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नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर कोरोना ने गहराए संकट के बादल!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 04 जून, 2021 03:33 PM
  • 04 जून, 2021 03:33 PM
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कोरोना की दूसरी लहर के दौरान राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव और पंचायत चुनावों को लेकर भी लोगों में गुस्सा साफ नजर आया है. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान चुनाव करवाने को लेकर ज्यादातर लोगों की राय थी कि इन्हें टाला जा सकता था. लेकिन, चुनाव करवाए गए और इसी बीच अप्रैल में बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आने लगे थे.

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मोदी सरकार 2.0 के दूसरे कार्यकाल के दो साल 30 मई को पूरे हो जाएंगे. इसी दौरान मोदी सरकार को सत्ता में आए हुए सात साल भी पूरे हो गए हैं. भाजपा ने इस सात सालों के दौरान अपने चुनावी वायदों में से काफी पूरे भी किए हैं. जिसकी वजह से नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार की लोकप्रियता सातवें आसमान पर पहुंच गई थी. लेकिन, बीते साल कोविड-19 महामारी के बाद से पैदा हुए कोरोना संकट ने नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार की लोकप्रियता को काफी हद तक झटका दिया है. 2021 की पहली तिमाही में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश को लेकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच हुई हालिया बैठक शायद इसी ओर इशारा कर रही है.

कोरोना संकट से निपटने में नाकामी

ABP News-C Voter ने मिलकर एक सर्वे के जरिये जानने की कोशिश की है कि नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार कोरोना से उपजी चुनौतियों से निपटने से लेकर जनता की अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरी है? इस सर्वे में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को शामिल किया गया था. एबीपी न्यूज-सी वोटर के इस पूरे सर्वे में जो एक सबसे बड़ी चीज निकलकर सामने आई है, वो है कोरोना महामारी से निपटने में मोदी सरकार की नाकामी. वर्तमान समय में भारत की सबसे बड़ी परेशानी के तौर पर 36 फीसदी लोगों ने कोरोना को बताया है. 18 फीसदी लोगों ने बेरोजगारी, 10 फीसदी ने महंगाई को परेशानी बताया है. सर्वे में मोदी सरकार से सबसे बड़ी नाराजगी भी कोरोना से निपटने में नाकामी के तौर पर सामने आई है. सर्वे में हिस्सा लेने वाले 44 फीसदी शहरी और 40 फीसदी ग्रामीण लोगों ने माना है कि मोदी सरकार कोरोना महामारी की चुनौती से निपटने में कमजोर नजर आई है.

मोदी सरकार द्वारा बीते साल लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ सात महीनों से ज्यादा समय से किसान आंदोलन चल रहा है. लेकिन, सर्वे में इस आंदोलन से मोदी सरकार को उतना खतरा नजर नहीं आया है. ऐसा तब है, जब देश की अधिकतर आबादी गांवों में रहती है. मोदी सरकार के कृषि कानूनों को 25...

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मोदी सरकार 2.0 के दूसरे कार्यकाल के दो साल 30 मई को पूरे हो जाएंगे. इसी दौरान मोदी सरकार को सत्ता में आए हुए सात साल भी पूरे हो गए हैं. भाजपा ने इस सात सालों के दौरान अपने चुनावी वायदों में से काफी पूरे भी किए हैं. जिसकी वजह से नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार की लोकप्रियता सातवें आसमान पर पहुंच गई थी. लेकिन, बीते साल कोविड-19 महामारी के बाद से पैदा हुए कोरोना संकट ने नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार की लोकप्रियता को काफी हद तक झटका दिया है. 2021 की पहली तिमाही में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश को लेकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच हुई हालिया बैठक शायद इसी ओर इशारा कर रही है.

