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Owaisi पर हमले के राजनीतिक मायने हैं जिनसे बिगड़ सकता है सपा-बसपा का चुनावी खेल!

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 05 फरवरी, 2022 05:01 PM
  • 05 फरवरी, 2022 05:01 PM
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2017 के यूपी के चुनाव में ओवैसी के 38 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. 37 की जमानत जब्त हो गई थी. संभल की सीट पर उनका उम्मीदवार दूसरे नंबर था. इस बार ओवैसी बड़ा करिश्मा दिखा सकते हैं. फायरिंग की घटना के बाद उन्हें एज मिलता नजर आ रहा है.

गुरुवार को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के वाहन पर हापुड़ टोल प्लाजा छिजारसी में फायरिंग की गई. ओवैसी ने तुरंत बाद ट्वीट कर घटना की जानकारी दी. पूरे मामले में यूपी पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया है. फिलहाल दोनों 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजे जा चुके हैं. यूपी विधानसभा चुनाव में यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. इसने धार्मिक आधार पर हो रहे राजनीतिक ध्रुवीकरण को लेकर शुरू बहस को जबरदस्त हवा दे दी है.

सभी दलों ने ओवैसी पर हमले की निंदा की. लेकिन सोशल मीडिया पर एक एक धड़ा ओवैसी साहब पर ही आरोप लगा रहा है. कुचर्चा में तथ्य तो होते नहीं, जाहिर है ऐसे लोग हमलावरों के फायरिंग स्पॉट पर ही क्यों सवाल कर रहे हैं. ओवैसी की कार पर जो फायरिंग हुई थी, वह दरवाजे पर नीचे की तरफ है. कुल मिलाकर ऐसी घटना नहीं होती तो ज्यादा अच्छा था. एक दिन का समय बीत जाने के बावजूद सोशल मीडिया फायरिंग की घटना बहस तलब है. तरह-तरह के आरोप-प्रत्यारोप भी सामने आ रहे हैं. पार्टियां 'हमले' के लिए एक-दूसरे पर माहौल बिगाड़ने और उकसाने का आरोप लगा रही हैं. यहां तक कि असदुद्दीन ने भी कई दलों का नाम लेकर ऐसे ही आरोप लगाए हैं.

ओवैसी पर हमला अब जांच का विषय है. हमलावरों का मकसद क्या था और इसके पीछे क्या किसी तरह की राजनीतिक साजिश थी यह अब बाद का विषय है. यूपी में विधानसभा चुनाव के दौरान ओवैसी पर जानलेवा हमले की कोशिश के कई मायने निकलकर आते हैं. ये मायने शुद्ध राजनीतिक हैं. घटना के बाद ओवैसी को लेकर सोशल मीडिया पर आम मुसलमान जिस तरह प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे- वह संकेत ही है कि घटनाक्रम के बाद ओवैसी को एक एज मिल रहा है. यह स्वाभाविक है.

ओवैसी ने कई छोटे-छोटे दलों को मिलाकर एक गठबंधन बनाया है जिसमें बाबू सिंह कुशवाहा जैसे नेता भी शामिल हैं. गठबंधन का दावा है कि वह राज्य की सभी सीटों पर मैदान में है. बिहार के पिछले विधानसभा से उत्साहित ओवैसी की कोशिश है कि यूपी के करीब 19 प्रतिशत मुस्लिम मतों...

गुरुवार को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के वाहन पर हापुड़ टोल प्लाजा छिजारसी में फायरिंग की गई. ओवैसी ने तुरंत बाद ट्वीट कर घटना की जानकारी दी. पूरे मामले में यूपी पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया है. फिलहाल दोनों 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजे जा चुके हैं. यूपी विधानसभा चुनाव में यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. इसने धार्मिक आधार पर हो रहे राजनीतिक ध्रुवीकरण को लेकर शुरू बहस को जबरदस्त हवा दे दी है.

