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कश्मीर में कांटे से कांटा निकालने की रणनीति का अंत !

    • अशरफ वानी
    • Updated: 19 अप्रिल, 2017 03:01 PM
  • 19 अप्रिल, 2017 03:01 PM
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1990 में कश्मीर में शुरू हुए आतंकवाद में रशीद बिल्ला भी आतंकी बनने के लिए सीमा पार गया था. वहां से वापस आने के बाद उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया और घाटी में आतंकवाद के खिलाफ हथियार थाम लिए.

रविवार शाम को बांदीपोरा जिले के हाजिन गावों में बोधपुर इख्वानी कमांडर रशीद बिल्ला की अज्ञात बन्दूकधारियों ने घर में घुसकर हत्या कर दी. कमांडर रशीद बिल्ला के बेटे का कहना है कि 'उन्हें दुःख इस बात का है कि आतंकियों को उनके घर तक का रास्ता दिखाने केलिए उनके दो पडोसी दोस्त ही आए थे.'

रशीद बिल्ला

कौन था रशीद बिल्ला

1990 में कश्मीर में शुरू हुए आतंकवाद में रशीद बिल्ला भी आतंकी बनने केलिए सीमा पार गया था. वहां से वापस आने के बाद उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया और कोका परे के इख्वान से जुड़ गए. कोका परे का इख्वान 1992 से 1998 तक आतंकवादियों की वह टोली थी जिन्होंने आत्मसमर्पण करके सरकार और सेना के साथ मिलकर कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई शरू की थी.

रशीद बिल्ला की हत्या के बाद परिवार

जानकारी के अनुसार नरसिम्हा राव सरकार ने कोका परे को इख्वान बनाने केलिए 100 करोड़ की रकम दी थी और साथ ही साथ उन आत्मसमपण कर चुके आतंकियों को हर महीने 6 से 12 हजार की पगार देने का प्रावधान भी रखा था. लेकिन उस बीच इख्वान पर मानवाधिकार के उल्लंघन के गंभीर आरोप लगे. यहां तक कि दर्जनों निर्दोष हत्याओं में उनका हाथ  माना गया. हाजिन गावों और आस पास के इलाको में इख्वान की तूती बोलती थी लेकिन इसमें आम लोगों की सहानुभूति से ज़्यादा इख्वान के खौफ का बोल बाला था. और इख्वान के प्रमुख कोका परे 1996में राजनीति में भी आये और विधान सभा चुनावों में विधायक बने. कोका परे के दाहिने हाथ रशीद बिल्ला की बांदीपोरा ज़िले में तोती बोलती थी, लेकिन रशीद बिल्ला पर भी एक ही गांवों में एक साथ 7 लोगों की हत्या का अरोप भी लगा.

रविवार शाम को बांदीपोरा जिले के हाजिन गावों में बोधपुर इख्वानी कमांडर रशीद बिल्ला की अज्ञात बन्दूकधारियों ने घर में घुसकर हत्या कर दी. कमांडर रशीद बिल्ला के बेटे का कहना है कि 'उन्हें दुःख इस बात का है कि आतंकियों को उनके घर तक का रास्ता दिखाने केलिए उनके दो पडोसी दोस्त ही आए थे.'

रशीद बिल्ला

कौन था रशीद बिल्ला

1990 में कश्मीर में शुरू हुए आतंकवाद में रशीद बिल्ला भी आतंकी बनने केलिए सीमा पार गया था. वहां से वापस आने के बाद उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया और कोका परे के इख्वान से जुड़ गए. कोका परे का इख्वान 1992 से 1998 तक आतंकवादियों की वह टोली थी जिन्होंने आत्मसमर्पण करके सरकार और सेना के साथ मिलकर कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई शरू की थी.

रशीद बिल्ला की हत्या के बाद परिवार

जानकारी के अनुसार नरसिम्हा राव सरकार ने कोका परे को इख्वान बनाने केलिए 100 करोड़ की रकम दी थी और साथ ही साथ उन आत्मसमपण कर चुके आतंकियों को हर महीने 6 से 12 हजार की पगार देने का प्रावधान भी रखा था. लेकिन उस बीच इख्वान पर मानवाधिकार के उल्लंघन के गंभीर आरोप लगे. यहां तक कि दर्जनों निर्दोष हत्याओं में उनका हाथ  माना गया. हाजिन गावों और आस पास के इलाको में इख्वान की तूती बोलती थी लेकिन इसमें आम लोगों की सहानुभूति से ज़्यादा इख्वान के खौफ का बोल बाला था. और इख्वान के प्रमुख कोका परे 1996में राजनीति में भी आये और विधान सभा चुनावों में विधायक बने. कोका परे के दाहिने हाथ रशीद बिल्ला की बांदीपोरा ज़िले में तोती बोलती थी, लेकिन रशीद बिल्ला पर भी एक ही गांवों में एक साथ 7 लोगों की हत्या का अरोप भी लगा.

1995 में इख्वानियों के साथ रशीद बिल्ला

लेकिन देश में सरकार बदलने के साथ ही 1998 में वाजपायी देश के प्रधानमंत्री बने और कश्मीर में इख्वान को बंद करने का फैसला किया और इख्वान के सदस्य हाशिये पर आकर खुले आम आतंकियों के निशाने पर आ गये. इख्वान के प्रमुख कोका परे की हत्या 13 सितम्बर 2003 को हाजिन में ही एक बम धमाके के जरिये आतंकवादियों ने की और उसके बाद एक के बाद एक इख़्वानी आतंकियों के निशाने पर आये. कुछ इख़्वानी सेना में और कुछ पुलिस में भर्ती किए गए लेकिन कुछ दोबारा आतंकी बने और इख्वान के बचे आखिरी कमांडर रशीद बिल्ला की हत्या रविवार को कर दी गई.

देश के रक्षा मंत्री होते हुए मनोहर परिकर ने कांटे से कांटा निकालने की जो बात कही थी वह उन्होंने इख्वान को नज़र में रखते हुए ही कही थी. लेकिन मनोहर परिकर को शायद इस बात का एहसास नहीं था की इख्वानियों के साथ सरकार की तरफ से हुए सलूक के बाद अब शायद कश्मीर में कोई दूसरा इख्वानी बनने के लिए तयार नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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