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Exit Poll में विजयन-स्टालिन हीरो बन रहे, लेकिन राहुल को फिर जीरो मार्क्स

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 30 अप्रिल, 2021 11:38 AM
  • 30 अप्रिल, 2021 11:38 AM
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2 मई तक केरल में पी. विजयन (Pinarayi Vijayan) और तमिलनाडु में एमके स्टालिन (MK Stalin) जोश से लबालब बने रहने के संकेत हैं, लेकिन राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए एक बार फिर बुरी खबर मिल सकती है - वो भी केरल से जहां से वो सांसद हैं और खूब मेहनत किये थे.

एग्जिट पोल कितने सही साबित होते हैं, जानने के लिए 2 मई तक इंतजार तो करना ही होगा - लेकिन इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल के नतीजों में बड़े ही दिलचस्प आंकड़े देखने को मिले हैं. कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल के ज्यादातर अनुमान हमेशा ही सटीक साबित हुए हैं.

अव्वल तो पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा चर्चित पश्चिम बंगाल ही रहा है. चर्चित होने के कई कारण भी रहे हैं, लेकिन एग्जिट पोल में जैसे नतीजों की तरफ इशारा समझ आ रहा है, वे कहीं ज्यादा दिलचस्प लगते हैं.

एग्जिट पोल के मुताबिक, केरल में मुख्यमंत्री पी. विजयन (Pinarayi Vijayan) न सिर्फ सत्ता बचाने में कामयाब नजर आ रहे हैं, बल्कि भारी बहुमत से उनके चुनाव जीतने का भी अनुमान है - और तमिलनाडु में डीएमके नेता एमके स्टालिन (MK Stalin) 2019 के आम चुनाव जैसा प्रदर्शन दोहराते हुए मुख्यमंत्री बनने के प्रबल आसार लग रहे हैं.

एग्जिट पोल के हिसाब से देखें तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एक बार फिर सबसे बड़े लूजर के तौर पर सामने आ रहे हैं - आम चुनाव के बाद कांग्रेस भले ही महाराष्ट्र और झारखंड की सरकारों में हिस्सेदार बनी हो, लेकिन बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस के बागियों और आरजेडी नेताओं के निशाने पर आये राहुल गांधी एक बार फिर हार की तोहमत अपने सिर लेने को मजबूर दिख रहे हैं.

विजयन और स्टालिन बने हीरो

चुनाव आयोग ने विजय जुलूस पर तो रोक लगा दी है, लेकिन केरल में पी. विजयन और तमिलनाडु में एमके स्टालिन चाहें तो 2 मई तक मन ही मन जश्न मना सकते हैं.

एग्जिट पोल के मुताबिक, केरल में पी. विजयन के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन एलडीएफ की साफ तौर पर वापसी के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन सत्ता हासिल करने को बेताब कांग्रेस गठबंधन के हाथ मायूसी ही लगती प्रतीत हो रही है.

इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल की तरफ से पेश एग्जिट पोल के अनुसार, केरल विधानसभा की 140 सीटों में से एलडीएफ को 104-120...

एग्जिट पोल कितने सही साबित होते हैं, जानने के लिए 2 मई तक इंतजार तो करना ही होगा - लेकिन इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल के नतीजों में बड़े ही दिलचस्प आंकड़े देखने को मिले हैं. कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल के ज्यादातर अनुमान हमेशा ही सटीक साबित हुए हैं.

अव्वल तो पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा चर्चित पश्चिम बंगाल ही रहा है. चर्चित होने के कई कारण भी रहे हैं, लेकिन एग्जिट पोल में जैसे नतीजों की तरफ इशारा समझ आ रहा है, वे कहीं ज्यादा दिलचस्प लगते हैं.

एग्जिट पोल के मुताबिक, केरल में मुख्यमंत्री पी. विजयन (Pinarayi Vijayan) न सिर्फ सत्ता बचाने में कामयाब नजर आ रहे हैं, बल्कि भारी बहुमत से उनके चुनाव जीतने का भी अनुमान है - और तमिलनाडु में डीएमके नेता एमके स्टालिन (MK Stalin) 2019 के आम चुनाव जैसा प्रदर्शन दोहराते हुए मुख्यमंत्री बनने के प्रबल आसार लग रहे हैं.

