• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

विपक्षी एकता के नाम पर कांग्रेस का खेल बिगाड़ रही हैं ममता बनर्जी

    • बिजय कुमार
    • Updated: 26 जून, 2018 03:48 PM
  • 26 जून, 2018 03:48 PM
offline
महागठबंधन के घटक दल अपने-अपने फायदे के लिए अलग-अलग रणनीति तो जरूर बनाएंगे ऐसे में कांग्रेस जो मुख्य विपक्षी दल है उसके लिए कुछ मुश्किल तो जरूर आएगी क्योंकि हर मुद्दे पर वो क्षेत्रीय दलों के साथ नहीं खड़ी हो सकती और ऐसे में उसे इन दलों से नाराजगी भी मोल लेनी पड़ सकती है.

मई में कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में विपक्षी एकता की जो तस्वीर सामने आई थी, कुछ ऐसा ही हाल ही में देश को राजधानी दिल्ली में भी देखने को मिला. जब नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ तमाम क्षेत्रीय दलों की एक राय दिखी थी. मौका था दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ मंत्रियों सत्येन्द्र जैन और गोपाल राय का उपराज्यपाल कार्यालय में धरने पर बैठने का. जिसपर पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर चल रहे गतिरोध को दूर करने में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था.

बता दें ममता बनर्जी, चन्द्रबाबू नायडू, पिनारयी विजयन और एचडी कुमारस्वामी ने नीति आयोग की बैठक के इतर इस मुद्दे को उठाया था. संविधान के संघीय ढांचे को कायम रखने का हवाला देते हुए कई और दलों के नेता भी इसमें केजरीवाल के पक्ष में दिखे उनमें सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एम. के. स्टालिन और एनडीए के सहयोगी जेडीयू और शिवसेना ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय दिल्ली सरकार के पक्ष में ही दी थी. तो वहीं इस मुद्दे पर बीजेपी से नाराज माने जा रहे सांसद शत्रुघ्न सिन्हा और पार्टी के रिबेल लीडर यशवंत सिन्हा ने भी केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया था.

सरकार के विरोध में महागठबंधन बनाने में सबसे बड़ी मुश्किल ममता बनर्जी हैं

लेकिन इस पूरे मामले पर कांग्रेस ने मानो चुप्पी साध ली थी. पार्टी के साथ दिक्कत ये थी कि अगर पार्टी खुलकर केजरीवाल का समर्थन करती तो उसे दिल्ली में नुकसान हो सकता था तो वहीं केजरीवाल की मांग का पुरजोर विरोध भी उसके लिए भविष्य में बनने वाले महागठबंधन की राह में रोड़ा बन सकता था....

मई में कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में विपक्षी एकता की जो तस्वीर सामने आई थी, कुछ ऐसा ही हाल ही में देश को राजधानी दिल्ली में भी देखने को मिला. जब नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ तमाम क्षेत्रीय दलों की एक राय दिखी थी. मौका था दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ मंत्रियों सत्येन्द्र जैन और गोपाल राय का उपराज्यपाल कार्यालय में धरने पर बैठने का. जिसपर पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर चल रहे गतिरोध को दूर करने में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था.

बता दें ममता बनर्जी, चन्द्रबाबू नायडू, पिनारयी विजयन और एचडी कुमारस्वामी ने नीति आयोग की बैठक के इतर इस मुद्दे को उठाया था. संविधान के संघीय ढांचे को कायम रखने का हवाला देते हुए कई और दलों के नेता भी इसमें केजरीवाल के पक्ष में दिखे उनमें सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एम. के. स्टालिन और एनडीए के सहयोगी जेडीयू और शिवसेना ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय दिल्ली सरकार के पक्ष में ही दी थी. तो वहीं इस मुद्दे पर बीजेपी से नाराज माने जा रहे सांसद शत्रुघ्न सिन्हा और पार्टी के रिबेल लीडर यशवंत सिन्हा ने भी केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया था.

