है. जो सदा रहेगी. उनके इस कथन का साफ अर्थ है, गठबन्धन में कांग्रेस को भी शामिल करने में अखिलेश गुरेज नहीं करेंगे.

जानकारों के अनुसार अखिलेश और मायावती के साथ आने से भाजपा की परेशानी काफी हद तक बढ़ी है

फूलपुर और गोरखपुर में बसपा के सहयोग से सपपा को मिली जीत पर बसपाइयों ने एक नया नारा गढ़ दिया है. 'बहनजी और अखिलेश जुड़े, मोदी-योगी के होश उड़े'. यह नारा इस बात की ताकीद करने के लिए काफी है कि अब बसपा और सपा प्रदेश व देश की सत्ता के दरवाजे तक पहुंचने के लिए पूरक के तौर पर खुद को पेश करने की तैयारी में हैं. ठीक 23 साल पहले भी ऐसा ही एक नारा सपा-बसपा गठबन्धन के दौरान निकला था, 'मिले मुलायम- कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम'.

फिलहाल 'रामलहर' को रोकने वाली इन पार्टियों का ताजा मेल अब 'मोदी लहर' को रोक पाएगा या नहीं, यह दावा 25 साल पहले जितना आसान नहीं रह गया है.अखिलेश दरअसल जिस गठबन्धन की परिकल्पना लेकर चले हैं, उसके मूर्त रूप लेने में कांग्रेस मौजूदा समय में बड़ा अड़ंगा है. राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस को किसी दूसरे नेता को गठबन्धन की अगुवाई करना मंजूर नहीं होगा.

ऐसे में अखिलेश को खुद सोचना होगा कि क्या वह देश में राष्ट्रीय दलों को साथ लिए बगैर कोई ऐसा सियासी विकल्प तैयार कर पाते हैं जो फूलपुर और गोरखपुर सरीखा करिश्मा पूरे देश में कर पाने की कुव्वत पैदा कर सके? यह वो सवाल है जिसका जवाब देश की सियासी तासीर को बदलने की सामर्थ रखता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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