सभी दलों ने ओवैसी पर हमले की निंदा की. लेकिन सोशल मीडिया पर एक एक धड़ा ओवैसी साहब पर ही आरोप लगा रहा है. कुचर्चा में तथ्य तो होते नहीं, जाहिर है ऐसे लोग हमलावरों के फायरिंग स्पॉट पर ही क्यों सवाल कर रहे हैं. ओवैसी की कार पर जो फायरिंग हुई थी, वह दरवाजे पर नीचे की तरफ है. कुल मिलाकर ऐसी घटना नहीं होती तो ज्यादा अच्छा था. एक दिन का समय बीत जाने के बावजूद सोशल मीडिया फायरिंग की घटना बहस तलब है. तरह-तरह के आरोप-प्रत्यारोप भी सामने आ रहे हैं. पार्टियां 'हमले' के लिए एक-दूसरे पर माहौल बिगाड़ने और उकसाने का आरोप लगा रही हैं. यहां तक कि असदुद्दीन ने भी कई दलों का नाम लेकर ऐसे ही आरोप लगाए हैं.

ओवैसी पर हमला अब जांच का विषय है. हमलावरों का मकसद क्या था और इसके पीछे क्या किसी तरह की राजनीतिक साजिश थी यह अब बाद का विषय है. यूपी में विधानसभा चुनाव के दौरान ओवैसी पर जानलेवा हमले की कोशिश के कई मायने निकलकर आते हैं. ये मायने शुद्ध राजनीतिक हैं. घटना के बाद ओवैसी को लेकर सोशल मीडिया पर आम मुसलमान जिस तरह प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे- वह संकेत ही है कि घटनाक्रम के बाद ओवैसी को एक एज मिल रहा है. यह स्वाभाविक है.

ओवैसी ने कई छोटे-छोटे दलों को मिलाकर एक गठबंधन बनाया है जिसमें बाबू सिंह कुशवाहा जैसे नेता भी शामिल हैं. गठबंधन का दावा है कि वह राज्य की सभी सीटों पर मैदान में है. बिहार के पिछले विधानसभा से उत्साहित ओवैसी की कोशिश है कि यूपी के करीब 19 प्रतिशत मुस्लिम मतों के सहारे छोटे-छोटे दल का सहयोग लेकर दमदार उपस्थिति दर्ज कराई जाए. उन्होंने मुसलमानों के साथ दलित-ओबीसी गठजोड़ बनाने का प्रयास किया है और उनकी योजना भाजपा के खिलाफ मुस्लिम बहुल सीटों पर चक्रव्यूह बनाना है जो सपा-बसपा को पीछे छोड़े बिना संभव नहीं. खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश के हिस्से में जहां दर्जनों सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं.

असदुद्दीन ओवैसी.

वोट मिले या ना मिले, यूपी के बहुतायत मुसलमानों पर ओवैसी का असर है

जहां तक यूपी में मुसलमानों के बीच ओवैसी के असर की बात है- लगभग सभी उनकी बातों से सहमत नजर आते हैं. उनकी रैलियों, सभाओं और रोड शो में जुटने वाले अल्पसंख्यक समुदाय की भीड़ इस बात का सीधा सबूत है. वे एक मजबूत चेहरा और ताकत के रूप में नजर आते हैं. उन्हें सुना जाता है और मुसलमानों के मुद्दे को वैसे ही उठाते हैं जैसे भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे को उठाती है. हालांकि ओवैसी की दिक्कत यह है कि मुसलमानों की भीड़ उन्हें सुनती है, गुनती है और भरोसा भी करती है लेकिन ज्यादातर जगहों पर एकमुश्त वोट देने से कतरा जाती है. मुसलमानों को लगता है कि ओवैसी भाजपा को हराने में सक्षम नहीं हैं और इसी वजह से वो सपा और बसपा के पीछे खड़ा नजर आता है. सपा, बसपा और यहां तक कि कांग्रेस भी ओवैसी को भाजपा की बी टीम करार देते हैं. ऐसा कहने वाले वे छोटे-छोटे दल भी हैं जिनका आधार मुस्लिम ही हैं.

घटना ने ओवैसी को दी सिम्पैथी, काम आएगा उनके

मौजूदा चुनाव में (पश्चिम उत्तर प्रदेश में भी) बहुतायत मुस्लिम मतदाता भाजपा को हराने के लिए सपा या बसपा में ही विकल्प तलाश रहा है. और कहना नहीं होगा कि घटना से पहले तक बहुतायत मुसलमान सपा या बसपा के साथ ही खड़ा नजर आ रहा था. वैसे 2017 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने यूपी में कोई सीट तो नहीं जीती थी मगर कुछ सीटों पर उसे बड़ी तादाद में वोट मिले. जाहिर सी बात है कि ये वोट मुसलमानों के हैं. पश्चिम में भाजपा के खिलाफ सभी पार्टियों के व्यूह में मुस्लिम मतदाता अहम हैं.

