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भाजपा विधायक को 'नग्न' कर किसानों ने अपने ही आंदोलन को 'नंगा' कर दिया

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 01 अप्रिल, 2021 06:07 PM
  • 01 अप्रिल, 2021 06:07 PM
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भाजपा विधायक को निर्वस्त्र कर पीटे जाने की घटना के बाद से ही किसान संगठनों ने इन कथित किसानों से अपना पल्ला झाड़ लिया है. ठीक उसी तरह जैसा गणतंत्र दिवस पर फैली अराजकता के बाद किया गया था. किसान संगठन इतना लंबा समय गुजर जाने के बाद भी किसानों और अराजक तत्वों में भेद नहीं कर पा रहे हैं.

दिल्ली की सीमाओं पर पिछले तीन महीने से ज्यादा समय से कई किसान संगठन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. राजनीतिक दल भी किसान आंदोलन को समर्थन देते आ रहे हैं. बीते गणतंत्र दिवस पर हुई किसान ट्रैक्टर रैली में फैली अराजकता के बाद से किसान आंदोलन धीमे ही सही लेकिन सही राह पर नजर आने लगा था. किसान आंदोलन का दुर्भाग्य रहा है कि इसके साथ कुछ न कुछ ऐसी घटनाएं जुड़ती गई है, जो इसके उद्देश्य को नुकसान पहुंचाती रही हैं. हाल ही में पंजाब के मुक्तसर जिले के मलोट इलाके में भाजपा विधायक अरुण नारंग को कथित किसानों ने 'नग्न' कर पीट दिया गया. इस घटना के बाद एक बार फिर से किसान आंदोलन पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. कहा जा सकता है कि इस हमले की घटना ने किसानों के आंदोलन को 'नंगा' कर दिया है.

भाजपा विधायक को निर्वस्त्र कर पीटे जाने की घटना के बाद से ही किसान संगठनों ने इन कथित किसानों से अपना पल्ला झाड़ लिया है. ठीक उसी तरह जैसा गणतंत्र दिवस पर फैली अराजकता के बाद किया गया था. किसान संगठन इतना लंबा समय गुजर जाने के बाद भी किसानों और अराजक तत्वों में भेद नहीं कर पा रहे हैं. किसान संगठनों का कहना है कि इस घटना को भीड़ ने अंजाम दिया है. लेकिन, भीड़ किसानों के नाम पर ही इकट्ठा करी गई थी. भाजपा नेताओं और प्रतिनिधियों को सबक सिखाने की बात किसान संगठन ने ही की थी. अब वह कैसे इन घटनाओं से अपना मुंह मोड़ सकता है, सवाल तो खड़े ही होंगे.

केंद्र सरकार हमेशा से ही कहती रही है कि किसान आंदोलन पंजाब के किसानों द्वारा ही किया जा रहा है. दिल्ली की सीमा पर प्रदर्शन करने वाले किसान संगठनों में सबसे ज्यादा पंजाब के संगठन हैं. हालांकि, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान संगठन भी इसमें जुड़े हैं. कृषि कानूनों को लेकर जितनी नाराजगी पंजाब के किसान संगठनों ने जताई है, उतनी शायद ही किसी अन्य संगठन ने...

दिल्ली की सीमाओं पर पिछले तीन महीने से ज्यादा समय से कई किसान संगठन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. राजनीतिक दल भी किसान आंदोलन को समर्थन देते आ रहे हैं. बीते गणतंत्र दिवस पर हुई किसान ट्रैक्टर रैली में फैली अराजकता के बाद से किसान आंदोलन धीमे ही सही लेकिन सही राह पर नजर आने लगा था. किसान आंदोलन का दुर्भाग्य रहा है कि इसके साथ कुछ न कुछ ऐसी घटनाएं जुड़ती गई है, जो इसके उद्देश्य को नुकसान पहुंचाती रही हैं. हाल ही में पंजाब के मुक्तसर जिले के मलोट इलाके में भाजपा विधायक अरुण नारंग को कथित किसानों ने 'नग्न' कर पीट दिया गया. इस घटना के बाद एक बार फिर से किसान आंदोलन पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. कहा जा सकता है कि इस हमले की घटना ने किसानों के आंदोलन को 'नंगा' कर दिया है.

