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मप्र में 'राजा' दिग्विजय सिंह और 'महाराजा' ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार के मायने

    • अमित जैन
    • Updated: 24 मई, 2019 10:47 PM
  • 24 मई, 2019 10:47 PM
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मध्यप्रदेश से दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया का चुनाव हारना कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है. इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कई गढ़ और गुट धराशाही हो गए हैं.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के दो बड़े गुट के मुखियाओं को मोदी की सुनामी ले उड़ी है. 2019 के आम चुनाव के नतीजों में राजा यानी दिग्विजय सिंह और महाराजा याना ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार के मायने प्रदेश कांग्रेस के लिए साफ संकेत हैं कि अब आगे सियासी लड़ाई आसान नहीं है. सिंधिया घराने का गढ़ मानी जाने वाली गुना सीट से ज्योतिरादित्य का बीजेपी के एक स्थानीय नेता से हार जाने की खबर से पार्टी के दिग्गज नेताओं की नींद उड़ी हुई है. सिंधिया परिवार के लिए गुना सीट किसी भी पार्टी की विचारधारा से ऊपर रही है क्योंकि इस सीट से स्वर्गीय माधवराव सिंधिया कांग्रेस से चार बार जीते तो इसी सीट से स्वर्गीय राजमाता सिंधिया बीजेपी से पांच बार विजयी हुईं. और फिर चार बार से लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से जीतते आ रहे थे. यहां तक कि 2014 की मोदी लहर में भी ज्योतिरादित्य ने आसानी से ये सीट बचा ली थी. इतना ही नहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया का जलवा छह महीने पहले दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनाव में भी बरकरार रहा. लेकिन सिंधिया की इस हार का असर काफी गहरा हुआ है.

दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया का चुनाव हारना कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है

सिंधिया आखिरी दौर के मतदान से ठीक एक दिन पहले अपने निजी विदेशी दौरे पर निकल गए थे और उनकी कोई प्रतिक्रिया भी नहीं आई है. उन्हें अपनी इस हार का अंदेशा सपने में भी नहीं होगा क्योंकि दशकों से ये सीट महल की मानी जाती रही है. दिलचस्प बात तो ये है कि विधानसभा में पार्टी की जीत के बाद वे भी एक मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे और फिर पार्टी ने उन्हें उसके बदले बड़ी जिम्मेदारी दी थी.

कांग्रेस के चाणक्य और दस साल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह का भोपाल से चुनाव हारना भी कांग्रेस...

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के दो बड़े गुट के मुखियाओं को मोदी की सुनामी ले उड़ी है. 2019 के आम चुनाव के नतीजों में राजा यानी दिग्विजय सिंह और महाराजा याना ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार के मायने प्रदेश कांग्रेस के लिए साफ संकेत हैं कि अब आगे सियासी लड़ाई आसान नहीं है. सिंधिया घराने का गढ़ मानी जाने वाली गुना सीट से ज्योतिरादित्य का बीजेपी के एक स्थानीय नेता से हार जाने की खबर से पार्टी के दिग्गज नेताओं की नींद उड़ी हुई है. सिंधिया परिवार के लिए गुना सीट किसी भी पार्टी की विचारधारा से ऊपर रही है क्योंकि इस सीट से स्वर्गीय माधवराव सिंधिया कांग्रेस से चार बार जीते तो इसी सीट से स्वर्गीय राजमाता सिंधिया बीजेपी से पांच बार विजयी हुईं. और फिर चार बार से लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से जीतते आ रहे थे. यहां तक कि 2014 की मोदी लहर में भी ज्योतिरादित्य ने आसानी से ये सीट बचा ली थी. इतना ही नहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया का जलवा छह महीने पहले दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनाव में भी बरकरार रहा. लेकिन सिंधिया की इस हार का असर काफी गहरा हुआ है.

दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया का चुनाव हारना कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है

सिंधिया आखिरी दौर के मतदान से ठीक एक दिन पहले अपने निजी विदेशी दौरे पर निकल गए थे और उनकी कोई प्रतिक्रिया भी नहीं आई है. उन्हें अपनी इस हार का अंदेशा सपने में भी नहीं होगा क्योंकि दशकों से ये सीट महल की मानी जाती रही है. दिलचस्प बात तो ये है कि विधानसभा में पार्टी की जीत के बाद वे भी एक मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे और फिर पार्टी ने उन्हें उसके बदले बड़ी जिम्मेदारी दी थी.

कांग्रेस के चाणक्य और दस साल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह का भोपाल से चुनाव हारना भी कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है. 15 साल बाद कांग्रेस की प्रदेश में वापसी के बाद दिग्विजय सिंह की ताकत बढ़ी और उन्होंने बीजेपी का गढ़ मानी जाने वाली भोपाल सीट से ही दावा ठोक दिया. बीजेपी ने कट्टर हिंदु चेहरा साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर दांव खेला. भले ही प्रज्ञा पर कानूनी मुकदमे दर्ज थे और कांग्रेस की नजर में वो कमजोर उम्मीदवार थीं लेकिन जनता ने मोदी के नाम पर उन्हें इतने वोट दिए कि पहली बार चुनाव मैदान में उतरी प्रज्ञा ने दिग्विजय सिंह को धूल चटा दी. हालांकि दिग्विजय सिंह ने अपने बेटे को प्रदेश सरकार में केबीनेट मंत्री बनवाने के अलावा कई विधायक और नेता भी तैयार किए हैं.

इस बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह अपने गृह क्षेत्र सीधी से ही हार गए हैं वहीं पूर्व उप मुख्यमंत्री सुभाष यादव के बेटे और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव भी अपना गढ़ बचाने में कामयाब नहीं रहे. मोदी लहर में कांग्रेस के लगभग सभी क्षत्रप बेअसर साबित हुए हैं.

प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने गढ़ छिंदवाड़ा से अपने बेटे नकुल को जितवाकर कांग्रेस की बमुश्किल नाक बचाई है. बहुमत से 2 सीट कम होने के बावजूद पांच साल सत्ता बचाए रखना अब कमलनाथ के लिए तलवार की धार पर चलने से कम नहीं होगा क्योंकि इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कई गढ़ और गुट धराशाही हो गए हैं. केंद्र में दोबारा मोदी सरकार आने के बाद से ही प्रदेश बीजेपी के नेताओं ने जोड़-तोड़ शुरू कर दी है. अब प्रदेश में सबसे शक्तिशाली गुट मुख्यमंत्री कमलनाथ का हो गया है. सरकार चलाने के साथ अब कमलनाथ की सबसे बड़ी जिम्मेदारी सभी गुट के विधायकों को एकजुट रखने की है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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