ओवैसी जिसके लिए राजनीति करते हैं उसमें उन्हें भाजपा से ज्यादा दिक्कत सपा और बसपा से ही है. घटना से ओवैसी के पक्ष एक सिम्पैथी तैयार हो रही है. और यह कहने की जरूरत नहीं कि ओवैसी और उनका काडर इसे जमकर भुनाने की कोशिश में लग गया है. भाजप के खिलाफ जंग में उतरी विपक्षी दलों को ओवैसी पर हमले के राजनीतिक मायने पता थे. यही वजह है कि घटना के तुरंत बाद समाजवादी पार्टी, रालोद, बसपा, कांग्रेस जैसे दलों ने तत्काल ओवैसी के पक्ष में प्रतिक्रिया जताई और योगी की राजनीति पर निशाना साधा.

घटना के एक दिन बाद ओवैसी के मंसूबे साफ हो गए हैं

ओवैसी को बैठे बिठाए एक भावुक मुद्दा मिल गया है. निश्चित ही घटना के बाद ओवैसी को एक एज मिलता दिख रहा है. एज कितना मिलेगा यह तो तय नहीं लेकिन अब माना जा सकता है कि AIMIM के उम्मीदवार पश्चिम में ठीकठाक वोट पाते नजर आ सकते हैं. ओवैसी घटना को जोर शोर से उठा रहे हैं. स्वाभाविक रूप से उनके निशाने पर सपा-बसपा का होना उनकी दुखती रग का संकेत तो कर ही रही है घटना के बाद उनके मंसूबे को भी साफ कर देती है.

शुक्रवार को ओवैसी ने कहा- मैं मौत से डरने वाला नहीं हूं. मैं इस वतन में पैदा हुआ, मुझे जेड प्लस सुरक्षा बिल्कुल नहीं चाहिए. उन्होंने कहा- आजाद जिंदगी बिताना चाहता हूं. मुझे गोली लगती है, तो कबूल है. लेकिन मैं घुटन की जिंदगी नहीं जीना चाहता. गरीब बचेंगे, तो मैं बच लूंगा ओवैसी की जान उस वक्त बचेगी, जब गरीब की जान बचेगी. मुझे ए कैटेगरी का शहरी बनाइए , जेड कैटेगरी की सुरक्षा नहीं चाहिए. सपा-बसपा को लेकर कहा- ये दल चाहते हैं कि मुसलमान उनके लिए अपनी जवानी कुर्बान करते रहें.

ओवैसी के बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जिसमें वे सपा-बसपा को आड़े हाथ ले रहे हैं. पश्चिम में इस बार बसपा ने सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. इसके बाद सपा गठबंधन से भी बड़े पैमाने पर मुस्लिम चेहरे मैदान में हैं. ओवैसी इन्हीं दलों से मुसलमान मतों को छीनना चाहते हैं. ओवैसी कोई बड़ा करिश्मा तो नहीं करेंगे लेकिन उनपर भाजपा की बी टीम कहे जाने का आरोप फायरिंग के बाद खुद ब खुद कमजोर होगा. और उन्हें उन मुसलमानों का वोट मिल सकता है जो ओवैसी की सियासत के पक्षधर हैं और अब तक भाजपा को हराने के लिए दूसरी पार्टियों में जा रहे थे. वोट कितना मिलेगा इस पर नतीजों तक जरूर संशय बना रहेगा. क्या ओवैसी कोई सीट जीत सकते हैं यह भी दावा नहीं किया जा सकता.

2017 के यूपी के चुनाव में ओवैसी के 38 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. 37 की जमानत जब्त हो गई थी. संभल की सीट पर उनका उम्मीदवार दूसरे नंबर था. जबकि 38 में से 13 सीटों पर सपा बसपा के लड़ने के बावजूद ओवैसी की पार्टी चौथे नंबर पर थी. लेकिन ओवैसी की पार्टी ने रालोद के बराबर वोट पाए थे जो यूपी में उनकी बढ़ती ताकत का सबूत था. नागरिकता क़ानून के बाद ओवैसी की सक्रियता यूपी में खूब बढ़ चुकी है. सपा-बसपा को परेशान होना चाहिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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