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Motor Vehicle Act के मुद्दे पर भाजपा शासित राज्यों ने मोदी सरकार को कहीं का नहीं छोड़ा

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 19 सितम्बर, 2019 05:55 PM
  • 12 सितम्बर, 2019 06:20 PM
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जो राज्य Motor Vehicle Act 2019 के नए नियम लागू करने में आनाकानी कर रहे हैं, उसकी एक बड़ी वजह है राजनीति. सबसे पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल ने नए नियम पर सवाल उठाए. तीनों ही जगह भाजपा नहीं है. अब बाकी राज्य भी इस लिस्ट में शामिल हो गए हैं.

इस महीने की शुरुआत में ही मोदी सरकार ने एक सख्त फैसला लिया और नया मोटर व्हीकल एक्ट लाया गया, जिसमें भारी-भरकम जुर्माने थे. ये जुर्माने इतने अधिक हैं, कि लोगों के हाथ-पांव फूलने लगे. कई जगह तो ट्रकों के लाख-डेढ़ लाख तक के चालान काटे गए. पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने तो शुरू से ही नए ट्रैफिक रूल्स को मानने से इनकार कर दिया और अपने राज्यों में लागू नहीं किया, लेकिन अधिकतर ने इसे जस का तस लागू कर दिया. हालांकि, अब एक के बाद एक कई राज्य इस नए एक्ट में बदलाव करते दिख रहे हैं. राज्य बदलाव कर-कर के उसे लागू कर रहे हैं. बिहार, गोवा, ओडिशा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और केरल ने जुर्माने में कमी करने को कहा.

इसी बीच उत्तराखंड में ओवरस्पीडिंग के जुर्माने में 50 फीसदी की कमी कर के बाकी नियमों का जस का तस छोड़ते हुए लागू कर दिया गया है. धीरे-धीरे राज्य नए मोटर व्हीकल एक्ट में कोई न कोई ना कोई बदलाव कर रहे हैं. इस पर यूनियन ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि सभी राज्य अपने सुझाव देने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी याद दिलाया कि नए नियमों के पीछे का मकसद सिर्फ इतना है कि लोगों की जानें बचाई जा सकें. अब जो राज्य नियमों में बदलाव कर रहे हैं, ये देखना दिलचस्प होगा कि उससे ट्रैफिक पर क्या असर पड़ेगा.

मोटर व्हीकल एक्ट में धीरे-धीरे बहुत से राज्य बदलाव कर चुके हैं.

भारी-भारकम जुर्माने का मकसद जान बचाना

नितिन गडकरी ने कहा है कि मोदी सरकार इतने सख्त नियम सिर्फ इसलिए लागू कर रही है, ताकि लोगों में कानून के लिए सम्मान के साथ-साथ एक डर रहे. उन्होंने साथ कहा कि ये कमाई करने का जरिया नहीं है. उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या आपको इस बात पर चिंता नहीं होती कि हर साल भारत में करीब 1.5 लाख लोग सड़क...

इस महीने की शुरुआत में ही मोदी सरकार ने एक सख्त फैसला लिया और नया मोटर व्हीकल एक्ट लाया गया, जिसमें भारी-भरकम जुर्माने थे. ये जुर्माने इतने अधिक हैं, कि लोगों के हाथ-पांव फूलने लगे. कई जगह तो ट्रकों के लाख-डेढ़ लाख तक के चालान काटे गए. पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने तो शुरू से ही नए ट्रैफिक रूल्स को मानने से इनकार कर दिया और अपने राज्यों में लागू नहीं किया, लेकिन अधिकतर ने इसे जस का तस लागू कर दिया. हालांकि, अब एक के बाद एक कई राज्य इस नए एक्ट में बदलाव करते दिख रहे हैं. राज्य बदलाव कर-कर के उसे लागू कर रहे हैं. बिहार, गोवा, ओडिशा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और केरल ने जुर्माने में कमी करने को कहा.

इसी बीच उत्तराखंड में ओवरस्पीडिंग के जुर्माने में 50 फीसदी की कमी कर के बाकी नियमों का जस का तस छोड़ते हुए लागू कर दिया गया है. धीरे-धीरे राज्य नए मोटर व्हीकल एक्ट में कोई न कोई ना कोई बदलाव कर रहे हैं. इस पर यूनियन ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि सभी राज्य अपने सुझाव देने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी याद दिलाया कि नए नियमों के पीछे का मकसद सिर्फ इतना है कि लोगों की जानें बचाई जा सकें. अब जो राज्य नियमों में बदलाव कर रहे हैं, ये देखना दिलचस्प होगा कि उससे ट्रैफिक पर क्या असर पड़ेगा.

मोटर व्हीकल एक्ट में धीरे-धीरे बहुत से राज्य बदलाव कर चुके हैं.

