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ट्रांसपोर्ट यूनियन की हड़ताल बनाम 'खतरनाक ड्राइवर्स' का उत्पात

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 19 सितम्बर, 2019 08:01 PM
  • 19 सितम्बर, 2019 07:24 PM
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दिल्ली ट्रांसपोर्ट यूनियन की हड़ताल को देखते हुए ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि सारे ड्राइवर मिलकर उन ड्राइवर्स को बचाने की कोशिश में जुटे हैं, जो ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते हैं. ये सारी कवायद कानून तोड़ने की इजाजत मांगने जैसी है.

दिल्ली की सड़कों पर इस समय अन्य दिनों की तुलना में गाड़ियां कम दिख रही हैं और बहुत सारे लोग पैदल चलते दिख रहे हैं. वह है हड़ताल, जो ट्रांसपोर्ट यूनियन ने की है. इस हड़ताल ने दिल्ली का जन-जीवन अस्त व्यस्त कर दिया है. लेकिन सवाल ये है कि आखिर इतनी हाय तौबा किस लिए? आखिर ये ड्राइवर्स चाहते क्या हैं? सरकार ने जुर्माना बढ़ाया है, ना कि टैक्स, जो हर किसी को देना जरूरी ही है. जब तक कोई गलती नहीं करेगा, तब तक उसे जुर्माना भी नहीं चुकाना होगा, लेकिन ट्रांसपोर्ट यूनियन की मुख्य मांग यही है कि जुर्माने की राशि बहुत अधिक है उसे घटाया जाए. तर्क तो यहां तक दिए जा रहे हैं कि इतना अधिक जुर्माना दे देंगे तो घर कैसे चलेगा? वैश्विक मंदी तक की दुहाई दी जा रही है कि ऐसे में जुर्माना कैब-टैक्सी ड्राइवर्स पर पड़ने वाला बोझ बढ़ा रहा है.

ट्रांसपोर्ट यूनियन की हड़ताल को देखते हुए ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि सारे ड्राइवर मिलकर उन ड्राइवर्स को बचाने की कोशिश में जुटे हैं, जो ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते हैं. ये सारी कवायद किसी अच्छे उद्देश्य से नहीं की जा रही है, बल्कि एक तरह से सरकार से गलत काम करने, कानून तोड़ने की इजाजत मांगने जैसा है. अब आप ही सोचिए ऐसी हड़ताल के बाद अगर मांग मान भी ली जाए तो तस्वीर क्या होगी. बेशक ये तस्वीर और भयावह होती जाएगी. वैसे ये तस्वीर कितनी भयानक हो सकती है, ये समझने के लिए कुछ आंकड़े देख लीजिए, जो साफ कर देंगे कि जिन ड्राइवर्स को बचाने की कोशिशें हो रही हैं, वह कितने गलत हैं.

दिल्ली में ट्रांसपोर्ट यूनियन की हड़ताल से आम जनता को बहुत दिक्कत हो रही है.

84 फीसदी हादसों की वजह हैं ये ड्राइवर्स

हमारे देश में करीब-करीब हर मिनट एक सड़क हादसा होता है, जिनमें कम से कम एक व्यक्ति घायल जरूर होता है. और औसतन हर...

दिल्ली की सड़कों पर इस समय अन्य दिनों की तुलना में गाड़ियां कम दिख रही हैं और बहुत सारे लोग पैदल चलते दिख रहे हैं. वह है हड़ताल, जो ट्रांसपोर्ट यूनियन ने की है. इस हड़ताल ने दिल्ली का जन-जीवन अस्त व्यस्त कर दिया है. लेकिन सवाल ये है कि आखिर इतनी हाय तौबा किस लिए? आखिर ये ड्राइवर्स चाहते क्या हैं? सरकार ने जुर्माना बढ़ाया है, ना कि टैक्स, जो हर किसी को देना जरूरी ही है. जब तक कोई गलती नहीं करेगा, तब तक उसे जुर्माना भी नहीं चुकाना होगा, लेकिन ट्रांसपोर्ट यूनियन की मुख्य मांग यही है कि जुर्माने की राशि बहुत अधिक है उसे घटाया जाए. तर्क तो यहां तक दिए जा रहे हैं कि इतना अधिक जुर्माना दे देंगे तो घर कैसे चलेगा? वैश्विक मंदी तक की दुहाई दी जा रही है कि ऐसे में जुर्माना कैब-टैक्सी ड्राइवर्स पर पड़ने वाला बोझ बढ़ा रहा है.