कोरोना संकट से निपटने में नाकामी

ABP News-C Voter ने मिलकर एक सर्वे के जरिये जानने की कोशिश की है कि नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार कोरोना से उपजी चुनौतियों से निपटने से लेकर जनता की अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरी है? इस सर्वे में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को शामिल किया गया था. एबीपी न्यूज-सी वोटर के इस पूरे सर्वे में जो एक सबसे बड़ी चीज निकलकर सामने आई है, वो है कोरोना महामारी से निपटने में मोदी सरकार की नाकामी. वर्तमान समय में भारत की सबसे बड़ी परेशानी के तौर पर 36 फीसदी लोगों ने कोरोना को बताया है. 18 फीसदी लोगों ने बेरोजगारी, 10 फीसदी ने महंगाई को परेशानी बताया है. सर्वे में मोदी सरकार से सबसे बड़ी नाराजगी भी कोरोना से निपटने में नाकामी के तौर पर सामने आई है. सर्वे में हिस्सा लेने वाले 44 फीसदी शहरी और 40 फीसदी ग्रामीण लोगों ने माना है कि मोदी सरकार कोरोना महामारी की चुनौती से निपटने में कमजोर नजर आई है.

मोदी सरकार द्वारा बीते साल लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ सात महीनों से ज्यादा समय से किसान आंदोलन चल रहा है. लेकिन, सर्वे में इस आंदोलन से मोदी सरकार को उतना खतरा नजर नहीं आया है. ऐसा तब है, जब देश की अधिकतर आबादी गांवों में रहती है. मोदी सरकार के कृषि कानूनों को 25 फीसदी ग्रामीणों ने परेशानी की वजह बताया है. सर्वे में भाग लेने वाले 20 फीसदी शहरी लोगों ने कृषि कानूनों को परेशानी बताया है. मोदी सरकार के लिए कृषि कानूनों को लेकर सामने आए इस आंकड़े से राहत मिल सकती है. लेकिन, नरेंद्र मोदी के लिए कोरोना महामारी एक अभूतपूर्व संकट के तौर पर सामने आई है और लोग मानते हैं कि मोदी सरकार इससे निपटने में नाकाम रही है.

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव और पंचायत चुनावों को लेकर भी लोगों में गुस्सा साफ नजर आया है.

चुनावों में नरेंद्र मोदी को प्रचार करना पड़ा भारी

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव और पंचायत चुनावों को लेकर भी लोगों में गुस्सा साफ नजर आया है. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान चुनाव करवाने को लेकर ज्यादातर लोगों की राय थी कि इन्हें टाला जा सकता था. लेकिन, चुनाव करवाए गए और इसी बीच अप्रैल में बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आने लगे थे. मई महीने में कोरोना संक्रमण के मामलों ने सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए चार लाख प्रतिदिन से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे. सर्वे में 62 फीसदी शहरी और 60 फीसदी ग्रामीण लोगों ने कहा है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान विधानसभा और पंचायत चुनाव टाले जा सकते थे.

देश के सबसे बड़े पदों में से एक पर काबिज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए लोगों की यह राय खतरे की घंटी से कम नहीं है. देश-विदेश की मीडिया और काफी बड़ी आबादी ने चुनाव कराने को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी. सर्वे में शामिल 58 फीसदी शहरी और 61 फीसदी ग्रामीण लोगों ने कोरोना की दूसरी लहर के बीच पीएम मोदी के चुनाव प्रचार को गलत बताया है. अगर जनता का यही मूड आगे भी बना रहता है, तो मोदी सरकार के लिए आने वाले दिनों में होने वाले चुनावों में भाजपा की राह आसान दिखती नजर नहीं आ रही है. सर्वाधिक लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जो भाजपा और मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं. काफी मायनों में यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे मोदी सरकार की आगे की रणनीति को तय कर सकते हैं.

लॉकडाउन के फैसलों पर लोगों ने जताया भरोसा

कोरोना की पहली लहर के दौरान लॉकडाउन लगने की वजह से देश में बहुत ज्यादा चुनौतियां सामने नहीं आई थीं. सर्वे के अनुसार, मोदी सरकार की ओर से लगाए गए लॉकडाउन के फैसले को 76 फीसदी शहरी और 65 फीसदी ग्रामीण लोगों ने सही कहा है. एबीपी न्यूज-सी वोटर के इस सर्वे में लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस साल लॉकडाउन न लगाने के फैसले पर भी काफी लोग संतुष्ट नजर आए हैं. सर्वे में 57 फीसदी शहरी और 52 फीसदी ग्रामीण लोगों ने लॉकडाउन न लगाने के फैसले को सही माना है. हालांकि, कोरोना से निपटने के लिए लगए गए लॉकडाउन में मदद पहुंचने के सवाल पर ज्यादातर लोगों ने नाराजगी जताई है. सर्वे में शामिल 49 फीसदी शहरी और 54 ग्रामीण लोगों का कहना है कि लॉकडाउन में उन तक मदद नहीं पहु्ंची है.

