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Delhi riots: दंगा पीड़ितों को दी जाए Z+ और SPG जैसी विशेष सुरक्षा!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 26 फरवरी, 2020 04:18 PM
  • 26 फरवरी, 2020 04:17 PM
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नागरिकता संशोधन कानून के विरोध (Anti CAA protest) में दिल्ली में जो हिंसा (Delhi riots violence) हुई उसमें दिल्ली पुलिस (Delhi police) के अलावा सवालों के घेरे में हमारे राजनेता हैं. कहा जा रहा है कि जब नेता जनता को सुरक्षित नहीं रख सकता तो फिर उनकी भी सुरक्षा की कोई जरूरत नहीं है.

भाजपा के कपिल मिश्रा (Kapil Mishra) और एआईएमआईएम प्रवक्ता वारिस पठान (AIMIM leader Waris Pathan) के बयानों (Controversial Statement) के बाद इनके खिलाफ कोई कार्यवाही ना होना एक बड़ा सवाल है. साम्प्रदायिक भड़काऊ भाषणों (Communal Speech) के बाद दिल्ली का जलना (Delhi Violence) इस बात की शंका होती है कि इस तरह के नफरत भरे बयान देने वाले नेता अपने आकाओं यानी बड़े नेताओं के इशारे पर दंगे (Delhi Riots) करवाने की साजिश रचते होंगे. इसलिए अब यदि जनता बड़े नेताओं पर सवाल उठा रही है. दिल्ली हिंसा से दुखी लोग दंगों पर काबू करने के लिए तरह-तरह के मशवरे दे रहे हैं. सोशल मीडिया पर सियासतदानों को घेरने वाले कह रह रहे हैं कि गारंटी की शर्त़े पूरी नहीं होती तो माल वापस करना पड़ता है. जनता की सुरक्षा की गांरटी जैसे वादे पर ही नेता को जनता कुर्सी देती है.

दिल्ली में हुई हिंसा में सवाल पुलिस और प्रशासन के अलावा नेताओं पर भी उठ रहे हैं

सुरक्षा की गारंटी पूरी नहीं होती और हिंसा/दंगों के दौरान आम जनता/पुलिस/पत्रकार मारे जा रहे हों तो समझिए गारंटी फेल हो गयी. वादे झूठे साबित हो गये. ऐसे में सत्ता नशीन नेता को कुर्सी छोड़ देनी चाहिए. इस्तीफा ना दे तो जनता ही उसे कुर्सी से बेदखल कर दे.

दिल्ली हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर आम जनता का एक और मशवरा चर्चा का विषय बना है. बड़े नेताओं की ज़ैड प्लस और S.P.G जैसी तमाम विशेष सुरक्षा फिलहाल हटा कर दिल्ली के दंगों को शांत करने के लिए लगायी जाये. दंगों के मौसम में साम्प्रदायिक हिंसा से पीड़ित निर्दोष आम जनता की ज़िन्दगी बचाने में इस विशेष सुरक्षा व्यवस्था का उपयोग हो.

मुट्ठी भर SPG से दंगे रुकने की कल्पना भी हास्यास्पद ही होगी. लेकिन बात ये नहीं है. बात ये है कि जब दंगों में निर्दोष आम जनता असहाय और...

भाजपा के कपिल मिश्रा (Kapil Mishra) और एआईएमआईएम प्रवक्ता वारिस पठान (AIMIM leader Waris Pathan) के बयानों (Controversial Statement) के बाद इनके खिलाफ कोई कार्यवाही ना होना एक बड़ा सवाल है. साम्प्रदायिक भड़काऊ भाषणों (Communal Speech) के बाद दिल्ली का जलना (Delhi Violence) इस बात की शंका होती है कि इस तरह के नफरत भरे बयान देने वाले नेता अपने आकाओं यानी बड़े नेताओं के इशारे पर दंगे (Delhi Riots) करवाने की साजिश रचते होंगे. इसलिए अब यदि जनता बड़े नेताओं पर सवाल उठा रही है. दिल्ली हिंसा से दुखी लोग दंगों पर काबू करने के लिए तरह-तरह के मशवरे दे रहे हैं. सोशल मीडिया पर सियासतदानों को घेरने वाले कह रह रहे हैं कि गारंटी की शर्त़े पूरी नहीं होती तो माल वापस करना पड़ता है. जनता की सुरक्षा की गांरटी जैसे वादे पर ही नेता को जनता कुर्सी देती है.

दिल्ली में हुई हिंसा में सवाल पुलिस और प्रशासन के अलावा नेताओं पर भी उठ रहे हैं

सुरक्षा की गारंटी पूरी नहीं होती और हिंसा/दंगों के दौरान आम जनता/पुलिस/पत्रकार मारे जा रहे हों तो समझिए गारंटी फेल हो गयी. वादे झूठे साबित हो गये. ऐसे में सत्ता नशीन नेता को कुर्सी छोड़ देनी चाहिए. इस्तीफा ना दे तो जनता ही उसे कुर्सी से बेदखल कर दे.

दिल्ली हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर आम जनता का एक और मशवरा चर्चा का विषय बना है. बड़े नेताओं की ज़ैड प्लस और S.P.G जैसी तमाम विशेष सुरक्षा फिलहाल हटा कर दिल्ली के दंगों को शांत करने के लिए लगायी जाये. दंगों के मौसम में साम्प्रदायिक हिंसा से पीड़ित निर्दोष आम जनता की ज़िन्दगी बचाने में इस विशेष सुरक्षा व्यवस्था का उपयोग हो.

मुट्ठी भर SPG से दंगे रुकने की कल्पना भी हास्यास्पद ही होगी. लेकिन बात ये नहीं है. बात ये है कि जब दंगों में निर्दोष आम जनता असहाय और असुरक्षित हो जाती है. जनता मारी जाती है, हजारों बेगुनाह घायल होते हैं. घर, गाड़ियां, दुकानें और सरकारी सम्पत्तियों में आग लगा दी जाती है. तो फिर जनता की सुरक्षा की गारंटी/ज़िम्मा लेने वालों को दंगों की बेला मे विशेष सुरक्षा का कवच क्यों मिले?

कम से कम दंगों के दौरान तो इनकी ये सुरक्षा हटाकर दंगा पीड़ितों की सुरक्षा में लगा देना चाहिए है. ताकि इन्हें थोड़ा बहुत असुरक्षा का अहसास तो हो. बड़े नेता इस अति आत्मविश्वास में रहते हैं कि वे जितने भी दंगे करवा दें लेकिन उनकी विशेष सुरक्षा व्यवस्था के होते दंगों की आंच उनतक नहीं पहुंच सकती. हांलाकि ये गफलत ही है. इन्हें इंदिरा और राजीव की हत्या का अतीत याद कर लेना चाहिए है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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