जम्मू कश्मीर में पीडीपी और भाजपा सरकार के गठबंधंन को मुमकिन बनाने वाले जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मुफ़्ती मुहम्मद सईद के निधन के बाद महबूबा मुफ़्ती को 2016 में 3 महीने का वक्त लगा जम्मू कश्मीर की सरकार संभालने में. तब भी महबूबा मुफ़्ती की यही चिंता रही कि क्या भाजपा उसकी उम्मीद के अनुसार जम्मू कश्मीर में आगे बढ़ेगी या फिर नहीं, लेकिन अभी तक मुफ़्ती को यही एहसास हो रहा है कि भाजपा के लिए कश्मीर से ज़्यादा देश की राजनीति ही प्रमुख है. शायद इसी कारण केंद्र सरकार ने महबूबा मुफ़्ती के चाहते हुए भी न ही अलगावादी संगठनों के प्रति नरम रुख किया और न ही पाकिस्तान को लेकर नरमी दिखाई.
जम्मू कश्मीर में पीडीपी के नेता ही भाजपा के नेताओं के उन बयानों से भी खासा परेशान हैं जिनमें वह कश्मीर विरोधी बयान देते रहे हैं. यही वजह है कि पहली बार राजनीति में आए महबूबा मुफ़्ती के भाई और अनंतनाग लोक सभा सीट के लिए पीडीपी उमीदवार तसादुक मुफ़्ती ने कुछ ही दिन पहले एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि केंद्र सरकार कश्मीर को लेकर गंभीर नहीं है.
जम्मू कश्मीर में 2016 में कई महीनों तक अशांति के बाद महबूबा मुफ़्ती को उम्मीद थी कि 2017 में कश्मीर के हालात...
जम्मू कश्मीर में पीडीपी और भाजपा सरकार के गठबंधंन को मुमकिन बनाने वाले जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मुफ़्ती मुहम्मद सईद के निधन के बाद महबूबा मुफ़्ती को 2016 में 3 महीने का वक्त लगा जम्मू कश्मीर की सरकार संभालने में. तब भी महबूबा मुफ़्ती की यही चिंता रही कि क्या भाजपा उसकी उम्मीद के अनुसार जम्मू कश्मीर में आगे बढ़ेगी या फिर नहीं, लेकिन अभी तक मुफ़्ती को यही एहसास हो रहा है कि भाजपा के लिए कश्मीर से ज़्यादा देश की राजनीति ही प्रमुख है. शायद इसी कारण केंद्र सरकार ने महबूबा मुफ़्ती के चाहते हुए भी न ही अलगावादी संगठनों के प्रति नरम रुख किया और न ही पाकिस्तान को लेकर नरमी दिखाई.
जम्मू कश्मीर में पीडीपी के नेता ही भाजपा के नेताओं के उन बयानों से भी खासा परेशान हैं जिनमें वह कश्मीर विरोधी बयान देते रहे हैं. यही वजह है कि पहली बार राजनीति में आए महबूबा मुफ़्ती के भाई और अनंतनाग लोक सभा सीट के लिए पीडीपी उमीदवार तसादुक मुफ़्ती ने कुछ ही दिन पहले एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि केंद्र सरकार कश्मीर को लेकर गंभीर नहीं है.
जम्मू कश्मीर में 2016 में कई महीनों तक अशांति के बाद महबूबा मुफ़्ती को उम्मीद थी कि 2017 में कश्मीर के हालात सुधरेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अब विरोध प्रदर्शनों में पत्थरबाज़ों के साथ-साथ स्कूल और कालजों के छात्र भी जुड़ने लगे हैं. कश्मीर में पिछले एक हफ्ते से कालेज बंद पड़े हैं और पिछले साल की तरह ही इस साल भी पर्यटन सीजन फीका रह गया है. रविवार को जम्मू कश्मीर की मुख्य्मंत्री महबूबा मुफ़्ती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात करेंगी और देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी मिलेंगी. महबूबा मुफ़्ती के करीबी शत्रु की माने तो महबूबा मुफ़्ती सिर्फ 2 बातों पर ही बल देंगी. एक अलगावादियों और पाकिस्तान से बातचीत की प्रक्रिया को केंद्र सरकार आगे बढ़ाये और कश्मीर में सुरक्षा बलों को प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए संयम बरतने की अपील की जाए, क्योंकि महबूबा मुफ़्ती मानती हैं घाटी में आम लोगों के मारे जाने और लोगों के घायल हो जाने से हिंसा बढ़ती जा रही है. इसी वजह से हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं. अब इसमें भाजपा का विकास कहीं दब गया है. भाजपा और केंद्र इस बात से भी वाकिफ है कि यदि वह महबूबा मुफ़्ती के अनुसार ही कश्मीर पॉलिसी चलायेंगे तो उसका ख़ामयाज़ा उन्हें देश के दूसरे रज्यों में उठाना पड़ेगा और शायद यही वजह है कि अब केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में एक बार फिर राष्ट्रपति शासन के भरोसे आगे बढ़कर हालात को पटरी पर लाना चाहती है जो जम्मू कश्मीर में पहले भी किया गया और किसी हद तक सफल साबित हुआ है.
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