वैक्सीन और सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर रही है.

वैक्सीन पर ग्रामीणों में दिखी नाराजगी 

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान वैक्सीन और सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर रही है. राहुल गांधी ने कोरोना संकट के दौरान वैक्सीन को विदेश भेजने पर भी नरेंद्र मोदी को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन, सर्वे में मोदी सरकार के लिए इस मामले पर राहत नजर आती है. हालांकि, सर्वे का हिस्सा रहे ग्रामीणों में वैक्सीन के इंतजाम को लेकर नाराजगी दिखाई ही है. वैक्सीन के इंतजाम के सवाल पर 46 फीसदी ग्रामीणों ने इसे सही नहीं बताया है. वहीं, 42 फीसदी ने इसे सही बताया है. शहरी आबादी की बात करें, तो 51 फीसदी लोगों ने वैक्सीन के इंतजाम को सही बताया है. वहीं, 38 फीसदी लोग ऐसे थे, जिन्होंने इसे खराब बताया. वैक्सीन विदेश भेजने के सवाल पर 54 फीसदी शहरी और 45 फीसदी ग्रामीण आबादी ने इसे सही फैसला बताया है. कोरोना काल में सेंट्रल विस्टा निर्माण को सर्वे में हिस्सा लेने वाले 48 फीसदी शहरी और 39 फीसदी ग्रामीण लोगों ने सही बताया है.

मोदी की लोकप्रियता बरकरार

एबीपी न्यूज-सी वोटर के सर्वे में कोरोना महामारी मोदी सरकार के लिए सबसे बड़े संकट के तौर पर सामने आई है. सर्वे में एक सवाल ये भी था कि कोरोना संकट को कौन बेहतर तरीके से संभालता, नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी? नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार के लिए इसका जवाब सुकून देने वाला कहा जा सकता है. 66 फीसदी शहरी और 62 फीसदी ग्रामीण लोगों ने कोरोना संकट को बोहतर तरीके से संभालने में नरेंद्र मोदी पर विश्वास दिखाया है. वहीं, राहुल गांधी पर 20 फीसदी शहरी और 23 फीसदी ग्रामीणों ने भरोसा जताया है. इससे साफ जाहिर है कि भाजपा के ब्रांड मोदी के सामने विपक्ष को एक बड़ा चेहरा पेश करना होगा. राहुल गांधी पर अभी भी लोगों का पूरा भरोसा कायम नहीं हो पाया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में भले कमी न आई हो, लेकिन कोरोना काल के बाद मोदी सरकार के लिए परिस्थितियां काफी बदलती दिख रही हैं. सर्वे में सवाल पूछा गया था कि आप किससे ज्यादा नाराज हैं? सर्वे में 54 फीसदी लोगों ने कुछ कह नहीं सकते हैं का विकल्प चुना है. इसके बाद 24 फीसदी ने मोदी सरकार से नाराजगी जताई है. 17 फीसदी लोगों ने राज्य सरकार से नाराजगी जताई है. इस सवाल के जवाब में 54 फीसदी लोगो की राय एक बड़ा गेमचेंजर साबित हो सकती है. इन लोगों ने अपनी मंशा जाहिर नहीं की है, तो कहा जा सकता है कि यह मोदी सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं हो सकता है. 2022 की पहली तिमाही में पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं. जिनमें से चार राज्यों में भाजपा सरकार है. इसी साल के आखिरी में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भी विधानसबा चुनाव होने हैं. कोरोना संकट के बाद मोदी सरकार के लिए राह आसान नजर नहीं आ रही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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