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बुआ का बबुआ से मांगा गया रिटर्न गिफ्ट तो एकलव्य के अंगूठे जैसा है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 22 मार्च, 2018 04:50 PM
  • 22 मार्च, 2018 04:50 PM
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अखिलेश यादव के साथ उनके चाचा शिवपाल अब भी आंख मिचौली खेल रहे हैं और मायावती ने गोरखपुर-फूलपुर के बदले रिटर्न गिफ्ट मांग लिया है. अखिलेश अगर मायावती की बात मानते हैं तो जया बच्चन के लिए रिस्की हो सकता है.

यूपी के उपचुनावों में समाजवादी पार्टी को बीएसपी का सपोर्ट महज एक सियासी सौदेबाजी रही. खुद मायावती ने ही इसे समझाया भी था. मायावती का कहना रहा कि ये हाल के चुनावों में वोट ट्रांसफर के लिए हुआ है. ये 2019 के लिए अभी नहीं है. यही वजह रही कि इसे 'एक हाथ से दे, एक हाथ से ले' डील की तरह देखा भी गया.

बदले में मायावती ने अखिलेश यादव से अपने उम्मीदवार के लिए 10 खांटी समाजवादी विधायकों को अलॉट करने को कहा है - ताकि क्रॉस वोटिंग की कोई गुंजाइश न रहे. मायावती की इस मांग को रिटर्न गिफ्ट के तौर पर लिया जा रहा है - लेकिन ये तो एकलव्य के अंगूठे जैसा लगता है.

बुआ की डिमांड

23 मार्च को राज्य सभा की 59 सीटों के लिए वोटिंग होनी है, लेकिन मामला ज्यादा दिलचस्प यूपी का लगता है. गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव जीतने के बाद अखिलेश यादव, मायावती और उनके समर्थकों का जोश सातवें आसमान पर पहुंचा हुआ है. हार से बौखलाई बीजेपी ने भी खेल बिगाड़ने का पूरा इंतजाम कर दिया है. अमित शाह के दखल के कारण राजनीति शास्त्र का पेपर अखिलेश और मायावती के लिए गणित का पर्चा बन गया है. खेल बिगाड़ने वाले तो और भी हैं मगर नरेश अग्रवाल के जरिये बीजेपी ने जो तड़का लगाया है उसका असर दूर दूर तक दिखायी दे रहा है.

ये डिमांड तो बड़ा रिस्की है!

यूपी में 10 सीटों के लिए मैदान में 11 उम्मीदवार हैं जिनमें बीजेपी के 8 उम्मीदवारों की जीत संख्या बल के चलते पक्की है. ताजा खेल में एक सीट पर पॉलिटिकल लोचा और एक क्रॉस वोटिंग के फेर में फंसती नजर आ रही है. बीजेपी पहले भी विपक्ष के वोटों में सेंध लगा चुकी है. इस बार भी बीजेपी की कोशिश है कि समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस क्रॉस वोटिंग करें और नौवीं भी उसी के खाते में पहुंच जाये.

यूपी से राज्य सभा के लिए...

यूपी के उपचुनावों में समाजवादी पार्टी को बीएसपी का सपोर्ट महज एक सियासी सौदेबाजी रही. खुद मायावती ने ही इसे समझाया भी था. मायावती का कहना रहा कि ये हाल के चुनावों में वोट ट्रांसफर के लिए हुआ है. ये 2019 के लिए अभी नहीं है. यही वजह रही कि इसे 'एक हाथ से दे, एक हाथ से ले' डील की तरह देखा भी गया.

बदले में मायावती ने अखिलेश यादव से अपने उम्मीदवार के लिए 10 खांटी समाजवादी विधायकों को अलॉट करने को कहा है - ताकि क्रॉस वोटिंग की कोई गुंजाइश न रहे. मायावती की इस मांग को रिटर्न गिफ्ट के तौर पर लिया जा रहा है - लेकिन ये तो एकलव्य के अंगूठे जैसा लगता है.

बुआ की डिमांड

23 मार्च को राज्य सभा की 59 सीटों के लिए वोटिंग होनी है, लेकिन मामला ज्यादा दिलचस्प यूपी का लगता है. गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव जीतने के बाद अखिलेश यादव, मायावती और उनके समर्थकों का जोश सातवें आसमान पर पहुंचा हुआ है. हार से बौखलाई बीजेपी ने भी खेल बिगाड़ने का पूरा इंतजाम कर दिया है. अमित शाह के दखल के कारण राजनीति शास्त्र का पेपर अखिलेश और मायावती के लिए गणित का पर्चा बन गया है. खेल बिगाड़ने वाले तो और भी हैं मगर नरेश अग्रवाल के जरिये बीजेपी ने जो तड़का लगाया है उसका असर दूर दूर तक दिखायी दे रहा है.

ये डिमांड तो बड़ा रिस्की है!

यूपी में 10 सीटों के लिए मैदान में 11 उम्मीदवार हैं जिनमें बीजेपी के 8 उम्मीदवारों की जीत संख्या बल के चलते पक्की है. ताजा खेल में एक सीट पर पॉलिटिकल लोचा और एक क्रॉस वोटिंग के फेर में फंसती नजर आ रही है. बीजेपी पहले भी विपक्ष के वोटों में सेंध लगा चुकी है. इस बार भी बीजेपी की कोशिश है कि समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस क्रॉस वोटिंग करें और नौवीं भी उसी के खाते में पहुंच जाये.