ट्रांसपोर्ट यूनियन की हड़ताल को देखते हुए ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि सारे ड्राइवर मिलकर उन ड्राइवर्स को बचाने की कोशिश में जुटे हैं, जो ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते हैं. ये सारी कवायद किसी अच्छे उद्देश्य से नहीं की जा रही है, बल्कि एक तरह से सरकार से गलत काम करने, कानून तोड़ने की इजाजत मांगने जैसा है. अब आप ही सोचिए ऐसी हड़ताल के बाद अगर मांग मान भी ली जाए तो तस्वीर क्या होगी. बेशक ये तस्वीर और भयावह होती जाएगी. वैसे ये तस्वीर कितनी भयानक हो सकती है, ये समझने के लिए कुछ आंकड़े देख लीजिए, जो साफ कर देंगे कि जिन ड्राइवर्स को बचाने की कोशिशें हो रही हैं, वह कितने गलत हैं.

दिल्ली में ट्रांसपोर्ट यूनियन की हड़ताल से आम जनता को बहुत दिक्कत हो रही है.

84 फीसदी हादसों की वजह हैं ये ड्राइवर्स

हमारे देश में करीब-करीब हर मिनट एक सड़क हादसा होता है, जिनमें कम से कम एक व्यक्ति घायल जरूर होता है. और औसतन हर तीसरा सड़क हादसा एक व्यक्ति की जान ले लेता है. 2017 में इन सड़क हादसों में 84 फीसदी मामलों में बुरे ड्राइवर्स जिम्मेदार पाए गए, जिनमें 70 फीसदी मामले तेज गति से गाड़ी चलाने के थे. बुरे ड्राइवर (बै़ड ड्राइवर्स) का मतलब यहां उन ड्राइवर्स से है, जो नियम कायदे कानून माने बिना सड़क पर अपनी मनमर्जी करते हैं, नशे में गाड़ी चलाते हैं, सीट बेल्ट नहीं पहनने को अपनी शान समझते हैं और उनसे आगे कोई ना निकल सके, इसलिए गति सीमा का बोर्ड तो देखना भी पसंद नहीं करते.

सिर्फ 2017 में ही 8000 लोगों की जान उन ड्राइवर्स ने ले ली जो या तो नशे में थे या फिर मोबाइल फोन पर किसी से बातें करने में मशगूल थे. इतना ही नहीं, इन लोगों ने करीब 20,000 लोगों को सड़क हादसों में घायल भी किया. अब नए मोटर व्हीकल एक्ट में इन्हीं ड्राइवर्स पर नकेल कसने का काम किया गया है. नशे में गाड़ी चलाने और मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाने वालों पर तगड़ा चालान लगाने का फैसला किया गया है. यही ट्रांसपोर्ट यूनियन को हजम नहीं हो रहा है, क्योंकि ऐसा करने को वह अपनी शान के खिलाफ समझ रहे हैं. करीब 67 फीसदी सड़क हादसों में मौत और 70 फीसदी सड़क हादसों में किसी के घायल होने की वजह अधिक गति सीमा पाई गई है. सड़क हादसों और उनमें हुई मौतों के ये आंकड़े बेशक आपको हैरान करेंगे.

सड़क हादसे और उनमें मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.

अब ड्राइवर्स की शामत आ गई है !