एग्जिट पोल के हिसाब से देखें तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एक बार फिर सबसे बड़े लूजर के तौर पर सामने आ रहे हैं - आम चुनाव के बाद कांग्रेस भले ही महाराष्ट्र और झारखंड की सरकारों में हिस्सेदार बनी हो, लेकिन बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस के बागियों और आरजेडी नेताओं के निशाने पर आये राहुल गांधी एक बार फिर हार की तोहमत अपने सिर लेने को मजबूर दिख रहे हैं.

विजयन और स्टालिन बने हीरो

चुनाव आयोग ने विजय जुलूस पर तो रोक लगा दी है, लेकिन केरल में पी. विजयन और तमिलनाडु में एमके स्टालिन चाहें तो 2 मई तक मन ही मन जश्न मना सकते हैं.

एग्जिट पोल के मुताबिक, केरल में पी. विजयन के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन एलडीएफ की साफ तौर पर वापसी के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन सत्ता हासिल करने को बेताब कांग्रेस गठबंधन के हाथ मायूसी ही लगती प्रतीत हो रही है.

इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल की तरफ से पेश एग्जिट पोल के अनुसार, केरल विधानसभा की 140 सीटों में से एलडीएफ को 104-120 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है - जो सत्ताधारी गठबंधन को 2016 में मिली 91 सीटों के मुकाबले काफी ज्यादा है.

हैरानी की बात ये है कि सत्ता में वापसी की राह देख रहे यूडीएफ जिसे कांग्रेस गठबंधन के तौर पर भी जाना जाता रहा है निराश हो सकता है. पोल के मुताबिक, एलडीएफ को महज 2-36 सीटें मिलने का ही अनुमान लगा है. 2016 में यूडीएफ गठबंधन के हिस्से में 41 सीटें आयी थीं.

राहुल गांधी की मेहनत एक बार फिर बेकार जाती नजर आ रही है

केरल में बीजेपी का भी काफी घटिया प्रदर्शन नजर आ रहा है. जहां मेट्रो मैन ई. श्रीधरन बीजेपी के चुनाव जीतने और वैसी सूरत में खुद के मुख्यमंत्री होने के दावे कर रहे थे, बीजेपी के हिस्से में 0-2 सीटें मिलने के अनुमान है. मौजूदा विधानसभा में बीजेपी के पास सिर्फ एक विधायक है.

एग्जिट पोल के आंकड़ों में वोट शेयर देखें तो एलडीएफ को 47 फीसदी, यूडीएफ को 38 फीसदी और एनडीए को 12 फीसदी वोट मिलने के अनुमान हैं.

234 सीटों वाली तमिलनाडु विधानसभा में में डीएमके गठबंधन को 175-195 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है, जबकि सत्ताधारी एआईएडीएमके के खाते में 38-54 सीटें आने का ही अंदाजा है. 2016 में जयललिता के नेतृत्व में जहां एआईएडीएमके ने 134 सीटों पर जीत हासिल की थी, डीएमके को 98 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. एग्जिट पोल के अनुसार, AMMK के हिस्से में 1-2 सीटें और MNM के खाते में 0-2 सीटें मिलने का अनुमान लगया गया है.

2019 में डीएमके ने एमके स्टालिन की अगुवाई में तमिलनाडु की एक लोक सभा सीट छोड़ कर 38 सीटें जीत ली थी. एआईएडीएमके को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा था - और जयललिता के जाने के बाद पार्टी को ये सबसे बड़ा झटका था क्योंकि 2014 में एआईडीएमके ने सभी 39 लोक सभा सीटें जीती थी और तब डीएमके का खाता भी नहीं खुल सका था.

तमिलनाडु में परंपरा के अनुसार तो पिछली दफा ही डीएमके के सत्ता में आने की बारी थी, लेकिन जयललिता ने कब्जा बरकरार रख कर सारी उम्मीदों पर पानी फेर दी थी.