भारी-भारकम जुर्माने का मकसद जान बचाना

नितिन गडकरी ने कहा है कि मोदी सरकार इतने सख्त नियम सिर्फ इसलिए लागू कर रही है, ताकि लोगों में कानून के लिए सम्मान के साथ-साथ एक डर रहे. उन्होंने साथ कहा कि ये कमाई करने का जरिया नहीं है. उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या आपको इस बात पर चिंता नहीं होती कि हर साल भारत में करीब 1.5 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं और उनमें अधिकतर लोग 18-35 साल की उम्र के थे. आपको बता दें कि ये आंकड़ा दुनिया में सबसे अधिक है. यानी पूरी दुनिया में सबसे अधिक लोग सड़क हादसों में भारत में ही मारे जाते हैं. यहां तक चीन में भी ये आंकड़ा करीब 60 हजार है. राज्यों द्वारा कानून में जुर्माने को कम करने और फिर लागू करने पर वह बोले कि केंद्र और राज्य की बराबर की जिम्मेदारी है कि वह लोगों की जान की चिंता करें. विशेषज्ञ ये भी मान रहे हैं कि गुजरात को देखते हुए अन्य राज्य भी जुर्माने कम करेंगे, जो होने भी लगे हैं और इस तरह नए मोटर व्हीकल एक्ट का असल मकसद पूरा नहीं हो सकेगा.

तो ये राज्य क्या करेंगे हादसे रोकने के लिए?

राज्यों ने एक के बाद एक मोटर व्हीकल एक्ट में बदलाव तो करना शुरू कर दिया है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर इस बदलाव के बाद अब ये राज्य क्या करेंगे, जिससे वह हादसों को रोक सकें. भारी भरकम जुर्माने के प्रावधान का मुख्य मकसद तो यही था कि सड़क हादसों को कम किया जाए. राज्य अपने हिसाब से कानून में बदलाव तो कर रहे हैं, लेकिन हादसे रोकने के लिए उनके पास दूसरा क्या विकल्प है, वो भी बताना जरूरी है. वैसे भी, सड़क हादसों की लिस्ट देखकर चिंता हो जाना लाजमी है. आप भी इस लिस्ट को देखकर सोच में पड़ ही जाएंगे.

किस राज्य में कितने सड़क हादसे?

देश में सबसे अधिक सड़क हादसे गोवा और केरल में होते हैं. गोवा में 2015 में प्रति लाख आबादी पर 222 सड़क हादसे हुए. वहीं दूसरी ओर केरल में प्रति लाख आबादी पर 110 सड़क हादसे हुए. वहीं तमिलनाडु में ये आंकड़ा प्रति लाख 100 है.

प्रति लाख आबादी में मरने वालों की संख्या का आंकड़ा हैरान करता है.

अगर 2015 में हर राज्य में हुए कुल हादसों की लिस्ट देखी जाए तो एनसीआरबी का ये मैप सब कुछ साफ करता है. पूरे साल में 464674 सड़क हादसे हुए. हालांकि, ये भी ध्यान रखना चाहिए कि बहुत से सड़क हादसे तो रिपोर्ट ही नहीं होते हैं. इनमें कुछ तो आपस में ही कुछ ले-दे कर निपटा लिए जाते हैं, तो कुछ को डरा धमका कर या फिर प्यार मोहब्बत से दोस्ती यारी में निपटा दिया जाता है.

2015 में में कुल 4,64,674 सड़क हादसे हुए.

अगर बात मौतों की करें तो 2015 में सबसे अधिक लोग तमिनलाडु में मरे, जिनकी संख्या प्रति लाख 23 रही. दूसरे नंबर पर इस लिस्ट में हरियाणा है, जहां प्रति लाख 18 लोगों की मौत हुई. वहीं इसके बाद नंबर आता है कर्नाटक का, जहां प्रति लाख 18 लोगों की सड़क हादसों में मौत हुई.

2015 में सबसे अधिक लोग तमिनलाडु में मरे, जिनकी संख्या प्रति लाख 23 रही.

जो राज्य मोटर व्हीकल एक्ट के नए नियम लागू करने में आनाकानी कर रहे हैं, उसकी एक बड़ी वजह है राजनीति. शुरुआत से ही देख लीजिए. सबसे पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल ने नए नियम पर सवाल उठाए. तीनों ही जगह भाजपा नहीं है. ऐसे में राजनीतिक रूप से विरोध करना ही था. बाकी राज्यों में भी जब लोगों ने विरोध किया तो अपना वोटबैंक बचाने के लिए गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, बिहार, गोवा जैसे राज्यों में कानून में सख्ती में बदलाव करने की शुरुआत हुई. वैसे अभी इन नियमों में और भी बदलाव होंगे. यहां आपको बता दें कि हर राज्य में ट्रैफिक रूल्स राज्य के हिसाब से होते हैं, ना कि केंद्र के. ऐसे में जरूरी नहीं कि केंद्र के नियम सभी राज्य मानें. और भी यही रहा है. खैर, जो राज्य नियम में बदलाव कर रहे हैं, उन्हें आज नहीं तो कल ये बताना ही होगा कि कैसे वह सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या पर कंट्रोल करेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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