सरकार के विरोध में महागठबंधन बनाने में सबसे बड़ी मुश्किल ममता बनर्जी हैं

लेकिन इस पूरे मामले पर कांग्रेस ने मानो चुप्पी साध ली थी. पार्टी के साथ दिक्कत ये थी कि अगर पार्टी खुलकर केजरीवाल का समर्थन करती तो उसे दिल्ली में नुकसान हो सकता था तो वहीं केजरीवाल की मांग का पुरजोर विरोध भी उसके लिए भविष्य में बनने वाले महागठबंधन की राह में रोड़ा बन सकता था. वैसे भी महागठबंधन के घटक दल अपने-अपने फायदे के लिए अलग-अलग रणनीति तो जरूर बनाएंगे ऐसे में कांग्रेस जो मुख्य विपक्षी दल है उसके लिए कुछ मुश्किल तो जरूर आएगी क्योंकि हर मुद्दे पर वो क्षेत्रीय दलों के साथ नहीं खड़ी हो सकती और ऐसे में उसे इन दलों से नाराजगी भी मोल लेनी पड़ सकती है. कांग्रेस और इसके अध्यक्ष राहुल गाँधी के लिए केंद्र की मोदी सरकार के विरोध में महागठबंधन बनाने में फ़िलहाल जो सबसे बड़ी मुश्किल दिख रही है वो हैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी. कैसे, आइये जानते हैं....

जून 2018: हाल के एलजी और केजरीवाल सरकार के बीच गतिरोध पर कांग्रेस की चुप्पी पर ममता बनर्जी ने दबी जुबान में ही सही सवाल जरूर उठाया था. नीति आयोग की बैठक में प्रधानमंत्री के सामने दिल्ली का मुद्दा उठाने के बाद एक सवाल के जवाब में ममता ने कहा कि इस मुद्दे पर कांग्रेस की राजनीति क्या है ये उनसे ही पूछना चाहिए. उन्होंने कहा कि, 'पुडुचेरी के मुख्यमंत्री ने इसे सुपर पावर का मसला बताया है. मैं उनके इस बयान से सहमत हूं. लेकिन कांग्रेस केजरीवाल के समर्थन में क्यों नहीं खड़ी है, ये वही बता सकते हैं?' इसके पीछे कांग्रेस की क्या राजनीति है उनसे ही पूछना चाहिए.

अप्रैल 2018: ममता बनर्जी ने एक टेलीविजन को दिए इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने कांग्रेस को चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया के खिलाफ इम्पीचमेंट मोशन ना लाने के लिए सलाह भी दी था क्योंकि विपक्षी दलों की दलील उतनी मजबूत नहीं थी.   

मार्च 2018: ममता बनर्जी ने यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मिलकर उन्हें बीजेपी के खिलाफ संयुक्त विपक्ष के फ्रंट में शामिल होने के लिए कहा. ममता बनर्जी ने सोनिया गाँधी से कहा कि "देश में बीजेपी से हर प्रदेश में आमने-सामने कि लड़ाई लड़ी जाये और जो पार्टी उस प्रदेश में मजबूत है वो बीजेपी से सीधा मुकाबला करे". लेकिन कांग्रेस के लिए इससे परेशानी जरूर आएगी क्योंकि पार्टी ज्यादातर प्रदेशों में सत्ता में रही है और वो लगभग हर प्रदेश में अपनी भागेदारी सुनिश्चित करना चाहेगी. यही नहीं मार्च के महीने में ही जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी विकल्प तलाशने कि बात कही तो भी ममता बनर्जी खुलकर उनका समर्थन करती दिखी थीं. ममता बनर्जी ने त्रिपुरा में बीजेपी की जीत के लिए भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और वामदलों को दोषी बताया था. उन्होंने कहा कि मैंने राहुल गाँधी से प्रदेश में गठबंधन कि जरुरत के बारे में बताया था. उनका कहना था कि प्रदेश में कांग्रेस, टीएमसी और दूसरे क्षेत्रीय दलों को साथ चुनाव लड़ना चाहिए था.   

दिसम्बर 2017: गुजरात चुनाव के नतीजों के बाद ममता बनर्जी ने ट्वीट के जरिये मतदाताओं का शुक्रिया किया और इसे 2019 लोकसभा चुनाव से जोड़ दिया लेकिन उन्होंने अपने ट्वीट में राहुल गाँधी का जिक्र नहीं किया जिनके नेतृत्व में कांग्रेस ने वहां काफी अच्छा प्रदर्शन किया था. उनके इस ट्वीट ने ये भी बता दिया था कि वो राहुल गाँधी के नेतृत्व में शायद खड़ी नहीं दिखाना चाहतीं.

ये भी पढ़ें-

राष्ट्रीय-महत्वाकांक्षा पूरी करने के चक्कर में ममता का बंग-भंग न हो जाए

इस रणनीति से एंटी-इनकंबेंसी को मात देगी बीजेपी

BJP अगर 'दलित विरोधी छवि' से उबर जाये तो जग जीत लेगी, बशर्ते...

 


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