जो ड्राइवर्स अब तक सड़कों को अपनी जागीर समझा करते थे और बेधड़क कैसे भी गाड़ी चलाते थे, किसी को भी ठोकते चलते थे, अब उनकी शामत आ गई है. अभी तक सरकारें सड़क हादसों में सिर्फ पीड़ित पर ध्यान देती थीं, लेकिन अब ड्राइवर्स पर भी नकेल कसी जानी शुरू कर दी गई है. यही वजह है कि पिछले ही साल ये कहा गया था कि अब नए वाहनों पर 3-5 साल की इंश्योरेंस पॉलिसी लेना जरूरी होगा. दरअसल, थर्ड पार्टी इंश्योरेंस ना होने की हालत में अगर किसी की गाड़ी से किसी का एक्सिडेंट हो जाता था, तो पीड़ित को बहुत कुछ भुगतना पड़ता था. यहां तक कि इलाज के पैसों का खर्च तक एक्सिडेंट करने वाले ड्राइवर नहीं चुकाते थे. ज्यादा से ज्यादा कुछ टाइम कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते थे और फिर आजाद, लेकिन हादसे में पीड़ित व्यक्ति और उसका परिवार लंबे समय तक परेशान होता था. इंश्योरेंस का सबसे बड़ा फायदा यही होता है कि अगर कोई हादसा हो जाता है तो ऐसी स्थिति में पीड़ित के नुकसान की भरपाई भी इंश्योरेंस कंपनी ही करती है. यानी जो लापरवाह ड्राइवर अब तक बिना इंश्योरेंस के ही गाड़ियां दौड़ाते थे, नए मोटर व्हीकल एक्ट में सबसे अधिक दिक्कत में वही हैं.

वैसे नए मोटर व्हीकल एक्ट से सरकार जो डर इन कानून तोड़ने वालों में जगाना चाहती थी, वह फॉर्मूला काम कर रहा है. बिना इंश्योरेंस की गाड़ी चलाने पर भारी-भरकम जुर्माने की बदौलत अब लोग खूब इंश्योरेंस खरीद रहे हैं. इनमें वो भी हैं, जिन्होंने कभी इंश्योरेंस नहीं खरीदा और वो भी जो एक बार इंश्योरेंस लेने का बाद उस गली में जाना ही भूल गए. ऑनलाइन इंश्योरेंस एग्रिगेटर पॉलिसीबाजारडॉटकॉम के अनुसार इंश्योरेंस पॉलिसी की बिक्री में तगड़ा उछाल आया है. दोपहिया वाहनों की इंश्योरेंस पॉलिसी में 7 गुना और चार पहिया वाहनों की इंश्योरेंस पॉलिसी की बिक्री में 3 गुना उछाल देखने को मिला है. वैसे बता दें कि ये आंकड़ा सितंबर के पहले सप्ताह का है, क्योंकि 1 सितंबर 2019 से नया मोटर व्हीकल एक्ट लागू हुआ है. नियम के आने के बाद से हेलमेट की बिक्री भी तेजी से बढ़ी है.

वैसे इस हड़ताल से सिर्फ जनता का नुकसान हो रहा है, जिन्हें कैब या टैक्सी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. कोई गाड़ी नहीं मिलने की स्थिति में सामान टांगकर पैदल ही सड़कों पर चलना पड़ रहा है. वहीं दूसरी ओर, एक तो हड़ताल में मांग गलत की जा रही है, जो पूरी हो गई तो ड्राइवर्स की चांदी ही चांदी, ऊपर से जो इस हड़ताल का हिस्सा नहीं हैं, उन्होंने तो लोगों को लूटना शुरू कर दिया है. दोगुने-तीन गुने किराए मांगे जा रहे हैं. यानी चित भी इनकी और पट भी इनकी. देखा जाए तो सरकार को इन लोगों की मांगें माननी ही नहीं चाहिए, क्योंकि इन ड्राइवर्स की वजह से होने वाले हादसों में मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ ही रही है और पहली बार इन पर नकेल कसी है. अगर इनकी हड़ताल से डरकर सरकार नियमों को नरम कर देगी, तो ये फिर से बेलगाम होकर उत्पात मचाएंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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