यूपी से राज्य सभा के लिए बीजेपी उम्मीदवार हैं - अरुण जेटली, महेश चंद्र शर्मा, अनिल जैन, अशोक वाजपेयी, कांता कर्दम, विजय पाल सिंह तोमर, हरनाथ सिंह यादव, सकलदीप राजभर और जीवीएल नरसिम्हा राव. इसी तरह समाजवादी पार्टी ने जया बच्चन और बीएसपी ने भीमराव अंबेडकर को मैदान में उतारा है. 11वें निर्दलीय उम्मीदवार हैं अनिल अग्रवाल, जिन्हें बीजेपी ने समर्थन देने का ऐलान किया है.

खबर है कि मायावती ने अखिलेश यादव से बीएसपी उम्मीदवार के लिए उन समाजवादी विधायकों को अलॉट करने को कहा है जो इतने निष्ठावान हों कि आंख मूंद कर भरोसा किया जा सके. ऐसे विधायक जो किसी भी सूरत में बीजेपी के झांसे में आकर क्रॉस वोटिंग के लिए कतई तैयार न हों. जाहिर है अखिलेश यादव को तो ऐसा करना ही पड़ेगा. इसका खामियाजा ये भी हो सकता है कि बाकी बचे समाजवादी पार्टी के विधायकों की मंशा खतरा बन कर जया बच्चन के मामले में सिर पर लगातार लटकती रहेगी.

फिर चाचा बने चुनौती

मौके की नजाकत को देखते हुए शिवपाल यादव अब अखिलेश के साथ लुका छिपी का खेल खेल रहे हैं. जब समाजवादी पार्टी की अहम मीटिंग में शिवपाल यादव नहीं पहुंचे तो सियासी गलियारों में इसे अमित शाह के खेल के तौर पर देखा जाने लगा. लेकिन एक बार फिर छकाते हुए शिवपाल यादव विधायकों के डिनर में पहुंच गये और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों के जीतने का भरोसा भी दिलाया. उपचुनाव जीतने पर शिवपाल ने अखिलेश यादव को बधाई दी थी जिस पर उनका कहना था - 'उन्होंने मुझे बधाई दी है और मैं उम्मीद करता हूं कि वो हमारे लिए वोट भी करेंगे.'

क्या डिनर में शामिल होना वोट की भी गारंटी है?

शिवपाल यादव और उनके समर्थक कहें जो भी वोट किसे देंगे ये बेहतर वे ही जानते होंगे. राष्ट्रपति चुनाव में भी शिवपाल यादव और उनके समर्थकों ने पार्टी लाइन से अलग रुख अख्तियार किया था. बीजेपी की उम्मीदें भी शिवपाल यादव, अमनमणि त्रिपाठी जैसे विधायकों पर टिकी हैं. निर्दल विधायक अमनमणि त्रिपाठी और समाजवादी एमएलए नितिन अग्रवाल का योगी आदित्यनाथ के डिनर में पहुंचना बीजेपी के खेल में आगे बढ़ने के संकेत हैं. वैसे भी खेल ज्यादा बिगड़ा है नरेश अग्रवाल के समाजवादी पार्टी छोड़ कर बीजेपी में आ जाने से.

मायावती की मुश्किल ये भी है कि अपने शासन के दौरान जो बीज उन्होंने बोये थे, फसल पक कर तैयार हो गयी है. मायावती के सीएम रहते ही कुंडा से निर्दलीय विधायक राजा भैया को जेल भेजा गया और उनके महल पर छापे पड़े. प्रतापगढ़ से निर्दलीय विधायक विनोद कुमार भी राजा भैया के ही समर्थक बताये जाते हैं. मायावती सरकार से बर्खास्त कर अमरमणि त्रिपाठी को जेल भेजा गया था. मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे अमरमणि के बेटे और अपनी पत्नी की हत्या के आरोप अमनमणि त्रिपाठी ने तो योगी के डिनर में जाकर अपना स्टैंड क्लिअर ही कर दिया है. वैसे भी वो न तो बीएसपी और न ही समाजवादी को सपोर्ट करने वाले थे क्योंकि 2017 में अखिलेश यादव ने उनका टिकट काट दिया था.

वैसे बीएसपी अपने स्तर पर भी कोशिशें लगातार कर रही है. बीएसपी की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में दो विधायकों की जेल से रिहा करने की अर्जी डाली गयी है. ये विधायक हैं - बीएसपी के मुख्तार अंसारी और समाजवादी पार्टी के हरिओम यादव.

2019 और संभावित कैराना लोक सभा उपचुनाव से पहले मायावती के लिए अखिलेश यादव को आजमाने का बड़ा मौका मिल गया है. अखिलेश की मुश्किल ये है कि वो मायावती की डिमांड पूरी करें तो जया बच्चन की जीत के लिए जोखिम उठानी पड़ेगी. ऐसे में मायावती का ये रिटर्न गिफ्ट, एकलव्य के अंगूठे जैसा ज्यादा लगता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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