ये पहला विधानसभा चुनाव रहा है जो एआईएडीएमके नेता जयललिता ही नहीं बल्कि डीएमके नेता एम. करुणानिधि की गैरमौजूदगी में दोनों दलों ने लड़ा है. डीएमके में स्टालिन पहले से ही पार्टी की कमान संभाल चुके थे, लेकिन जयललिता के विरासत की लड़ाई अभी थमी नहीं है - और चुनाव नतीजे आने के बाद नये सिरे से विवाद होने की आशंका है. जयललिता की दोस्त शशिकला ने अचानक ही चुनावों से दूरी बना ली थी, लेकिन ऐसा स्थायी तौर पर किया है, किसी को नहीं लगता.

पश्चिम बंगाल में एग्जिट पोल से जिस तरह के संकेत मिले हैं उसमें बीजेपी तो आगे है, लेकिन ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी थोड़ा ही पीछे है, लेकिन असम में बीजेपी के सत्ता में वापसी के साफ संकेत हैं.

राहुल गांधी के खाते में एक और हार

केंद्र शासित क्षेत्र पुडुचेरी भी इस बार कांग्रेस हाथ से फिसल कर बीजेपी की तरफ बढ़ता नजर आ रहा है. लगता है बीजेपी नेतृत्व का चुनावों से ऐन पहले उप राज्यपाल किरण बेदी को हटा लेने का फैसला फायदेमंद साबित होने जा रहा है.

राहुल गांधी की सबसे ज्यादा दिलचस्पी तो केरल में रही, लेकिन कांग्रेस को असम में भी काफी सक्रिय देखा गया. 2016 में हिमंता बिस्व सरमा के कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर लेने का असर ये हुआ कि 15 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज तरुण गोगोई को सत्ता से हाथ धोना पड़ा.

तरुण गोगोई के अड़ जाने के कारण ही पिछली बार बदरुद्दीन अजमल की पार्टी AIDF से गठबंधन नहीं हो सका, हालांकि, इस बार राहुल गांधी ने वो काम भी कर लिया था, लेकिन फायदा मिलता नहीं लग रहा है.

एग्जिट पोल के अनुसार, 126 सीटों वाली असम विधानसभा में बीजेपी जहां 75-85 सीटें जीतती नजर आ रही है, वहीं कांग्रेस गठबंधन के खाते में 40-50 सीटें आने का अनुमान लगाया जा रहा है. कांग्रेस को 2016 में 19 और AIDF को 13 सीटें मिल पायी थीं.

राहुल गांधी की कोशिशें असम, पुडुचेरी और तमिलनाडु में भी देखने को मिलीं, लेकिन केरल पर कांग्रेस नेता के ज्यादा जोर देने की बड़ी वजह भी रही - वायनाड से उनका सांसद होना. 2019 में राहुल गांधी दो सीटों से चुनाव मैदान में थे लेकिन अमेठी में हार गये और वायनाड से चुनाव जीत कर लोक सभा पहुंचे.

चुनावों से पहले विदेश दौरे से लौटने के बाद राहुल गांधी सबसे पहले जल्ली कट्टू देखने तमिलनाडु गये थे - और उसके बाद भी अपना चुनावी दौरा चेन्नई से ही शुरू किये, फिर केरल का रुख करते देखे गये. पश्चिम बंगाल से तो लग रहा था कि कांग्रेस पूरी तरह दूरी बनाये रखेगी, लेकिन एक चुनावी रैली करने के बाद राहुल गांधी ने कोरोना वायरस के नाम पर अपनी सारी रैलियां रद्द कर दी. नतीजा ये हुआ कि दबाव में आकर ममता बनर्जी और बीजेपी को भी अपनी चुनावी रैलियां रद्द करने की घोषण करनी पड़ी.

विधानसभा चुनावों को देखते हुए ही कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया टाल दी गयी थी - अच्छा ही हुआ, वरना अगर नतीजे भी एग्जिट पोल जैसे ही होने जा रहे हों तो बड़ा धक्का लगता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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