भाजपा विधायक को निर्वस्त्र कर पीटे जाने की घटना के बाद से ही किसान संगठनों ने इन कथित किसानों से अपना पल्ला झाड़ लिया है. ठीक उसी तरह जैसा गणतंत्र दिवस पर फैली अराजकता के बाद किया गया था. किसान संगठन इतना लंबा समय गुजर जाने के बाद भी किसानों और अराजक तत्वों में भेद नहीं कर पा रहे हैं. किसान संगठनों का कहना है कि इस घटना को भीड़ ने अंजाम दिया है. लेकिन, भीड़ किसानों के नाम पर ही इकट्ठा करी गई थी. भाजपा नेताओं और प्रतिनिधियों को सबक सिखाने की बात किसान संगठन ने ही की थी. अब वह कैसे इन घटनाओं से अपना मुंह मोड़ सकता है, सवाल तो खड़े ही होंगे.

केंद्र सरकार हमेशा से ही कहती रही है कि किसान आंदोलन पंजाब के किसानों द्वारा ही किया जा रहा है. दिल्ली की सीमा पर प्रदर्शन करने वाले किसान संगठनों में सबसे ज्यादा पंजाब के संगठन हैं. हालांकि, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान संगठन भी इसमें जुड़े हैं. कृषि कानूनों को लेकर जितनी नाराजगी पंजाब के किसान संगठनों ने जताई है, उतनी शायद ही किसी अन्य संगठन ने दिखाई हो. फिल्मों की शूटिंग रोकने से लेकर अभिनेताओं को सरेराह बेइज्जत करने तक पंजाब के किसानों ने क्या कुछ नहीं किया है. कांग्रेस के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के साथ गणतंत्र दिवस की घटना से एक दिन पहले ही सिंघू बॉर्डर पर किसानों की कथित झड़प हुई थी. उस समय कांग्रेस सांसद ने किसान आंदोलन में खालिस्तानी झंडों को लेकर सवाल उठाया था. यहां बताना जरूरी है कि लाल किले पर निशान साहिब फहराने वाले जुगराज सिंह के परिवार को पंजाब में सम्मानित किया गया है.

किसानों को डर है कि केंद्र सरकार नए कृषि कानूनों की आड़ में एमएसपी खत्म कर देगी.

किसानों को डर है कि केंद्र सरकार नए कृषि कानूनों की आड़ में एमएसपी खत्म कर देगी. किसान आंदोलन में सारा खेल एमएसपी का ही है. दरअसल, एमएसपी का लाभ 5 हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य भूमि वाले किसानों को ही मिल पाता है. पंजाब और हरियाणा में ऐसे किसानों की संख्या सबसे ज्यादा है. आंकड़ों के हिसाब से इन दो राज्यों और देश के अन्य राज्यों के 86 फीसदी किसान ऐसे हैं, जिनके पास औसतन 2 हेक्टेयर से भी कम कृषि खेती है. ये सभी किसान एमएसपी के लाभ से वंचित रह जाते हैं. इसी वजह से किसान आंदोलन पंजाब और हरियाणा समेत पश्चिमी यूपी के हिस्से तक ही केंद्रित है. किसान आंदोलन के इन्ही दो राज्यों में सबसे उग्र होने का कारण यही है. केंद्र सरकार की ओर से लगातार कहा गया है कि एमएसपी को खत्म नहीं किया जाएगा, लेकिन इसके बावजूद किसान संगठन यह बात मानने को तैयार नही हैं.

किसान आंदोलन को समर्थन दे रहे राजनीतिक दल केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को रद्द करवाना चाहते हैं. वहीं, संसदीय समिति में शामिल इन्हीं दलों के नेता कृषि कानूनों में से एक आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को लागू करने की सिफारिश भी करते हैं. किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे राकेश टिकैत चुनावी राज्यों में पंचायतें कर रहे हैं और अपनी सियासी जमीन तैयार करने में जुटे हैं. जिन बिचौलियों को हटाने की कोशिश केंद्र सरकार कर रही है, पंजाब सरकार उन्हीं को बढ़ावा दे रही है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सही दिशा में जा रहा किसान आंदोलन फिर से रास्ता खोता नजर आ रहा है. भाजपा विधायक अरुण नारंग को 'नग्न' कर किसानों ने आंदोलन को फिर से 'नंगा' कर दिया है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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